भारतीय संविधान: बाह्य एवं आंतरिक स्त्रोत
भारतीय संविधान के इतिहास में जाएं तो हमें इसमें कई बाह्य एवं आंतरिक स्त्रोत मिलेंगे जहाँ से संविधान निर्माताओं को भारत का संविधान बनाने की प्रेरणा मिलती है, यहाँ यह भी गौर करने की बात है हमें जो सवतंत्रता मिलती है, वह अंग्रेजो या ब्रिटिश राज (ब्रिटेन ) के द्वारा मिलती है, उस समय ब्रिटिश राज में कई देश शामिल थे जिनमे भारत भी एक था.
अतः संविधान पर ब्रिटैन के संविधान की गहरी छाप मिलती है इसी कड़ी में, भारतीयों के कड़े विरोध और बलिदानो के कारन अंग्रेजो को भारतीय शाषन अधिनियम १९३५ पारित करना पड़ा जिसमे पहली बार भारतीयों को तत्कालीन भारत शाषन प्रणाली में एक मजबूत और इज्जतदार भूमिका मिलती है, जिसका अधिकतर हिस्सा हमारे नव भारत के संविधान में संविधान सभा द्वारा पारित किया गया है.
बहरहाल सर्वमानय संविधान विशेषज्ञों की सर्वमान्य सहमतिओ के आधार पर हम यहाँ भारतीय संविधान के बाह्य एवं आंतरिक स्त्रोत पर चर्चा करते हैं. जिससे हमें अपने संविधान के आंतरिक एवं बाह्य स्त्रोतों की जानकारी मिलेगी.
आंतरिक स्त्रोत
भारतीय शाशन अधिनियम १९३५
संविधान में इस अधिनियम के तहत जो हमें दीखता है, वह है न्यायपालिका, कम्पट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (CAG), लोक सेवा आयोग (UPSC). संविधान में कुल ३९५ में से २५० अनुच्छेद यहीं से लिए गए हैं.
ब्रिटैन
संसदीय शाशन व्यवस्था (राज्य सभा एवं लोक सभा), , संसदीय विशेषाधिकार (अनुछेद १०५ ), विधी का शाषन, एकल नागरिकता, मंत्रिमंडल व्यवस्था।
बाह्य स्त्रोत
सयुंक्त राज्य अमेरिका
मूल अधिकार (अनुछेद १३-३५ ), न्यायिक पुनर्विलोकन (अनुछेद १३७), संविधान की सर्वोचचता, निर्वाचित राष्ट्रपति और राष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग।
कनाडा
संघात्मक विशेषता, शक्तिओं का केंद्र एवं राज्य में विभाजन, बची हुई शक्तिओं या (अवशिष्ट) शक्तिओं को केंद्र के पास रहने का अधिकार
आयरलैंड
राज्य के निति निदेशक तत्व (भाग ४ अनुछेद ३६-५१ ) —– चयनित कार्यपालिका (सरकार ) को प्रेरित करते हैं की वह ऐसी आर्थिक एवं सामाजिक नीतियां बनाये जो राज्य को एक कल्याणकारी राज्य बनाये, जिससे उसमे रहने वाले नागरिको का जीवन स्तर ऊँचा बने.
राष्ट्रपति द्वारा १२ सदस्यों का राज्य सभा में मनोनयन
दक्षिण अफ्रीका
सविधान संशोधन—–हमारे सविधान निर्माता जानते थे की जिन समस्याओ को लेकर संविधन में आज उपबंध हैं , उन समस्याओं का स्वरुप कल बदल भी सकता है, इसलिए इसमें संशोधन की भी आवश्यकता पढ़ सकती है, सविधान संशोधन विशेषता दक्षिण अफ्रीका से ली गयी है (अनुछेद ३६८ )
फ्रांस
समानता, सवतंत्रता, बंधुता तथा गणतंत्रता किसी समय फ्रांस की क्रांति के नारे थे, इन स्वर्णिम शब्दों को हमने फ्रांस से लिया है।
ऑस्ट्रेलिआ
समवर्ती सूची ऐसे विषय जिस पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून सके
(ऐसे विषय जिन पर केंद्र और राज्य अलग अलग कानून बनाते है वह विषय केंद्रीय सूचि और राज्य सूचि के अंतर्गत भारतीय शाशन अधिनियम १९३५ में पहले से ही वर्णित है )
संयुक्त अधिवेशन (अनुछेद १०८) जिसमे किसी महत्वपूर्ण विधेयक को पारित करने में दोनों सदनों में सहमति नहीं बनती है, तब राष्ट्रपति दोनों सदनों लोक सभा एवं राज्य सभा को एक साथ बुला सकते हैं, जिसकी अध्यक्षता लोक सभा के स्पीकर करते हैं.
जर्मनी
आपदा के समय मूल अधिकारों की समाप्ति
रूस
बाद में १९७६ में ४२ वे संशोधन द्वारा नागरिको के कुछ मौलिक कर्तव्य भी जोड़े गए हैं, जिन्हे रूस से लिया गया है.
आलोचना
इस प्रकार हमें देखा कि संविधान को बनाने में हमारी संविधान सभा ने तत्कालीन विश्व के प्रचलित सविधानो से महत्वपूर्ण विषयो को अपने संविधान में शामिल लिया, ताकि हमारा संविधान अधिक शक्तिशाली बन सके, इस बात को लेकर कुछ आलोचक इसे उधार का संविधान भी कहते हैं, जो की सही नही है.
गर्व की बात
संविधान निर्माताओं ने बेशक लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए कई सविधानो का सहारा लिया है परन्तु वह भारत की भगौलिक, सांस्कृतिक, भाषायी विविधताओं की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर भारतीय नागरिकों के अनुकूल बनाया गया है, जिससे प्रत्येक भारतीय का सर्वांगीण विकास हो सके. भारत जैसे विविधता वाले देश में एक मजबूत सविधान को भारतीयों द्वारा बनाना एक गर्व की ही बात है।
*******
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Tumblr (Opens in new window) Tumblr
- Click to share on LinkedIn (Opens in new window) LinkedIn
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram