भारतीय संविधान : प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन और डॉ बी आर अंबेडकर
पीछे हमने साउथबोरो आयोग के बारे में जाना, जिसे मांटगेयू चेम्सफोर्ड सुधार समिति ने भारत में विभिन्न वर्गों के प्रांतीय नामांकन और निर्वाचन प्रणाली में सुधार के उद्देश्य के लिए भेजा था, यहाँ पर डॉ आंबेडकर और बी डी जाधव ने अछुतो और अन्य पिछड़ा वर्ग की समस्याओं से अवगत कराते हुए, अलग अलग ज्ञापन सौंपा। साउथबोरो आयोग फिर साइमन आयोग से शुरू हुआ यह सफर प्रथम गोलमेज सम्मेलन तक कैसे पहुंचा, मुख्यतः डॉ आंबेडकर की स्पीच और राइटिंग के आधार पर कुछ अन्य जानकारियों के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं.
डॉ बी आर अंबेडकर द्वारा साउथबोरो आयोग के समक्ष दिए गए ज्ञापन के मुख्य सुझावों के लिए लिंक पर जाये https://padhailelo.com/southboro-commission/
मांटगेयू चेम्सफोर्ड सुधार समिति ने डिप्रेस्ड क्लास की सीट दुगनी की
इस ज्ञापन के आधार पर सॉउथबोरो आयोग ने अपनी रिपोर्ट मांटगेयू चेम्सफोर्ड सुधार समिति को सौंपी, समिति ने साउथबोरो की इस रिपोर्ट पर विचार किया और कहा ” अछूत कुल आबादी का पांचवा भाग हैं और मार्ले मिंटो परिषदों ने (भारत शाशन अधिनियम १९०९ ) ने उन्हें कोई प्रतिनिधित्व दिया है, कमिटी की रीपोर्ट में अछूतो का २ बार उल्लेख मिलता है, लेकिन केवल यह स्पष्ट करने के लिए कि निर्वाचन क्षेत्रो की स्थिति संतोषजनक न होने के कारण नामांकन द्वारा उन्हें प्रतिनिधित्व दिया गया है. रिपोर्ट में इन लोगो के स्वाबलंबन की स्थिति पर कोई विचार नहीं किया है, न ही नामांकन की संख्या का सुझाव दिया, उनके सुझाव के अनुसार भारत की कुल जनसँख्या के पांचवे भाग को ८०० सीटों में से ७ सीटें देने की सिफारिश की है. यह सच है कि सभी प्रांतो में मुख्यतः छठा भाग ऐसा होगा जिससे अपेक्षा की जा सके की वह अछूतो के हितों का ध्यान रखेगा, लेकिन यह व्यवस्था सुधारों सम्बन्धी रिपोर्ट के लक्ष्य से मेल नहीं खाती, रिपोर्ट तैयार करने वालों ने कहा है कि अछूतो को भी आत्म रक्षा का पाठ पढ़ना चाहिए। निश्चय ही यह आशा एक मृग मरीचिका जैसी होगी की साठ या सत्तर स्वर्ण हिन्दू वाली असेंबली में अछूतों के केवल एक सदस्य को इसमें शामिल करके यह परिणाम लिया जा सकता है. रिपोर्ट के सिधान्तो को साकार करने के लिए हमें और उदार दृष्टि कोण बनाना होगा। इन सभी बातो को ध्यान में रखकर सरकार ने सिफारिश की, अछूतों की सीटों की संख्या सॉउथबोरो आयोग द्वारा सुझाई गयी ७ के स्थान पर दुगुनी यानि की १४ कर दी.
मूडीमैन समिति ने प्रांतीय विधान सभा से निचली सभाओं में विस्तार किया
पुनः १९२३ में भारत मंत्री ने मूडीमैन नाम की एक समिति बनाई गयी, जिसका उद्देश्य था कि १९१९ के भारत शाशन नियमो में बिना परिवर्तन के, और कहाँ तक संविधानिक विस्तार किया जा सकता है, इस समिति ने कहा, दलित वर्गों के पर्तिनिधियो की संख्या और बढ़ानी चाहिए और सीटों की संख्या बढ़ा दी. इस तरह से विधान मण्डल ने दलितों के विशेष प्रतिनिधित्व के अधिकार ने एक ऐसा सिद्धांत का रूप ले लिया था जिसे न केवल स्वीकार किया गया बल्कि उसे अपनाया भी गया. और यह सिद्धांत जिला स्थानीय बोर्डों, स्कूल बोर्डों और नगरपालिकाओ पर भी लागु किया गया. यहाँ हमने देखा की १९१९ भारत शाशन अधिनियम ने दलितों को बेशक पृथक निर्वाचन नहीं दिया था पर उसे सरकार ने सिद्धांतः स्वीकार किया था और, यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम में सिखों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गयी थी.
मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्रह्मिनो (सवर्णों) को भी आरक्षण
1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, इस पत्र में गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। अगर इस आज्ञा पत्र को देखे तो जहां जिस वर्ग की जरूरत महसूस हुई उन्हें वहां आरक्षण दिया जैसे की मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्रह्मिनो को भी आरक्षण दिया गया.
