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भारतीय संविधान: विशेषताएं और अनोखापन

भारतीय संविधान: विशेषताएं और अनोखापन 

भारतीय संविधान की कुछ लोग कई तरह से आलोचना करते हैं जैसे की उधार का संविधान है, कॉपी पेस्ट किया गया है, कोई नई बात नहीं है, इत्यादि और भी कई तरह से संविधान की आलोचना की जाती हैं, लेकिन इसकी विशषताए या अनोखापन उनकी इन आलोचनाओं का अपने में एक सटीक जवाब है, वह क्या जवाब है? जो इसे एक विशेष और अनोखापन का दर्जा देता है, कुछ सर्वमन्याताओं  के आधार पर इस विषय में चर्चा करते हैं, जिन्हें  देखकर हर भारतवासी को गर्व की अनुभूति होगी।

सबसे लम्बा एवं लिखित संविधान 

जब संविधान सभा ने संविधान को बनाने का कार्य किया, उस समय इसमें २ वर्ष ११ महीने और १७ दिन का समय लगा, उस वक्त इसमें ३९५ अनुछेद ८ अनुसूची और २२ भाग थे यह दुनिया का सबसे लम्बा और लिखित संविधान भी है (आज अनुछेदों की संख्या बढ़कर ४५० के लगभग हो चुकी है और अनसुचिओ की संख्या १२ हो चुकी है), 

सबसे कम समय में बनने वाला संविधान 

जब संविधान सभा ने संविधान को बनाने का कार्य किया उस समय इसमें २ वर्ष ११ महीने और १७ दिन का समय लगा, लेकिन डॉ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकरजी,  जो ड्राफ्टिंग कमीटी के चेयरमैन थे उन्होंने इसे केवल १४१ (लगभग ४ महीने ) दिन में ही, विश्व का सबसे लम्बा और लिखित संविधान ड्राफ्ट कर संविधान सभा को सौप दिया था, इसलिए उन्हें भारतीय संविधान का पिता भी कहा जाता है.

आंतरिक एवं बाह्य स्त्रोत 

संविधान सभा ने तत्कालीन भारत के भारत शाषन अधिनियम १९३५ एवं विश्व के प्रमुख देशो के संविधान की महत्वपूर्ण बातों को, भारत की विविधता भरी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर, इसमें समावेश किया गया थे जिससे भारत के सुदूर राज्यों में रहने वाले विविध जाति, धर्म, भाषा और भौगोलिक स्थिति होते हुए भी इन सभी नागरिको का एक उचित सवैधानिक समाधान निकल सके. 

नम्यता एवम अनम्यता (कठोर एवं लचीला)

भारतीय सविधान कठोर भी है और लचीला भी, इसमें संशोधन के लिए संविधान निर्माताओं ने जहाँ कठोर व्यवस्था दी है वहीं थोड़ी लचीली व्यवस्था भी दी है वह कैसे?

संसद दो तिहाई बहुमत के साथ इसमें बदलाव एवं संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके साथ ही उसे आधे से अधिक राज्यों की अनुमति लेनी भी आवश्यक है.

एकल नागरिकता 

सविधान हर भारतवासी को एकल नागरिकता देता है (कोई रसूखदार या अमीर व्यक्ति भी एक आम आदमी के समान ही एक नागरिक है, न की अपने रसूख और धन के दम पर एक से अधिक नागरिकता ले सकता है)

मौलिक अधिकार 

डॉ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकरजी  की शब्दों में “मौलिक अधिकार इस संविधान की आत्मा है “, संविधान मूल अधिकारों जैसे समानता, सवतनत्रता एवं जीने का अधिकार (मुख्य मूल अधिकार) को भारत के प्रत्येक नागरिक को एक क़ानूनी गारंटी के रूप में प्रदान करता हैजिनका उल्ल्घन होने पर कोई भी नागरिक उच्च न्ययायलय या सर्वोच्च न्यायलय में रिट पेटिशन दायर कर सकता है.  वर्तमान में ६ मूल अधिकार हैं जिन्हे संविधान के भाग ३ में अनुछेद १२ से ३५ तक दिया गया है. 

