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जल

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                           जल

हमारे नल का जल, नदी का जल, वर्षा की रिमझिम का जल , कुए का जल, सीवर में बहता हुआ गन्दा जल, नदी का जल और अंत में समुद्र का जल फिर से हमारे नलों में या उपयोग में आ जाता है क्या इस बारे में सोचा है, आइये  जल मग्न होकर इस बारे में और इसके आलावा जल की कुछ और विशेष जल दृश्यों की भौगोलिक जानकारी समझें।

सूर्य के ताप के कारण जल वाष्पित हो जाता है, ठंडा हो जाने पर जल वाष्पित संघनित हो कर बादलो का रूप लेता  है. यहाँ से यह वर्षा, हिम अथवा सहिम वृष्टि के रूप में धरती या समुद्र पर नीचे गिरता है.

             जलचक्र

जिस प्रक्रम में जल  लगातार अपने स्वरुप को बदलता रहता है और महासागरों, वायुमंडल एवं धरती के बीच चक्कर लगाता रहता है, इसको जल चक्र कहते हैं। 

हमारी पृथ्वी एक थल शाला के सामान है, जो जल शताब्दियों पूर्व उपस्थित था वही आज भी उपस्थित है. जिस जल का प्रयोग आज हम हरियाणा के खेत की सिंचाई के लिए प्रयोग कर रहे हैं, हो सकता है वह सैकड़ो वर्ष पूर्व दक्षिण अमेरिका की अमेजन नदी में बहता हो या फिर गंगा नदी का जल अफ्रीका की नील नदी से आया हो  बिना किसी वीज़ा परमिट के. यह आश्चर्यजनक तथ्य है किन्तु सत्य है.

 लवण एवं अलवण जल 

लवणता १००० ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है. महासागर की औसत लवणता ३५ भाग प्रति हज़ार ग्राम है. इसराइल के मृत सागर में ३४० ग्राम  प्रति  लीटर लवणता होती है. तैराक इसमें प्लव कर सकते है. क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है.     

अलवण जल (मानव के उपयोग हेतु जल) के मुख्य स्त्रोत नदी, ताल, सोते एवं हिमनद हैं. महासगरों एवं समुद्रो का जल लवणीय होता है. इसमें अधिकांश नमक सोडियम क्लोराइड या खाने में उपयोग किया जाने वाला नमक होता है.

सागर कितना मेरे पास है मेरे जीवन में फिर भी प्यास है.

पृथ्वी की सतह का तीन चौथाई भाग जल से ढका  है. यदि धरती पर थल की अपेक्षा जल अधिक है. तब अधिकतर देश जल की कमी से क्यों जूझ रहे हैं. आइये जल वितरण पर एक नजर डालें। 

अगर धरती का सम्पूर्ण जल १०० भाग है, उसमे से ९७.३ महासागरों में है, ०२.० बर्फ छत्रक, ००.६८ भूमिगत जल, ०.०००९ झीलों का अलवण जल, ०.०००९ स्थानीय समुद्र एवं नमकीन झीले, ०. ००१९ वायुमंडल (बादल) , ०.०००१ नदियाँ के रूप में है.

अगर कुल अलवण  जल (मानव  के उपयोग हेतु ) की बात की जाये तो मान लीजिये २ लीटर की बाल्टी का जल पूरी धरती का जल है. अब इसमें से 12 चाय चम्मच अलग कर दे, यह हमारे उपयोग हेतु है, अब इन १२ चम्मच में से ९ चम्मच बर्फ छत्रक के रूप में , २ चम्मच भूमिजल के रूप में , १/२ चम्मच अलवण जल की झीले, और केवल १ बून्द नदियों के रूप में है.(सभी नदियों का जल मानव के उपयोग हेतु नहीं है )

सागर कितना मेरे पास है मेरे जीवन में फिर भी प्यास है.

हम सभी जानते हैं की जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है इसकी जगह कोई भी पदार्थ नहीं ले सकता, इसलिए हमें जल का अनावश्यक दुरूपयोग नहीं करना चाहिए, कोई प्यासा इसकी कीमत बेहतर जान सकता है

     महासागरीय परिसंचरण 

समुद्री तट पर नंगे पैर चलने से जादुई अनुभूति होती है, पुलिन पर नम बालू, ठंडी पवन, समुद्री पक्षी, वायु में लवणीय गंध, एवं लहरों का संगीत, सब कुछ सम्मोहित करने वाला लगता है. ताल  एवं झील के शांत जल के विपरीत महासागरों का जल हमेशा गतिमान रहता है, यह कभी शांत नहीं रहता. महासागर की गतियों को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं जैसे  तरंगे, ज्वार भाटा,  एवं धाराएं