अंग्रेजो की बांटो और राज करो की नीति
साइमन कमिशन का आना भी एक ऐसी ही घटना है जिसका मुख्य राजनितिक दलों द्वारा त्रीव विरोध किया गया था, यह कहकर की इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं है, अगर किसी भी वर्ग की अनदेखी की जाएगी तो वह लोकतंत्रीय व्यवस्था के लिए घातक ही है, हालाँकि अधिकतर इतिहासकार इसे अंग्रेजो की बांटो और राज करो की नीति ही बताते हैं
राय मशविरे के लिए सभी वर्गों को न्योता
जैसा की पहले भी चर्चा की है, कांग्रेस पार्टी के स्वराज संविधान को साइमन कमिशन ने यह कहकर निरस्त कर दिया था, इसमें सभी वर्गों की सहमति नहीं है. यहाँ पहले से ही ब्रिटिश सम्राट की ओर से कहा जा चूका था, साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारत के सभी राजनीतिक दलों और वर्गों को भारत के भावी संविधान के बारे में राय मशविरे के लिए लंदन में आमंत्रित किया जायेगा, इसी कड़ी में सभी राजनितिक दलों और सभी वर्गों के पर्तिनिधियो को गोलमेज सम्मलेन के लिए आमंत्रित किया गया, ताकि सभी वर्गों की समस्याओ का एक उचित हल निकल सके. कांग्रेस पार्टी ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया था, इसलिए वह १९३० में होने वाले प्रथम गोलमेज सम्मलेन में शामिल नहीं हुई.
प्रथम गोलमेज सम्मलेन
इस सम्मलेन में कुल ८९ मेंबर थे, जिसमे १६ मेंबर ३ विभिन्न ब्रटिश राजनितिक दलों के थे, ५३ मेम्बर भारतीय पर्तिनिधियो के थे जिसमे से १३ मुख्य हिन्दू नेताओ के थे जैसे कि तेज़ बहादुर सप्रू , एम आर जयकर, चिमनलाल सीतलवाड़, श्रीनिवास शास्त्री, गायकवाड़, मुंजे (हिन्दू महासभा ) इत्यादि। मुस्लिम मुख्य नेता थे आगा खान, सर मोहम्मद शफी, मोहम्मद अली जिन्नाह, फज़ुल हक इत्यादि। इसाई नेता के टी पॉल, सिख नेता सरदार उज्जवल सिंह,भारत के मुख्य रजवाड़े सदस्य अलवर, बड़ौदा, बीकानेर,भोपाल पटिआला के महाराजा इत्यादि। ब्रिटिश इंडिया के सदस्य थे सी पी रामास्वामी अय्यर और मिर्ज़ा इस्माइल, डिप्रेस्ड क्लास में थे डॉ बी आर अंबेडकर और बहादुर श्रीनिवास।
एक मेज़ या समता की पहल
यह पुरे भारत के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, क्योंकि पहली बार अंग्रेजो ने भारत के पर्तिनिधियो को एक बराबरी के मंच पर आमंत्रित किया था. अछूतो या डिप्रेस्ड क्लास के लिए यह युगांतकारी घटना थी क्योंकि पिछले २००० साल में समानता के आधार पर इनको भी अपनी बात कहने का मौका दिया जा रहा था, गोलमेज एक प्रकार की गोल मेज़ होती है, जिसमे यह पता नहीं लगता की कौन अध्यक्ष है, सभी सदस्य एक दूसरे को भली भांति देख सके या एक दूसरे को समझ सके, एक दूसरे से खुलकर संवाद कर सके. चूँकि इस मेज़ का आकार ही गोल था इसलिए इसका नाम ही गोलमेज़ सम्मलेन पढ़ गया. शायद ही भारत के इतिहास में किसी सम्मलेन का नाम उस जगह (लंदन) को छोड़ इसमें लगायी गयी मेज़ के नाम पर हो.
तनाव पूर्ण माहौल
दूसरी और भारत में बहुत तनाव पूर्ण माहौल था, जो सदस्य इस सम्मलेन में जा रहे थे उन्हें घृणा से देखा जा रहा था, गाली दी जा रही थी. ६ सितम्बर १९३० को डॉ आंबेडकर को भी ब्रटिश संसद से न्योता आया था, यहाँ अपनी बात रखने का, ४ अक्टूबर १९३० को इस तनाव पूर्ण माहौल में डॉ अम्बेडकर ने बम्बई से प्रस्थान किया एक तरफ उनका ध्यान इस सम्मलेन से उम्मीदों को लेकर था दूसरी तरफ भारत में उनके द्वार चलाये जा रहे चावदार तालाब आंदोलन और बम्बई प्रांतीय विधान सभा में अछूतो के प्रतिनिधित्व को लेकर और इन सबसे अधिक अछुतो के सपने पुरे करने के दायित्व पर था. भारत में तत्कालीन तनाव और घृणा की वजह से ०८ अक्टूबर १९३० को उनने अपने सचिव को चिठ्ठी लिखी आप सभी अपना ध्यान रखे और ऑफिस बंद रखे.
सहानभूति पूर्ण माहौल
लंदन आगमन पर डॉ अम्बेडकर ने पाया की यहाँ की स्थानीय राजनितिक दलों में डिप्रेस्ड क्लास की समस्या को लेकर बहुत ही सहानभूति पूर्ण माहौल है, उनने यहाँ के प्रमुख राजनितिक दलों के नेताओ के साथ भारत की समस्याओ को लेकर और अछूतो की समस्या को लेकर राय मशिवरा किया। जिस जगह यह सम्मलेन था वहां हज़ारो की संख्या में लोग मौजूद थे, लोगो में कौतुहल था, उत्सुकता थी खासकर अछूतो की समस्या को लेकर।
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