You are currently viewing Khel Ka Maidan Part 2

Khel Ka Maidan Part 2

खेल का मैदान/भटका हुआ कप्तान  (पार्ट -२)

*****

 

 

 

 

 

 

 खेलने का जज्बा

अगर खेल का मैदान सर्वसुलभ हो खिलाडी कहाँ रुकते है. कोई न कोई खेल उस मैदान में चलता ही रहता. समकालीन बच्चो में यह खेलने का जज्बा अब नजर नहीं आता तो इसमें केवल बच्चो की पढाई या मोबाइल टीवी जैसे आधुनिक उपकरणों पर ही सारा दोष मढ़ देना ठीक नहीं होगा. इसके पीछे एक विकृत राजनीति और खेल को व्यवसाय बनाने की विकृत सोच का भी भरपूर योगदान रहा है.

खेल के मैदान तो अब पैसेवाले और रसूखदारों के हाथ में हैं

अधिकतर खेल के मैदान तो अब पैसेवाले और रसूखदारों के हाथ में हैं. जो मध्यवर्गी  परिवारों के बच्चो के उस बाल खिलाडी स्वरूप को छीनने का एक बड़ा कारण है. बेशक आज उनके पास क्रिकेट बैट, फुटबॉल, चिड़ी  छक्का,  जैसे आधुनिक खेल उपकरण है लेकिन खेल का मैदान तो बड़े बड़े रसूखदारों के ही कब्जे में ह,, या तो मोटी फीस चुकाओ या किसी की सिफारिश लगवाओ तभी उनका बच्चा उस मैदान का उपयोग कर सकेगा. उस पर कोच की फीस भी जले पर नमक छिड़कने का काम करती है. कोच भी मोटी फीस देनेवालों और  रसुखदारों  के बच्चों पर अपना ध्यान केंद्रित रखता है | 

बचपन ख़त्म शौक ख़त्म 

अपनी इस मंडली के सभी खिलाडी बड़े हो गए, बचपन ख़त्म शौक ख़त्म वाली बात अक्सर उस मडंली के साथ भी हुई सभी मैदान से भाग गए या भगा दिए गए यह तो इस मंडली के खिलाडी ही बता सकते थे, अपनी  रोजी रोटी कमाने के लिए भी मजबूरन कई अच्छे खिलाडी मैदान छोड़ देते है| 

 खिलाडी योग्यता

एक गौरी ही था जो अभी तक मैदान से जुड़ा हुआ था. कई अड़चने उसके साथ भी आयी पर उसने अपनी विशेष खिलाडी योग्यता या कभी राजनितिक योग्यता, कभी चापलूसी इत्यादि सभी हथकंडो द्वारा उस मैदान में अपना एक स्थान बना लिया था, उसे एक बड़े मैदान में एक क्रिकेट कोच की नियुक्ति मिल गई. अब वह छोटे बच्चो को क्रिकेट सिखाने का काम करने लगा.

 गौरी ने अपनी खिलाडी योग्यता द्वारा मांजकर कुछ अच्छे खिलाडी आगे भी भेजे. जिससे उसका नाम अच्छे कोचों में शुमार होने लगा. पैसा प्रतिष्ठा सभी उसको मिल गई. कई खिलाड़ियों को वह मैदान में आने के लिए प्रेरित भी करता जिससे मैदान में कई बच्चे एक अच्छा क्रिकेटर बनने का सपना लेकर दिन रात खूब मेहनत करते. 

