ग्लोब या पृथ्वी का हमशक्ल (मानचित्र )
हम सभी ग्लोब को देख चुके हैं पर यह कैसे काम करता है अक्सर समझ नहीं पाते हैं, आइये थोड़ा ग्लोब को समझें :
ग्लोब हमारी पृथ्वी के बारे में जानकारी देता है, इस पृथ्वी पर स्थित देशों, महाद्वीपों तथा महासागरों के बारे हम जानकारी ले सकते हैं, ग्लोब हमारी पृथ्वी का प्रतिरूप है, पृथ्वी पर किसी बिंदु की स्थिति का वर्णन करना कठिन है, जैसे हम पृथ्वी के किस भाग में खड़े हैं हम नहीं जान सकते, ग्लोब या मानचित्र द्वारा हम अपनी स्थिति जान सकते हैं ग्लोब एक प्रकार का मानचित्र ही है.
ग्लोब पर किसी बिंदु की स्थिति जानने के लिए कुछ काल्पनिक रेखा खींची गयी ही कुछ लेटी हुई (अक्षांस ) कुछ खड़ी हुई (देशांतर) जिनसे हम किसी बिंदु की स्थिति जान पाते हैं, ग्लोब थोड़ा झुका हुआ एक सुईं में धंसा होता है जिसे अक्ष कहते हैं, ग्लोब पर दो बिंदु जिनसे होकर सुईं गुजरती है उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को दर्शाते हैं, ग्लोब को इस सुईं के चारो और पश्चिम से पूर्व की और घुमाया जा सकता है जैसे हमारी पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की और घूमती है,
एक अन्य काल्पनिक रेखा भी ग्लोब को दो बराबर भागो में बांटती है, इसे विषुवत व्रत कहा जाता है, इस रेखा के विभाजन से पृथ्वी के आधे ऊपर वाले भाग को उत्तरी गोलार्ध तथा नीचे वाले भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहा जाता है, इस प्रकार विषुवत व्रत पृथ्वी पर एक काल्पनिक व्रत बनाती है, एवं यह पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों की स्थिति जानने का एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है.
विषुवत वृत् से ध्रुवो तक स्थित सभी समान्तर वर्तो (गोलों ) को अक्षांश (समांतर ) रेखाएं कहा जाता है, अक्षांशो को अंश से मापा जाता है, विषुवत व्रत शुन्य अंश (डिग्री) को दर्शाती है, चूँकि विषुवत गोले से दोनों ध्रुवों के बीच की दुरी, चारों और के गोले का एक चौथाई है , अत इसका माप होगा ३६० डिग्री का १/४ यानि ९० अंश, इस प्रकार ९० अंश उत्तरी अक्षांश उत्तर ध्रुव को दर्शाता है और ९० अंश दक्षिणी अक्षांश दक्षिणी ध्रुव को दर्शाता है.
इस प्रकार विषुवत गोले के उत्तर की सभी समान्तर रेखाओं को उत्तरी अक्षांश तथा विषुवत गोले के दक्षिण की सभी समान्तर रेखाओं को दक्षिणीअक्षांश कहते हैं , इसलिए प्रत्येक अक्षांश के मान के साथ उसकी दिशा यानि उत्तर या दक्षिण भी लिखा जाता है, जैसे जैसे हम विषुवत व्रत से दूर जाते हैं, अक्षांशो को आकर घटता जाता है.
मुख्य अक्षांश रेखाएं (समान्तर रेखाएं ) विषुवत व्रत शुन्य डिग्री , उत्तर ध्रुव (९०डिग्री ), तथा दक्षिणी ध्रुव ९० डिग्री के अतिरिक्त चार महत्वपुर्ण अक्षांश ररेखाये और भी हैं, इनका नाम है, उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा ( साढ़े २३ डिग्री उ ), दक्षिण गोलार्ध में मकर रेखा ( साढ़े २३ डिग्री द ), विषुवत व्रत के साढ़े ६६ डिग्री उत्तर में उत्तर ध्रुव व्रत, विषुवत व्रत के साढ़े ६६ डिग्री दक्षिण में दक्षिण ध्रुव व्रत।
पृथ्वी के हीट ज़ोन (क्षेत्र) या ताप कटिबंध
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बीच के सभी अक्षांशो पर सूर्य वर्ष में एक बार दोपहर में सर के ठीक ऊपर होता है इसलिए इस क्षेत्र में सबसे अधिक गर्मी मिलती है इसलिए इसे उष्ण कटिबंध कहते है, कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बाद किसी भी अक्षांश पर दोपहर का सूर्य कभी भी सर के ऊपर नहीं होता, ध्रुव की तरफ सूर्य की किरणे तिरछी होती जाती है, इस प्रकार, उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा एवं उत्तर धुर्व व्रत तथा दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा एवं दक्षिणी ध्रुव व्रत के बीच वाले क्षेत्र का तापमान माध्यम रहता है, इसलिये इसे शीतोष्ण कटिबंध कहा जाता है
