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Bharat: Jalvayu, Vanaspati aur Vanya Prani

भारत जलवायु वनस्पति तथा वन्य प्राणी 

भारत का मौसम

मौसम वायुमंडल में दिन प्रतिदिन होने वाला परिवर्तन है, इसमें तापमान, वर्षा तथा सूर्य का विकिरण इत्यादि शामिल है, मौसम कभी गर्म या ठंडा हो सकता है, कभी बारिश वाला हो जाता है, हमारे वस्त्र तथा खाने पीने की वस्तुए भी मौसम के अनुसार बदलती रहती हैं,

सामान्यतः भारत में प्रमुख मौसम होते हैं जैसे; 

दिसम्बर से फरवरी तक ठंडा मौसम (सर्दी)

मार्च से मई तक गर्म मौसम (गर्मी)

जून से सितम्बर तक दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम (वर्षा)

अक्टूबर और नवम्बर में मानसून के लौटने का मौसम (शरद)

शीत ऋतू 

ठन्डे मौसम में सूर्य की किरणें  सीधी नहीं पड़ती हैं, इसके कारण उत्तर भारत का तापमान कम हो जाता है.

ग्रीष्म ऋतू 

गर्मी के मौसम में सूर्य की अधिकतर किरणें सीधी पड़ती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है, दिन के समय गर्म एवं शुष्क पवन बहती है जिसे लू  कहा जाता है.  

दक्षिण-पश्चिम मानसून 

यह मानसून के आने तथा आगे बढ़ने का मौसम है, इस समय पवन बंगाल की खाड़ी तथाअरब सागर से स्थल की और बहती है, वह अपने साथ नमी भी लाती  है. जब यह पवन पहाड़ो से टकराती है तब वर्षा होती है (अगर भारत में पहाड़ तथा पर्वत न हो तो क्या बारिश होगी?)

मानसून के लौटने का समय या शरद ऋतू 

इस समय पवन स्थल भागों से लौटकर बंगाल की खाड़ी की ओर बहती है (जो पवन अभी स्थल भागो की ओर थी वह अचानक क्यों वापस बंगाल की खाड़ी की बहने लगी, जरा पता लगाइये) , भारत के दक्षिण भागों में विशेषकर तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में इस मौसम में वर्षा होती है (क्या तमिलनाडु की वर्षा दक्षिण पूर्व मानसून की वजह से है या किस अन्य वजह से, कृपया खोजें ), किसी स्थान पर अनेक वर्षो में मापी गयी मौसम की औसत दशा को जलवायु कहते हैं.

भारत की जलवायु को मोटे तौर पर मानसूनी जलवायु कहा जाता है, मानसून शब्द अरबी भाषा के मौसिम शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है मौसम, भारत की स्थिति उष्ण कटिबंध में होने के कारण अधिकतर वर्षा मानसूनी पवन से होती है, भारत में कृषि वर्षा पर निर्भर है, अच्छी  मानसून का मतलब पर्याप्त वर्षा तथा प्रचुर मात्रा में फसलों का उत्पादन।

किसी स्थान की जलवायु उसकी स्थिति, ऊंचाई, समुद्र से दूरी, तथा उच्चावच पर निर्भर करती है, इसलिए हमें भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नता का अनुभव होता है, राजस्थान के मरुस्थल में स्थित जैसलमेर तथा बीकानेर बहुत गरम स्थान हैं, जबकि जम्मू तथा कश्मीर के द्रास एवं कारगिल में बर्फीली ठण्ड पड़ती है, तटीय क्षेत्र जैसे मुंबई और कोलकता की जलवायु मध्यम है, वह न अधिक ठंडी और न अधिक गरम, समुद्र तट पर होने के कारण यह स्थान बहुत अधिक आद्र  हैं, विश्व में सबसे अधिक वर्षा मेघालय में स्थित मौसिनराम में होती है जबकि किसी-२ वर्ष  राजस्थान के जैसलमेर में बारिश होती ही नहीं है.

प्राकृतिक वनस्पति 

हमारे चारों ओर जो वनस्पति होती है उनमें से कहीं पर घास के मैदान होते हैं,  कुछ छोटे पौधे होते हैं जिन्हे झाड़ी  कहते हैं जैसे कैक्टस फूलों वाले पौधे, कुछ बड़े पेड़ जैसे आम, नीम पीपल इत्यादि जिनमे बहुत सी डालें और पत्तिया होती हैं, कुछ पेड़ो में डालो और पतियों की मात्रा कम होती है जैसे नारियल, केला, खजूर इत्यादि, घास झाड़िया और पौधे जो बिना मनुष्य की सहायता के उपजते हैं उन्हें प्राकृतिक वन्सपति कहते हैं.

अलग अलग जलवायु में अलग अलग वनस्पति पाई जाती है जिसमें वर्षा की मुख्य भूमिका होती है, भारत में जलवायु की विभिन्नता के कारण अलग -२ वनस्पतियां पाई जाती हैं.

