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फ्रांस की क्रांति : एक अलग नजरिया

फ्रांस की क्रांति : एक अलग नजरिया 

 
पिछले लेखों में हमने फ्रांस की क्रांति के बारे में जानने की कोशिश की थी, आशा है पाठकों को यह सर्वमान्य अध्ययन समझ आया होगा, इतिहास में यही घटनाये बताई जाती हैं कुछ आगे पीछे हो सकती हैं वह इतिहासकार या व्याख्या करने वाला कहीं न कहीं किसी प्रभाव में रह सकता है, जिससे किसी वर्ग को यह क्रांति एक मात्र एक घटना लग सकती है. किसी को एक युग बदलने वाली घटना लग सकती है, अर्थार्त जिसके बाद युग की चाल  ही बदल जाये, न्यूटन के अनुसार “हर किर्या की एक पर्तिकिर्या होती है”  जो ऐसी १००० वर्षीय राजतन्त्र तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र के बदलाव के लिए अचानक इतनी मारकाट, नरसंहार होने के बाद फिर से नेपोलियन की एक सैनिक तानाशाही में आकर समाप्त हो जाती है। यह एक अकेली ऐसी ३६० डिग्री में घूमने वाली क्रांति है, जो एक तानाशाही से शुरू होती है और दूसरी तानाशाही में समाप्त होती है। इस घुमाव में दुनिया कितनी बदली आइये एक  नजरिया देखते हैं ।    
 
पिछले ब्लोग्स में हम इसके निकटगामी कारण और  प्रभाव के विषय में विस्तार से चर्चा कर चुके है, पाठक अधिक जानकारी के लिए इन ब्लोग्स को पढ़ सकते हैं, यह एक पारम्परिक तरीका है हर छात्र को एक नजर में पूरा विषय निकालना ही चाहिए।
please see the earlier related blogs at below links: https://padhailelo.com/french-revoluation-nepoliayan-dictator-ship/
 

फ्रांस की क्रांति के कारण 

 
तथ्य ___हम पीछे समझ चुके हैं कि समाज का विभाजन विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग और विशेषाधिकार विहीन वर्गों के बीच था तथा मध्य वर्ग का भी भारी  असंतोष था।  
 
व्याख्या ___जैसा की हमने जाना समाज उस समय फर्स्ट सेकंड और थर्ड एस्टेट में बंटा था फर्स्ट और सेकंड एस्टेट अर्थार्त सामंत और पादरी वर्ग जिन्हे कुलीन वर्ग भी कहा गया है इन्हे कोई भी टैक्स देने पर छूट थी इनके पास राज्य की अधिकतर सम्पति थी राज्य को अधिकतर टैक्स यह तीसरा वर्ग ही देता था 
 
यहाँ यह भी समझने की आवश्यकता है की इस तीसरे एस्टेट को भी सम्पति के मामले में बाँट सकते हैं जैसे सबसे ऊपर बड़े व्यापारी, वकील , डॉक्टर, पढ़े लिखे दार्शनिक, बड़े किसान, राज्य के बड़े ओहदो पर बैठे कर्मचारी इनके नीचे छोटे किसान, छोटे दुकानदार, पेशेवर कारीगर और सबसे नीचे फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिक मजदुर , भूमिहीन किसान, दैनिक मजदुर, दास इत्यादि। इनमे सबसे ऊपर वाले यानि की बड़े व्यापारी वर्ग आदि के पास सम्पति सबसे अधिक थी,  जिसे इतिहास  में मध्य वर्ग और बुर्जुआ वर्ग भी कहा गया है। 
 
तथ्य ___राजतन्त्र की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में दिनोदिन बढ़ती गिरावट परन्तु वह अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। 
 
व्याख्या ___ लुइ १४वे के समय फ्रांस की प्रतिष्ठा चरम पर थी उसने पुरे यूरोप में कई लड़ाइयां जीती थी उस समय फ्रांस की संस्कृति की यूरोप में गहरी छाप थी।  जनता भी उसे भगवान की तरह मानती थी तभी आलोचक के मुँह से कहलवाया गया है या उसने खुद ही कहा ” मैं ही राष्ट्र हूं ” . उसके बाद लुइ १५वा और लुइ १६वा लुइ १४वा की तरह फ्रांस के राजा का वह रुतबा कायम नहीं रख पाए,  उन्हें कई जगह हार मिली जिससे जनता में प्रचलित विश्वास,  कि राजा दैवीय आदेश से बनता है से मोह भंग हो गया । 
 
