फ्रांस की क्रांति: एक पृष्ट भूमि
फ्रांस की क्रांति एक ऐसी ऐतिहासिक घटना है जिसने फ्रांस ही नहीं, पुरे विश्व में अपना प्रभाव डाला था, यह एक ऐसा मोड़ था, जिसने आज के आधुनिक लोकतंत्र की नींव रखी थी, विश्व के अधिकतर देशो के संविधान में इस क्रांति के विचार या आईडिया आज भी देखे जा सकते हैं, हमारे भारत के संविधान की प्रस्तावना में भी इस क्रांति के प्रसिद्ध नारे जैसे समानता सवतंत्रता, बंधुत्व, न्याय (LEBERTY EQUALITY FERTANITY JUSTICE ) इत्यादि इस क्रांति से निकले ही आईडिया हैं, इस क्रांति ने आगे की दो छोटी फ्रांस की क्रांति और रूस की क्रांति सहित अन्य कई देशो में क्रांति करने की प्रेणना भी दी थी.
लोकतान्त्रिक विचारों की जननी
कुछ इतिहासकार इसे असफल भी कहते हैं, लेकिन इस क्रांति के बाद जो आईडिया निकल कर आये उन्हें देखकर लगता है कि यह क्रांति एक सफल और मानव अधिकारों एवं लोकतान्त्रिक विचारों की जननी है. इस क्रांति का प्रभाव इतना है की आज भी कई दार्शनिक और इतिहासकार इस पर कई शोध कर रहे हैं, कई प्रसिद्ध किताबे इस पर लिखी जा चुकी हैं, स्कूल कॉलेजो में इस क्रांति के बारे में अब भी पढ़ाया जाता है. आइये कुछ मुख्य इतिहासकारो और सर्वमान्य अवधारणाओ के आधार पर एक नजर डालते हैं.
उपनिवेशिक काल का समय
इस क्रांति से पहले हम विश्व को देखे तो उस समय एक उपनिवेशिक काल अपने चरम पर था हर देश अपने से कमजोर देश को अपने अधीन करना चाहता था, हर देश में एक राजा हुआ करता था, उसका काम दूसरे देशों को अपने अधीन करना होता था, अपने राज्य की सीमा का विस्तार करना होता था, वह या तो लड़ाई में या अपने मनोरंजन में मस्त रहता था, हालाँकि अपवाद स्वरूप कुछ राजा थे, जो केवल अपने देश तक सिमित थे और जनता के सुख दुःख में शामिल रहते थे. उस समय फ्रांस और इंग्लैंड या ब्रिटेन दो मुख्य शक्तियां थी, जिनके पास और देशो के मुक़ाबले सबसे अधिक अपने उपनिवेश थे, इनमे अधिक उपनिवेश बनाए की होड़ लगी रहती थी जाहिर है इससे इन दोनों देशो में टकराव भी होता था, हम कह सकते हैं, फ्रांस और ब्रिटेन तत्कालीन विश्व की दो महान शक्तिया थी और सारा विश्व इन दोनों देशो के साथ बटा हुआ था. क्या आप बता सकते हैं इस समय भारत पर किसका राज था.
युद्ध प्रिय समय
उस समय सारा विश्व ही युद्धों में उलझा रहता था, उस समय के कुछ प्रसिद्ध युद्ध थे जैसे तीस वर्षीय युद्ध (सन् 1618 से 1648 तक कैथोलिकों और प्रोटेसटेटों के बीच युद्धों की जो परम्परा चली थी उसे ही साधारणतया तीसवर्षीय युद्ध कहा जाता है। इसका आरम्भ बोहेमिया के राजसिंहासन पर पैलेटाइन के इलेक्टर फ्रेडरिक के दावे से हुआ और अन्त वेस्टफेलिया की संधि से। धार्मिक युद्ध होते हुए भी इसमें राजनीतिक झगड़े उलझे हुए थे। अफ्रीका का कांगो युद्ध , इंग्लैंड और फ्रांस का सात वर्षीय युद्ध, चीन का किंग युद्ध, भारत में मुग़ल मराठाओ के बीच युद्ध। एशिया और अफ्रीका में होने वाले युद्ध जहाँ राजनितिक और आर्थिक कारणों से थे वहीं यूरोप के युद्ध में धार्मिक आधार भी देखा जा सकता है.
