प्रथम गोलमेज सम्मलेन : अल्पसंख्यक वर्गों का सयुंक्त ज्ञापन
प्रथम गोलमेज सम्मलेन के बारे में हमने चर्चा की थी, डॉ बी आर अंबेडकर की स्पीच एंड राइटिंग के आधार पर आगे चर्चा करते हैं, अभी हमने देखा इस सम्मलेन में डॉ आंबेडकर और श्रीनवासन ने दलितों के प्रतिनिधि के तौर पर एक ज्ञापन इस सम्मलेन की अलप्संख्यक सिमिति को सौंपा था, अब हम एक अन्य ज्ञापन जो की, भारत के अल्पसंख्यक वर्गों ने सयुंक्त सहमति के आधार पर इस अलप्संख्यक सिमिति को दिया था, उसके बारे में चर्चा करते हैं.
कृपया डॉ आंबेडकर और श्रीनिवासन के दलितों की सुरक्षा और प्रतिनिधित्व सम्बंधित ज्ञापन जो प्रथम गोलमेज सम्मलेन की अल्पसंख्यक समिति को दिया गया था उसके बारे में जानने के लिए लिंक पर जाये: https://padhailelo.com/dr-ambedkars-memo-to-first-rtc/
अल्पसंख्यक वर्गों का सयुंक्त ज्ञापन के मुख्य बिंदु :
(1)सार्वजानिक नौकरियों, अधिकार व् प्रतिष्ठा वाले ऊँचे पदों या नागरिक अधिकारों के उपयोग और व्यापार या व्यवसाय के मामले में किसी भी व्यक्ति के साथ उसके जन्म, धर्म, जाति, या वंश के कारण कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।
(2)किसी भी समुदाय को प्रभावित करने वाले भेदभाव युक्त कानून के सरंक्षण के लिए सविंधान में क़ानूनी सुरक्षात्मक उपायों का प्रावधान किया जायेगा।
(3)सभी समुदायों को धार्मिक सवतंत्रता अर्थार्त किसी भी मत में आस्था रखने, पूजा पाठ करने, प्रचार करने, संस्थाये गठित करने और शिक्षा देने की सवतंत्रता रहेगी, बशर्ते उससे सार्वजानिक शांति व्र्यवस्था और नैतिक आदर्शो का उललंघन न होता हो.
(4)अपने खर्च ओर धर्मार्थ संस्थाओ, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओ स्कूलों और अन्य शैक्षिक संस्था की स्थापना और उनमे अपने अपने धर्म के पालन का अधिकार .
(5)संविधान में अल्पसंख्यक वर्गों के धर्म, संस्कृति और निजी कानून के सरंक्षण और उनकी शिक्षा, भाषा, धर्मार्थ संस्थाओं के प्रोत्साहन तथा राज्य और स्वायत्त संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाले अनुदान में देय अंश के सरंक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
(6)प्रत्येक ऐसे कार्य को कानून के तहत दंडनीय अपराध घोषित करना, जिसके करने या चूक होने होने से नागरिक अधिकारों के द्वारा उपयोग करने में बाधा पहुँचती हो और इन अधिकारों का सभी अधिकारों के द्वारा उपयोग सुनिश्चित किया जाना।
(7)केंद्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों के मंत्रिमंडल के गठन में यथासंभव मुस्लिम समुदाय और पर्याप्त जनसँख्या वाले अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधिओ को समझौते के द्वारा शामिल करना।
(8)अल्पसंख्यक वर्गों के सरंक्षण और उनके कल्याण के सवर्धन के लिए, केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के अधीन सांविधिक विभाग होंगे।
(9)सभी समुदायों को जिन्हे, इस समय किसी भी विधान मण्डल में नामजदगी या चुनाव के आधार पर प्रतिनिधित्व और अल्पसंख्यक वर्गों के प्रतिनिधित्व का अनुपात कम नहीं होना चाहिए, यदि कोई बहुसंख्यक वर्ग है, तो उसे उसे घटाकर अल्पसंख्यक के समान नहीं माना जायेगा, परन्तु १० वर्ष बीतने के बाद पंजाब और बंगाल में मुस्लिमों या किसी भी प्रांत में, वहां की किसी भी अल्प्शंख्यक वर्ग को, संयुक्त निर्वाचन या आरक्षित स्थान सहित, संयुक्त निर्वाचन समुदाय की सहमति से स्वीकार करने का अधिकार होगा।
(10)प्रत्येक प्रान्त और केंद्रीय सरकार में लोक सेवा आयोग की स्थापना और जो स्थान गवर्नर जनरल या गवर्नरों की नामजदगी से भरे जाने हैं, उनको छोड़कर लोक सेवाओं की नियुक्ति इन आयोगों के द्वारा इस प्रकार की जाएँगी कि कुशलता और आवश्यक योग्यता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न समुदायों को निरंतर समुचित प्रतिनिधित्व मिल सके। इस सिद्धांत के कार्यान्वन के लिए गवर्नर जनरल और गवर्नरों को नियुक्तिओं से सम्बंधित अनुदेश पत्र में और इस प्रयोजन के लिए सेवाओं के गठन की सावधिक समीक्षा करने के लिए अनुदेश दिए जायेंगे.
