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फ्रांस की क्रांति : एक बदलाव

फ्रांस की क्रांति : एक बदलाव

१७८९ से लेकर १७९९ तक का १० साल तक का समय फ्रांस की क्रांति के नाम से जाना जाता है जिसका प्रभाव राजनैतिक और सामाजिक बदलावों के रूप में पुरे विश्व में आज भी देखा जाता है. 

इस क्रांति ने राजशाही की तानाशाही को समाप्त किया और सैनिक तानाशाही ( नेपोलियन बोनापार्ट ) को शुरू किया।

इसके विभिन्न कारन है, उन पर कई इतिहास कार आज भी शोध करते हैं. नई  किताबे और शोध पत्र  छापते  हैं. उन पर एक नजर डालते हैं, इस क्रांति को हम समझने के नजरिये से विभाजित करते हैं: 

राजनितिक, सामाजिक आर्थिक और बौद्धिक 

पहला कारन है : राजनितिक 

लुइ १४ और लुइ १५ जो की एक निरंकुष तानाशाह थे उनके समय फ्रांस अतयधिक युद्धों  के कारन बहुत क़र्ज़ में आ गया था. इन्हे रोकने वाल संविधान और कानून उस समय नहीं थे. लुइ १४ को पक्का तानाशाह कहा जाता है इन्होने शक्ति का केंद्रीयकरण किया। सामंतो पर नकेल भी कसी, जो आगे चलकर इस राजतन्त्र के विरुद्ध हो गये.  लुइ १४ ने फ्रांस को कई युद्धों  में जीत भी दिलाई, लेकिन इन युद्धों के कारण फ्रांस क़र्ज़ में फंस गया. 

लुइ १५ के समय इंग्लैंड और फ्रांस के बीच ७ वर्षीय युद्ध हुआ जिसमे फ्रांस  की हार हुई. इस लड़ाई में इंग्लैंड और फ्रांस दोनों ही क़र्ज़ में आ गए एक तरफ इंग्लैंड ने अपने क़र्ज़ से निपटने के लिए अमेरिका जो की उसका उपनिवेश था उस पर टैक्स लगाना चाहा, जो की अमेरिका की क्रांति का कारण  बना वहीँ दूसरी और फ्रांस ने अपने ही राज्य पर  टैक्स  बढ़ाने  की कोशिश की, जिससे यह फ्रांस की क्रांति का कारन बना. दूसरी और लुइ १५, लुइ १४ की तरह एक अच्छे  शाशक भी नहीं थे. कहा जाता है इनका समय वर्साय की रंगीनियो में ही गुजरता था आम जनता से इनका सीधा संवाद नहीं था. कुछ इतिहासकर कहते हैं की यह अय्याशी में अपना जीवन बिताते थे.  

इनके बाद आता है लुइ १६ का राज यह दिल से फ्रांस के लिए बहुत कुछ चाहते थे, लेकिन इनमे कुछ बिंदास फैसले लेनी की कमी थी, यह अपने सलाहकारों के विरुद्ध अपने देश के लिए बिंदास फैसले लेने में हिचकिचाते थे, कई बार इन्होने देश के लिए फैसले किये और बाद में उन्हें वापस भी लिया। यह स्वयं के फैसले लेने में थोड़े कमजोर थे. इनकी पत्नी ऑस्ट्रिया की राजकुमारी इनकी एक बुरी सलाहकार थी, जब भी वह उन पर विश्वास करते फ्रांस के राजकीय कार्यों में कुछ गड़बड़ होती थी, इसका कारण  था, यह आम जनता से घुलते मिलते नहीं थे, अपने आलिशान और एकांत में बने महल वर्साय में ही रहते थे. 

लुइ १६ ने अमेरिका सवतंत्रता संग्राम में अमेरिका की मदद करी थी केवल अपने पूर्वजो का बदला लेने के लिए इसके बारे में हम चर्चा कर चुके हैं.  

दूसरा कारण है सामाजिक 

फ्रांस उस समय कई वर्गों में बंटा था, पीछे हम चर्चा कर चुके हैं, इसके लिए पिछले लेख भी देखे 

CLERGY (CHURCH) इनकी संख्या थी एक लाख फ्रांस की १० प्रतिशत भूमि इनके पास थी 

NOBELइनकी संख्या थी ४ लाख इनके पास फ्रांस की २५ प्रतिशत भूमि थी 

थर्ड एस्टेट : इनकी संख्या थी ९५ प्रतिशत थी (लगभग २.7 carore )

