फ्रांस की क्रांति : एक टकराव उच्च मध्यम (बुर्जुआ वर्ग) और निम्न वर्ग
फ्रांस की क्रांति जो कि समस्त विश्व में पहली बार आधुनिक लोकतंत्र के मूल्यों की स्थापना हेतु बदलाव लेकर आयी थी, उसके कुछ चरणबद्ध घटना क्रम पर चर्चा की। क्या एक टकराव उच्च मध्यम (बुर्जुआ वर्ग) और निम्न वर्ग के मध्य हो सकता है? पीछे हमने देखा नेशनल असेंबली की स्थापना हो चुकी थी। उसमे थर्ड एस्टेट के साथ कुछ फर्स्ट और बहुत कम सेकंड एस्टेट के प्रतिनिधि आ गए थे ध्यान रखे यह सभी उस एस्टेट जनरल के ही प्रतिनिधि थे जो राजा लुइ ने फ्रांस की दयनीय आर्थिक स्थिति पर चर्चा करने के लिए बुलाई थी।
इस नेशनल असेंबली ने एक वोट एक व्यक्ति के मसले पर राजा और फर्स्ट और सेकंड एस्टेट के विरुद्ध टेनिस कोर्ट में जाकर एक शपथ ली थी ‘ जब तक फ्रांस का संविधान नहीं बनेगा तब तक यह असेंबली भंग नहीं होगी ‘ .
इस नेशनल असेम्ब्ली की यही घोषणा फ्रांस की क्रांति का शुरुआती आधार बनती है. जिसे फ्रांस की बहुसंख्यक आबादी जो स्वय ही राज्य और चर्च के बेहिसाब करों और भुखमरी के कगार पर थी, इस असेंबली को अपना पूरा समर्थन देने लगती है, पेरिस में दंगे होते हैं, सामंतो (फूडल लॉर्ड्स या सोंड एस्टेट के गोदामों और घरो में लूट होती है. बास्तील के किले के जनरल और सैनिको को मारकर हथियार भी लुटे जाते हैं इस विद्रोह को दबाने हेतु आर्मी भी बुलाई जाती है, राजा गोली चलाने का आदेश नहीं देता है, कही निर्दोष न मारे जाये।
कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं की आर्मी के कुछ सैनिक भी इस क्रांति में शामिल हो गए थे, जिसका पता उसे उसके सेनापतियों से लगता है सेनापति उसे सलाह देते हैं अगर हुक्म दिया तो आर्मी के अन्य सैनिको को भी इस क्रन्तिकारी दल में शामिल होने का मौका मिल सकता है, शायद इसी डर से राजा आर्मी को इस विद्रोह को दबाने का हुक्म नहीं देता है। इसके बाद के घटना क्रम को हम आगे समझते हैं :
कॉन्स्टिट्यूट नेशनल असेंबली
नेशनल असेम्ब्ली जिसका हमने जिक्र किया था यह एक कॉन्स्टिट्यूट नेशनल असेंबली बन जाती है क्योंकि अब इसे एक संविधान बनाना था इसके लिए ही टेनिस कोर्ट में शपथ लीगयी थी। इस में बुर्जुआ वर्ग के पढ़े लिखे लोग जैसे वकील जज लेखक डाक्टर कलाकार आदि भी शामिल थे।
सामंतवाद (फुडिलिस्म ) का समापन
यह असेम्ब्ली सबसे पहले सामंतवाद (फुडिलिस्म ) का समापन करती है, यधपि लुइ १४ ने भी सामंतो की शक्ति में कमी की थी लेकिन यह असेंबली इसे पूरी तरह समाप्त कर देती है। चर्च की सरकारी जमीने भी जब्त की जाती हैं। यह किसी सामंत की या पादरी की व्यक्तिगत सम्पति को जब्त नहीं करती यह भी ध्यान रखे।
सभी पर एक समान कर व्यवस्था
सभी पर एक समान कर व्यवस्था लागु करती है. इससे जो सेकंड एस्टेट या नोबल वर्ग के लोग जिनके घरों को पहले से लुटा जा रहा था और घबरा गए वह आस पास के देशो जैसे इंग्लैंड ऑस्ट्रिया पर्शिया स्विट्ज़र लैंड में फ्रांस छोड़कर भाग गए, जिन्हे EMIGRES कहा गया जो बाद में EMMIGRANT शब्द बना.