तथ्य __एक लम्बे समय की आर्थिक समृद्धि के काल बाद एक भुखमरी वाली गरीबी के काल ने क्रांति के लिए उपयुक्त जमीं तैयार की 
 
व्याख्या __फ्रांस पुरे यूरोप में शुरू से ही आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्ध रहा है, इसकी कृषि योग्य भूमि, इसकी  विज्ञान कला एवं संस्कृति इसे इतिहास में सबसे अलग करती हैं, जिनकी पुरे यूरोप में एक अमिट छाप  थी। जिससे हर वर्ग के पास ज्यादा नहीं तो गुजारे  लायक बहुत कुछ था। लेकिन लुइ १६वा के समय लगातार दो बार फसल ख़राब हुई एक बार अतिवृष्टि के कारण और एक बार अल्पवृष्टि के कारण, उस पर राज्य का टैक्स बढ़ाने का फैसला जिससे थर्ड एस्टेट में सबसे निचले पायदान के लोग भुखमरी की चपेट में आ गए।    
 
तथ्य ____फ़्रांसिसी चिंतको और बुद्धजीवियों ने बौद्धिक  वातावरण का निर्माण कर दिया 
 
व्याख्या ____चूँकि पुरे यूरोप में ही पुनर्जागरण का दौर चल रहा था नए नए विचार नए नए अविष्कार हो रहे थे, पुरानी  मान्यताओं को तर्क की कसौटी पर कसा  जा रहा था।  फ्रांस के चिंतक जिनमे mantesqu, जॉन लॉक, रूसो इत्यादि प्रमुख थे एक नए लोकतान्त्रिक संप्रभु राजनितिक विचार के साथ जनता को जोड़ चुके थे। जनता भी अब राजा के स्थान पर राज्य में अपना भी स्थान ढूंढ रही थी। 
 
तथ्य ___राजा के द्वारा स्टेट जनरल की बैठक का आयोजन क्रांति का तत्कालीन कारन 
 
व्याख्या ___फ्रांस की क्रांति का लोहा गर्म था लुइ १६वा तत्कालीन  राजा ने एस्टेट जनरल की बैठक बुलाकर ऐसी चोट मारी की जो फ्रांस की क्रांति की आग धीरे धीरे सुलग रही थी वह दावनल के रूप में बहार आ गयी, जिसने पुरे फ्रांस के साथ ही यूरोप को अपने चपेट में ले लिया। 
 

पेरिस की भीड़ 

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यहाँ ध्यान देने की बात है इस एस्टेट जनरल की बैठक में तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व मध्य वर्ग अर्थार्त तीसरे एस्टेट में सबसे अधिक सम्पति वाला वर्ग ही कर रहा था, जिसने अपने आपको टेनिस कोर्ट में शपथ लेकर नेशनल असेंबली घोषित कर दिया। क्या उनमे इतना दम  था की वह राजा की आर्मी और पुलिस का मुकाबला कर सकता था, अगर लुइ १४ चाहता तो उन्हें पकड़ कर जेल में डाल  सकता था लेकिन जब तक वह ऐसा करता तब तक यह खबर पुरे फ्रांस में आग की तरह फैल गयी और फ्रांस के छोटे और बड़े किसान मार्सिले का गीत गाते  हुए टेनिस कोर्ट की और चल पड़े थे, जिनमे पेरिस के कारीगर मजदुर और श्रमिक  सभी शामिल हो गए थे. जिसे पेरिस की भीड़ कहा जाता है, उसने उस टेनिस कोर्ट का घेरा बना लिया। इस प्रकार एस्टेट जनरल की सभा के सम्पति प्राप्त वर्ग से  क्रांति थर्ड एस्टेट के सम्पति विहीन वर्ग के पास आ गयी थी, और यही वह वर्ग था जो सबसे अधिक पिस  रहा था, अगर लुइ १४ जैसा शक्तिशाली राजा होता तो शायद वह इस भीड़ पर गोली चलवा सकता था, लेकिन लुइ १६ में वह हिम्मत नहीं हुई अन्यथा यह क्रांति यही दफ़न हो जाती। 
 