टैक्स कैसे लगता था 

पहले और दूसरे एस्टेट अर्थात क्लेर्गी और नोबल पर कोई टैक्स नहीं 

क्लेर्गी और नोबेल लोग शाही और विलाशिता पूर्ण जीवन जीते थे

थर्ड एस्टेट पर कई तरह के टैक्स लगते थे अगर फ्रांस कोई युद्ध में जाता था तो उन पर अन्य टैक्सों  के आलावा युद्ध के  नए नए टैक्स लगते थे 

पढ़ा लिखा वर्ग जिसे बुर्जुआ कहा जाता था यह एक वर्ग उभर कर आया, जिनमे राजा के कर्मचारी, वकील लेखक, कलाकार, बड़े व्यापारी, जो पुराणी मान्यताओं के खात्मे के लिए नविन वैज्ञानिक विचारधराओं को अनपढ़ जनता तक पहुंचा  रहा था 

शहर के कर्मचारी की हालत भी दयनीय थी, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा पर राज्य का  ध्यान नहीं रहता था. 

आर्थिक कारन 
बढ़ती हुई जनसँख्या 

१७०० में २ करोड़ और १७८९ में २. ८ करोड़, खेती बाड़ी में कोई आधुनिक  सुधार नहीं हुए थे खाने की कमी होना स्वाभाविक था. 

अत्यधिक कर्जा 

फ्रांस के किसी न किसी युद्ध में उलझे रहने के कारन उस पर १० अरब लिब्रे का कर्ज़ा हो गया था,  १७९० में यह कर्जा इतना बढ़ था उस समय  फ्रांस के बजट का आधा इसके ब्याज चुकाने में  लग जाता था.

अत्यधिक सर्दी का पड़ना 

१७८९ के आस पास  फ्रांस में इतने ओले और सर्दी पड़ी, फ्रांस की सारी खड़ी फसले बर्बाद हो गयी, जिससे खाने की  वस्तुओ के दाम अतयधिक बढ़ गए. इससे शहरो के गरीब और गांव के किसान भुखमरी के कगार पर पहुँच कर मरने लगे थे. यही वह वर्ग था जिस पर पहले से ही अत्यधिक करों का बोझ था। 

यही वह तत्कालीन आर्थिक कारण थे, जिससे फ्रांस की क्रांति की शुरुआत होती है.

बौद्धिक कारन 

१७ वि और १८वी  शदी में साइंस और फिलोसोफी में कई विकास हुए, तर्कवादी विचारधारा शुरू हुई. इनमे प्रमुख थे डेस्कार्त, हिरबिर्ड, जॉन लॉक, जीन जैक रूसो इम्मानुअल कांट, मोंटेस्कू, वाल्टेरे इत्यादि जिनके बारे में हमने पीछे भी जिक्र किया था.

रूसो ने कहा हर चीज पर जनता का अधिकार होना चाहिए, यहाँ तक कि कोई जुर्म भी करे तो न्यायालय में न लेजाकर उसे जनता के बीच में छोड़ दिया जाये, जनता ही उसका न्याय करेगी। 

मोंटेकस्कु फ्रेंच फिलॉस्फर ने कहा  राजा के शाशन और चर्च के बीच एक दूसरे का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। SEPRATION  OF CHURCH AND STATE 

VOLTAIRE फ्रेंच फिलॉस्फर ने कहा लोगों  के पास अभिव्यक्ति की सवतंत्रता होनी चाहिए। जो चाहे वह किताबो भाषणों या किसी अन्य माध्यम से अपनी सोच समाज में प्रकट कर सके. प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार हो गया था. इनकी लिखी किताबे लोग पढ़ रहे थे , इनके विचार अखबारों और  किताबों  के माध्यम से फ्रांस में फैल रहे थे, पढ़े लिखे लोग तो इनके विचारो को पढ़ते ही थे, जो अनपढ़ थे उन्हें भी जोर जोर से पढ़कर किसी कॉमन जगह जिअसे चौराहो और दुकानों पर सुनाते थे, उस समय ऐसे कई क्लब (सलोन डिसकशन ) बने हुए थे जो इन विचारो पर एक दूसरे की प्रतिकिर्या  लेते थे. इस प्रकार इन आधुनिक दार्शनिकों के विचार पुरे फ्रांस में फैल रहे थे। 

इन दार्शनिको ने पूछा ईश्वर ने किस हक़ से राजा को यह जिम्मेदारी दी है कि वह उस देश पर राज करे (MANDAE OF GOD ), राजा का क्या अधिकार है हम पर राज करे, चर्च का इस शाशन में क्या रोल है।

फ्रांस की क्रांति की समय सारिणी 

अब हम फ्रांस की समय सारिणी या घटना क्रम को देखते हैं किस प्रकार यह विभिन्न सरकारों का राज रहा था . 