CLERGY की संख्या को एक तिहाई कर दिया गया
CLERGY या फर्स्ट एस्टेट जिनमे फादर बिशप पादरी थे इनकी संख्या को लगभग एक तिहाई कर दिया गया. उन्हें कुछ और सिविल कार्य करने को कहा गया। इनसे जमीने भी ले ली गयी। इससे वहां के पॉप बहुत नाराज हुए इसलिए वह शुरू से ही क्रांति के खिलाफ रहे।
ABSLLUTE MONARCY TO CONSTITUTE MONARCHI
इस प्रकार हम देखते हैं की इस संवैधानिक असेम्ब्ली ने फ्रांस की निरंकुश राजशाही से एक संविधानिक राजशाही की तरफ ले जाना चाहा। इन्होने राजशाही को समाप्त करने की बात नहीं की बल्कि उसे संविधान के दायरे में लाना चाहा ठीक इंग्लैंड की तरह क्योंकि वहां भी राजशाही थी लेकिन संवैधानिक दायरे में थी।
DECLARATION OF THE RIGHTS OF MAN AND OF THE CITIZEN
इस संवैधानिक नेशनल असेंबली ने DECLARATION OF THE RIGHTS OF MAN AND OF THE CITIZEN नामक घोषणा पत्र निकाला, जिसमे मानव अधिकारों, उसकी सवतंत्रता और राज्य द्वारा उसकी तथा उसकी सम्पति की रक्षा की बात की गयी। यह दुनिया के इतिहास में मानव अधिकार और नागरिक अधिकारों के ऊपर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज था जिसकी कई बातें बाद में यूनाइट नेशन ने भी अपने ह्यूमन राइट्स चार्टर में अक्षरसः लिए थे
यह एक संविधान नहीं था लेकिन हमारा संविधान कैसे हो इसकी एक रुपरेखा थी, इसमें १७ आर्टिकल थे जिनमें उस समय के प्रमुख आधुनिक दार्शनिको के मुख्य विचारों को संकलित किया गया था।
लिबर्टी इक्वलिटी और फेरटेनिटी ( सवतंत्रता समानता और बधुत्व ) के सवर्णिम अक्षरों की अवधरणा को इस दस्तावेज में सम्मिलित किया गया था। इसके एक बहुत ही फेमस पंक्ति है. ” MAN ARE BORN FREE AND REMAIN FREE AND EQUAL IN RIGHTS’. मतलब सभी मानव एक समान हैं सभी के अधिकार हैं कोई भी फर्स्ट सेकंड या थर्ड एस्टेट का नहीं है।
लेकिन इसमें महिलाओं और दासों के अधिकारों की बात नहीं की गयी भूमिहीन किसान मजदुर कारीगर फैक्ट्री मजदुर इत्यादि उन्हें वोटिंग में नहीं रखा गया। महिलाओं और दासों को पैसिव सिटीजन कहा गया, साथ ही २५ वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषो जो टैक्स देते थे, को ही वोट देना का अधिकार था जिन्हे एक्टिव सिटिजेन कहते थे जिनकी संख्या कुल जनसंख्या में से केवल लाखों में थी। इसका कारन था वोटिंग में बुर्जुआ वर्ग अधिक भाग ले सकता था क्योंकि उनके पास पैसा था, वह टैक्स भी देते थे । इस दसतावेज की यही सबसे बड़ी कमी थी
फ्रांस की औरतों का वर्साय की तरफ कूच करना (अक्टूबर १७८९ )
इसके बाद अक्टूबर में एक महत्वपूर्ण घटना होती है जिसे कहते हैं। ‘फ्रांस की औरतों का वर्साय की तरफ कूच करना’ . जैसे की हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं फ्रांस में महगाई की दर बहुत बढ़ चुकी थी, घरो में खाने पिने की दिक्कते इतनी थी की भूख से लोग मरने लगे थे, घरो की महिलाये बहुत गुस्से में थी ऐसे में इन भूखे घरो में एक अफवाह फैलीकी राजा ने खाने पिने की सारा सामान अपने वर्साय के महल में जमा किया है, उसके पास बहुत बड़े गोदाम हैं. इस स्थिति में ७-८ हज़ार महिलाएं इकठी हुई इनके पास जो भी हथियार थे वह लिए। उन्होंने वर्षाय के महल की तरफ कूच किया जिसमे उनके साथ रास्ते में कुछ अन्य विद्रोही भी शामिल हो गए, जिसमे कुछ आर्मी के सैनिक भी थे इस प्रकार यह एक बहुत बड़ा जथा बन गया।
