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चना जोर गर्म

 

                                       चना जोर गर्म 

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चना जोर गर्म

    सभी परिंदे एक क़तार में नीले आसमान में अपने घर की की ओर  चले जा रहे है. सूर्य अस्त होने की लालिमा लिए अपना बोरिया बिस्तर बांध चूका है. एक आदमी सर पर सफ़ेद बड़ी पगड़ी , कानो में बड़े बड़े बुँदे,  एक सफ़ेद धोती घुटनो तक बंधी, सफ़ेद कुरता, बड़ी सी चादर का थैला जो उसने अपने कंधे पर लटकाया हुआ है, जिसमे गर्म गर्म चने रखे हुए है, मोहल्ले में घूम रहा है| 

    चना जोर गर्म, चना जोर गर्म मोहल्ले में आवाज आयी. मोहल्ले के सभी लोग अपनी  बान से बनी चारपाई पर बैठे है. कोई चाय की चुस्की ले रहा है. कोई कोयले की अंगीठी सुलगा रहा है, कोई विविध भारती (आल  इंडिया रेडिओ) पर संगीत का आनंद  ले  रहा है. कोई अपने राशन के धोये हुए गेहूं  इकठे कर रहा है.

 कागज की पुड़िया में चना

बच्चे तो बच्चे होते है, उनकी नज़र बहार से आती हुई आवाज का पीछा कर रही है. सुरेश भी ऐसा ही आठ नौ साल का बच्चा था वह भी उसी आवाज की ओर कान लगाए हुए था. उसने देखा की उसके दूसरे दोस्त चना जोर गर्म के पास पहुंच चुके थे, सब उसे पैसे दे रहे थे कोई आठ आने कोई चार आने और कोई रूपया,  और एक कागज की पुड़िया में चना जोर गर्म घर की ओर ले जा रहे थे.

कोई छोटे कागज की पुड़िया में कोई बड़ी बड़ी पुड़िया में, बीच बीच में खा भी रहे थे, सुरेश ने अपने बाबूजी से कहा, बाबूजी देखो तो मुकेश, रियाज, राजू , सुनीता  सभी चना जोर गर्म से चना ले रहे है. मुझे भी चना लेना है. बाबूजी रेडियो पर ऐसे कान लगाए बैठे थे जैसे इनके बिना रेडियो बजेगा ही नहीं.  उनहोंने पीछा छुड़ाते हुए कहा जा लिया और एक आठ आने दे दिए| 

इतने गर्म गर्म चने

चना जोर गर्म अपना चना बेच कर दूसरे मोहल्ले में जाने लगा तभी सुरेश ने उसे तेजी से  भागते हुए  पीछे से आवाज दी. चना जोर गर्म चाचा आठ आने का चना जोर गर्म दे दो.  अरे क्यों नहीं बिटुआ, उसने अपनी सफ़ेद चादर के बने थैले से चार मुठी चना एक कागज की पुड़िआ में सुरेश को दे दिया. बिटुआ ठीक से पकड़ना गर्म है, सुरेश ने वोह पुड़िया अपनी शर्ट की झोली बनाकर रख ली, चना इतना गर्म था कागज की पुड़िया और शर्ट के कपडे के बाद भी सुरेश के हाथ गर्म हो गए थे.

 सुरेश सोचने लगा की चना जोर गर्म वाला कैसे इतने गर्म गर्म चने लेकर सारे  मोहल्ले में घूमता रहता है क्या इसके हाथ और पेट नहीं जलता और चलता भी कितनी तेजी से है इसे पकड़ने के लिए मुझे भागना पड़ा, चना जोर गर्म की थैली कोई आधे घंटे में ही कुछ खाली हो चुकी थी वह अब दूसरे मोहल्ले में घुस गया| 

कुछ चने चाय में ही डुबो दिए

सुरेश ने चने लाकर  अपनी माँ  को दे दिए, अम्मा मुझे जल्दी से थोड़े चने दे दो, अम्मा ने उसे कटोरी में भरकर चने दे दिए,  और उसके दूसरे भाई बहनो को, बाबूजी को, पिताजी को, बड़ी अम्मा को सभी को चने बाँट दिए, सभी शाम की चाय के साथ गर्म गर्म चने खाने लगे, सुरेश ने कुछ चने चाय में ही डुबो दिए और उनका स्वाद लेने लगा|

 चना प्रतियोगिता

चना जोर गर्म इतना कोमल ऐसा था की मुँह में रखते ही घुल जाता था. बड़ा लजीज स्वाद था तभी तो चना जोर गर्म के सारे चने बिक जाते थे. सुरेश ने कुछ चने अपनी पैंट की जेब में डाले और पहुँच गया अपनी मित्र मण्डली में वोह भी चने का स्वाद ले कर.  इक जलती हुई अंगीठी के पास हाथ सेक रहे थे. और एक प्रतियोगिता भी कर रहे थे कौन सबसे ऊपर चना उछाले और उसे अपने मुँह में ले.

