दीपक का प्रकाश
*****
किसी राज्य में एक जमींदार था उसके तीन पुत्र थे बड़ा अनिल मझला बाती छोटा चिराग था, राजा तीनो पर सामान स्नेह रखता था, जीवन के उत्तरार्ध में जमींदार के मन में आया अपनी वसीयत लिखने से पहले मैं अपने पुत्रो की योग्यता को परख लू उसने अपने तीनो बच्चों को बुलाया और कहा देखो कुछ दिनों के लिए मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं तुम तीनो हमारे सभी व्यापारों का भली भाती ध्यान रखना किसी भी कर्मचारी चाहे छोटा हो या बड़ा सभी का ध्यान रखना क्योकि इनकी वजह से ही हमारी जमींदारी चलती है ।
इसके लिए उनने कहा अनिल बड़ा है इसलिए मुख्य फैसले यही लेगा बाती मझला है यह अनिल के मनमाने फैसले को चुनौती देगा और चिराग तुम इन दोनों में जो भी मतभेद होंगे उनका उचित समाधान निकलोगे क्योकि तुम इनमें अधिक पढ़े लिखे हो।
उसी गांव में एक अमृत नामक शक्श था जो जामीदारी से जुड़े सारे फैसले की जानकारी मज़दूरों किसानो और गावो के और लोगो को देता था जिससे मज़दूरों किसानो को जमींदारी से जुड़े सभी उचित अनुचित जानकारी लोगो को मिल जाती थी जिससे समय रहते गांव को जानकारी मिलती रहती थी बदले में नगर के बड़े बड़े सेठ उसे मेहनताना देते थे और गांव की निगाहो में वह विश्वशनीय बना रहता था। जमींदार ने जाते हुए उससे भी कहा मैं प्रभु सिमरन के लिए जा रहा हूँ तुम अपना कार्य पहले की भाती करते रहना ।
अमृत बोला आप चिंता न करे मेरी तो रोजी रोटी ही आपकी जमीदारी की खबरों से ही चलती है मैं भला क्यूं अपना कार्य छोड़ूगा मैं पूरी कोशिस करूँगा की आपके बच्चे ठीक प्रकार से जमींदारी का कार्य करते रहे उनके उचित अनुचित कार्यो की सही जानकारी गांव के लोगो को देता रहूँगा।
कुछ समय बीता अनिल जो मुख्य फैसले ले रहा था उसने अपने बड़े ओहदों पर बैठे हुए मातहतों को अपने परभाव में ले लिया और पिता से मिली जागीदारी का दुरपयोग करने लगा बाती मंझला पुत्र इन बड़े मातहतों तक अपनी बात नहीं पहुंचा सका इसलिए वह अधिक विरोध न कर सका, बात चिराग जो उनमे सबसे विद्वान था उसने भी बहुत कोशिश की पर जैसे की होता आया है नैतिकता और अर्थशास्त्र में जीत अर्थशास्त्र की होती है वह भी अनिल के प्रभाव में आ गया।
बात अमृत तक भी पहुंची शुरू में उसने भी मज़दूरों और गांव तक बात पहुचायी पर अनिल ने उसको भी लालच में ले लिया उसने अमृत को भी मेहनताना देना शुरू कर दिया अब अमृत का काम दिन रात अनिल की प्रशंशा रह गया था न की उसके अनुचित योजनाओ को गांव के सामने लाना
कहते हैं न जरूरत से अधिक खर्चा करने से बड़े बड़े खजाने खाली हो जाते है जमींदार का जमा धन भी धीरे धीरे खाली होता गया उसकी भरपाई के लिए उसने ऊँचे ओहदो पर बैठे हुए मातहतों सहित गरीब मज़दूरों की मेहनताना काटना शुरू कर दिया जिससे पुरे गांव में रोष पनपने लगा और जमींदारी की साख गिरने लगी
कुछ समय पश्चात वह बूढ़ा जमींदार लौट आया, उसने देखाकी पूरा गांव उसे उस नजर से नहीं देख रहा था जैसे वह पहले छोड़ कर गया था, वह अपने विश्वास पात्रो के पास गया तब उसे अनिल की मनमानी का पता चला, उसने गुप्त रूप से चिराग और बाती को बुलाया और गाओं के सभी लोगो अनिल के विरुद्ध खड़ा कर दिया जिससे अनिल की शक्ति कमजोर हो गयी, उसने सभी ऊँचे ओहदो पर बैठे अनिल के समर्थको को भी अपनी जमीदरी से बेदखल दिया.
अनिल निसहाय खड़ा था वह रोने लगा गिड़गिड़ाने लगा और जमींदार के पैरो पर गिर गया, बीच में बाती और चिराग भी अपने बड़े भाई की तरफ से अपने पिता से मांफी मांगने लगे और कहने लगे बड़े भाई के साथ हम भी कुछ गुनहगार तो है जो हम अपनी जिम्मेदारी का इस्तेमाल सही तरह से नहीं कर पाए गाओं वाले भी अब थोड़ा पिघलने लगे उनको देखकर जमींदार ने अनिल को माफ कर दिया.
उधर कुछ गांव के लोग अमृत को पिटते हुए लाये और कहने लगे अगर तुम्हरे तीनो पुत्रो की गलती है तो यह अमृत भी कम गुनहगार नहीं है इसने भी अनिल के अनुचित कार्यो को हमेशा छुपाया और गांव भी इसको मेहनताना देता रहा साथ ही अनिल से भी यह मेहनताना लेता रहा, अब पूरा गांव अमृत को रोष की दृष्टि से देख रहा था कुछ युवक अमृत को और पीटने लगे तभी जमींदार आगे बड़ा और उसने गांव के लोगो से अमृत को भी माफ करने की प्रार्थना कीI
सभी गांव वाले चले गए पर उसके तीनो पुत्र और अमृत लज्जित अवस्था में खड़े थे, समय बिता जमींदार ने अपनी और अपने मातहतों की मेहनत से अपनी जमदारी और खजाना दोनों भर लिए मज़दूरों और मातहतों को भी पूरा वेतन मिलने लगा गांव भी जमीदार को विश्वास की दृष्टि से देखने लगा, बड़े बड़े सेठ भी जमींदार से नया व्यापार करने लगेई एक दिन शाम को जमींदार ने अपने तीनो पुत्रो को बुलाया उन्हे एक दिया बाती दी , अनिल से कहा इसे जलाओ अनिल बोला पिताजी इसमें घी तो है नहीं जमींदार बोला फिर भी इसे जलाओ दीपक की बाती जल्दी से बुझ गयी.
एक दीपक और लाया गया उसमे घी भी था, उसने चिराग से कहा, इसे जलाओ अब दीपक जल उठा था पूरी हवेली में एक प्रकाश फैलने लगा उसने अपने पुत्रो को समझाया, प्रकाश के लिए चार घटक आवश्यक है दीपक, बाती, अग्नि और घी इन चारो में से एक भी न हो तो प्रकाश नहीं फैलेगा, उसके पुत्र एक दूसरे का मुँह ताकने लगे पिताजी सठिया गए हैं, यह तो हमें भी पता था, इतना कहकर जमींदार वहां से चला गया I
आज दीपक हवेली में जगमग प्रकाश फैला रहा था, उधर गांव के दीपक भी जल चुके थे अमृत गांव के नुक्कड़ पर बैठा कभी गांव के दीपको की ओर कभी हवेली के दीपक की ओर उस प्रकाश में से कुछ तलाश कर रहा था जो शायद उसकी अपनी साख थी।
*****