इतने बड़े इस जत्थे ने वर्साय का गेट खुलवाया और वहां के पहरेदारों को मार दिया, इस बड़े जथ्थे को वर्साय में खाने पीने की वस्तुओं के गोदाम तो नहीं मिले क्योंकि यह तो एक अफवाह थी, अपितु यह वर्साय की भव्यता की चका चोंध से इतने चिढ़ गए उन्होंने राज परिवार से कहा अब आप पेरिस चलकर हमारे साथ रहिये ताकि आपको हमारे सुख दुःख का पता चलता रहे। एक प्रकार से उन्होंने राज परिवार को बंधक बना लिया था।
राइट विंग लेफ्ट विंग जैसे शब्दों का उदय
१७९० में संविधान लिखा जा रहा था, इसी दौरान कई राजनितिक दल उभर कर आने लगे थे जिनकी अपनी अपनी विचार धारा थी। उसी समय राइट विंग लेफ्ट विंग जैसे शब्द निकल कर आये जो आज भी सुने जाते हैं. जो राजा का समर्थन करते थे, वह उसके राइट में बैठते थे और जो उसका विरोध करते थे वह लेफ्ट में बैठते थे।
फ्रांस में कई क्लब बन गए थे
इसी दौरान १७९० की शुरुआत में फ्रांस में कई क्लब बन गए थे जो संविधान और इस क्रांति को आगे बढ़ाने के बारे मेंचर्चा करते थे। मतलब कोई संवैधानिक राजतन्त्र का, कोई लोकतंत्र का पक्षकार था। इनमे मुख्य थे जीरोडिअन्स और जेकोबिन्स तथा कुछ महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले महिलाओं के ग्रुप। इनमे सबसे शक्तिशाली थे जीरोडिअन्स और जेकोबिन्स। इनके बारे में हम चर्चा करते है :
जेकोबिन्स
जेकोबिन्स- यह एक कारीगरों और दैनिक मजदूरों का क्लब था जिसमे अधिकतर संख्या उस समाज के भूमिहीन किसान खेतो में काम करने वाले, फ़ैक्टरिओं में काम करने वाले दैनिक मजदुर, कारीगर और कर्मचारी वर्ग के लोग शामिल थे, यह शुद्ध क्रन्तिकारी थे क्योंकि इनके पास अपना खोने के लिए कुछ था ही नहीं न भूमि न पैसा और न ही व्यापार का मुनाफा। इनका काम था केवल मेहनत करना और मुनाफा अपने मालिक को देना। इनका मानना था कि इस क्रांति के बाद जो सत्ता है वह पढ़े लिखे लोगों, बड़े व्यापारी, उच्च मध्यम वर्ग मतलब जिनके पास फर्स्ट और सेकंड एस्टेट के बाद जो पैसे वाले थे उनके पास आ गयी है। इन्हे SANS CULOTTES भी कहते थे. SANS का मतलब है WITHOUT और CULOTTES का मतलब घुटने तक की हाफ पेंट जिसे ब्रीचेज भी कहते थे एक अमीरी की निशानी थी। इनके पास इतना पैसे नहीं था जो यह ब्रीचेस बनवा सके, इसलिए यह पूरी पेंट पहनते थे। यह एक अलग तरह की टोपी भी पहनते थे जो अधिकतर लाल रंग की होती थी। इनकी वेश भूसा से इन्हे हर कोई पहचान लेता था।