THE DOCTRINE DIVINE OF RIGHT OF KING
उस समय धर्म को सबसे ऊपर माना जाता था. THE DOCTRINE DIVINE OF RIGHT OF KING के सिद्धांत में राजा को समझा जाता था कि उसे सीधे भगवान ने चुना है राज करने के लिए, उस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता, धार्मिक ग्रंथो की बातों पर कभी सवाल नहीं उठाये जाते थे, धरम के सभी पुजारी, बिशप पादरी उलेमा इनके पास राज्य के विशेष अधिकार थे. इनके पास अपने अपने धर्म का ठेका लेना का लाइसेंस था. क्या यह धर्म के ठेकेदार राजा से अपने लिए अधिक सुविधा वाले कानून नहीं बनवाते होंगे?
सामाजिक विभाजन
समाज कई वर्गों में बंटा हुआ था जैसे उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग। इनका आधार धार्मिक और आर्थिक हुआ करता था, धार्मिक आधारों पर लोगों का शोषण किया जाता था, उन्हें ईशवर का भय दिखाया जाता था, यह यह स्थिति हर देश में थी कही कम कहीं ज्यादा। क्या उस समय भारत में धार्मिक आधार पर शोषण होता होगा? ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र अछूत और जंगली का बटवारा किस आधार पर था ?
धर्म से बड़ा कुछ भी नहीं
पिछले १००० वर्षो से यही सिस्टम चला आ रहा था, भारत में तो उसे भी पहले से, अशिक्षा और गरीबी के कारण गरीब मजबूर और मेहनती लोग अपनी जुबान खोल नहीं पाते थे, और इस सिस्टम में पिसने के लिए मजबूर थे, उनके मन में यह बात घर कर गई थी की उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार उनके पिछले पाप हैं, उनकी ऐसी बुरी दशा ईश्वर की मर्जी से है. धर्म में होने वाले पाखंड के खिलाफ आवाज उठाना तो आत्महत्या के बराबर था।क्योंकि धर्म स्थलों की पहुँच सीधे राजा महाराजा तक हुआ करती थी. इन रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ और राजा के खिलाफ कोई भी आम आदमी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं दिखा सकता था, फिर यह क्रांति कैसे हुई.
१६वी शताब्दी में ज्ञान और विज्ञान ने अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी थी, कई अविष्कार और दर्शन निकल कर आ रहे थे, इन विचारों के प्रभाव में लोगो ने धर्म को भी वैज्ञानिक और तर्कवादी दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था, उन दार्शनिको और वैज्ञानिक अवधारणाओं पर चर्चा शुरू होनी हो गयी थी. उनमे से कुछ प्रमुख दर्शनिको और वैज्ञानिको के क्रन्तिकारी विचारो को इस क्रांति के नजरिये से देखने की कोशिश करते हैं.
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रेने डिस्कारते Rene Descartes(1596-1650) फ्रैंच फिलॉस्फर और महान गणितज्ञ
सबसे पहले इन्होने तर्क के आधार पर अभी तक के सदियों पुरानी मान्यताओं और स्थापित विचारों को देखना शुरू किया था, इसलिए उन्हें आधुनिक दर्शन का पिता भी कहा जाता है उनका सबसे प्रसिद्ध कथन था— मैं यहाँ हूं इसलिए मैं सोच सकता हूँ (I THINK THERFORE I AM), इंसान के पास एक अच्छा दिमाग होना ही काफी नहीं है, सबसे जरुरी बात है उसका भरपूर इस्तेमाल भी किया जाये (IT IS NOT ENOUPH HAVE AGOOD MIND THE MAIN THING USE IT WELL).
Edward Herbert (“the father of English Deism”)
अभी तक सभी धार्मिक किताबो में लिखा हुआ सच माना जाता था, धर्म के ठेकेदार कहते थे यह सब खुदा ने लिखा है, DEISM THEORY में Edward Herbert ने बताया की धार्मिक किताबों में लिखे हुए पर भी तर्क के आधार पर सवाल उठाये जा सकते हैं. उनका प्रसिद्ध कथन है ” ईश्वर ने दुनिया की रचना की होगी लेकिन अब उसने इसमें हस्तक्षेप करना बंद कर दिया है”.
