अगले दिन मंगलू अपने पिताजी झुमरू जी को लेकर अध्यापक के पास गया, वहां पर पहले से ही उसकी कक्षा के अन्य छात्र सोनू के पिताजी श्रीकांत जी भी अध्यापक के पास बैठे हुए थे. अध्यापक सोनू की बहुत तारीफ कर रहे थे कितना लायक बच्चा है, जरा सा बताता हूँ पूरा पाठ याद कर लेता है, ऐसे छात्रों पर विद्यालय भी गर्व करता है. और एक इसे देखिए, कितना भी पाठ समझाऊं हर बार उसकी अलग ही व्याख्या करता है, मंगलू की ओर देखते हुए अध्यापक ने उसके पिताजी झुमरू से शिकायती लहजे में कहा. झुमरू ने सफाई देते हुए कहा “मास्टरजी घर में कोई इसे पढ़ाने वाला है नहीं मैं भी इस लायक नहीं की इसे ठीक से पढ़ा सकू.
जहाँ सोनू अपनी ईश्वरीय प्रदत अच्छी अक्ल और अपने विशेष कुल में जन्म की वजह से दिनों दिन विद्यालयी शिक्षा में मजबूती से कामयाब होता जा रहा था. वहीँ मंगलू विद्यालयी शिक्षा में बिना किसी उचित मार्गदर्शन और उस पर भी समाज द्वारा बनाये हुए उच्च कुल और निम्न कुल के तमगे का बोझ उठाते हुए विद्यालयी शिक्षा में जैसे तैसे उत्तीर्ण होता जा रहा था. दोनों ही सभ्य समाज द्वारा दिए हुए लायक और नालायक वर्गीकरण में रहने के आदि होते जा रहे थे.
प्रकृति कभी किसी मानव निर्मित बनावटी हथियार जैसे उच्च और नीच कुल, मान मर्यादा, समाजिक भेदभाव में नहीं झांकती वह तो अपने बनाये हुए जीवो चाहे मानव हो या कोई और सभी पर समान धूप पानी हवा जमीं आकाश रूपी स्नेह की निरंतर बरसात करती रहती है, उपरवाले का शुक्र है ऊँचा कुल, ताकत, पैसा, रुतबा, पाखंड जैसे मानव निर्मित बनावटी हथियार धूप हवा और आकाश इन पर अपना अधिकार ज़माने में अभी तक कामयाब नहीं हो पाए हैं, अपवाद स्वरुप प्रकृति द्वारा दिए हुए जमीन और पानी जैसे अनमोल उपहारों पर इन बनावटी हथियारों की आड़ में निरन्तर कब्ज़ा किया जाता रहा है|
एक दिन झुमरू ने कहा “तेरी जैसी नालायक औलाद से मुझे यही उम्मीद थी न तो ढंग से पढ़ सका न ही कोई ढंग का काम पा सका. मंगलू तो ऐसे शब्दों का आदि था इन्हीं शब्दों में तो उसकी परवरिश हुई थी उसे कोई असर न पढ़ा. “अम्मा मुझे भोजन परोस दो बहुत भूख लगी है”, अपनी अम्मा से कहने लगा अम्मा ने झट से भोजन परोस दिया. किसी भी मां की नजर में उसकी औलाद हमेशा लायक ही होती है. मंगलू की ढाल अब उसके साथ थी, इसलिए झुमरू ने वहाँ से दूर होने में ही भलाई समझी.
शायद श्रीकांत जी का रुतबा और विशेष कुल उस दिन छुट्टी पर थे तभी वह मंगलू की मदद लेने को सहमत थे, मंगलू ने श्रीकांत से कहा “अंकल अगर कुछ अस्पताल का कोई काम हो तो बता देना मैं कर दूंगा” जब तक श्रीकांत की पत्नी को होश न आया वह आसपास ही टहलता रहा, उसके वहां रहने से श्रीकांत की हिम्मत भी कुछ बढ़ी हुई थी.