जेकोबिन्स का नेता था मैक्समिलियन de रॉब्सपियर एक फ़्रांसीसी वकील और राजनीतिज्ञ था । इन्हें फ़्रान्सीसी क्रान्ति से जुड़े सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रभावशाली लोगों में गिना जाता है। रॉब्सपियर स्वभाव से अंतर्मुखी और रूसो के अनन्य भक्त थे। या यूँ कहे अब जेकोबिन्स जो निम्न वर्ग का प्रतिनिधि होता है वह अपने अधिकारों के लिए सत्ताधारी मध्यमवर्गीय से टक्कर लेता है। यह वही निम्न वर्ग था जिसने टेनिस कोर्ट शपथ के समय थर्ड एस्टेट के पर्तिनिधियो को जो इस क्रांति को नेतर्त्व प्रदान कर रहे थे, उन्हें अपना पूरा समर्थन दिया था और क्रांति को पुरे फ्रांस में फैलाया था कहा जाता है जब थर्ड एस्टेट शपथ लेता है यही फ्रांस के निम्न वर्गीय लोग इन शपथ लेने वाले थिर एस्टेट के प्रतिनिधिओं के चारो और और घेरा बना का खड़े हो जाते हैं जिससे राजा के सैनिक इन थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधियों को वहां से हटा नहीं पाते हैं, यही निम्न वर्ग इस क्रांति की लकीर में राजा के सैनिको के सामने सबसे आगे रहता था। लेकिन राजा से सत्ता माध्यम वर्ग या बुर्जुआ वर्ग के हाथो में रही थी और यह निम्न वर्ग अपने को ठगा महसूस कर रहा था।
जेरोइन्डिंस
जेरोइन्डिंस – यह थोड़े उदारवादी विचारधारा के थे, इसके अधिकतर सदस्य फ्रांस में स्थित जिरोदैं जगह से आते थे इसलिए इन्हे जेरोइन्डिंस कहा जाता था। जेकोबिन्स से अधिक पैसे वाले और पढ़े लिखे थे।
नेशनल कोंस्टीटूटे असेंबली राज
१७९१ में संविधान बन रहा था, नेशनल कोंस्टीटूटे असेंबली राज कर रही थी, राजा लुइ को लगा, यहां मेरी जान को खतरा है, इसलिए मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिए। इसलिए राजा ने अपने पुरे परिवार के साथ ऑस्ट्रिया भागने की कोशिश की, क्योंकि वह उसका ससुराल था, लेकिन वह फ्रांस ऑस्ट्रिया की सीमा पर पकड़ा गया, उसे वापस पेरिस लाया गया, इससे लोगों में और गुस्सा भड़क गया अभी तक वह समझ रहे थे कि हमारा राजा भी संविधानिक वयवस्था चाहता है और क्रांति को समर्थन दे रहा है। पर वह तो यहाँ से भाग रहा है वह इस इस बदलाव को स्वीकारना नहीं चाहता।
अब तो फ्रांस में लोकतंत्र ही चाहिए
इसी दौरान जेकोबिन्स ने मांग कर दी अब तो फ्रांस में लोकतंत्र ही चाहिए। लेकिन जो संवैधानिक नेशनल असेंबली बन चुकी थी वह उस समय फ्रांस पर राज कर रही थी। वह चाहती थी यहाँ पर संवैधानिक राजतन्त्र रहे जैसे कि उस समय इंग्लॅण्ड में था। ऐसे में नेशनल संवैधानिक असेंबली में और जेकोबिन्स में विरोध होना शुरू हो गया। जेकोबिन्स अब लोकतंत्र के लिए जगह जगह उग्र प्रदर्शन करने लगे।
आम आदमी पर ही गोली
आम अब इस सत्ता में बैठी असेंबली ने इन जेकोबिन्स के विद्रोह को दबाने के लिए नेशनल गार्ड्स से जेकोबिन्स पर गोलियां चलवा दी। इससे जेकोबिन्स और उनके समर्थक अन्य फ़्रांसिसी जनता का गुस्सा और भड़क गया। १७८९ में नेशनल गॉर्डस की स्थापना की गयी थी, जो इस क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए बनाई गयी थी, यह आम आदमी की सेना मानी जाती थी, जिसने आम आदमी पर ही गोली चला दी थी।