१७८९ एस्टेट जनरल। १७८९ -९१ नेशनल असेंबली। १७९१-९२ लेजिस्लेटिव असेंबली। १७९२-९५ नेशनल कन्वेंशन (१७९३ -९४ आतंक का समय  भी इसमें शामिल है )।  १७९५-९८  डिरेक्टरी रूल। १७९९ नेपोलियन द्वारा सर्कार का तख्ता पलट (कांसुलेट रूल ).

एस्टेट जनरल – ५ मई १७८९ 

फ्रांस के राजा के वित्त मंत्री नेकर ने फ्रांस की दयनीय आर्थिक दशा को  ठीक करने के लिए लुइ १६ से कहा की टैक्स बढ़ाना पड़ेगा तभी फ्रांस की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है,राजा ने कहा कि  एक बार एस्टेट जनरल को बुला लेते हैं. मजे की बात तो यह है अपने १७५ वर्ष में इस एस्टेट जनरल की एक भी बैठक नहीं हुई थी फ्रांस के किसी भी राजा ने इस एस्टेट जेनेरल को नहीं बुलाया था. 

एस्टेट जनरल एक आम सभा थी, जिसमे फ्रांस के फर्स्ट एस्टेट के २०० सदस्य, सेकंड एस्टेट के २०० सदस्य और थर्ड एस्टेट के ६०० सदस्य आये थे. यह सभा वर्साय के उस शानदार महल के हाल में हो रही थी। 

एक वोट एक  प्रतिनिधि की मांग 

इस एस्टेट में एक टकराव हो गया वोटो को लेकर।  तब हर एस्टेट या वर्ग का एक वोट होता था, हर बार किसी भी विषय  पर फर्स्ट और सेकंड एस्टेट के प्रतिनिधि मिल जाते थे क्योंक यह प्रिवेलेज वर्ग थे और थर्ड एस्टेट जिनकी संख्या अधिक थी लेकिन वोट एक माना  जाता था वह हार सकते थे। लेकिन इस बार थर्ड एस्टेट के प्रतिन्धियों ने कहा, हम सभी का एक वोट न गिने बल्कि सभी का अलग -२ वोट गिने। इस स्थिति में चूँकि थर्ड एस्टेट के पर्तिनिधियो की संख्या अधिक थी फर्स्ट और सेकंड एस्टेट के प्रतिनिधियों ने इंकार कर दिया।

इस बार थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधि अड़ गए कई दिन तक यह बैठक वोटिंग अधिकार के मसले पर चलती रही. तब राजा लुइ ने थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधियों की अलग अलग वोट की मांग को मानने  से इंकार कर दिया।  तब इस थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधियों ने आपको एक नेशनल असेम्ब्ली घोषित कर दिया। इस पर राजा लुइ भड़क गया उसने उस बड़े से हाल जिस में यह बैठक हो रही थी उसका दरवाजा बंद करवा  दिया। थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधियों को उस हाल में आने से मना  कर दिया।

टेनिस कोर्ट में शपथ ली

 यह थर्ड एस्टेट के सभी प्रतिनिधि पास के ही टेनिस कोर्ट में गए वहां इन्होने शपथ ली की, हम इस नेशनल असेंबली को भंग नहीं करेंगे जब तक कि  फ्रांस में कोई संविधान बन कर तैयार नहीं होता। बाद में कई लोअर clergy या निम्न पादरी जो चर्च की पूजा पाठ  का वास्तविक कार्य कराते थे, इन्हे थर्ड एस्टेट की दयनीय स्थिति का पता था क्योंकि बड़े पादरी तो अपनी शानो शौकत और विलसिता के आदि थे, वह इन लोगो से नहीं मेल जोल  नहीं रखते थे, सेकंड एस्टेट के बहुत कम उदारवादी जिन्हे फूडल लार्ड भी कहा जाता था, वह भी इस थर्ड एस्टेट की असेंबली को सपोर्ट करने लगे थे. इस प्रकार यह नेशनल असेम्ब्ली के सदस्यों की संख्या और अधिक बढ़ने लगी थी और ताकतवर होने लगी थी. कुछ इतिहास कार टेनिस कोर्ट शपथ  से इस क्रांति की शुरुआत मानते हैं.

