
भाजो (भागो) री गुलकांकरी अमरा संग लगाएरामदास का करुआ (कमर) टूटा पार न फांदी जाये
एक जंगल में एक रामदास नामक हिरन, गुलकांकरी नामक मादा हिरण रहते थे उनका एक बच्चा था, उसका नाम अमरा था वोह जंगल में रहकर अपना जीवन बिताते थे, एक बार वह एक खरबूजे के खेत के सामने से गुजर रहे थे, खरबूजे देखकर गुलकांकरी के मुँह में पानी आ गया वोह जिद करने लगी सुनोजी कितने बढ़िया खरबूजे लगे हैं क्यों न अंदर चलकर इनका स्वाद लिया जाये.
रामदास ने बहुत समझाया भागवान यह किसी दूसरे का खेत है. इसका मालिक कहीं आसपास ही होगा हमें लालच में नहीं आना चाहिए. परन्तु गुलकांकरी अपनी हठ पर अड़ गयी. माँ को देखकर अमरा भी खरबूजे खाने की जिद करने लगा.
उनकी जिद के आगे बेबस होकर रामदास को भी मन मार कर खरबूजे के खेत में जाना पड़ा. वोह दोनों को समझाते हुए बोला बिना किसी झाड़ या पत्तों की आवाज किये जल्दी से जल्दी खरबूजे खा लेना.
बच्चा तो बच्चा ही होता है वोह खरबूजे खाने में इतना मस्त हो गया उसे पता ही नहीं चला की कब पत्तों की आवाज आने लगी. खेत का मालिक ने जब आवाज़ सुनी तो वह उसी और दौड़ा रामदास उसकी आहट पहचान गया. उसने गुलकांकरी और अमरा को सावधान किया. लगता है कोई आ रहा है तुम दोनों खेत की मेढ़ (बाउंडरी)की ऒर भागो, उनको खेत के मालीक से बचाते हुए वोह खुद पीछे रह गया.
तभी खेत का मालिक आ गया उसने रामदास की कमर पर एक लाठी मार दी, वोह दर्द से कराहने लगा, उससे भागने में असहाय दर्द होने लगा तभी उसने आवाज दी :-
तभी खेत का मालिक आ गया उसने रामदास की कमर पर एक लाठी मार दी, वोह दर्द से कराहने लगा, उससे भागने में असहाय दर्द होने लगा तभी उसने आवाज दी :-
भाजो (भागो) री गुलकांकरी अमरा संग लगाए
रामदास का करुआ (कमर) टूटा पार न फांदी जाये
गुलकांकरी और अमरा रामदास की पीड़ा देखकर दुःखी हो रहे थे उन्हें अपनी जिद और लालच पर पछतावा हो रहा था.
*****
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Tumblr (Opens in new window) Tumblr
- Click to share on LinkedIn (Opens in new window) LinkedIn
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram