You are currently viewing फ्रांस की क्रांति की पृष्टभूमि पार्ट १

फ्रांस की क्रांति की पृष्टभूमि पार्ट १

फ्रांस की क्रांति की पृष्टभूमि पार्ट १ 

पिछले लेख में हमने समझा कि फ्रांस की क्रांति होने से पहले जो नवीन तर्कवादी विज्ञानवादी विचारधाराएं निकल आ रही थी पिछले हजार वर्षो से भी अधिक समय की पुराणी विचारधराये भी तर्क और विज्ञानं सम्मत तरीके से कसी जा रही थी, यूरोप में बौद्धिक जागरण का काल  चल रहा था, कई आधुनिक दर्शन के दार्शनिक और वैज्ञानिक राजा के दैवीय सिद्धांत और चर्च के कठमुल्लापन और रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती दे रहे थे. इनका प्रभाव आम जनता पर भी पड़ना स्वाभाविक ही था.

इस बौद्धिक जागरण के पीछे शिक्षा का विस्तार, विज्ञानं के नए नए अविष्कार और औधोगिक क्रांति मुख्य रूप से  रही होंगी या आम जनता राजा को और धार्मिक स्थलों को सर्वश्रेष्ठ मानने  की रूढ़िवादी पारपराओं से तंग आ गए थे क्योंकि राजा और धार्मिक स्थलों के ठेकेदार इस व्यवस्था में सबसे अधिक मौज में थे उनसे कोई भी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करता था. तत्कालीन फ्रेंच दार्शनिक रूसो के इस कथन पर पाठक उस दौर की कल्पना कर सकते हैं  “MAN IS BORN FREE BUT EVERYWHERE IS IN CHAIN”.

सदियों से लोगों में राजा की निरंकुशता और धार्मिक आडम्बरो के विरुद्ध गुस्सा पनप रहा था, इस गुस्से को इन नविन विचारधाराओं और विज्ञानवादी सोच के दार्शनिको और वैज्ञानिको ने समाज में लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति जब आस्था जगाई, जितनी अधिक यह आस्था और विश्वास गहरा होता गया उतना ही फ्रांस की क्रांति का आधार बनता गया. इस क्रांति ने कई राजनैतिक और सामाजिक बदलाव किये, इसके आईडिया आज भी इफेक्टिव हैं, आइये इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं.

१७८९ से १७९९ लगभग १० वर्ष तक का समय इस क्रांति का समय बताया जाता है. इसने राजशाही की तानाशाही को समाप्त किया फ्रांस को गणतंत्र भी बनाया और इसका अंत नेपोलियन बौनापार्ट की तानाशाही से हुआ यहाँ आप देख सकते हैं की यह क्रांति एक तानाशाही को समाप्त करती है और दूसरी को शुरू करती है इस वजह से कुछ इतिहासकार इसे एक असफल क्रांति भी कहते हैं. इ

इस क्रांति के समय फ्रांस के बोरबन bourbon वंश के राजाओं का शाशन था, 

लुइ १४वे ने यधपि अपने शाशन को केंद्रीयकृत किया उसने अपने आपको भगवान का दूत  बताया उसकी इच्छा  सर्वोपरि थी, यधपि फ्रांस ने उसके राज में लड़ाइयों के साथ संस्कृत और शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की भी की इसी प्रकार लुइ १५वे ने भी उसकी विरासत को  आगे बढ़ाया। कुछ इतिहासकार कहते हैं की लुइ १५व ा एक कुशल प्रशाशक नहीं था उसे सात वर्षीय युद्ध में इंग्लैंड के हाथो फ्रांस की  हार  का सामना करना पड़ा जिससे राजा ही भगवान होता इससे फ्रांस की आम जनता का मोह भंग  हो गया. कहा जाता है कि  यह सात वर्षीय युद्ध विश्व का प्रथम विश्व युद्ध भी था क्योंकि पूरा विश्व उस समय फ्रांस और ब्रिटैन के साथ विभाजित था क्योंकि इस युद्ध में विश्व के उपनिवेश देश या तो फ्रांस के अधीन थे या फिर ब्रिटैन के अधीन। शोधार्थी कृपया अपने शोध को इस विषय में आगे बढ़ाये। 