श्रीकांत- झुमरू कैसे हो, झुमरू- ठीक हूँ श्रीकांत जी कहो हम जैसो के घर कैसे आना हुआ. कहाँ आप भी लायक और आपकी औलाद भी लायक. मेरे यहाँ तो मैं भी और मेरी औलाद सभी नालायक है. हमसे क्या काम आन पड़ा” मंगलू जो अब तक चुपचाप पिता की डांट खा रहा था तुरंत बोल पड़ा” पिताजी घर आये मेहमान से कैसे बात करते है यह भी भूल गए क्या” . पिता कभी अपनी विफलता पर नहीं रोता अगर औलाद विफल हो जाये तो उसका गुबार वह हर उस चीज़ पर निकालता है जो भी उसकी औलाद के विफल होने में सहायक होती है.
झुमरू का मिज़ाज आज गरम था इसलिए स्थिति भांपते हुए माया ने मोर्चा संभाला और मंगलू की मां से कहा ” बहिनजी मंगलू न होता तो मैं सही समय पर अस्पताल न पहुंच पाती बड़ा ही नेक बच्चा है अस्पताल में इसने हमारी बहुत सेवा की है. माया ने आगे बताया कैसे मंगलू ने दुर्घटना के समय उसकी मदद की थी, इसीलिए वह मंगलू का शुक्रिया अदा करने आये थे. झुमरू माया को सुनकर थोड़ा सहज हो गया था उसने श्रीकांत जी की और देखकर कहा “ये नालायक इतना भी नहीं करेगा तो इसका आदमी का जन्म बेकार ही होगा. श्रीकांत जी का ऊँचा कुल और रुतबा आज झुमरू के सामने बौने हो गए थे, और मंगलू का नालायकी वाला तमगा कुछ दूर छिटक गया था |
जाते हुए झुमरू ने मंगलू से कहा “नालायक अंकल का ध्यान रखना, और कुशल क्षेम लेते रहना, बहनजी इस नालायक को कुछ भी काम बेहिचक बता देना माया से कहा, मंगलू दिन रात श्रीकांत और माया की सेवा करता, जिससे उनके बुरे दिन जल्दी कटने लगे, मंगलू की सेवा भाव देखकर श्रीकांत जी आज सोच में पढ़ गए थे एक मेरी लायक औलाद बाप की बात नहीं मानती और नालायक औलाद बाप की बात मानती है|
जिस दोस्ती के लिए श्रीकांत जी मना करते थे, आज अपने बेटे की उसी दोस्ती पर उन्हें नाज हो रहा था. श्रीकांत जी ने सोनू को गले लगाते हुए कहा” मैं तो बनावटी ऊँचे कुल की दुहाई देता रहा. तूने तो ऊँचे कुल का असली काम क्या होता है यह विदेश में जाकर भी दिखा दिया. झुमरू भी श्रीकांत की ओर कृतज्ञ होकर देख कर बोले ” साहब हमसे कुछ जाने अनजाने में आपके प्रति अपशब्द निकले हो तो क्षमा कर देना. श्रीकांत जी ने कहा” इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है जब हमारी दकियानूसी और पोली विचारधाराओ ने कांटे वाले पेड़ पाले है, तो हाथ में कांटा चुभने का डर तो बना ही रहेगा” श्रीकांत जी ने कहा नालायक जाकर मिठाई ले कर आ आज ख़ुशी का दिन है. अब मंगलू भी किसी से कम नहीं रहा”.
यह सुनते ही जब सोनू जाने लगा तब माया ने माहौल को थोड़ा हल्का किया और कहा “यहाँ तो दो दो नालायक बैठे है आप किस नालायक से कह रहे है”, माया की बात सुनकर श्रीकांत झुमरू सोनू और मंगलू सभी जोर जोर से ठहाके लगाने लगे|
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