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भारतीय ग्रीष्म कालीन मानसून उत्पत्ति एवं आगमन

भारतीय ग्रीष्म कालीन मानसून उत्पत्ति एवं आगमन

भारतीय ग्रीष्म कालीन मानसून के बारे में संसद से लेकर सड़को, मुहल्लों गावों, शहरो  तक हर जगह चर्चा होती है. भारतीय मौसम विभाग इसके बारे में नई नई सम्भावनाये देता है भारतीय अख़बार टीवी चैनल डेली खबरे देती हैं, किसान वर्ग तो सीधा इससे जुड़ा होता है. और हो भी क्यों न ग्रीष्मकालीन मानसून लगभग पुरे भारत को ही अपने चपेट में ले लेता है, जिससे भारत में साल में दो बार फसलों को उगाने का अवसर मिलता है और भारतीय अर्थवयवस्था को आगे ले जाने में अहम् भूमिका बनती है. शहरो में रहने वाले जो अब  तक गर्मी में झुलस रहे होते है उन्हें एक सुकून की अनुभूति होती है बिजली का लोड कम हो जाता है. अच्छे मौसम के होने पर इंसान का मुंड भी चेंज हो जाता है, भारतीय सिनेमा ने तो मानसून पर कितने ही हिट गाने  बना डाले हैं जो हर खासो आम को अच्छे  लगते हैं. फिर भी यह भूगोल विषय के अंतर्गत ही समझा जाता है

इतना महत्वपूर्ण स्थान इस मानसून का है की राजनितिक आर्थिक सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रो में सभी जगह इसका प्रभाव देखा जा सकता है. फिर भी आम आदमी मानसून की उत्पत्ति और उसकी यांत्रिकी, उसके महत्वपूर्ण कारक के बारे में समाचारो और मीडिया पर ही निर्भर रहता है. आइये इसे समझने का प्रयास करें.

कोरिओलिस बल 

फ़्रांसीसी गणितज्ञ जी. जी. कोरिओलिस  ने पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पवन में होने वाले विक्षेपण (deflection) की सर्वप्रथम व्याख्या की और इसलिए इस बल को “कोरिओलिस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। यह प्रभाव विषुवत रेखा पर सबसे कम तथा ध्रुवों पर सर्वाधिक होता है। पवन का विक्षेपित होना पवन की गति और उसके अक्षांशीय स्थिति पर निर्भर करता है। इस निक्षेप को फेरल नामक विद्वान ने सिद्ध किया। इसलिए इसे फेरल का नियम कहा जाता है।  फेरल के नियम के अनुसार हवाएं या पवन जब भूमध्य रेखा पर आती हैं तब वह अपनी विपरीत दिशा में मुड़  जाती हैं. जिस प्रकार किसी तीर के पिछवाड़े के खांचे एक दूसरे से विपरीत दिशा में मुड़ते हैं.

इसी नियम का पालन करते हुए, उत्तरी गोलार्द्ध की पवन की दिशा उत्तरपूर्व  से पश्चिम की ओर  चलेगी और भूमध्य रेखा पर पहुँच कर दक्षिण पूर्व में मुड़  जाएँगी ठीक इसी प्रकार दक्षिण गोलार्ध की साउथ ईस्ट से चलने वाली पवन जो  पश्चिम की ओर चलती है वह  भूमधय रेखा पर अपने दाहिने अर्थात उत्तर पूर्व की ओर मुड़ जाएँगी, भारत ग्लोब के उत्तर पूर्व में है, बस बन गया भारत के मानसून का मुख्य आधार। https://padhailelo.com/glob-akhansh-aur-desshantar/

अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) 

अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र या ITCZ पृथ्वी पर, भूमध्य रेखा के पास वृत्ताकार क्षेत्र है। पृथ्वी पर यह वह क्षेत्र है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों की व्यापारिक हवाएँ, यानी पूर्वोत्तर व्यापारिक हवाएँ तथा दक्षिण-पूर्व व्यापारिक हवाएँ एक जगह मिलती हैं। 

सूर्य का ८ डिग्री उत्तर की ओर  खिसकना

२३ मार्च को सूर्य भूमध्य रेखा पर अपनी सीधी किरणों के साथ लंबवत होता है उस दिन वहां पर हाई तापमान होता है उत्तर की व्यापारिक पवन और दक्षिण की व्यापारिक पवन आपस में टकराती है.  इसलिए वहां ITCZ  बन जाता या  वहां एक निम्न दाबीय पेटी का निर्माण भी हो जाता है, इसके बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है, वह  पेटी  भी उत्तरायण होने लगती है. सूर्य हर माह लगभग ८ डिग्री उत्तर की ओर खिसकता है. अप्रैल में यह कन्याकुमारी के थोड़ा ऊपर होता है.