अब हम लुइ १६वे के बारे में जानेगे  जो इस क्रांति का नायक ही नहीं खलनायक भी है और अपने पूर्वर्ती  पूर्वजो के अवैज्ञानिक  विचारधाराओं  का  समर्थक होने का कारन  फ्रांस की जनता के कोप का  भाजन  भी  बनता है। 

लुई सोलहवाँ

लुई सोलहवाँ (Louis XVI ; १७७४-१७९३) – लुई पंद्रहवें का पौत्र था और उसके बाद फ्रांस का राजा बना। उसका जन्म १७५४ में हुआ था।

अपने प्राणों की बलि देकर किया।

लुई का यह दुर्भाग्य था कि अपने पूर्वजों के कार्यों का भुगतान उसने अपने प्राणों की बलि देकर किया। चौदहवें और पंद्रहवें लुई का स्वेच्छाचारी शासन, बिगड़ती आर्थिक दशा, सामंतों के अत्याचार और हर प्रकार की असमानता से पीड़ित जनता ने १७८९ में क्रांति का झंडा खड़ा कर दिया। लुई की दयापूर्ण नीति के कारण भी परिस्थिति बिगड़ती गई। वर्साय पर जनता ने आक्रमण किया और एक संविधान को संचालित किया। लुई को ट्यूलरी के राजमहल में बंदी कर दिया। लुई का वहाँ से भागने का प्रयत्न असफल रहा। उसपर यह भी दोष लगाया गया कि अपनी सत्ता पुन: स्थापित करने के लिए वह दूसरे राजाओं से चोरी चोरी सहायता की याचना करता रहा है। देशद्रोह के आरोप में उसे २१ जनवरी १७९३ को ३८ वर्ष की आयु में प्राणदंड दे दिया गया।

कहीं यह भी कहा जाता है कि फ्रांस की जनता को इस बात से भी  नफरत थी की उसके राजा  लुइ १६वे ने ऑस्ट्रिया की राजकुमारी से विवाह किया था ऑस्ट्रिया वह देश था जिसने सात वर्षीय युद्ध में ब्रिटैन का साथ दिया था,  इस युद्ध में फ्रांस की हार हुई थी. उसने अपने पूर्वजो की हार का बदला लेने के लिए उसने अमेरिका (तत्कालीन ब्रिटैन का उपनिवेश ) की सहायता की जो उस समय जॉर्ज वाशिंगटन के नेतर्त्व में इंग्लॅण्ड से अपनी सवतंत्रता के लिए लड़ रहा था, उसने अमेरिका में अपनी आर्मी भी भेजी, इससे अमेरिका तो सवतंत्र हो गया पर फ्रांस को कुछ नहीं मिला बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति और अधिक बदतर हो गयी. कहा जाता है की उस समय फ्रांस के कुल बजट का आधा हिस्सा फ्रांस का कर्ज चुकाने में ही निकल जाता था.

लुइ १६वा भी अपने पूर्वजो की तरह वर्साय के महल में पेरिस से दूर रहता था उसने अपने मंत्रियों को वही बुला लिया था जिससे वह फ्रांस की आम जनता से कट गया था, साथ ही उसके राज्य मंत्री भी आम जनता में पनप रहे असंतोष की विराटता को समझ नहीं पाए।  

लुइ १६वे हमारे लुइ की रानी

अब हम लुइ १६वे हमारे लुइ की रानी के बारे में चर्चा करते हैं 

कहा जाता ही यह रानी बहुत फिजूलखर्ची वाली थी, जुए की शौक़ीन थी, हर दो  घंटे में अपने कपडे बदलती थी, देश विदेश के महंगे परफूम का इस्तेमाल करती थी, और इनकी हेयर स्टाइल तो गजब ही थी अपने बालो से यह एक पानी का जहाज बनवा लेती थी (सोच सकते हैं इनकी केश सज्जा में कितना समय लगता था) यह फ्रांस की बुरी सलाहकार भी थी जब भी यह राजा को  शाषन संबंधी सलाह देती थी वह फ्रांस को नुकसान पहुंचा देती थी।  यह भी  कहते हैं की इसका किसी स्वीडिश नागरिक से प्रेम सम्बन्ध था उसके प्रेम पत्र फ्रांस में चर्चा का विषय बन गए थे, यह भी उनके गुस्से का एक कारण था क्योंकि राजा को परम्परा के अनुसार ईश्वर का दूत ही समझा जाता था और उसकी रानी अगर गैर देश के नागरिक से प्रेम सम्बन्ध रखेगी राजघराने का ईश्वरीय दूत या ईश्वरीय आज्ञा होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है.