कल्याणकारी राज्य 

भारत के इतिहास में कई लोकप्रिय एवं कल्याणकारी शाशक हुए है जैसे अशोक, हर्षवर्धन, समुद्रगुप्त और भी कई शाशक हो सकते हैं लेकिन पहले वह राज्य शाशक की स्वेच्छा और नेक नियति पर ही निर्भर थे, हमारा सविधान का भाग ४ भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने के लिए शाशको को बाध्य करता है.

राज्य के निति निदेशक तत्व 

राज्य या शाशक नीतियां  बनाते समय नागरिको के सामाजिक और आर्थिक हितो को हमेशा ऊपर रखे इस तरह के निर्देश संविधान, राज्य या शाषक को  राज्य के निति निदेशक तत्वों  के अंतर्गत बाध्य करता  है राज्य की सामाजिक एवं आर्थिक नीतिया साकार हो सकें.

सार्वभौमिक मताधिकार 

प्रत्येक नागरिक को एक मत देने का अधिकार है  आमिर या गरीब दोनों के मत एक सामान होंगे, कोई अपने धन के बल पर एक से अधिक मत नहीं दे सकता है, न ही जाति  धर्म या लिंग के आधार पर उनमे कोई भेद होगा।

सवतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका 

संविधान न्यायपालिका को मुकदमों में न्याय देते समय सवतंत्रता और निष्पक्षता के साथ ही न्यायिक सक्रियता की व्यवस्था करता है. 

संसदीय शाषन प्रणाली 

संविधान राज्य में लोक सभा, राज्य सभा और राष्ट्रपति के द्वारा शाशन चलाने  की व्यवस्था भी करता है, जिसे संविधान में ब्रिटैन से लिया गया है.

त्रिस्तरीय शाशन प्रणाली 

भारत के संविधान में एक अनोखी और दुनिया में अकेली  विशेषता यह भी है की यहाँ पर त्रिस्तरीय शाशन प्रणाली है (जो विश्व में कहीं नहीं है), जिसमे तीन स्तरों  केंद्र, राज्य के अलावा  ७३वे और ७४वे संशोधन द्वारा पंचायतों या नगर निगम के द्वारा भी शाषन चलाया जाता है.

पंथ निरपेक्ष राज्य 

संविधान राज्य को सभी धर्मो, सम्प्रदायों एवं मान्यताओं को निरपेक्ष  दृष्टि से देखने एवं राज्य को इनसे अलग रखने की व्यवस्था भी करता है 

संविधान संशोधन

संविधान अपने में, समय अनुसार संशोधन करने की व्यवस्था अनुछेद ३६८ के द्वारा करता है, इसी व्यवस्था के द्वारा  अब अनुच्छेदों की संख्या ३९५ से  बढ़कर ४५० के लगभग हो चुकी है.

पांच सवर्णिम शब्द लोकतंत्र का आधार 

इस प्रकार हमने समझने की कोशिश की, किस प्रकार भारत का संविधान सबसे लम्बा होने के बावजूद सबसे अच्छा भी है, यह पांच सवर्णिम शब्दों  समता, सवतंत्रता, बंधुता, न्याय और मानव की गरिमा, यह सवर्णिम शब्द,  हरेक लोकतंत्रीक देश का आधार हैं, हमारा संविधान इन  पांच सवर्णिम शब्दों की भारत में  स्थापना की गारण्टी देकर एक मजबूत लोकतंत्र की स्थापना करता है, जिससे इसमें रहने वाले नागरिको का सर्वांगीण एवं खुशहाल विकास हो सके. बेशक प्राचीन भारत में यह सवर्णिम शब्द रहे होंगे, लेकिन इनकी राज्य द्वारा क़ानूनी गारंटी केवल संविधान ही देता है.

डॉ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के सवर्णिम शब्द 

यहाँ संविधान की आलोचना करने वालो को डॉ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के इन शब्दों पर भी गौर करना चाहिए जो उन्होंने  सविधान सभा में कहे थे ” मैं इस संविधान की अच्छाई या बुराई के बारे में कुछ नहीं कहूंगा, पर मैं यह जरूर कहूंगा, कोई भी अच्छे से अच्छा संविधान बुरा हो सकता है, यदि इसे अनुसरण  करने वाले लोग बुरे होंगे और कोई भी बुरे से बुरा संविधान अच्छा हो सकता है अगर इसका अनुसरण करने वाले लोग अच्छे  होंगे”। 

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