जून १७८९ की घटनाये THE GREAT FEAR TIME 

जैसे ही इस नेशनल असेम्ब्ली की खबर वर्साय से बहार फ्रांस में फैलती गयी, लोगों में एक आक्रोश पनपने लगा, किसानों  ने अपने फूडल लार्ड या सामंतो ( सेकंड एस्टेट ) को टैक्स देना बाद कर दिया, जो इन सामंतो के खाने पीने के गोदाम थे, उन्हें लूटना शुरू कर दिया, अपने फूडल लार्डस के घरो की सम्पति को लूटना शुरू कर दिया, बहुत से भूमि से सम्बंधित दस्तवेज भी जला दिए. अब नोबलिटी वर्ग या सेकंड एस्टेट के लोग बुरी तरह डर  गए थे इस समय को कहा जाता है THE GREAT FEAR TIME .

इसी समय पेरिस में भी दंगे छिड़ गए दंगे करने वालों ने कहा कि हम नेशनल असेम्ब्ली के साथ हैं जो यह राजा कर रहा है, हम उसके खिलाफ हैं क्योंकि वह नेशनल असेंबली को काम नहीं करने दे रहे.

इस प्रकार पेरिस में और ग्रामीण इलाकों में भी कई जगह कानून व्यवस्था चरमरा गयी थी, फ्रांस में क्रांति की भावना फैलने लगी थी किसानों ने अपने खेती के उपकरण इत्यादि हाथों  में हथियार की तरह उठा लिए थे। इन दंगो की आड़ में कई चोर उचक्के भी सक्रीय हो गए, उन्होंने भी अमिर घरों को लूटना शुरू कर दिया था। 

राजा लुइ ने सोचा इस आक्रोश और दंगो को दबाने के लिए आर्मी बुलानी चाहिए, इसलिए पेरिस में और वर्साय में आर्मी बुलाई गयी. अब पेरिस और वर्साय के पास धीरे धीरे आर्मी इकठा होने लगी, इससे लोगों का गुस्सा और भड़क गया. तभी एक अफवाह फैली की आर्मी से मुकबले के लिए बंदूकों की जरुरत होगी वह हमें बास्तील के किले में ही मिलेगी। इसलिए पूरी भीड़ जिसमे हजारो लोग शामिल थे वह बास्तील के किले में बढ़ने लगे। 

बास्तील की घटना १४ जुलाई १७८९ 

बस्तिले एक पेरिस में एक पुराना  किला था जो १४वी शताब्दी में बनवाया गया था।  जिसे अब एक जेल की तरह इस्तेमाल किया जाता था।  पेरिस में यह मान्यता थी, यह किला राजा उसके आदेशो को न मानने  वालों  के लिए इस्तेमाल करता था, वह जिस मर्जी को उठा कर बंद कर देता था।  दूसरा उन्हें वहां से हथियार मिलने उम्मीद थी।  इसलिए यह क्रांतिकारियों का दस्ता सुबह सुबह वहां पहुंचा, उनके साथ कई तमाशा देखने वाले भी थे। वहां उस समय जेल का गवर्नर भी मौजूद था वर्नार्ड रेने, उसके साथ ७०- ८० रिटायर फौजी भी थे, उन्होंने इतने क्रांतिकारियों और उनके साथ इकठी भीड़ पर बंदूके नहीं चलवाई, क्योंकि उस में निर्दोष भी मारे जा सकते थे।  इसका फायदा इन क्रांतिकारियों ने उठाया और उन सभी सैनिको को मौत के घाट उतार दीया इस गवर्नर को भी घोड़े के पीछे बाँधकर पेरिस में जगह जगह घूमाकर दर्दनाक मौत  दे  दी .  वहां से बंदूके लूटी और बंद कैदियों को रिहा कर दिया हालाँकि वहां ६ या ७ कैदी ही बंद थे.

लोगो में इतना गुस्सा था की उस किले की एक एक ईंट उखाड़ दी गयी, और उसे बाजार में बेच दिया आज इस किले का नामो निशान नहीं है।  इस क्रन्तिकारी घटना की  याद में १४ जुलाई को फ्रांस में बास्तील दिवस आज भी मनाया है. 

लुइ चाहता तो आर्मी से इस विद्रोह को कुचलवा सकता था, पर वह भी अपनी निर्दोष जनता पर गोली नहीं चलवाना चाहता था. उसने एक गलत निरनय और लिया, उसने अपने वित्त मंत्री नेकर को बर्खास्त कर दिया क्योंकि थर्ड एस्टेट के लोग उसे अपना हितैषी मानते थे और वह भी टैक्स को सभी एस्टेट्स में बराबर विभाजित करना चाहता था.

                                                                                          ———-क्रमशः जारी है  है अगले भाग में

फ्रांस की क्रांति के पिछले लेख के बारे में अधिक जानने के लिए देखे https://padhailelo.com/french-revoution-part-1/

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