दूसरा गोलमेज सम्मलेन की कार्यवाही और बहस (पार्ट १)
डॉ अंबेडकर की स्पीच एंड राइटिंग के आधार पर हमने दूसरा गोलमेज सम्मलेन की कार्यवाही और उसमे भारतीय राजनेताओं की बहस की मुख्य बातों को हमने समझने की कोशीश की. पार्ट १ के तहत इसी कड़ी में आगे की कार्यवाही को समझने की कोशिश करते हैं.
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गाँधीजी ने अपना मत स्पष्ट नहीं किया
यह बहस विभिन्न समितिओं में ७ सिंतबर १९३१ से चल रही थी. यधपि गाँधी जी और कांग्रेस ने इसमें १५ सितंबर से भाग लिया था, इस महीने का तीसरा सप्ताह समाप्त हो गया था. अल्पसंख्यक समिति को अपना कार्य २८ सितम्बर से शुरू करना था. २७ सितम्बर की शाम को गांधीजी के पुत्र देवदास गाँधी ने डॉ आंबेडकर से उनके घर पर मुलाकात की और गांधीजी और डॉ अंबेडकर के मध्य, सरोजिनी नायडू के घर पर रात ९ बजे से १२ बजे के मध्य मिलने का समय पक्का किया। डॉ आंबेडकर ने अछूतो के भावी संविधान में प्रतिनिधित्व के विषय में गाँधी जी को अपना मत प्रकट कर दिया लेकिन गांधीजी इस विषय में अपना मत स्पष्ट नहीं किया और कहा अगर और अल्संख्यक वर्ग डॉ आंबेडकर की मांगो का समर्थन करते है, तब मैं भी समर्थन कर दूंगा।
अल्पसंख्यक समिति का स्थगन
२८ सितम्बर १९३१ कोअल्पसंख्यक समिति पहली बार सम्मलेन में आगे की कार्यवाही के लिए मिली। अध्यक्ष ने यह स्वीकार किया की अल्पसंख्यक की समस्या ने सबसे अधिक परेशान किया है, यह भी देखा गया है कि कुछ राजनेता चाहते हैं की ब्रिटिश सरकार स्वयं पंचायत करके इसका हल निकालें, क्योंकि भारतीय राजनेता इस समस्या का हल निकालने में असफल साबित हुए हैं, लेकिन उनने यह भी स्वीकार किया इससे कुछ राजनेता असहमत हो सकते हैं. यह सुनकर आगा खान ने कहा कि इस समस्या के हल के लिए महात्मा गाँधी आज रात मुस्लिम राजनेताओं से मिल रहे हैं, इसलिए तब तक इस समिति की कार्यवाही को स्थगित किया जाये, पंडित मालवीय ने इस स्थगन का समर्थन करते हुए कहा तब तक समिति की सामान्य चर्चा समाप्त रहे.
गुप्त समझौता
डॉ अंबेडकर यह भली भांति जानते थे की हिन्दू और मुस्लिम राजनेताओं के मध्य क्या गुप्त समझौता होने जा रहा है. इसलिए उन्होंने इस स्थगन का हवाला देते हुए कहा ” जहाँ तक डिप्रेस्ड क्लास का संबंध है, पिछली बार हमने अपना मामला अल्पसंख्यक उप सिमिति को सौप दिया है, इस सिमिति के सामने केवल अब मुझे प्रतिनिधित्व की संख्या (सीटों की संख्या ) का सुझाव देने वाला एक संक्षिप्त विवरण देना है, जो हम अलग-अलग विधायिका में चाहते हैं.”
मेरे हिस्से से किसी भी दूसरे को नहीं दे सकते
डॉ अंबेडकर ने आगे कहा कि उन्हें ख़ुशी होगी, जो भी आगे साम्प्रदायिक मामले के समझौते के बारे में बातचीत होनी है। लेकिन मैं यहाँ स्पष्ट बता दूँ कि जो यह बातचीत कर रहे हैं वह सबके मालिक नहीं हैं, श्री गाँधी और कांग्रेस का प्रतिनिधित्व चरित्र जैसा भी हो हमें बांध नहीं सकता, बिलकुल भी नहीं, मैं इस समिति में पुरे जोर और चेतावनी के साथ अपनी बात समाप्त कर रहा हूँ की कोई भी जो अधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व हो या उसका प्रभाव दुगुना करने वाले हों वह मेरे हिस्से से किसी भी दूसरे को नहीं दे सकते, और न ही वह ऐसा कर सकते हैं.”