किसानों की संख्या सर्वाधिक 

किसानों की संख्या सर्वाधिक थी फ्रांस की कुल जनसँख्या (२. ८ करोड़ ) का ९५ प्रतिशत और इनकी दशा निम्न और सोचनीय थी। किसानों को राज्य, चर्च तथा अन्य जमीदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे और सामंती अत्याचारी को सहना पड़ता था। एक दृष्टि से किसानों के असंतोष का मुख्य कारण सामंतों द्वारा दिए जा रहे कष्ट एवं असुविधाएं थी और राजतंत्र इस पर चुप्पी साधे हुए था। इस तरह किसान इतने दुःखी हो चुके थे कि वे स्वयं ही एक क्रांतिकारी तत्व के रूप में परिणत हो गए और उन्हें क्रांति करने के लिए मात्र एक संकेत की आवश्यकता थी।

मध्यवर्ग कुलीनों के सामाजिक श्रेष्ठता से घृणा रखते था

मध्यम वर्ग (बुर्जुआ) में साहुकार व्यापारी, शिक्षक, वकील, डॉक्टर, लेखक, कलाकार, कर्मचारी आदि सम्मिलित थे। उनकी आर्थिक दशा में अवश्य ठीक थी फिर भी वे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के प्रति आक्रोशित थे। इस वर्ग को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था और पादरी और कुलीन वर्ग का व्यवहार इनके प्रति अच्छा नहीं था। इस कारण मध्यवर्ग कुलीनों के सामाजिक श्रेष्ठता से घृणा रखते था, और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन कर अपने अधिकारों को प्राप्त करने के इच्छुक था। यही कारण था कि फ्रांस की क्रांति में उनका मुख्य योगदान रहा और उन्होंने क्रांति को नेतृत्व प्रदान किया। मध्यवर्ग के कुछ आर्थिक शिकायतें भी थी। पूर्व के वाणिज्य व्यापार के कारण इस वर्ग ने धनसंपत्ति अर्जित कर ली थी किन्तु अब सामंती वातावरण में उनके व्यापार पर कई तरह के प्रतिबंध लगे थे जगह-जगह चुंगी देनी पड़ती थी। वे अपने व्यापार व्यवसाय के लिए उन्मुक्त वातावरण चाहते थे। इसके लिए उन्होंने क्रांति को नेतृत्व प्रदान किया।  इस तरह 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, फ्रांसीसी समाज में असमानता के विरूद्ध संघर्ष थी।

नवीन सोच 

फ्रांस की क्रांति को संक्षेप में समझे तो हर कोई यही कहेगा एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए ख़तम कहानी। लेकिन इस कहानी में कितने मोड़ आये, कितनी नवीन सोच को इसने स्थापित किया। उससे पाठक अंदाजा लगा सकते है।  आज बड़ा आसान लगता है हम मानव की स्वतंत्रता  या आजादी और मानव के अधिकारों की बात करते हैं, हमें अपनी स्वत्नत्रता की रक्षा करने के लिए कानून का सहारा भी मिलता है, कल्पना करे इस क्रांति से पहले  कोई आजादी की बात कह सकता था। 

अभी ऊपर हमने फ्रांस की क्रांति के ठीक पहले के फ्रांस के राज्य और सामाजिक ढांचे को समझने की चर्चा की अगर संक्षेप में कहा जाये तो फ्रांस में एक सदियों पुराना असंतोष था, जिसे बौद्धिक वर्ग और तृत्य वर्ग (थर्ड एस्टेट ) ने तत्कालीन हवा दी थी, जिसमे फ्रांस के राजा और रानी को भी फ्रांस के लोगों  के गुस्से का सामना करना पड़ा और उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. पाठक राजा रानी के बलिदान को क्या सही मानते हैं क्या उन्हें एक मौका नहीं दिया जाने चाहिए था, लुइ १६वा सदियों पुराणी मान्यताओं के लिए अकेले ही जिम्मेदार था. कमैंट्स में जरूर बताये। 

फ्रांस की क्रांति में अधिक जानने के लिए पिछले लेख के लिए जाये:https://padhailelo.com/french-revolution/

*****  

Leave a Reply