उत्तरी गोलार्ध में उत्तर ध्रुव व्रत एवं उत्तरी ध्रुव व्रत तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण ध्रुव व्रत एवं दक्षिण ध्रुव के बीच के क्षेत्र में ठंड बहुत होती है, क्योंकि यहाँ सूर्य क्षितिज से ऊपर नहीं आ पाता है, इसलिए यह शीट कटिबंध कहलाते हैं
देशांतर
किसी स्थान को दिखाने के लिए उस स्थान के अक्षांश के अतिरिक्त कुछ और जानकारियों की जरुरत होती है, इन सन्दर्भ रेखाओं को देशांतर याम्योत्तर कहते हैं, इनके बीच के दुरी को देशांतर के अंशो में मापा जाता है, प्रत्येक अंश को मिनट में तथा मिनट को सेकंड में विभाजित किया जाता है, ( अक्षांश जहाँ पूर्ण व्रत (गोले ) हैं वही देशांतर अर्ध व्रत हैं) इनके बीच की दुरी ध्रुवों की तरफ घटती जाती है एवं ध्रुवों पर शुन्य हो जाती है, जहाँ सभी देशांतर याम्योत्तर आपस में मिलती हैं,
अक्षांश रेखाओ से भिन्न समान्तर रेखाओ की लम्बाई सामान होती है, इसलिए इन्हे मुख्य संख्याओं में व्यक्त करना कठिन था, तब सभी देशो ने निश्चय किया की ग्रीनिच (इंग्लैंड) जहाँ ब्रटिश राजकीय वेधशाला स्थित है, से गुजरने वाली याम्योत्तर से पूर्व और पश्चिम की और गिनती शुरू की जाये, इस याम्योत्तर को प्रमुख याम्योत्तर कहते है (प्राइम मेरीडोरियन ), इसका मान जीरो डिग्री देसाँतर है तथा यह से हम १८० डिग्री पूर्व या पश्चिम तक गिनती करते है ( क्योंकि जहाँ पूर्ण व्रत ३६० डिग्री का होता है वहीँ अर्ध व्रत ( देशांतर रेखाएं ) 180 डिग्री का होना चाहिए )
प्रमुख याम्योत्तर तथा १८० डिग्री याम्योत्तर मिलकर पृथ्वी को दो बराबर भागो में बांटती , जिन्हे पूर्वी गोलार्ध तथा पश्चिमी गोलार्ध कहा जाता है
देशांतर और समय
ग्रीनिच पर स्थित प्रमुख याम्योत्तर पर सूर्य जिस समय आकाश के सबसे ऊँचे बिंदु पर होगा, उस समय याम्योत्तर पर स्थित सभी स्थानों पर दोपहर होगी, पृथिवी पश्चिम से पूर्व की और घूमती है, अतः वह स्थान जो ग्रीनिच के पूर्व में हैं , उनका समय पीछे होगा (पृथ्वी लगभग २४ घंटे में अपने अक्ष पर ३६० डिग्री घूम जाती है एक घंटे में घूमेगी ३६० भाग २४ मतलब १५ डिग्री या ४ मिनट में १ डिग्री) इस प्रकार जब ग्रीनिच में दोपहर के १२ बजते हैं तब ग्रीनिच से ३० डिग्री पूर्व में सुबह के १० बजेंगे या जब ग्रीनिच में दोपहर के १२ बजे होंगे उस समय १८० डिग्री पर रात के बारह बजे होंगे (मध्य रात्रि )
किसी भी स्थान पर जब सूर्य आकाश में अपने उच्चतम बिंदु पर होता है उस समय घडी में १२ बजते हैं।, इस प्रकार घडी के द्वारा दिखाया गया समय उस जगह का स्थानीय समय होगा
मानक समय क्या है
अलग अलग याम्योत्तर पर स्थित स्थानों के स्थानीय समय के होता है, उदाहरण के लिए बहुत से देशान्तरों से होकर गुजरने वाली रेलगाड़ियों के लिए या हवाई जहाजों के लिए समय सारणी (टाइम टेबल) तैयार करना कठिन होगा , भारत के गुजरात से अगर असम को मापा जाये तो देशांतरीय रेखा के अनुसार लगभग दो घंटे का अंतर बन जाता हो यानि की गुजरात में सुबह के १० बजेंगे असम में दोपहर के बारह बजेंगे ( पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की और घूमती है क्योंकि , गुजरात जहाँ पश्चिम में है वहीँ असम पूर्व में है)
(जब इंग्लॅण्ड में दोपहर के बारह बजते है तब भारत में शाम में ५.३० बजते हैं क्योंकि इंग्लैंड का समय भारत के समय से ५.३० घंटा आगे है)
इसलिए यह आवश्यक है की देश के मध्य भाग से होकर गुजरने वाली किसी याम्योत्तर रेखा के स्थानीय समय माना जाता है, इसे भारतीय मानक समय के नाम से जाना जाता है, इसलिए भारत में साढ़े ८२ डिग्री पूर्व को मानक याम्योत्तर माना गया है, इसी याम्योत्तर के स्थानीय समय को पुरे देश का मानक समय माना गया है किसी किसी देश ने एक से अधिक मानक समय अपनाये है जैसे रूस.
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