क्रांति के मध्य घटना क्रम 

 संवैधानिक राजतन्त्र का काल १७८९ -१७९२ था, जिसमे सामंतवाद का अंत तथा नागरिक अधिकारों की घोषणा हुई परन्तु राजतंत्र  का आस्तित्व  बना रहा। इस काल में संपत्ति प्राप्त मध्य वर्ग सत्ता में रहा उनने निम्न वर्ग के सम्पति विहीन वर्ग के अधिकारों को अनदेखा किया। मतलब राजा की जगह खुद शाशक बन कर अपने हितो पर ही ध्यान दिया। 
 
उग्र गणतंत्रवाद एवं जकोबियन शाशन का काल १७९२-१७९४ था, जिसमे क्रांति के द्वारा जनसामान्य अधिकारों की स्वीकृति मिली जैसे  मताधिकार का विस्तार २१ वर्ष तक के युवा तक हुआ,  शिक्षा एवं स्वास्थ्य में समाजवाद की झलक मिली, काम के घंटे निश्चित हुए परन्तु क्रांति उग्र एवं हिंसक हो गयी। केवल  जकोबियन शाशन में ही हमें आधुनिक लोकतंत्र के मूल्यों यथा सार्वभौमिक मताधिकार, समाजवाद की झलक (काम के अवकाश और घंटे ),  सभी के लिए सरकारी अनिवार्य शिक्षा, जनसमान्य की चिंता नजर आती है  लेकिन अल्पसमय (एक वर्ष ) ही था जिसे सर्वाधिक उग्र एवं हिंसक भी बताया जाता है। 
 
उदार गणतंत्रवाद एवं डायरेक्टरी का शाशन का काल १७९५-१७९९ था जिसमे क्रांति जन  सामान्य के सुधार कार्यों  से अलग हुई मताधिकार केवल सम्पति प्राप्त वर्ग तक सिमित हुआ। 
 
नेपोलियन का काल १७९९ से १८१५ तक था, जिसमे क्रांति के स्वरूप को ही बदल कर एक सिमित तानाशाही शुरू हुई, मताधिकार समाप्त   तो नहीं हुआ पर एक मजाक बन गया सीनेट कुलीन वर्ग पादरी वर्ग और निम्न वर्ग सभी सैनिक तलवार के नीचे आ गए। सवतंत्रता समाप्त हुई परन्तु समानता से समझौता नहीं हुआ फ्रांस को एक मजबूत सरकार  मिली।
 
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लेकिन महिलाओं, निम्न वर्ग, एवं दासों की दुर्दशा को क्रांति ने अनदेखा किया।  बहरहाल महिलाओं की संघर्ष गाथा और उनकी सामाजिक स्थिति के लिए  नवी कक्षा ncert से लिया गया एक उद्धरण देखे –
 
क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई ?

महिलाये शुरू से ही फ़्रांसिसी समाज में इतने अहम् परिवर्तन लाने  वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रही थी। उन्हें निम्न वर्ग (जेकोबीन) की तरह ही उम्मीद थी कि  उनकी भागीदारी क्रन्तिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने के लिए कुछ ठोस कार्य करेगी।  तीसरे एस्टेट की महिलाओं को जीवन निर्वाह के लिए अनेक कार्य करने पड़ते थे जैसे सिलाई बुनाई, कपड़ो की धुलाई ,बाजारों में फल फूल और सब्जी को बेचना या सम्पन्न घरों  में घरेलु कार्य करना।  बहुत साडी महिलाये वेश्यावृति में भी थीं। अधिकांश महिलाओं  पढाई लिखाई तथा व्यावसायिक प्रसिक्षण के मौके नहीं थे।  केवल कुलीनों की लड़किया अथवा तीसरे एस्टेट के धनि परिवारों की लड़कियां ही कान्वेंट में पढ़ पाती  थीं। इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती, कामकाजी महिलाओं को अपना पालन पोषण भी करना पड़ता था जैसे खाना बनाना , पानी लाना लाइन लगा कर पावरोटी लाना और बच्चों की देख रेख आदि करना। उनकी मजदूरी पुरषों  की तुलना में कम  थी। 

