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Rituraj Ki sawari Part 2

🌹🌺🌻ऋतुराज की सवारी (पार्ट -२ )🌹🌺🌻

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ऐ दुःख, अवसाद, चिंता, कमजोरी, निराशा 

चल हट पीछे, हो जा एक दो तीन 

प्रकृति के सिपाहीयो ने चहुँ ओर  डेरा डाला है 

सुख आशा नव जीवन, ताकत, सौंदर्य का 

सबकी रगो में खून उबाला  है 

ऐ  निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन 

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾 

छात्रों ने पुस्तक से अपना पाठ निकाला 

साल भर की मेहनत का पुस्तक से 

है ढूंढ कर निचोड़ निकाला 

गुरुओं ने भी अपनी विद्या की छात्रों पर बाजी लगाई है 

नई कक्षा में उत्तीर्ण होने की 

पर सेवा में निरत होने अपने छात्रों में ललक जगाई है 

ऐ  निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन 

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾

सरहद पर सैनिक डटे हुए

परिवार से अपने दूर हुए 

देश की लाज  बचाने को

मिटटी का क़र्ज़ चुकाने को  

सीना तान दुश्मन से लड़ने को 

जान देने की कसम खाई है 

इस मिटटी को तुम संभाल रखना, 

न इससे कभी दगा  करना  

मरते हुए सैनिक ने देश से आस लगाई है 

हम तो सफर करते है क्योकि 

बसंती चोला पहनने की अब मेरी बारी आई है 

ऋतुराज की आँखे भी यह देख कर आज भर आई है 

ऐ  निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन 

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾 

किसी गरीब की कुटिया में जब  जब चूल्हा जलता है 

उसके लिए वही समय एक बसंत हो जाता है 

किसी बेरोजगार को जब रोजगार मिलता है 

उसके लिए वही समय एक बसंत हो जाता है 

किसी गरीब को इलाज मिले, तब भी बसंत ही आता है 

कोई भोला ईमानदार यदि मेहनत का उचित फल पाता है , 

तब भी बसंत ही आता है

धूर्त भेड़ियो को मक्कारी की सजा मिले तब भी बसंत ही आता है

शेरो को यदि राज मिले तब तो 

बसंत का समय चार मास अधिक बढ़ जाता है  

ऐ  निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन 

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾 

चांदी का चम्मच लेकर जो दुनिया में पैदा होते है 

भेड़ियो के बनावटी बसंत में घिरकर,

उसको ही बसंत समझते है

प्रकृति  का दोहन कर यदि चांदी का चम्मच बनाओगे

क्या होता है असली बसंत कभी न जान पाओगे 

किसी  दिन प्रकृति का शेर जब आ जा जायेगा

देखते देखते छिनकर चांदी का चम्मच ले जायेगा,  

नहीं तो प्रकृति का जीव रोता हुआ ही आया था 

खाली हाथ मलता हुआ ही चला जायेगा 

ऐ  निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन 

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾 

ऋतुराज ने आसन ग्रहण किया 

अपनी सभा बुलाई है 

जीवन में यदि मुझे पाना है 

पहले पतझड़ को भी स्वीकार करो, 

ताप वर्षा शीत हर मौसम की मार को सहना सीखो 

कितने फूलो पत्तो लताओं ने अपनी क़ुरबानी लगाई है 

तब कहीं प्रकृति ने मेरी अलौकिक छठा बनाई है 

मैंने खुशिया देने की ठानी है, यही मेरी सारी कहानी है 

जब  किसी मजबूर को कोई सहारा देता है 

या फिर सुख बाटने दुःख बटाने को जब आतुर हो जाता है 

उसके जीवन का बसंत भी अपने आप बढ़ जाता है

पूरी सभा ने उठकर ऋतुराज को उठकर प्रणाम किया 

बसंती हवा में हाथो से अबीर गुलाल उड़ाई है  

ऐ दुःख, अवसाद, चिंता, कमजोरी, निराशा 

चल हट पीछे, हो जा एक दो तीन   

ऋतुराज की सवारी आयी है🌸🍁🍀🌿🌾 🌴🌵

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                                                                            🙏🙏🙏

To seeing first part pl see the below link;

https://padhailelo.com/rituraj-ki-sawari/

 

 

 

 

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