विकृत राजनीती

गौरी खेल की विकृत राजनीती को समझ गया था. किस खिलाडी को आगे भेजने में उसका भविष्य बन सकता था, अब वह कोच की शक्ल में एक दुकानदार बन चुका था.  जिसे अपनी दुकान चलानी थी, किस उत्पादन पर ध्यान देना है और किस उत्पादन को एक कोने में रखना है वह अच्छी तरह जान चुका था|    

गौरी कप्तान की सफलता के लिए जहां उसकी खेल दक्षता जिम्मेदार थी. तो कई प्रतिभावान उभरते खिलाड़ियों को आगे बढ़ने से रूकावट डालने में भी उसकी पेशवर सोच काम करती थ.,  यह प्रतिभावान खिलाडी भी समझते थे की कप्तान साहब क्यों इन साधारण से खिलाड़ियों को उनसे आगे रखते थे और उन्हें पीछे रखते थे.  इन साधारण खिलाड़ियों का पलड़ा कुल खानदान के रसूख की या पैसो की ढाल  की वजह से इन असली प्रतिभावान खिलाड़ियों पर हमेश भारी ही रहता.

 जब किसी प्रतिष्ठित टूनामेंट के चुनाव की बारी आती तब गौरी इन चांदी के चम्मच वाले खिलाड़ियों को ही आगे रखता और प्रतिभावान खिलाडी मैदान में ही अभ्यास करते नजर आते. जब दिन रात कढ़ी मेहनत करने के बाद भी प्रतिभाशाली खिलाडी जब अपना चयन किसी उच्च मुकाबले में नहीं पाते हैं उसके उलट उनसे कम योग्य खिलाडी उस उच्च मुकाबले में अपने विशेष धन बल के जोर पर चयनित हो जाते है. तब इन प्रतिभाशैली खिलाड़िओं की खेल प्रतिभा भी लम्बी छुट्टी पर चली जाती है उनका  मन उस खेल से और उस मैदान से उचट  जाता है|   

खिलाडी का ही अपमान नहीं

खेल के अंदर ही जब दुकान खुल जाती है या विकृत राजनीती घुस जाती है तब कई अच्छे खिलाडी उस खेल में टिके  रहने का सपना छोड़ देते हैं. किसी सिफारशी खिलाडी को आगे रखने के लिए प्रतिभावान खिलाडी को नज़रअंदाज करना उसे उसके भविष्य निर्माताओं द्वारा कदम कदम पर हत्तोसाहित किया जाना. उस प्रतिभावान खिलाडी की योग्यता को कुल खानदान और रसूख वाले चश्मे को पारखी नजरो से तोला जाना उस खिलाडी का ही अपमान नहीं होता वरन उनका भी होता है,  जिसने  भी उस खेल का निर्माण किया है. 

उनकी आत्माये भी, ऐसे घटिया दुकानदारों को चुनचुनकर श्राप देती हैं. यह दूसरी बात है इस कोप के भागी वह तुरंत नहीं बनते पर समय पर बनते जरूर है अच्छे खिलाडी को कभी भी इन बहरूपिओँ से नहीं डरना चाहिए.   

उनके लिए प्यारी प्रकृति ने सकल विश्व के रूप में एक खेल का मैदान उपहार में दिया है,  आज यह खेल का मैदान प्रतिभाशाली खिलाडी की कद्र बेशक न करे, कोई और खेल का मैदान उसके लिए हमेशा इंतजार में रहता है| 

 प्रतिभावान खिलाडी राहुल

इनमे से एक बार एक प्रतिभावान खिलाडी राहुल का नाम अपने स्कूल में भी उछला. उसने कई  विद्यालयी स्तरीय  खेल मुकाबलों में जोरदार उपस्थिति दर्ज कराइ, उसने अपने कई प्रतिद्वंदियों को क्रिकेट के हर क्षेत्र में कई बार धूल चटाई. जिससे उसका नाम भी क्रिकेट की दुनिया में छाने लगा. 

राहुल के पास क्रिकेट में गजब की प्रतिभा होने के बावजूद वह भी उन विशेष योग्यताओ जैसे कुल खानदान, पैसा, रसूख इत्यादि से जुदा ही था. स्कूल के खेल अध्यापक ने उसके पिता को समझाया, एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का चुनाव होना है, अगर राहुल को कहीं से अच्छी कोचिंग मिल जाये तो यह चमक सकता है.