इस बात पर अध्यक्ष मैक्डोनाल्ड ने कहा ” डॉ अंबेडकर ने अपने चिर परिचित अंदाज में अपनी स्थिति साफ कर दी है, उन्होंने हमारे लिए इस विषय में कोई भी शक नहीं छोड़ा है “.
दोबारा एक सप्ताह के लिए स्थगन
१ अक्टूबर १९३१ को गांधीजी ने अल्पसंख्यक सिमिति में बताया कि वह विभिन्न वर्गों के कई मुस्लिम नेताओं के नजदीक हैं इसलिए दोबारा एक सप्ताह के लिए समिति का स्थगन हो. यह सुनकर डॉ अंबेडकर उठे और कहा कि उनकी इच्छा यह नहीं है कि इस समस्या का हल न हो, लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि इस सम्मलेन से बाहर की सामान्य समिति में डिप्रेस्ड क्लास की मौजूदगी होगी या नहीं। श्री गाँधी ने सकारात्मक उत्तर दिया। डॉ आंबेडकर ने इसके लिए श्री गाँधी का धन्यवाद किया और अन्य राजनेताओं से कहा ” महात्मा गाँधी ने संघीय ढांचा समिति में यह बताया था की कांग्रेस के प्रतिनिधि होने के नाते वह मुस्लिम और सिख के आलावा किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग को राजनितिक मान्यता देने को तैयार नहीं हैं. वह एंग्लो इंडियन, डिप्रेस्ड क्लास और ईसाईयों को भी यह राजनितिक मान्यता नहीं देना चाहते। मैं नहीं समझता इस समिति में यह बताकर यहाँ कोई हिंसा कर रहा हूँ, एक सप्ताह पहले मैं और अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के प्रतिनिधियों ने जब श्री गाँधी के दफ्तर में उनसे मुलाकात की तब उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया कि जो उनका नजरिया अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति संघीय ढांचा समिति में था अर्थार्त (उन्हें राजनितिक मान्यता न देने का) वह उनके पुरे होशो हवास में था.”
डॉ आंबेडकर ने गरजकर कहा ” अगर डिप्रेस्ड क्लास को भावी संविधान में कोई राजनीतिक पहचान नहीं मिलेगी, जो कि पहले गोलमेज सम्मलेन की अल्पसंख्यक उप समिति में पहले से ही मिल चुकी है, तब वह उस समिति में शामिल नहीं होंगे और न ही खुले मन से इस स्थगन का समर्थन करेंगे।” सर हर्बर्ट कार (यूरोपीय वर्ग ) डॉ दत्त (भारतीय ईसाई वर्ग ) और अन्यों ने इस स्थगन का स्वागत किया।
१४ सूत्रीय मांगों को स्वीकार कर लिया है
श्री गाँधी और मुस्लिम नेताओं के बीच एक सप्ताह तक बातचीत जारी रही. अख़बारों ने बताया कि यह बातचीत समस्या के हल के नजदीक है। अख़बार की रिपोर्टं में यह भी बताया गया की श्री गाँधी जी मुस्लिम नेताओं की १४ सूत्रीय मांगों को स्वीकार कर लिया है, जिनमें बची हुई शक्तियां संघीय सरकार के अधीन रहेंगी, मुस्लिमों का बहुमत पंजाब और बंगाल में रहेगा, इसके आलावा वह मुस्लिमों को एक ब्लेंक चेक दे रहे हैं.सिख और मुस्लिम के मामले में यधपि वह असफल रहे हैं.