वन 

वन हमारे लिए बहुत ही आवश्यक हैं, यह विभिन्न कार्य करते हैं, पेड़ पौधे ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे हम साँस लेते हैं, तथा कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं, पेड़ पौधों की जड़े मिटटी को बांध कर रखती हैं, इस प्रकार वह मिटटी के अपरदन (कटाव) को रोके रखते हैं, वनो से हमें ईंधन, लकड़ी, चारा, जड़ी बूटियां, लाख, शहद. गोंद इत्यादि प्राप्त होते हैं, इसके आलावा वह वहां की तापमान को बढ़ने से भी रोकते हैं.

पेड़ो की अत्यधिक कटाई के कारण भारी  मात्रा में प्राकृतिक वनस्पति समाप्त हो गयी हैं, इसलिए हमें पेड़ पौधों की रक्षा करनी चाहिए और अधिक मात्रा में पेड़ लगाने चाहिये, इनके बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।

वन्य प्राणी 

वन विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का निवास होते हैं, वनो में जन्तुओ की हजारो प्रजातियां तथा विभिन्न प्रकार के सरीसर्पों, उभयचर, पक्षिओं, स्तनधारियों,  कीटो और कृमिओं  का निवास होता है.

बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है, यह देश में विभिन्न भागों  में पाया जाता है, गुजरात के गिर वनो में एशियाई शेरो का निवास है (पुरे एशिया में शेर केवल और केवल गिर वनो में पाए जाते हैं या फिर अफ्रीका के सवाना के जंगलो में जो इस बात की ओर इशारा करते है की प्रायद्वीप भारत कभी अफ्रीका का हिस्सा था). हाथी  केरल एवं कर्नाटक में भी मिलते हैं, ऊंट भारत के रेगिस्तान तथा जंगली गधा कछ के रन में मिलते हैं, जंगली बकरी, हिम तेंदुआ, भालू इत्यादि हिमालयी क्षेत्रो में मिलते हैं.

 इनके अतिरिक्त बहुत से दूसरे जानवर जैसे; बन्दर, सियार, भेड़िया, नीलगाय, चीतल इत्यादि भी हमारे देश में मिलते हैं. इनको बचने के लिए कई राष्ट्रीय पार्क बनाये गए है (कृपया उन्हें ढूंढे)

पक्षिओ में मोर हमारा राष्ट्रिय पक्षी है, भारत में पक्षी तोता, मैना, कबूतर, बुलबुल बत्तख इत्यादि हैं (अत्यधिक वनो की कटाई और शहरीकरण के कारण कई पक्षी अब दिखाई नहीं देते जो आज से ३०-४० साल पहले दिखाई देते थे जैसे गौरैय्या चिड़िया, पहाड़ी तोता, गिद्ध, कुछ पक्षिओ को शायद हम या हमारे बड़े भी खोजते होंगे ).

 इन पक्षिओ की नस्लें बचाने के लिए कई राष्ट्रीय पक्षी उद्यान बनाये गए हैं, जो उन्हें प्राकृतिक निवास प्रदान करते हैं.

भारत में सांपो की कई परजातियाँ हैं जिनमे कोबरा और करैत प्रमुख हैं.

वनो के कटने तथा जानवरों के शिकार के कारण भारत में पाए जाने वाले वन्य जीवों की परजातियाँ तेजी से घट रही है, कुछ समाप्त हो चुकी हैं इनको बचाने के लिए बहुत से नेशनल पार्क, पशुविहार तथा जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किये गए हैं, कई सारी  परियोजना जैसे बाघ परियोजना, एवं हस्ती परियोजना जैसी परियोजनाओं को शुरू किया गया है (कृपया उन्हें ढूंढे). 

हम जानवरो की हड्डियों सींगो तथा पंखो से बनी वस्तुओ को खरीदने से मना कर सकते हैं, ताकि इनका शिकार न हो सके, प्रत्येक वर्ष अक्टूबर के पहले सप्ताह को हम वन्य जीव सप्ताह के रूप में मनाते हैं ताकि वन्य जीवों के निवास को सरंक्षित रखने के लिए जागरूकता लाईजा सके, (क्या इन्हें सुरक्षित रखने के लिए इतने प्रयास काफी हैं, वनो और वन्य जीवो की सुरक्षा और कैसे हो सकती है?)

प्रवासी पक्षी 

कुछ पक्षी पिनटेल बतख, कर्लियु, फ्लेमिंगो, असप्रे, लिटिल स्टिंट, प्रत्येक वर्ष सर्दी के मौसम में हमारे देश में आते हैं, सबसे छोटी लिटिल स्टिंट जिसका वजन लगभग १५ ग्राम होता है, आर्कटिक प्रदेश से ८००० किमी  की दूरी  तय करके आती है. 

वन्य जीव, वन और प्राकृतिक संशाधन को नष्ट करने का खामियाजा हम लगातार भुगत रहे हैं , इनके पीछे विकास को मुख्य कारण बताया जाता है, इस विकास को फिर से परिभासित करने की जरुरत है , इस तथा कथित विकास का नुकसान सभी अबोध वन्य जीवो के साथ एक सीधे साधे मानव और उसकी आने वाली नस्लों का होना तय है (कितनी बीमारिया और उन पर होने वाले खर्च एवं अशक्त होकर जीने वाले मानव इस तथा कथित विकास की भेट चढ़ते जा रहे हैं).

 इसलिए प्रकृति के विनाश की कीमत पर विकास को दूर से ही सलाम करने में समझदारी है.

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