अब तक जो व्यापारिक पवन भूमध्य रेखा तक आती थी वह निम्न दाबिय पेटी तक जाने लगती है, फेरल के नियम के अनुसार अपने दाहिने मुड़ जाती है अरब सागर और बंगाल की खाड़ी वहां पर पहले से ही मौजूद हैं.

लक्ष्य थार का रेगिस्तान

मई में सूर्य ६० डिग्री उत्तर लंबवत हो जाता है तब ITCZ भी आगे बढ़ जाता है  यहाँ निम्न वायुदाबिय पेटी उत्तर की तरफ अधिक मुड़  जाती है क्योंकि मध्य भारत में पर्वत और पठार  हैं,  या यूँ कहे अब निम्न वायुदाब पेटी  सूर्य से आगे निकलने लगती है, सूर्य यहाँ रुकेगा या नहीं। नहीं, इसलिए जब जून आएगा तो सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत हो जायेगा निम्न वायुदाब पेटी अब और उत्तरयण हो जाएगी और जिसमे थार का रेगिस्तान पंजाब का रेगिस्तान पाकिस्तान का रेगिस्तान सभी अत्यधिक गर्म होने लगते है यहाँ टेम्प्रेचर ४८ डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है.

भारतीय मानसून खिसके हुए ITCZ का परिणाम है

इसका मतलब अब दक्षिण पूर्व दिशा की नमी युक्त पवन को थार तक जाना पड़ेगा यह एक लम्बी यात्रा है. अब चाहे तो यह पवन अरब सागर के रास्ते से जाये या बंगाल की खाड़ी  के रास्ते से जाये या फिर भारत की स्थल भूमि से जाये यह उसकी मर्जी। अब उसका लक्ष्य थार का रेगिस्तान एरिया है या खिसका हुआ ITCZ है. तभी वैज्ञानिक कहते हैं की भारतीय मानसून खिसके हुए ITCZ का परिणाम है.

निम्न वायुदाब क्षेत्र लगभग ९९० मिलिबार

वैज्ञानिको ने कुछ तिथियां बताई हैं जिनके आधार पर मानसून की यात्रा चलती है. अगर इन पवनो की दिशा देखे तो यह बंगाल की खाड़ी से थार के रेगिस्तान (भारत और पाकिस्तान) तक मई से जून तक पहुँच जाती है और जुलाई तक पुरे भारत को अपने आगोश में ले लेती है. अर्थार्त थार का रेगिस्तान ही वह केंद्र बिंदु है जिस पर नमी युक्त व्यापारिक पवन आना चाहती है क्योंकि वहां पर निम्न दवाब और उच्च तापमान की स्थिती बन गई है. यहाँ से बहुत तीर्व गति से कन्वेंशन करंट उठती है इसलिए यहाँ बहुत ही निम्न दाब का क्षेत्र है, लगभग ९९० मिलिबार।

हवा सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बहती है

मई जून के महीनो में भारत के अंदर निम्न दाब और उच्च तापमान है जबकि बंगाल की खाड़ी में नदियों द्वारा लाया गया ठंडा पानी है गर्म हवा की तुलना में ठंडी हवा के अधिक भारी होने के कारण ठंडी हवा का दाब भी अधिक होता है। सूर्य की ऊष्मा से हवा गर्म होकर हल्की होने पर ऊपर की ओर उठती है तब गर्म हवा के ऊपर उठने पर उसके द्वारा रिक्त किए गए स्थान पर आसपास की ठंडी और भारी हवा आ जाती है। इससे हम कह सकते हैं कि हवा सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बहती है. यही स्थिती अब भारत में बन चुकी है. 