सितम्बर १७९१ में लगभग दो वर्ष के समय में संविधान बन कर तैयार हो गया था इसलिए नेशनल कोंस्टीटूटे असेंबली भंग कर दी गयी थी (कृपया वह टेनिस कोर्ट की शपथ याद करे जिसमे यही शपथ ली गयी थी जब तक एक संविधान नहीं बनता तब तक हम अलग नहीं होंगे) . इसकी जगह अब लेजिस्लेटिव असेंबली का राज शुरू हो गया था, इस नए बने संविधान के अनुसार, जैसा की यह नेशनल कोंस्टीटूटे असेंबली चाहती थी राजा को हेड ऑफ़ स्टेट बना दिया गया, यानि की संवैधानिक राजतन्त्र।
लेजिस्लेटिव असेंबली का राज
लेकिन यह लेजिस्लेटिव असेंबली अधिक दिन तक कार्य नहीं कर पायी जो विभिन्न ग्रुप बने थे खासकर जेरोइन्डिंस और जेकोबिन्स इनमे आपसी मतभेद बढ़ते गए ई कहता था राजा के सिमित अधिकार रहने चाहिए कोई कहता था राजा को हटा देना चाहिए, कोई कहता था राजा को भी अधिकार देने चाहिए कोई कहता था नहीं राजा को वीटो पावर देनी चाहिए कोई कहता था राजा को सिमित अधिकार होने चाहिए । मतलब कोई संवैधानिक राजतन्त्र का, कोई लोकतंत्र का पक्षकार था। तभी एक बात और फैलने लगी कि राजा लुइ अपने लिए विदेशी राजाओं से गुप्त तरीके से मदद मांग रहे हैं ताकि उसका पुराना राज फिर से लौट आये।
DECLERATION OF PILLNTZ
फ्रांस के जो पडोसी देशों के राजा थे वह यह सब देखकर बहुत घबरा गए थे, वह देख रहे थे किस प्रकार फ्रांस में यह क्रांति फैलती जा रही है हर कोई क्रांति के बुखार में आ चूका है एक अराजकता फैलती जा रही है, वहां उन्होंने अपने राजा को बंधक जैसा बना रखा है इसका असर हमारे देशो पर न आ जाये हमारे लोग भी कहीं क्रांति का झंडा न उठा ले। इसी डर के कारण, ऑस्ट्रिया जो की लुइ का ससुराल भी था वहां के राजा जो लुइ का साला (brother in law) भी था और पर्शिया के राजा ने DECLERATION OF PILLNTZ की घोषणा कर दी, जिसका मतलब था हम पूरी कोशिश करेंगे की फ्रांस में फिर से लुइ १६ का राज या राजशाही कायम हो जाये। हम यह क्रांति का बुखार समाप्त कर देंगे। यह उन्होंने खुले तौर पर इस क्रांति को चुनौती दे डाली, जिससे फ्रांस के जांबांज क्रांतिकारी अधिक भड़क गए, आप सोच सकते हैं जो अपने राजा को नहीं सुन रहे हैं वह दूसरों की क्या सुनेगे।
अप्रैल १७९२ में फ्रांस का हमला ऑस्ट्रिया और पर्शिया के विरुद्ध
फ्रांस की आम जनता अब राजा को अधिक संदेह की दृष्टि से देखने लगी, उन्हें लगा की राजा लुइ ने इनसे प्रार्थना की होगी तभी यह विदेशी हमारी क्रांति को चुनौती दे रहे हैं। फ्रांस की जनता राजा लुइ पर शक करने लगी हो सकता है राजा ने उनसे मदद मांगी होगी तभी विदेश ऐसी घोषणा कर रहे है इसलिए लोग ऑस्ट्रिया पर्शिया और अपने राजा लुइ से अधिक नाराज हो गए। उन्हें लगा यह तो सीधे सीधे फ्रांस की जांबाज जनता पर एक विदेशी हमला है। इसलिए उन्होंने अप्रैल १७९२ में उनसे पहले ही ऑस्ट्रिया और पर्शिया के विरुद्ध अपनी जंग छेड़ दी। जिसे कई बार बार प्रथम क्रन्तिकारी जंग भी कहा जाता है।
लुइ राजा के ऊपर देश द्रोह का मुकदमाँ