(11)अगर कोई ऐसा विधेयक पारित हो, जो की किसी धर्म विशेष या समुदाय विशेष के दो तिहाई सदन सदस्यों के धर्म या धर्म पर आधारित सामाजिक आचार विचार को प्रभावित करे, या जनता के मूल अधिकारों के मामले में एक तिहाई सदन सदस्य द्वारा आपत्ति दर्ज की जाये , तब उक्त प्रतिनिधि सदन सदस्य द्वारा विधेयक पारित हो जाने के, एक महीने की अवधि में, सदन के अध्यक्ष को भेज सकेंगे, जो उस आपत्ति को गवर्नर जनरल, और गवर्नरों के पास जैसा भी हो, अग्रेषित करेगा, और वह उसे एक वर्ष के लिए स्थग्न रखेगा, इस के बाद वह दोबारा उस अप्पति को सदन के पास दोबारा विचार के लिए भेज देगा, उसके बाद भी यदि सदन उस आपत्ति को संशोधित या दूर न करे, तब गवर्नर जनरल जैसा भी हो अपने विवेक के आधार पर उसे मंजूर या नामंजूर कर सकेगा, बशर्ते इस विधेयक को सम्बंधित समुदाय के दो सदस्यों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती न दी जाये, कि यह विधेयक या कानून उनके मूल अधिकारों में से किसी एक का उललंघन करता है.
इसके अलावा विभिन्न अल्पसंख्यक वर्गों ने अपनी विशेष मांगे भी इस ज्ञापन में रखी थी जिन पर अल्पसंख्यक वर्गों की सहमति थी, वह निम्न लिखित हैं :
मुसलमानों की विशेष मांगे
(१) सीमांओं की सुरक्षा की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रान्त को अन्य प्रांतो के स्तर की तरह गवर्नर के प्रान्तके रूप में गठित किया जाये। प्रांतीय विधान के गठन में नामजद सदस्यों की संख्या कुल संख्या के दस प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
(2) बम्बई प्रेसीडेंसी से सिंध अलग किया जाये, और इसे ब्रिटिश भारत में अन्य प्रांतो की तरह, और उसी स्तर का गवर्नर प्रान्त बनाया जाये।
(3) केंद्रीय विधान मंडल में मुसलमानों की संख्या सदन की कुल संख्या का एक तिहाई होगी, और केंद्रीय विधान मंडल में उनका प्रतिनिधित्व निर्दिष्ट अनुपात से कम नहीं होगा।
दलित वर्गों की विशेष मांगे
(१) यदि किसी प्रथा या रुड़ी के कारण राज्य का कोई व्यक्ति दण्डित किया जाता है, उसे हानि पंहुचाई जाती है या अयोग्य समझा जाता है या अस्पर्श्यता के कारण, उसके साथ भेदभाव किया जाता है, तब संविधान उस प्रथा या रूड़ी को अवैध घोषित करेगा।
(२) लोक सेवा में भर्ती और पुलिस और सेना सेवाओं में नाम लिखाने के मामले में उदारता का व्यवहार।
(३ ) पंजाब में दलित वर्गों को पंजाब भूमि हस्तांतरण अधिनियम का लाभ, जिसके अधीन वह आते हैं.
(४) किसी भी कार्यकारी अधिकारी द्वारा (दलित वर्ग के) हित के विरुद्ध कार्यवाही या उसकी उपेक्षा होने पर गवर्नर जनरल को अपील भेजने का अधिकार।
(५) दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व उस समय उनकी जनसँख्या से कम नहीं होगा।
आंग्ल भारतीय समुदाय की विशेष मांगे
(१)उनके समुदाय की विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए उनके उचित जीवन स्तर के निर्वाह के लिए सार्वजानिक नौकरी के बारे में उसकी मांग का विशेष ध्यान रखा जाये।
(२)अपनी शिक्षा संस्थाओ अर्थार्त यूरोपीय शिक्षा संस्थाओ के संचालन और नियंत्रण का अधिकार बशर्ते, की नियंत्रण मंत्री का हो, मौजूदा अनुदान के आधार पर उदार और पर्याप्त सहायता के लिए प्रावधान।
(३) वैधता और वंश के प्रमाण की शर्त के बिना, भारत में अन्य समुदायों के बराबर जूरी अधिकार और अभियुक्त द्वारा यूरोपियन या भारतीय जूरी द्वारा सुनवाई कराये जाने का अधिकार।
यूरोपीय समुदाय की विशेष मांगे
(१)सभी आद्योगिक और वाणिज्यक कार्यकलापों में भारत में जनमे व्यक्तिओं के समान अधिकार और विषेधाधिकर
(२)फौजदारी के मुकदमो की प्रक्रिया के बारे में मौजूदा अधिकारों’को यथावत रखें, और उसमे संधोधन, परिवर्तन या परिशोधन करने के किसी उपाय या कानून, का गवर्नर जनरल की पूर्व स्वीकृति के बिना न लाया जाये।
बूझो तो जाने
प्रथम गोलमेज सम्मलेन के समक्ष, इस ज्ञापन का मुख्य स्त्रोत, डॉ आंबेडकर स्पीच एंड राइटिंग है, सिख प्रतिनिधि इस संयुक्त ज्ञापन में शामिल नहीं हैं. इस सयुंक्त ज्ञापन को विभिन्न अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओ ने अपनी सहमति दी थी, उनके नाम हैं माननीय आगा खान (मुस्लिम), डॉ आंबेडकर (दलित), राव बहादुर पन्नीर सेल्वम (इसाई), माननीय हेनरी गिडने (आंग्ल भारतीय ), माननीय ह्यूबर्ट कार (यूरोपियन).
अगर हम आज के संविधान के बारे में बात करें, तो हमारे संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है, बाबासाहेब आंबेडकर जब कहते हैं, मूल अधिकार भारत के संविधान की आत्मा है, इसका क्या मतलब है, पाठक खोज करें।
*****,
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Tumblr (Opens in new window) Tumblr
- Click to share on LinkedIn (Opens in new window) LinkedIn
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram