खेल का मैदान
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सुनहरे सपने से कम नहीं है
बड़े शहरों में बढ़ती आबादी ने जहाँ रहने की जगह आम आदमी से जगह छीनी है. तब खेल का मैदान भी उनके बच्चो के लिए हो, ऐसा दुर्लभः सपना सोचने की उनकी उम्मीद न के बराबर ही है, खेल का मैदान भी किसी नामी शहर में होता है. यह उनके लिए किसी सुनहरे सपने से कम नहीं हैI
खेल का मतलब दोस्तों के साथ घर के बहार ही होता था
यह उस दौर की बात है जब बच्चो के लिए खेल का मतलब दोस्तों के साथ घर के बहार ही होता था. चाहे वह मैदान हो या अपने मोहल्ले का प्रांगड़ उन्हें तो नए निराले खेलो का खिलाडी बनने से मतलब था. उन्हें इससे मतलब नहीं की उस खेल के लिए जरुरी सामान उसके पास है या नहीं उनको खेलना है तो बस खेलना है.
वह हर उस उपकरण का जुगाड़ कर ही लेते है. न उन्हें धुप की परवाह होती है न ही बरसात या सर्दी की, बस एक पागलपन होता है, कैसे भी खेल को खेलना है, गौरी, राजू, मोनू, कैलाश, क़यूम, नासिर, सुभाष इत्यादि भी ऐसे ही बाल खिलाडी थे जब विद्यालय की छुट्टी हो जाती तो उनकी मंडली नए नए खेलो का जुगाड़ करने में लग जाती|
खेल का कप्तान
हर एक खेल का एक कप्तान होता है, इन सभी का कप्तान इनमे गौरी था. मौसम कोई सा भी हो, खेल पुराना हो या नया, उस खेल के जरुरी उपकरण हो या नहीं. गौरी कप्तान मैदान में होना चाहिए. उसके पास उस खेल को जमीनी हक़ीक़त में उतारने की अद्भुत कला थी.
अंग्रेजी खेल फुटबाल क्रिकेट, चिड़ी छक्का के आलावा वह देसी खेलो जैसे कंचे, लट्टू, पिट्ठू, लुका छिपी या उस मौसम का कोई विशेष खेल हो, गौरी कप्तान की उस खेल को रचने से लेकर खत्म होने तक पूरी भागीदारी होती थी. बच्चो की मंडली भी गौरी को एक अच्छा खिलाडी मानती थी. हर खेल में उसका दाव दूसरे प्रतिद्वंदी खिलाडी से बीस ही पड़ता था|
उपकरणों का जुगाड़
इन सबके पीछे उनका बालमन का वह जज्बा था जो उन्हें नए नए खेल खेलने की और प्रेरित करता था दूसरे घर में माता पिता के पास इतने पैसे नहीं थे की महंगे खेलों के उपकरण अपने बच्चो को मुहैया करा सके आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है, खिलाडी को जब खेलना होता है तब वह यह नहीं देखता किस उसके पास उस खेल लायक उपयुक्त उपकरण है या नहीं वह जरुरी उपकरणों का जुगाड़ करने में लग जाता है
खिलाडी योग्यता
बच्चो की यह मंडली अपने कप्तान गौरी के निर्देश में या कभी कभी अपनी विशेष खिलाडी योग्यता वाले दिमाग की उपज के कारण नए नए जुगाड़ बनाती रहती. फुटबॉल नहीं थी तो एक पुरानी फटी हुई फुटबॉल मिल गयी उसमे कुछ फटे पुराने कपडे, कागज की लुगदी, इत्यादि डालकर उसमे ही अपना शौक पूरा कर लिया.
क्रिकेट का बैट नहीं था तो एक लकड़ी का मोटा सा फट्टा लिया उसे किस जानकर कार्पेंटर के पास जाकर उसपर रंदा फिरवा कर एक अच्छे खासे क्रिकेट बैट की तरह उसका इस्तेमाल कर लिया, लेदर वाली बॉल का जुगाड़ तो चंदा उघा कर हो ही जाता था,|
पतंग उड़ाने के लिए मांजा पतंग नहीं थी तो किसी की चरखड़ी पकड़ कर खड़े हो गये. इस आस में किस वह पतंगबाज उनके हाथ में पतंग की डोर दे देगा. इसका वह पतंगबाज फायदा भी उठाते थे. एक घंटा चरखड़ी पकड़वा कर पांच मिनट के लिए डोर उस बच्चे के हाथ में देते थे. बस उनकी आँख उस पतंग पर होती थी और पतंगबाज की मोटी सी चरखड़ी पर.
अगर किसी के पास लकड़ी के फट्टे वाला क्रिकेट बैट न हो तो गिल्ली डंडा से ही काम चला लिया, और कुछ न हो तो कंचो से कोनी घिस खेल कर ही अपना समय पास कर लिया.
अनगिनत खेल
पिठू, लट्टू, पुरानी साइकिल के टायर, किसी घोड़े की बग्गी के पीछे भागना और उसके पिछले पायदान पर चढ़कर ही अपनी सवारी का शौक पूरा करना, खाली माचिस की डब्बियो से ताश का शौक पूरा करना ऐसे ही अनगिनत खेल के लिए यह मंडली तैयार रहती|
अपवाद स्वरूप असली बैट बॉल , फुटबाल, चिड़ी छक्का इत्यादि उपकरण जिसके पास भी होते वह तो उस मंडली का राजा ही होता था. सभी उससे दोस्ती बनाने के लिए लालायित रहते, और वह बच्चा भी इतना निष्ठुर होता की उन्हें उन खेल उपकरणो का इस्तेमाल करने के बदले अपनी सौ सौ मिन्नतें करवाता. उसके माता पिता भी अपने बच्चे पर कड़ी नजर रखते, की कही कोई दूसरा बच्चा उनके बच्चे का खेल का सामान न तोड़ दे. तुरंत अपने बच्चे के पास पहुँच जाते.
कुछ ज्यादा लड़ाकू बच्चे तो उसके उस विशेष खेल के सामान से चिढ़ते भी थे. कभी फुटबाल में ब्लेड मार देते, कभी जानकर चिड़ी छक्का तोड़ देते, इन शैतान बच्चों की वजह से शरीफ बच्चे भी उन खेल के उपकरणों के वाजिब इस्तेमाल से वंचित रह जाते|
खेलने का शौक
खेलने का शौक अपने बचपन में सभी को होता है. किसी में थोड़ा किसी में अधिक, इसलिए पूरा मोहल्ला एक छोटे खेल के स्टेडियम से तब्दील रहता था. अक्सर बड़े बड़े भी उनके इन खेलो में शामिल हो जाते तो नजारा अद्भुत होता था.
ढील का मांजा भी खैंच का मांजा
राजू – “मेरे पिताजी कंचे अच्छा खेलते है, जिस कंचे में कहो उसी में निशाना लगा सकते हैं”, मोनू -“मेरा भाई सोनू लट्टू अच्छा चलाता है, जंत्री लेना तो उसके बाये हाथ का काम है”. कैलाश- “मेरी बहिन पिठू अच्छा खेलती है सबसे पक्कड़ खिलाडी है. क़यूम – मेरे चाचा चिड़ी छक्का अच्छा खेलते हैं कोई उनके सामने नहीं टिक पायेगा”. नासिर- अब्बू की पतंग के आगे कोई भी पेच नहीं लड़ा सकता. उनके पास ढील का मांजा भी है खैंच का भी है, एक खींच मारते ही तीन तीन पतंग काट देते है और जब ढील का मांझा लगाते हैं तो चार चार पतंग काट देते हैं.
सुभाष – हाँ मैंने भी देखा है इसके अब्बू बड़ी अच्छी खैंच (खींच) मारते हैं मुझे भी कई बार बचा हुआ मांझा देते है जिससे मै लाई लंगड़ चलाता हूँ. राजू- “सुभाष को देखते हुए लालची कहीं का मांझे के लालच में चरखड़ी पकड़ कर खड़ा रहता है”| इधर गौरी अकेला ही कंचो पर निशाना लगाने में मग्न रहकर उन सबकी बातें सुनता रहता|
छोटे बच्चे आपस में यही बहस करते और सभी अपने अपने पिताओ, चाचाओं, बड़े भाइयो-बहनो में एक नया स्पोर्ट्स स्टार खोजते रहते. यह उस दौर का नजारा है जब दिन रात चलने वाले टीवी और मोबाइल जैसी आधुनिक मशीने इस धरती पर नहीं थी टीवी जैसी मशीन भी दिन में दो घंटो तक ही चलती थी.
समय की कमी
किसी के पास समय की कमी नहीं थी खाना पीना और खेलना यही तो शौक हुआ करते थे, इसके आलावा जगह जगह खेल के मैदान बिना किसी रसूखदार की सिफारिश या उस मैदान की फीस चुकाए बिना सभी के लिए सुलभ थे.
बेशक वह मैदान अधिक साफसुथरे नहीं होते थे, लेकिन मैदान तो अपने खिलाड़ी बच्चे खेलने लायक बना ही लिया करते थे. कोई घास साफ करके पाला बना देता कोई बढ़ी हुई घास को हाथो से उखाड कर फेक देते। कोई बाल्टियों में पानी डालकर पिच तैयार कर लेता|
खेल के स्टेडियम
उस मण्डली का मोहल्ला भी किसी खेल के स्टेडियम से कम नहीं था गोलधारे में मकान बने हुए थे. कोई मोटर गाड़ी किसी के पास थी नहीं जो मोहल्ले में चले. मोहल्ले की खाली जगह इस मण्डली के ईजाद किये हुए खेलो की अँधेरा होने तक पूरा साथ देती.
जब मोहल्ले के प्रतिभावान खिलाडी इनसे थक जाते घर से गुड़ और रोटी या कोई आलू परांठा या माँ द्वारा घर में बना हुआ खाना ले कर खेल के मैदान में दोबारा जुट जाते. इतने व्यस्त खिलाडी थे की खाने तक की फुर्सत नहीं थी. गौरी कप्तान हर खेल में सबसे अधिक मौजूद रहता पता नहीं कहाँ से इतनी न ख़त्म लेने वाली ऊर्जा ले कर आता था|
—-क्रमश जारी है: पार्ट २ see the link https://padhailelo.com/khel-ka-maidan/
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Vah Kya prenadayak kahani jai, good written sir