गैलीलियो गैलिली
गैलीलियो गैलिली एक इतालवी खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। गैलिलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खगोलीय प्रेक्षण, चंद्रमा पर क्रेटरों व पहाड़ों की खोज और बृहस्पति के चार उपग्रहों, प्रायः गैलीली उपग्रहों के रूप में जाना जाता है, के लिए दूरबीन का उपयोग किया था।अपने टेलेस्कोप के अविष्कार के कारन वह दुनिया भर में प्रशिद्ध हैं। अपने परीक्षणों के दौराण उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी ग्रह पृथ्वी समेत सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
उनकी इस खोज पर इटली के चर्च समुदाय को घोर आपत्ति हुई क्योंकि उनकी बाइबल में लिखा था कि पृथ्वी की परिक्रमा सूर्य करता है जबकि गैलीलियो महोदय कह रहे थे की सभी ग्रह पृथ्वी समेत सूर्य की परिक्रमा करते हैं. इस कथन पर उन्हें जेल में डाला गया क्योंकि उनने बाइबिल में लिखे हुए पर सवाल उठा दिया था. उनके कुछ प्रसिद्ध कथन इस प्रकार हैं :
” जूनून प्रतिभा की उत्पत्ति है “
“एक बार सच्चाई का पता लग जाये तो उसे समझना है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण उसे खोजना है “
“गणित वह भाषा है जिसके साथ ईश्वर ने ब्रह्माण्ड लिखा है “
“मेरे को अभी तक ऐसा कोई अज्ञानी नहीं मिला जिसे मैं कुछ न सीख सका “
“खुद को जानना सबसे बड़ी बुद्धिमानी है “
“संदेह अविष्कार का जनक है “
“आप एक आदमी को कुछ भी नहीं सिखा सकते, आप केवल उसे खुद के भीतर खोजने में मदद कर सकते हैं”
जान लॉक
जान लॉक का जन्म 29 अगस्त 1632 ई. का रिंगटन नामक स्थान पर हुआ। । यहाँ के अध्ययन के पश्चात् सन् 1652 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के क्राइस्ट चर्च कालिज में प्रविष्ट हुए। यहाँ पर स्वतंत्र विचारधारा का अधिक प्रभाव था। 1660 में वे इसी प्रख्यात महाविद्यालय में यूनानी भाषा एवं दर्शन के प्राध्यापक नियुक्त उनके सामाजिक एवं राजनीतिक विचार उनकी प्रख्यात पुस्तक “टू ट्रीटाइजेज ऑव गवर्नमेंट” (1690) में व्यक्त किए गए हैं।
इनको कुछ इतिहासकार क्रांति का जनक, उदारवाद का जनक और और अनुभववाद का जनक भी कहते हैं। इन्होने अपने दर्शन में कहा ” सम्पति जीवन और सवतंत्रता मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार हैं, शाशक तभी तक राज कर सकता है जब तक जनता चाहती है वह इसे विरोध कर गद्दी से उतार भी सकती है। राज्य को नागरिकों के कार्य में अधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए हालाँकि इन्होने पूंजीवाद का विरोध नहीं किया। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन इस प्रकार हैं :
“आप उन चीजों में महारत हासिल करते हैं जिनकी आप चिंता करते हैं “
“कानून बनाने का मतलब किसी चीज को खत्म करना नहीं है बल्कि सवतंत्रता का दायरा बढ़ाना और इसे सुरक्षित रखना “
“हमारे चरित्र का उन्ही से पता लगाया जा सकता है जिसे हम अपने जीवन में सबसे ज्यादा चाहते हैं “
“सत्ता का होना बुरा नहीं है, लेकिन सत्ता किसके पास है यह महत्वपूर्ण है “
“इस दुनिया की सभी चीजे इतनी परिवर्तनशील है, एक दशा में कुछ भी लम्बे समय तक नहीं रह सकता “
“विद्रोह करना और आवाज़ उठाना हर वयक्ति का अधिकार है “
वोल्टेयर
यह १६९४ में जन्मे थे इनका नाम फ्रांसिस मेरी AROUT था, बाद में यह वोल्टेयर के नाम से प्रसिद्ध हुए. इनके पिता एक लॉयर थे इन्हे भी वह लॉयर बनाना चाहते थे परन्तु यह लेखक बनना चाहते थे। इन्होने ५० से ज्यादा नाटक लिखे अपने पेरिस से निर्वासन के दौरान कई पत्र भी लिखे पर वह प्रकाशित नहीं हुए। उस समय धर्म या चर्च ने राज्य को जकड रखा था इसलिए अपने लेखन में इन्होने धर्म और समाज पर कई कटाक्ष किये। इन्होने धर्म को राज्य से अलग करने का समर्थन किया। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन इस प्रकार हैं :