 सभी बच्चे इस खेल में लग गए, सुरेश भी चना ऊपर की और उछलता और फिर उसे मुँह में लेता. कई पर्यासो के बाद चना अब उसके मुँह आने लगा तो. उसके सभी दोस्तों ने ताली से उसका स्वागत किया.

रईस चाचा और चना खेल 

यह सब खेल रईस चचा भी देख रहे थे, उन्होंने सुरेश से चने मांगे, रईस चाचा ने चना बहुत ऊँचे उछाला और गप से मुंह में ले लिया, रईस चाचा हर बार ऊँचा चना  उछालते और वह सीधा उनके मुँह में जा गिरता. सभी बच्चे जोर जोर से ताली बजाते.

 फिर उन्होंने एक नया जादू दिखाया, उन्होंने एक साबुत चना लिया उसे दो टुकड़ो में करने के बाद बोले अब इसे मैं अपने मुँह में जोड़कर दिखाता हूँ. उनने टूटे चने को मुँह में लिया एक हाथ अपने दोनों गालो पर मारा. अपनी गर्दन पर मारा और गर्दन से ऐसा दिखाया जैसे चना सटक गए. अब देखो यह चना  जुड़ जायेगा, बच्चे बड़ी कौतुहल की दृष्टि से  रईस चाचा को देख रहे थे. 

तभी उन्होंने एक साबुत जुड़ा हुआ चना अपने मुंह से बाहर  निकाला. बच्चों ने चने को ध्यान से देखा चना वाकई में जुड़ा हुआ था चाचा बोले कोई कर सकता है. सभी बच्चे  इसी खेल में लग गए, किसी का चना नहीं जुड़ पाया. जिसका चना जुड़ जाये मुझे लाकर  दिखाना, यह कहकर वो चले गए. यहाँ चना खाने के साथ खेल के भी काम आ रहा था| 

सुरेश की अम्मा ने आवाज दी अँधेरा हो गया है घर में आ जाओ. सुरेश के दोस्त भी अपने अपने घरो में लौट गए. सुरेश अभी भी टूटे हुए चने को मुंह से जोड़ने की कोशिश कर रहा था. बाबूजी का  रेडिओ अब भी बज रहा था.

बड़े लोग चना जोड़ सकते हैं

 पिताजी सभी भाई बहनो को पढ़ाने बैठ गए. सुरेश ने पिताजी से कहा बाबा रईस चाचा जादू जानते है वह टुटा हुआ चना मुंह में डालकर जोड़ देते है. पिताजी ने कहा यह तो मैं भी कर सकता हूँ उन्होंने भी ठीक वैसे ही किया जैसे रईस चाचा ने किया था. टुटा हुआ चना जोड़कर दिखा दिया.

अब सुरेश को लगने लगा छोटे बच्चे चना नहीं जोड़ सकते बल्कि बड़े लोग जोड़ सकते हैं. सुरेश के छोटे भाई  बहिन भी टूटे चने को जोड़ने की कोशिश करने लगे. रात  को सुरेश टूटे चने  को अपने मुंह में लेकर सो गया यह सोच कर शायद सुबह तक यह जुड़ जाये. पर कमबख्त वह सुबह तक सुरेश के मुंह में ऐसा ही पड़ा रहा| 

चना जोड़ने की गुप्त तकनीक

धीरे-२  सुरेश बड़ा हुआ तो उसे चना जोड़ने की गुप्त तकनीक पता लग चुकी थी. उसने कई बार इसको अपने से  छोटी उम्र के बच्चों  में आजमाया भी. उन्हें भी यह खेल दिखाया जैसे रईस चाचा और बाबा ने दिखाया था| 

चना तो वोही था लेकिन उसका जोर और गर्माहट अब पहले जैसे नहीं थी. अब वह पैकेट में बिकता था. किसी दुकान के कोने में पड़ा रहकर अपने ग्राहकों को ढूढ़ता रहता था. उसके ग्राहक अब नहीं थे, थे तो कुछ बीमार या मजबूर, बेबस लोग, या एक्का दुक्का शौकिया लोग. पहले जैसे नहीं जो हरेक कोई चाय के साथ चने को नाश्ते के रूप में लेना अनिवार्य समझता था. 

क्योंकि तब कोई नामी कंपनी चने को पैकेट में नहीं बेचती थी. उसे चना जोर गर्म वाले ही बेचते थे.

गर्म गर्म कोमल लजीज चने नहीं थे

अब नाश्ते में कई नामी कंपनियों के बिस्कुट, मिक्सचर, नमकीन मौजूद थे लेकिन चना जोर गर्म बेचने वाले की बड़ी सी थैली और उसमे गर्म गर्म कोमल लजीज चने नहीं थे|  

सुरेश ने अपनी पत्नी से कहा अरे भई  चाय लेकर आओ चने के साथ. सुरेश अपनी पत्नी के साथ चाय की चुस्की लेने लगा पैकेट में पड़े चने को देखकर सोचने लगा काश बाबा और रइस चाचा फिर से किसी जादू से उस चने जोर गर्म को बेचने वाले और उसे चाव से खाने वालो को फिर से ला सकते, जैसे उन्होंने अपने मुंह में उस टूटे हुए चने को जोड़ा था|   

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