      तरंगे 

समुद्र तट पर खेलते समय जब गेंद जल ने गिर जाती है, तब क्या होता है, आपने देखा होगा की गेंद तट पर तरंगो (लहरों) के साथ वापस आ जाती है, बड़ा ही मनोरम दृश्य होता है. जब महासागरीय सतह पर जल लगातार उठता और गिरता है तो इन्हे तरंगे कहते हैं. जब समुद्री सतह पर पवन बहती हैं तब  तरंगे उत्पन्न होती हैं जितनी तेज पवन उतनी बड़ी तरंग) 

तूफान में तेज वायु चलने पर विशाल तरंगे उत्पन्न होती हैं, जिनके कारण अत्यधिक विनाश हो सकता है. भूकंप, ज्वालामुखी, उदगार, या जल के नीचे भूस्खलन के कारण महासागरीय जल अत्यधिक विस्थापित होता है. इसके परिणामस्वरूप १५ मीटर तक की ऊंचाई वाली विशाल ज्वारीय तरंगे उठ सकती हैं, जिसे सुनामी कहते हैं. 

    सुनामी- पृथ्वी का तांडव 

अब तक की सबसे विशाल सुनामी तरंगे को १५० मीटर मापा गया था. यह तरंगे ७०० किलोमीटर प्रति घंटे की अधिक गति से चलती हैं, २००४ के सुनामी से भारत के तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश हुआ था. सुनामी के बाद अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित इंदिरा पॉइंट डूब गया था.

२६ दिसंबर २००४ को हिन्द महासागर में सुनामी तरंगो अथवा पोताश्रय तरंगो के कारण अत्यधिक विनाश हुआ था. (सुनामी जापानी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है पोताश्रय तरंगे क्योंकि सुनामी आने पर पोताश्रय नष्ट हो जाते हैं)  यह तरंगे उस भूकंप का परिणाम थीं. जिसका अधिकेंद्र सुमात्रा की पश्चिमी सीमा पर था।  

भारतीय प्लेट बर्मा प्लेट में धंस गयी

  • इस भूकंप की त्रीवता रिक्टर पैमाने पर ९.० मापी गयी थी. भारतीय प्लेट बर्मा प्लेट में धंस गयी थी. और समुद्र तल में अचानक गति होने लगी थी. इसी कारण यह भूकंप आया. महासागरीय तल लगभग १०-२० मीटर तक विस्थापित हो गया. और नीचे की दिशा में झुक गया. इस विस्थापन के कारण निर्मित अंतराल को भरने के लिए विशाल मात्रा में महासगरीय जल उसी दिशा ओर  बहने लगा. फलस्वरुप दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया के समुद्री तटों से जल हटने लगा. भारतीय प्लेट के बर्मा की प्लेट के नीचे चले जाने पर जल वापस समुद्र की और लौटा। 

लगभग ८०० किमी/घंटे  की रफ़्तार की लहरें  

  • यह सुनामी लगभग ८०० किमी की रफ़्तार से आया, जिसकी तुलना व्यावासिक वायुयानों से की जा सकती है. और इसके परिणामस्वरूप हिन्द महासागर के कुछ द्वीप पूर्णत डूब गए. भारतीय सीमा का धुर दक्षिणी बिंदु इंदिरा पॉइंट (भारत की दक्षिणी सीमा) पूरी तरह डूब  गया. जब सुमात्रा में भूकंप के अधिकेंद्र से तरंगे सुमात्रा की तरफ से अंदमान द्वीप समूह एवं श्रीलंका की ओर  बढ़ी, तरंगो की लम्बाई कम हो गयी. जल की गहराई भी कम होने के साथ साथ इनकी गति भी ७००-९०० किमी/घंटे से ७० किमी/घंटे तक कम हो गयी. 

सर्वाधिक विनाशकारी सुनामी

  • समुद्र तट से सुनामी तरंगे ३ किमी की गहराई तक गयी, जिनके फलस्वरूप १०००० से भी अधिक लोगों की जानें चली गयी और एक लाख से अधिक घर प्रभावित हुए. भारत में आंध्र प्रदेश के तटीय प्रदेश तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी तथा अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह सर्वाधिक प्रभावित हुए थे.  
  • यद्धपि पहले से भूकंप का अनुमान लगाना संभव नहीं, फिर भी बड़ी सुनामी के संकेत तीन घंटे पहले मिल सकते हैं. प्रशांत महासागर में प्राथमिक चेतावनी की ऐसी प्रणालिया मौजूद हैं, लेकिन हिन्द महासागर में यह सुविधाएं नहीं हैं. प्रशांत महासागर की तुलना में हिन्द महासागर में सुनामी कभी कभी आती है क्योकि यहाँ भूकंपी किर्या बहुत कम होती है. 
  • दिसंबर २००४ में जिस सुनामी ने दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया के तटों पर तबाही मचाई थी वह पिछले कई सौ वर्षों की सर्वाधिक विनाशकारी सुनामी थी.  हिन्द महासागर में निरिक्षण, आरंभिक चेतावनी की प्रणालियो की कमी एवं हिन्द महासागर के तटीय निवासियों में जागरूकता की कमी के कारण जीवन एवं सम्पति की अत्यधिक हानि हुई. 
  • सुनामी आने का प्रथम संकेत यह होता है, कि तटीय क्षेत्रों में जल तेजी से कम होने लगता है और फिर विनाशकारी तरंगे उठती हैं, जब ऐसा हुआ तब लोग ऊँचे स्थानों पर न जाकर उस अचंभे को देखने के लिए तट पर एकत्र होने लगे. जब विशाल सुनामी तरंग आयी तब वहां खड़े उत्सुक लोगों की मौत हो गयी.