प्रतिनिधियों के चयन पर सवाल
८ अक्टूबर १९३१ को श्री गाँधी ने समिति में बड़े खेद के साथ बताया ” मुझे बड़ा दुःख है की मैं अल्पसंख्यकों की समस्या को इस समिति के बाहर उनके प्रतिनिधियों के साथ की गयी मीटिंग में एक सर्व सहमति वाले समझोते पर नहीं ला सका। उनने कहा कि इस असफलता का मुख्य कारण इन भारतीय नेताओं के चयन में अन्तर्निहित है, इनमे लगभग सभी वगों के प्रतिनिधि उन वर्गों या दलों के चयनित प्रतिनिधि नहीं हैं, जैसा की इन्हे माना गया है और न ही यह वह प्रतिनिधि हैं, जिनसे एक सर्व मान्य समझौता बन सके. उनने आगे कहा कि इस अल्पसंख्यक समिति की कार्यवाही को अनिश्चित समय के लिए स्थगित कर दिया जाये। डॉ अंबेडकर ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कहा श्री गाँधी ने किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग के नेता को पिछली रात की मीटिंग में अपना पक्ष और मत रखने का मौका ही नहीं दिया, इसलिए इस इनफॉर्मल मीटिंग की असफलता के लिए वही जिम्मेदार हैं.
महातमा गाँधी की अनिश्चित काल के लिए स्थगन की अपील
डॉ आंबेडकर ने अपने कड़वे शब्दों में गर्जन कर कहा ” श्री गाँधी ने स्वयं अल्पसंख्यक वर्ग समिति में स्थगन का प्रस्ताव रखा और उसे बाहर सुलझाने का भरोसा दिया, जब वह इसे सुलझा नहीं पाए तो अल्पसंख्यक समिति को अनिश्चित समय के लिए स्थगन के लिए कहते है, यह सब मुझे परेशान करता है, उन्होंने इस गोलमेज सम्मलेन के विभिन्न अल्पसंख्यक प्रतिनिधिओ के चयन पर सवाल उठाये है. कि सभी राजनेता अंग्रेज सरकार के द्वारा नामांकित हैं, इसलिए वह यहाँ अपने वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करते। हम इस इल्जाम से इंकार नहीं करते की हम सब यहाँ अंग्रेज सरकार के द्वारा नामंकित हैं, लेकिन अपने बारे में मैं कहूं तो मुझे रत्ती भर भी यह संदेह नहीं है कि अगर डिप्रेस्ड क्लास के प्रतिनिधियों का चुनाव होता तब भी मैं इस सम्मलेन में उनका चयनित प्रतिनिधि होता। इसलिए मैं कहता हूँ की चाहे मैं नामांकित प्रतिनिधि हूं या नहीं, मैं पूरी तरह से अपने वर्ग के दावों का प्रतिनिधित्व करता हूं.
सत्ता का बटवारा सभी वर्गों में बराबर हो
महात्मा गाँधी दावा करते हैं कि कांग्रेस डिप्रेस्ड क्लास का प्रतिनिधित्व मुझसे भी या मेरे सहयोगी से भी अधिक करती है . इस झूठे दावे के लिए मैं इतना ही कह सकता हूं, यह उन अनेक झूठे दावों में से एक है जिसे अक्सर गैर जिम्मेदार लोग किया करते हैं, हालांकि उन दावों के संबंध में संबंधित व्यक्ति हमेशा उन्हें नकारते रहे हैं, तब डॉ आंबेडकर ने वह टेलीग्राम दिखाए जो उन्हें भारत के दूर दराज इलाकों से आया था, जहाँ वह कभी पहले गए भी नहीं थे और न ही उस व्यक्ति से कभी मिले थे. तब उन्होंने उस समिति में कहा की या तो यह समिति इस अल्पसंख्यक वर्ग की समस्या का हल निकाले अथवा ब्रिटिश सरकार को इस समस्या को अपने हाथों में लेना चाहिए। तब उन्होंने बड़े ही निराशाजनक और भय के साथ कहा कि डिप्रेस्ड क्लास कभी भी इस मौजूदा माहौल में सत्ता हस्तांतरण के पक्ष में बेचैन नहीं रही है, अगर ब्रिटिश सरकार सत्ता का हस्तांतरण करना ही चाहती है, तब ऐसी शर्ते और तरीके होनी चाहिए जिससे सत्ता किसी षड्यंत्रकारी, कुलीनतंत्र या किन्ही हिन्दू और मुसलमानो के समूह में न जाये। सत्ता का बटवारा सभी वर्गों में बराबर का होना चाहिए।
प्रधानमंत्री अध्यक्ष का एक करारा जवाब
अध्यक्ष ने सभी राजनेताओं से अपील करते हुए कहा ” सभी राजनेता इस उलझन में न पड़े कि उनका यहाँ पर चयन का तरीका क्या है या उनकी कमियां क्या हैं. उनने उनसे कहा की क्या अल्पसंख्यक की समस्या भारत में है या नहीं इस सत्य का सामना करे। अध्यक्ष की यह स्पीच कटु और अकृतज्ञ शब्दों में थी, जिसे वहां कुछ सदस्यों ने श्री गाँधी की अन्य सदस्यों के प्रति कड़वे शब्दों के उत्तर में अध्यक्ष का एक करारा जवाब बताया.