महिलाओं ने अपने हितो के की हिमायत करने के लिए और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनितिक क्लब शुरू किये, और अख़बार निकाले उस समय फ्रांस में महिलाओं के लगभग ६० क्लब अस्तित्व में आये। उनमे थे सोसाइटी ऑफ़ रेवलुश्नरी एन्ड रिपब्लिकन वेमन सबसे मशहूर क्लब था ठीक वइसे ही जैसे गिरोडिअन्स बुर्जुआ वर्ग के हितों  के लिए और जेकोबीन निम्न वर्ग के हितों  के लिए प्रशिद्ध थे। 

सोसाइटी ऑफ़ रेवलुश्नरी एन्ड रिपब्लिकन वेमन की सबसे प्रमुख मांग थी महिलाओँ  को पुरुषों के सामान राजनितिक अधिकार मिलने चाहिए वह इस बात से निराश थी, कि  १७९१ के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का  दर्जा दिया गया था मतलब उन्हें एक बेकार नागरिक माना  गया था। महिलाओं ने मताधिकार असेंबली के लिए चुने जाने और राजनितिक पदों की मांग रखी। शुरू के वर्षों में क्रन्तिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए कई कदम उठाये जैसे उनका पिता उनकी मर्जी के खिलाफ उनकी शादी नहीं कर सकता। शादी को स्वैछिक अनुबंध माना  गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका रजिस्ट्रेशन किया गया। तलाक को क़ानूनी रूप दिया गया और मर्द और औरतों दोनों को तलाक की अर्जी देने का अधिकार मिला। वह व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थी कलाकार बन सकती थी और छोटे मोठे व्यापर भी कर सकती थीं। 

राजनितिक अधिकारों से वह अब भी वंचित थीं उनका संघर्ष जारी रहा।  आतंक के राज के दौरान सरकार  ने महिला क्लबों  को बंद करने और उनकी राजनितिक गतिविधियों को समाप्त करने वाला कानून बनाया। कई  जानी मानी  महिलाओं को गिरफ्तार किया गया और उनमे से कुछ को फँसी दी गयी।  एक महिला नेता थी, ओलम्स दे गूज उन्होंने संविधान तथा पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र तैयार किया गया जिसे महारानी और नेशनल असेंबली के सदस्यों के पास यह मांग करते हुए भेजा कि  इस पर कार्यवाही की जाये। १७९३ में  ओलम्स दे गूज के महिला क्लबों को जबरदस्ती बंद कर दें के लिए जेकोबीन सरकार  की आलोचना की, उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला और फांसी दी गई 

ओलम्स दे गूस  के घोषणापत्र में कुछ मुलभुत अधिकार 

औरत जन्माना सवतंत्र है और अधकारों में पुरुष के सामान है, सभी राजनितिक संगठनों का लक्ष्य पुरुष और महिला के नरसंगिक अधिकारों को सरंक्षित करना है, वह हैं सवतंत्रता सम्पति सुरक्षा और बढ़कर शोषण के प्रतिरोध का अधिकार, सारी सम्प्रभुता का स्त्रोत राष्ट्र में निहित है जो महिला एवं पुरुषों के संघ के सिवाय कुछ भी नहीं है, कानून सामन्या इच्छा  की अभिवयक्ति होनी चाहिए।  सभी महिला और पुरुषों नागरिकों का या तो व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से निर्माण में दखल होना चाहिए।  यह सभी के लिए सामान हो, सभी महिला एवं पुरुष अपनी योग्यता प्रतिभा के अनुसार बिना किसी लीग बेहदभाव के सार्वजानिक पदों के अधिकारी हैं। कोई भी महिला अपवाद नहीं है, वह विधिसम्मत प्रक्रिया द्वारा  अपराधी ठहराई  जा सकती है, नजरबन्द और गिरफ्तार की जा सकती है। 