“जितना अधिक हम दुर्भाग्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं, उतना अधिक यह हमें नुकसान पहुँचाने की क्षमता रखता है”
“उन मामलो में सही होना खतरनाक है, जिनकी स्थापना करने वाले ही गलत हैं “
“जिंदगी में सबसे राहत की बात यह है, कि जो कुछ हम सोचते हैं वह कह पाए”
“अपने लिए सोचो और दुसरो को भी ऐसा करने का मौका दो”
“कॉमन सेन्स इतना कॉमन भी नहीं होता”
“प्रकृति की शक्ति हमेशा शिक्षा से ज्यादा होती है “
“यदि ईश्वर का आसिस्तव नहीं है, तो उसका अविष्कार करने की आवश्यकता है “
Jean Jack Roussoue (1712 – 78)
रूसो एक नामी प्रकृतिवादी शिक्षा दार्शनिक थे इन का जन्म २८ जून १७१२ ईस्वी को स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा नगर में हुआ था। १२ वर्ष की आयु में घर से भागकर वह छोटी मोती नौकरी करने लगे। बाद में थेरेस नमक महिला से शादी कर पेरिस में जा बसे। उनको प्रसिद्धि तब मिली जब उनने एक निबंध लिखा जिसका विषय था “विज्ञानं और कला की प्रगति का परिणाम नैतिकता में वृद्धि है या गिरावट। रूसो का उत्तर था विज्ञानं और कला से नैतिकता में गिरावट आई है। “प्रकृति की ओर लौटो” भी उसका ही नारा था। इनने कई किताबे लिखी उसकी सबसे प्रसिद्ध रचना एमिल है। रूसो एक बड़ा ही अलबेला दार्शनिक था, लेकिन फिर भी फ्रांस की क्रांति में उसके विचार प्रसारित हुए रोबेर्स्पियर जैसे तानाशाह का भी वह आदर्श बन जाता है, अगर सही मायनों में किसी ने जन सम्प्रुभता या सर्वोच्च सत्ता का जनता में निहित होना की बात कही तो वह रूसो ही था, इनका जीवन भी बड़ा ही उतार चढ़ाव वाला रहा था अधिकतर अपना अंतिम समय इनने फ्रांस से निर्वासन हो कर बिताया। उनके कुछ प्रसिद्ध वाक्य हैं :
“मनुष्य सवतंत्र पैदा हुआ है लेकिन वह बेड़ियों में जकड़ा हुआ है “
“मैं गुलामी के साथ शांति की तुलना में खतरे के साथ सवतंत्रता पसंद करता हूँ “
“मैं उन लोगों की तरह नहीं बना हूँ जिन्हें मैंने देखा है। मैं यह विश्वास करने का साहस करता हूँ कि मैं उन लोगों की तरह नहीं हूँ, जो अस्तित्व में हैं। अगर मैं बेहतर नहीं हूँ तो कम से कम सबसे अलग हूँ “
“पागलों की दुनिया में समझदार होना अपने आप में पागलपन है “
दुनिया के निर्माता के हाथ जो कुछ आता है, वह अच्छा है, लेकिन मनुष्य के हाथ में आने पर वह पतित हो जाता है “
“प्रकृति ने मुझे खुश और अच्छा बनाया है, अगर मैं यह नहीं हूँ, तो यह समाज की गलती है “
मॉन्टेस्क्यू
इनका जन्म १८ जनवरी १६८९ को तथा मृत्यु फरवरी १७५५ में हुई। १७०८ में वह वकील बन गए। वह फ्रांस का एक राजनैतिक विचारक, न्यायविद तथा उपन्यासकार था मान्टेस्कुए ने शक्ति के बंटवारे का सिद्धांत दिया उसने फ़्रांसिसी राजतन्त्र की जमकर आलोचना की उनकी प्रसिद्ध रचना कानून की आत्मा है, जिसमे उसने राजा के दैवीय अधिकार के सिद्धांत की कड़ी आलोचना की और फ्रांस की सदी गली संस्थाओं की बड़ी कटाक्ष वाली आलोचन की। वह वैधानिक शाशन तथा व्यक्तिगत सवतंत्रता का जबर्दस्त समर्थक था उनका मानना था निरुक्ष शाशन को समाप्त करने के लिए शाशन के तीन अंगो कार्यपालिका व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के क्षेत्रो को प्रथक करना अनिवार्य है तभी जनता के अधिकारों की रक्षा हो सकेगी। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन हैं :
“मैंने हमेशा देखा है की संसार में सफल होने के लिए एक मुर्ख की तरह दिखना चाहिए, लेकिन बुद्धिमान होना चाहिए “