अगस्त १७९२ मे राजा और उसके परिवार पर जो अब पेरिस के छोटे महल में रह रहे थे कुछ कट्टर क्रान्तिवादियों द्वारा हमला किया जाता है इनमे अधिकतर जेकोबिन्स थे। वह गुसाई भीड़ उनके गॉर्डस को मार देती है, इससे राजा बहुत घबरा जाता है वह लेजिस्लेटिव असेंबली से पार्थना करता है की उसे और उसके परिवार की रक्षा की जाये। इससे यह लेजिस्लेटिव असेंबली भी आक्रोशित हो जाती है उन्हें भी लगता है राजा ने जरूर ऑस्ट्रिया और पर्शिया से मदद मांगी होगी इसलिए उन्होंने यह घोषणा की है, जिसकी वजह से फ्रांस के सैनिक ऑस्ट्रिया और पर्शिया से लड़ रहे हैं । वह राजा के ऊपर देश द्रोह का मुकदमा करने की तैयारी करती है और स्वयं को भंग कर देती है।
फ्रांस में चुनावों की घोषणा राजशाही समाप्त, लोकतंत्र की शुरुआत
इस घटना के बाद राजशाही को एक दम समाप्त कर दिया जाता ही क्योकि फ्रांस पहले से ही ऑस्ट्रिया और पर्शिया के विरुद्ध लड़ रहा था इस संविधान को दोबारा से लिखने का कार्य किया जाता है, पिछले में राजा को राज्य का संवैधानिक प्रमुख बनाया गया था लेकिन अब रैडिकल्स क्रांतिकारियों या जेकोबिन्स का जोर बढ़ता जा रहा था। इसलिए यह लेजिस्लेटिव स्वयं को समाप्त कर देती है। और एक नए लोकतान्त्रिक संविधान को लिखने का कार्य किया जाता है साथ ही फ्रांस में चुनावों की घोषणा की जाती है।
१७९२ में आधुनिक लोकतंत्र का संविधान बनाने का विचार
इस प्रकार हम देख सकते है की यधपि क्रांति की शुरुआत १७८९ में की गयी थी लेकिन कई युगान्तकारी घटनाये १७९२ में होती है जैसे संवैधानिक राजशाही को भी पूरी तरह से फ्रांस से समाप्त करना, उसकी जगह लोकतंत्र की घोषणा के लिए संविधान बनाने की घोषणा करना। राजा के ऊपर महाभियोग चलाना और राजा के समर्थक अन्य विदेशियों को मुँह तोड़ जवाब देना। इसके आलावा यह भी देख सकते है की यह क्रांति एक पहेली की तरह आगे बढ़ रही है कभी कोई सत्ताधारी राजा के प्रति उदारवादी होता है बाद में वही ग्रुप राजा पर देश द्रोही का मुकदमा चलाने की घोषणा के साथ स्वयं को भंग कर देता है।
राजा लुइ १६ की मौत तथा फ्रांस के खिलाफ पडोशी देशो का युद्ध का एक गुट (FIRST COALITION WAR )
राजा लुइ के खिलाफ देशद्रोह का कोर्ट में केस चलाया है और जनवरी १७९३ में राजा को मिर्त्यु दंड दे दिया गया। राजा की मौत के बाद डच, ब्रिटैन और स्पेन ऑस्ट्रिया और पर्शिया के साथ फ्रांस में खिलाफ युद्ध में खड़े हो जाते हैं क्योंकि यूरोप की इन महाशक्तिओं को लगता है कि इस क्रांति की चपेट में लोग अपने राजा को ही मार देते हैं, यह क्रांति बहुत खतरनाक होती जा रही है अगर फ्रांस को दबाया नहीं गया तो हमारे देशों में भी इसकी आग लग सकती है। इस प्रकार फ्रांस के खिलाफ उसके पडोसी देशो का युद्ध का गुट बन जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं यह क्रांति पहले राजशाही लोकतंत्र की ओर बढ़ती है उसके बाद जेकोबिन्स द्वारा लोकतंत्र की मांग और राजा की मौत तक आ जाती है। अगर जेकोबिन्स के हितो का ध्यान रखा जाता तो क्या निम्न वर्ग मध्यम वर्ग के खिलाफ या राजा के खिलाफ विद्रोह करता। इस क्रांति की लड़ाई में निम्न वर्ग को आगे रखा गया, और सत्ता की रेवड़ी बाँटने में अलग कर दिया .
—- क्रमशः जारी है
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