मानसून पूर्व वर्षा 

काल बैसाखी

यधपि यह हवा की दिशा फेरल के नियम के अनुसार नहीं है दाब प्रवणता (Pressure Gradient) का सिद्धांत यहाँ काम करता है. इसलिए यह भरपूर नमी युक्त हवा साउथ ईस्ट से नार्थ वेस्ट की ओर चलती है इस हवा की कुछ मात्रा बांग्लादेश के ऊपर से होते हुए पश्चिम बंगाल झारखण्ड उड़ीसा छत्तीसगढ़ तक चली जाती है और वहां बारिश करती है विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और झारखण्ड इस बारिश को वहां काल बैसाखी कहा जाता है इससे वहां की नदियों में उफान आ जाता है. 

बोरदोईशिला

इसी हवा की  कुछ मात्रा असम और अरुणाचल प्रदेश की ओर चली जाती है. इसलिए यह असम में बारिश करती है. इस बारिश को बोरदोईशिला कहते हैं. यह बारिश असम में बाढ़ लाती है.  अभी मानसून ने प्रवेश नहीं किया है यह मई का महीना है. इसका कारण असम में ब्रह्मपुत्र के मैदान और  बांग्लादेश का मैदान का गरम होना है जिस वजह से यहाँ मानसून से पहले ही बाढ़ आ जाती है. कृपया यह मत सोचना की मई में गर्मी के कारण हिमालय की बर्फ पिघली और असम में बाढ़ लाई यदि ऐसा होता तो भारत में और भी नदिया हैं उनमे भी बाढ़  होनी चाहिए।  

काफी वर्षा और मैंगो वर्षा

मई के महीने में वेस्टर्न घाट पर्वत के कारण  बंगाल की खाड़ी की आद्र पवन की धारा केरल तक नहीं पहुंच पाती  लेकिन अरब सागर की धारा केरल में भी बारिश करती है जिससे वहां काफी की अच्छी फसल होती है यहाँ इसे काफी वर्षा कहते है . कर्णाटक में भी अरब सागर पवन की धारा बारिश करती है जिससे वहां आम की फसल पक जाती है इसलिए वहां इस बारिश को मैंगो बारिश कहते हैं इसलिए जब उत्तर भारत के लोग मई के शुरू में  मीठे आम खाये तब एक बार कर्नाटक या दक्षिण के आमो को याद रखें।

मानसून विस्फोट (ब्रस्ट)

वेस्टर्न घाट पर्वत को ध्यान से देखगे तो दक्षिण में अधिक ऊँचा है. और उत्तर के यह कम ऊँचा होता जाता है. इसके उत्तर अर्थार्त केरल में कई ऊँची चोटियां हैं जैसे अनाईमुडी मेहंदेरगिरि इत्यादि। जून आ चूका है अरब सागर की जोशीली मानसूनी ठंडी और भारी हवा जैसे ही केरल में प्रवेश करती है वह इन ऊँची चोटियों से टकरा जाती है और ऊपर की ओर उठने लगती है,  संघनन तेज होता है ऊपर जाने पर हवा अपनी नमी संभाल नहीं पाती। नतीजा मूसलाधार बारिश जैसे किसी ने ड्रम भर कर पानी उड़ेल दिया हो मीडिया में खबर आती है मानसूनब्रस्ट हो गया. ध्यान रखें यह मानसून ब्रस्ट है क्लाउड ब्रस्ट कहीं और होगा।

भारत की ख़ुशी

इस तरह हमने जाना  मानसून जिसका ऑनसेट २३ मार्च को हुआ था. जिसका असर मई में पूर्व मानसून के रूप में देखा गया और १ जून को जिसने भारत में केरल के तट पर विस्फोट कर दिया सभी भारतियों के चेहरे पर मुस्कान है और केरल तो ख़ुशी से नाचने लगा है. थार के रेगिस्तान को कोई  याद नहीं कर रहा जबकि भारतीय मानसून का असली हीरो वही है.

थार का रेगिस्तान  प्रकृति का वह फ़क़ीर बेटा है जिस ने खुद प्यासा रहकर पूरे भारत समेत पाकिस्तान तक की प्यास बुझाई है.

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