 १७९३ में जेकोबीन राजनितज्ञ शोमेत ने सभी महिला क्लब को बंद करना उचित ठहराया और यह तर्क दिए :

क्या प्रकृति ने घरेलु कार्य पुरुषों  को सौपा है ? क्या प्रकृति ने बच्चों को दूध पिलाने के लिए हमें स्तन दिए हैं? नहीं। प्रकृति ने पुरुष से कहा पुरुष बनो। शिकार कृषि राजनितिक कर्तव्य यह तुम्हारा साम्रज्य है प्रकृति ने महिला से कहा स्त्री बनो गृहस्थी के काम मात्र्तव के सुखद दायित्व यही तुम्हारा कार्य है। पुरुष बनने की इच्छा रखने वाली महिलाये निर्लज्ज हैं। क्या जिम्मेदारियों का बंटवारा का उचित बंटवारा हो नहीं चूका है ?

मताधिकार और सामान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा।  मताधिकार का संघर्ष उन्नसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के प्रारम्भ तक अंतरष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के लिए जारी रहा।  क्रन्तिकारी आंदोलन के दौरान फ़्रांसिसी महिलांओं की राजनितिक सरगर्मियों को प्रेरक समृति के रूप में जिन्दा रखा गया अन्ततं १९४६ में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल किया। 

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बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपय्या 
क्रांति के सारे  समय को देखें तो नेपोलियन के काल के आलावा सभी समय फ्रांस में सरकार अनिश्चित स्थिति में रही। और उस काल  को हम इस क्रांति के  विनाश को रूप में ही देखते हैं क्योंकि वह एक प्रकार की तानाशाही ही  थी, अन्यथा सत्ता अधिकतर सम्पति प्राप्त वर्ग यथा  कुलीन वर्ग पादरी वर्ग के हाथ ही रही जिसमे मध्यवर्ग जो निम्न वर्ग में सवार्धिक सम्पति प्राप्त था, वह भी क्रांति के हर काल में शामिल रहा, या यूँ कहे सत्ता के केंद्र में रहा।
 

क्रांति का महत्व 
 

फिर भी यह क्रांति विश्व इतिहास में आधुनिक लोकतंत्र और राजनीती में सर्वाधिक महत्व रखती है, जिसने आधुनिक लोकतंत्र के मूल्यों जैसे सवतंत्रता समानता बंधुत्व की भावना की अवधारणा, व्यक्ति एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा, राजनीती में जनता की भागीदारी, राष्ट्रवादी विचारधारा की अवधारणा, धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा, लोकतान्त्रिक एवं समाजवादी विचारों को प्रोत्साहित एवं विकसित किया। 
 
बूझो तो जाने 
 
यह बात है १७८९ से लेकर १८१५ तक के एक बदलाव की।  क्रांति की शुरुआत को यूरोप में बौद्धिक जागरण से बताया जाता है लेकिन यह बौद्धिक जागरण कहाँ से आया १००० वर्ष पुरानी राजतन्त्र व्यवस्था में यह बौद्धिक जागरण क्यों नहीं आया क्या उस पुरानी व्यवस्था में रहने वालों में दिमाग कम था या कुछ अन्य कारण  था? 
 
एक ओर रूसो के अनुसार “सच  में, कानून हमेशा संपत्ति रखने वालों के लिए उपयोगी होते हैं और उनके लिए हानिकारक होते हैं जिनके पास कुछ भी नहीं होता है; इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सामाजिक स्थिति मनुष्य के लिए तभी फायदेमंद होती है जब सभी के पास कुछ न कुछ हो और किसी के पास बहुत अधिक न हो। वहीँ दूसरी ओर  नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार ” अगर रूसो न होता तो फ्रांस की क्रांति नहीं होती ” क्या इन दोनों वाक्यों का फ्रांस की क्रांति से सम्बन्ध बनता है ?
 
बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपय्या 
 
आज अधिकतर देशों में लोकतंत्र या समाजवाद है, क्या आज संपत्ति प्राप्त वर्ग लोकतंत्र या समाजवाद के मूल्यों को चुनौती देता है या आज सम्पति प्राप्त वर्ग का दुनिया की सत्ता से मोह भंग हुआ है ?
 
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