“इससे बड़ा अत्याचार और कोई नहीं है, जो कानून की ढाल के तहत न्याय के नाम पर बना हुआ है “
“पावर को चेक TO पावर की तरह काम करना होगा “
“जो भी कानून अनुमति देता है उसे करने का अधिकार सवतंत्रता है “
” हम तीन शिक्षा प्राप्त करते हैं एक माता पिता से दूसरी अपने स्कूल से और तीसरी इस दुनिया से, तीसरी शिक्षा उन सभी शिक्षा का खंडन करती है, जो पहले दो हमें सिखाते हैं “
सर आइज़ैक न्यूटन
सर आइजैक न्यूटन एक अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ, खगोलशास्त्री। धर्मशास्त्रीऔर लेखक थे वह १७वी शताब्दी की वैज्ञानिक क्रांति के परिणाम थे। नूतन गुरुत्वाकर्षण के नियम के बारे में सबसे अछि तरह से जाने जाते हैं लेकिन उनके प्रिसिपिया मैथेमैटिका (१६८६) ने गति के तीन नियमों ने पुरे यूरोप को बहुत प्रभावित किया। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन हैं :
“हमने दीवारें तो बहुत बनायीं हैं लेकिन पर्याप्त पुल नहीं बनाये “
“मैं ब्रह्माण्ड के पिंडो की गड़ना तो कर सकता हुईं लेकिन मनुष्य के पागलपन की नहीं “
“उत्थान के बाद पतन भी संभव है “
“प्रत्येक किर्या के बराबर और विपरीत किर्या होती है “
“जो ऊपर जाता है उसका नीचे आना निश्चित है”
“जितना हम जानते हैं वह एक बून्द जितना है, और जितना हम नहीं जानते वह एक महासागर के जितना है”
“यदि मैंने लोगों की कुछ भी सेवा की है तो यह मेरी सोच के कारण ही संभव हो पाया है “
“मैं भी साधारण ही हूँ परनतु मेरी सफलता का कारण कोई जादू नहीं बल्कि मेरा निरंतर अभ्यास और भरपूर कोशिश ही है “
” सच तो हमेशा सादगी में बसता है बनावटीपन और उलझन में नहीं “
“यदि मै दुसरो की तुलना में खुद को आगे पाता हु, तो ऐसा में महान दिग्गजों के कन्धो के सहारे पर ही कर पाया हूँ”
“मै नही जानता हु कि इस दुनिया में मेरा क्या रोल है लेकिन मेरी नजर में मै समुद्र के किनारे खेल रहे बच्चे के समान हूँ जो चिकने पत्थर और सीप खोजने में व्यस्त है जबकि मेरे सामने सत्य का अबूझ अथाह महासागर फैला हुआ है”
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RISE OF ENLIGHTMENT AGE
ऊपर लिखित दार्शनिक एवं वैज्ञानिको के कुछ कथन पाठकों के सामने रखे गए हैं जिससे उन्हें उस वक्त की प्रबुद्धता के बारे में अंदाज़ा लग सकता है, इनके आलावा भी कुछ विज्ञानवादी और दार्शनिक और भी हो सकते हैं, जिनको पाठक स्वयं भी खोज सकते हैं, १६वी से १८ वी शताब्दी के दौरान इन सभी दार्शनिको और वैज्ञानिको का पुरानी स्थापित मान्यताओं से अलग एक तर्कवादी नजरिया था यह सभी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल अपने तरीके से करते थे, इन सभी का प्रचलित पुरानी अवधारणाओं पर अपने तर्क के आधार पर टकराव रहा था, इसलिए फ्रांस की क्रांति को कुछ इतिहासकार RISE OF ENLIGHTMENT AGE का नतीजा भी कहते हैं.
क्या पाठक इस बात से सहमत हैं, यह तो स्वयं पाठक और शोधर्थी ही बता सकते हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखे, इस क्रांति पर तत्कालीन बौद्धिक और विज्ञानं वादी सम्पदा का पूरा प्रभाव रहा था, फ्रांस के लोग इन आधुनिक विचारो और विश्वासों पर भरोसा करने लगे थे चाहे वह पढ़े लिखे हो या अनपढ़ हो.
फ्रांस की क्रांति के बारे में समझने की कोशीश कर रहे थे कहाँ इन १६वी से १८ वी सदी के दार्शनिको और वैज्ञानिको पर अटक गए, लेकिन उनके यह विचार आज भी एक जिज्ञासु छात्र या पाठक को झझकोर कर रख देने की ताकत रखते हैं, पाठको की इस बारे में क्या राय है, कमैंट्स में जरूर बताए। अगले लेख में में हम विस्तार से फ़्रांस की क्रांति को समझने की कोशिश करेंगे।
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