ईमानदार दुश्मन भी नहीं
डॉ अंबेडकर का जोरदार प्रचार यहाँ नहीं रुका। १२ अक्टूबर १९३१ को इस प्रकरण पर प्रकाश डालते हुए टाइम्स ऑफ़ इंडिया को लिखा” जहां तक हमें विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है, श्री गाँधी ने हमारे मुस्लिम सथियो से एक १४ सूत्रीय मांगो को मानने का सौदा किया है जिसके बदले में वह मुस्लिमों से डिप्रेस्ड वर्ग या अन्य छोटे अल्पसंख्यक वर्गों की राजनितिक मान्यता का विरोध करवाना चाहते हैं, जबकि पब्लिक में कहते हैं अगर सभी वर्ग डिप्रेस्ड वर्ग और अन्य छोटे अल्पसंख्यक वर्गों की इस राजनितिक मान्यता के लिए सहमत होते हैं तब मैं भी हो जाऊंगा। और गुप्त रूप से वह मुस्लिम जो की इस राजनितिक मान्यता के लिए सहमत हैं, उन्हें खरीदना चाहते हैं, हमारे मत में यह किसी महात्मा का कार्य नहीं है. श्री गाँधी केवल डेप्रेसीड क्लास के साथी बनकर ही नहीं खेल रहे हैं बल्कि वह उनके एक ईमानदार दुश्मन की तरह भी नहीं खेल रहे हैं.”
सम्मलेन की असफलता
डॉ अंबेडकर ने अपने पत्र में पहले ही एक भविष्यवाणी की थी कि गोलमेज सम्मेलन का अंत उपद्रव में होगा,और इसके जिम्मेदार श्री गाँधी होंगे। डॉ अंबेडकर के अनुसार गांधी का पक्षपात वाला रवैया, अल्पसंख्यकों की समस्याओं को हल करने में भेदभावपूर्ण आचरण, उनसे असमान्य व्यवहार करने का तरीका, दूसरे प्रतिनिधि के प्रति उनकी पूर्ण अवहेलना, उनका अपमान करना आदि इन सभी गुणों ने गांधी को समस्या को ठीक से हल करने में मदद नहीं की, डॉ अंबेडकर ने आगे यह देखा कि श्री गांधी का एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ करने का शैतानी तरीका अब बिल्कुल स्पष्ट हो गया था. डॉ आंबेडकर ने यह कह कर विराम दिया की उनके अलोकतांत्रिक दिमागी व्यवस्था ने हेराल्ड लास्की और विठ्लभाई पटेल आदि को गहरा झटका दिया, वह स्थिति को गलत तरीके से संभालने के लिए गांधी की असफलता पर बड़बड़ा रहे थे.
महात्मा गाँधी एवं अंबेडकर के वैचारिक द्वन्द और दूसरे गोलमेज सम्मेलन की तस्वीर सरल शब्दों में रखने का प्रयास है, आशा है पाठको को नवीन जानकारी मिलेगी और इतिहास का ज्ञानवर्धन होना अन्य लाभ है, इस लेख का मूल स्त्रोत डॉ आंबेडकर स्पीच एंड राइटिंग है.
बूझो तो जाने
“अगर ब्रिटिश सरकार सत्ता का हस्तांतरण करना ही चाहती है तब ऐसी शर्ते और तरीके होनी चाहिए जिससे सत्ता किसी षड्यंत्रकारी, कुलीनतंत्र या किन्ही हिन्दू और मुसलमानो के समूह में न जाये। सत्ता का बटवारा सभी वर्गों में बराबर का होना चाहिए।”
डॉ आंबेडकर के यह समतावादी, लोकतंत्रवादी और दूरदर्शी शब्द इस सम्मेलन में १९३१ में कहे गए थे, आज भी प्रसांगिक हैं या नहीं, पाठक इसका निर्णय स्वयं करें।
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