 अपनी हैसियत से ज्यादा खर्चा 

उसके पिता को भी कुछ उम्मीद जगी लिहाजा वह भी गौरी कप्तान के पास राहुल को कोचिंग के लिए ले गया, गौरी कप्तान ने राहुल की परीक्षा ली और उसके पिता को भरोसा दिलाया यह और भी आगे जा सकता है. बस थोड़ी जेब ढीली करनी पड़ेगी, कोच के कहने पर उसके पिता ने उसे उसे मोटी फीस भी दी, और खेल में लगने वाले अतिरिक्त खर्चे भी उनने ख़ुशी से वहन किये. 

माता पिता अपने बच्चो को कामयाब बनाने के लिए अपनी हैसियत से ज्यादा खर्चा करने को तैयार ही रहते है ,इसी आस में शायद उनका बच्चा किसी क्षेत्र में कामयाब हो जाये| 

रसूखदार खिलाडी धूल चाटने लगे

राहुल की प्रतिभा के आगे जो सिफारशी और रसूखदार खिलाडी थे धूल चाटने लगे. अब गौरी कप्तान के मैदान में राहुल का बोलबाला दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था. साथ ही सिफारशी खिलाड़िओं के आकाओं के आँख कान दुगनी शक्ति से काम करने लगे,  किसी तरह राहुल का चुनाव उस राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में न हो, नहीं तो उनके नाकाबिल होनहारो का भविष्य ख़राब हो सकता है. 

गौरी कप्तान को पैसे के बल पर या अपने रसूख के बल पर अपने साथ मिला लिया, अब गौरी कप्तान भी चाहता था राहुल का चुनाव उस प्रतियोगिता में न हो. जबकि राहुल तो अपने कोच पर दिलो जान से मरता था.

 जब गुरु अपने शिष्य की कामयाबी का दुश्मन बन जाये तब उस समाज, देश राष्ट्र का उज्जवल भविष्य अंधकारमय ही समझो| 

सिफारशी खिलाड़िओं का हौसला

चुनाव का दिन आ गया, गौरी कप्तान ने राहुल को कुछ भी न कहा बल्कि सिफारशी खिलाड़िओं का हौसला लगातार बढ़ा रहा था. उन्हें नए नए तरीके  बता रहा था किस कैसे इन सेलक्टर्स के सामने खेलना है, सभी खिलाड़ी अपना अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे. 

राहुल भी अपने कोच से कुछ सीख लेने के इरादे से गया. गौरी तो उस पर बिफर ही पड़ा “तुम्हारे जैसे क्या खिलाड़ी  बनेंगे, खिलाडी तो कुल खानदान देखकर बनते है. तुम्हारे ऊपर किसी का हाथ नहीं, जाओ फिर भी कोशिश कर लो”  अगर किसी खिलाडी को उसका कोच ही मानसिक रूप से  चारो खाने चित कर दे तो, ऐसे प्रतिभाशाली किसकी माँ को माँ कहेंगे.

 दो बल्ले तो टूट भी गए

राहुल बेचारा मुँह लटकाये उन सेलेक्टर्स के सामने अपना प्रदर्शन करने अपनी सस्ती सी क्रिकेट किट लेकर चला गया. जहाँ राहुल कोचिंग में हर बॉल मैदान के बाहर पंहुचाता था आज उसका बल्ला भी उसे दगा  दे रहा था,  कोई भी बॉल  बल्ले के संपर्क में या तो आ नहीं रही थी या उसका बल्ला ही कमजोर हो गया था. 