     ज्वार -भाटा 

  • दिन में दो बार नियम से महासगरीय जल का उठना एवं गिरना ज्वार-भाटा कहलाता है. जब सर्वाधिक ऊंचाई पर उठकर जल, तट के बड़े हिस्सों को डुबो देता है, तब उसे ज्वार कहते हैं. जब जल अपने निम्न  स्तर पर आ जाता है तब उसे भाटा कहते हैं. सूर्य एवं चन्द्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की सतह पर ज्वारभाटे आते हैं.  

बृहत ज्वार

  • जब चन्द्रमा का जल पृथ्वी के निकट होता है उस समय चन्द्रमा के गुरुत्वार्कषण बल से जल आकर्षित होता है, जिसके कारण उच्च ज्वार  आते हैं. पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनो एक सीध में होते हैं और इस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं इस ज्वार  को बृहत ज्वार  कहते हैं. 

लघु ज्वार-भाटा

  • लेकिन जब चाँद अपने प्रथम एवं अंतिम चतुर्थांश में होता है. तब चाँद एवं सूर्य का गुरुत्वार्कषण बल विपरीत दिशाओं से महासागरिया जल पर पड़ता है. परिणाम स्वरूप निम्न ज्वार-भाटा आता है. ऐसे ज्वार को लघु ज्वार-भाटा कहते हैं. ऐसी स्थिति शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को होती है.
  • उच्च ज्वार नौसंचालन में सहायक होता है. यह जल-स्तर को तट की ऊंचाई तक पहुंचाते हैं. यह जहाज को बंदरगाह तक पहुँचाने में  सहायक होते हैं. उच्च ज्वार मछली पकड़ने में भी मदद करते हैं. उच्च ज्वार के दौरान मछलियां तट पर आ जाती हैं. जिससे मछुआरों को मछली बिना कठिनाई पकड़ने में मदद हो जाती है. कुछ जगहों पर ज्वार-भाटे से उत्पन्न जल के उतार चढ़ाव का उपयोग विधुत उत्पादन के लिए भी होता है जैसे फ्रांस एवं जापान।  
  • लघु ज्वार समान्य ज्वर से २०% नीचा एवं दीर्घ ज्वार सामान्य ज्वार से २०% ऊँचा होता है.  
टेम्स एवं हुगली नदियों पर प्रवेश करने वाली ज्वारीय धाराओं के कारण ही लन्दन एवं कोलकाता महत्वपूर्ण पतन बन सके हैं.

    महासागरिय धाराएं 

  • महासागरिय धाराएं निश्चित दिशा में महासगरीय सतह पर नियमित रूप से बहने वाली जल की धाराएं  होती है. महासागरीय धाराएं गर्म या ठंडी हो सकती हैं. सामन्यतः गर्म महासागरिय धाराएं भूमध्य रेखा के निकट उत्पन होती हैं एवं धुर्वों  की ओर प्रवाहित होती हैं. ठंडी धाराएं ध्रुवों से या उच्च अक्षांशो से उष्ण कटिबंधीय या निम्न अक्षांशो की ओर बहती हैं. लेब्राडोर महासागरीय धाराएं शीत जलधाराएं हैं जबकि गल्फस्ट्रीम जलधाराएं गर्म जलधाराएं होती हैं. 

सर्वोत्तम मत्स्य क्षेत्र

  • महासागरिय धाराएं किसी क्षेत्र के तापमान को भी प्रभावित करती हैं. गर्म धाराओं से स्थलीय सतह का तापमान गर्म हो जाता है. जिस स्थान पर गर्म और शीत जलधाराएं मिलती हैं. वह स्थान विश्वभर में सर्वोत्तम मत्स्य क्षेत्र माना  जाता है. जापान के आसपास एवं उत्तरअमेरिका के पूर्वी तट इसके कुछ उदाहरण हैं. जहाँ गर्म एवं ठंडी जलधाराएं मिलती हैं वहां कुहरे वाला मौसम भी बनता है, जो नौसंचालन में बाधा उत्पन करता है.

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