इस दौरान उसके दो बल्ले तो टूट भी गए,  इसलिए उसका आज का प्रदर्शन उसके साथी सिफारशी खिलाड़िओ के मुकाबले नहीं टिक पाया. सेलेक्टर्स ने अच्छे अच्छे खिलाडी चुन लिए थे, राहुल का नाम उनमे नहीं था| गौरी कप्तान उन सिफारशी खिलाड़िओ को मुबारकबाद दे रहा था, उनके आका भी गौरी कप्तान को कंधे पर उठा रहे थे. राहुल और उसके पिता और गौरी कप्तान का बेटा मायूस मैदान में बैठे थे| 

 मैदान हरा भरा रहेगा

आज गौरी अपनी कामयाबी पर और खुश हो रहा था. कैसे उसने अपने मैदान से दो खिलाडी आगे राष्टीय स्तर के लिए चुनवाये है, यह दोनों खिलाडी साल भर तक मेरे पास मोटी फीस चुकाने वाले नए खिलाड़ी लाते रहेंगे और मेरे खेल का मैदान हरा भरा रहेगा.

 किट में टूटे हुए बल्ले

वह ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आया, अपनी कामयाबी की ढींगे हांकने लगा पर उसकी पत्नी और बेटा दोनों अधिक खुश नहीं थे. गौरी अपनी पत्नी पर झुँझला कर बोला “तुम्हे ख़ुशी नहीं हुई, उसकी पत्नी कुछ न बोली शायद बेटे ने अपने पिता की करतूत अपनी मां को बता दी थी. 

उसका बेटा बोला “पापा आपने राहुल भैया की किट में टूटे हुए बल्ले डाले थे मैंने और राहुल भैया दोनों ने देख लिया था, पर वह कुछ भी न बोले. मैंने उनसे कहा भी भैया जाकर पापा से कहो या दूसरे बल्ले ले जाओ, पर वह कुछ भी न बोले चुपचाप चले गए, और मुझसे भी किसी को न बताने को कह कर गए थे. 

 गुरु का सम्मान 

अगर कोई बेईमानी से कामयाब हो भी जाये तो जब उसकी बेईमानी, किसी के सामने खासकर अपनों के जिनका वह सबसे बड़ा हीरो होता है, पकड़ी जाये उसका क्या होता है इसको तो केवल गौरी कप्तान ही बयान कर सकते थे. जो भी हो आज नाकाम शिष्य के सामने उसका कामयाब गुरु अपने आपको बौना महसूस कर रहा था, आज एक होनहार शिष्य ने अपनी क़ुरबानी देकर अपने गुरु का सम्मान बढ़ा दिया था | 

    अगले दिन गौरी कप्तान मैदान पर पहुंचा. राहुल अपना अभ्यास कर रहा था. राहुल ने गौरी से कुछ न कहा, न ही गौरी ने राहुल से कुछ कहा, उसके पीछे पीछे कुछ प्रतिभावान खिलाड़ी भी थे यह सब बिना रसूख वाले, बिना ऊँचे कुल खानदान के और बिना मोटी फीस चुकाने वाले थे. उसके साथ उसका बेटा भी था, गौरी कप्तान बोला “आज से केवल इस मैदान पर खिलाड़ी ही रहेंगे. 

 बचपन वाला गौरी कप्तान

राहुल को गले से लगाते हुए बोला तीन महीने बाद फिर से राष्ट्रीय स्तर का चुनाव है, इस बार तुझे दिखाना होगा की तू मेरा शिष्य है, नहीं तो दो कान  के नीचे दूंगा. यह ले पकड़ अपना बल्ला, तेरी हर शॉट से आसमाँ में छेद होना चाहिए और तुम सभी जमकर अभ्यास करना” इतना कहकर वह वहां एक पेड़ के पीछे छिप गया.

 उसके पीछे पीछे सभी खिलाडी भी आ गए तो देखा गौरी की आँखों में पश्चाताप के आंसू थे, सभी ने पूछा “कप्तान आप रो क्यों रहे हो, गौरी आंसू पोछते हुए बोला “कई बार असली कप्तान बनने के लिए रोना भी पढता है” शायद आज इस खेल के मैदान को उसका खोया हुआ बचपन वाला गौरी कप्तान मिल चुका था|

For seeing the first part of this Story pl see the link    https://padhailelo.com/khel-ka-maidan-first-part/

 

 

                                                                                                     *****

 

    

 

 

 

Leave a Reply