You are currently viewing Nalayak Aulad

Nalayak Aulad

                                                                        नालायक औलाद 
 

                                                                                  *****

 
 
    कक्षा में सभी छात्र मंगलू को देखकर दबी दबी हंसी में हंस रहे थे. अध्यापक ने उसे मुर्गा बना दिया था,  अध्यापक अपने छात्रों को समझा रहे थे. कभी इसके जैसे नालायक मत बनना. रोज सजा पाता है कभी ठीक से पढाई नहीं करता. इसका कुछ नहीं हो सकता हर बार समझाता हूँ फिर भी गलती करता है. हिंदी जैसे विषय में भी गलती करता है तब इसका कुछ नहीं हो सकता. मंगलू कल अपने घर से पिताजी को बुला कर लाना उन्हें भी तुम्हारी नालायकी का पता चलना चाहिए. “जी मास्टरजी”, मंगलू ने मुर्गा बने बने सर हिलाया| 
 

    अगले दिन मंगलू अपने पिताजी झुमरू जी को लेकर अध्यापक के पास गया, वहां पर पहले से ही उसकी कक्षा के अन्य छात्र  सोनू के पिताजी श्रीकांत जी भी अध्यापक के पास बैठे हुए थे. अध्यापक सोनू की बहुत तारीफ कर रहे थे कितना लायक बच्चा है, जरा सा बताता हूँ पूरा पाठ याद कर लेता है, ऐसे छात्रों पर विद्यालय भी गर्व करता है. और एक इसे देखिए, कितना भी पाठ समझाऊं हर बार उसकी अलग ही व्याख्या करता है, मंगलू  की ओर  देखते हुए अध्यापक ने उसके पिताजी झुमरू से शिकायती लहजे में कहा. झुमरू ने सफाई देते हुए कहा “मास्टरजी घर में कोई इसे पढ़ाने वाला है नहीं मैं भी इस लायक नहीं की इसे ठीक से पढ़ा सकू. 

आप इसे जो सजा देना चाहो दो अगर यह अपना पाठ  सही याद न करे”, अध्यापक भी अब थोड़ा नरम पढ़ गए, “मंगलू अपनी कक्षा में जाओ और पाठ पढ़ो और आप भी जाइये, अगर इसमें सुधार न हुआ तो मैं फिर आपको बुलाऊंगा” झुमरू से अध्यापक ने कहा, गर्व से सीना ताने हुए सोनू के पिता ने अध्यापक से कहा “इन जैसे कुलो में पैदा होने वाले बच्चे क्या पढ़ेंगे, इन्हे तो उपरवाले ने ही हमारी और आपकी सेवा की लिए ही भेजा है”|  
 
    श्रीकांत और झुमरू एक ही मोहल्ले में रहते थे. पहले तो मंगलू और सोनू में कुछ दोस्ती के आसपास की कोई चीज थी परन्तु पढाई से अलग सामाजिक दिखावे की वजह से भी श्रीकांत ने सोनू को मंगलू से मिलने जुलने से मना कर दिया था. अगर सोनू जैसे छात्र लायक हो तो विद्यालयी शिक्षा जहाँ सामाजिक और आर्थिक भेद मिटाने का काम करती है वही मंगलू जैसे नालायक फिसड्डी छात्र  इसके अभाव में उनके पिताओ में भी दूरी  करवा देते  है. खासकर अगर कोई झुमरू की तरह गरीबी और सामाजिक भेदभाव जैसे मजबूत दुश्मनो का सताया हुआ हो जिन्हे श्रीकांत जैसे कुल अभिमानी अपनी दकियानूसी परपराओं में  घिरे हुए लोग,  इन दुश्मनो को और भी पालते पोसते रहते है ताकि कोई उनसे निम्नतर उनके बराबर न आ जाये| 
 

    जहाँ सोनू अपनी ईश्वरीय प्रदत अच्छी अक्ल और अपने विशेष कुल में जन्म की वजह से दिनों दिन विद्यालयी शिक्षा में मजबूती से कामयाब होता जा रहा था. वहीँ  मंगलू विद्यालयी शिक्षा में बिना किसी उचित मार्गदर्शन और उस पर भी समाज द्वारा बनाये हुए उच्च कुल और निम्न कुल के तमगे का बोझ उठाते हुए विद्यालयी शिक्षा में जैसे तैसे उत्तीर्ण  होता जा रहा था. दोनों ही सभ्य समाज द्वारा दिए हुए लायक और नालायक वर्गीकरण में रहने के आदि होते जा रहे थे.  

प्रकृति कभी किसी मानव निर्मित बनावटी हथियार जैसे उच्च और नीच कुल, मान मर्यादा, समाजिक भेदभाव में नहीं झांकती वह तो अपने बनाये हुए जीवो चाहे मानव हो या कोई और सभी पर समान धूप पानी हवा जमीं आकाश रूपी स्नेह की निरंतर बरसात करती रहती है, उपरवाले  का शुक्र है ऊँचा कुल, ताकत, पैसा, रुतबा, पाखंड जैसे मानव निर्मित बनावटी हथियार धूप  हवा और आकाश इन पर अपना अधिकार ज़माने में अभी तक  कामयाब नहीं हो पाए हैं, अपवाद स्वरुप प्रकृति द्वारा दिए हुए  जमीन और पानी जैसे अनमोल उपहारों  पर इन बनावटी हथियारों की आड़ में निरन्तर कब्ज़ा किया जाता रहा है|   

     दस बारह  बसंत गुजरने के बाद सोनू और मंगलू  युवा हुए तो अपने अपने भाग्य का निर्माण कर चुके थे. जहाँ सोनू अपनी योग्यता से अधिक पिता के विशेष सम्बन्धो द्वारा विदेश में अपने सपने पूरे करने चला गया. वहीँ मंगलू अपने पिता की तरह रोज  कुआँ खोदकर रोज पानी पीने वाले संघर्ष के लिए सज था. बहुत ढूढ़ने पर भी  उसे कोई जमा जमाया काम नहीं मिला.  

एक दिन झुमरू ने कहा “तेरी जैसी नालायक औलाद से मुझे यही उम्मीद थी न तो ढंग से पढ़ सका न ही कोई ढंग का काम पा  सका. मंगलू तो ऐसे शब्दों का आदि था इन्हीं शब्दों में तो उसकी परवरिश हुई थी उसे कोई असर न पढ़ा. “अम्मा मुझे भोजन परोस दो बहुत भूख लगी है”, अपनी अम्मा से कहने लगा अम्मा ने झट से भोजन परोस दिया. किसी भी मां  की नजर में उसकी औलाद हमेशा लायक ही होती है. मंगलू की ढाल अब उसके साथ थी, इसलिए झुमरू ने वहाँ से दूर होने में ही भलाई समझी. 

     कुछ समय बाद, एक दिन श्रीकांत की धर्मपत्नी माया की मोहल्ले के बाहर एक मोटर से दुर्घटना हो गयी वह खून से लथपथ सड़क पर गिरी हुई थी , भीड़ देखकर मंगलू वहां पहुंच गया, वह उन्हें पहचान गया,  उसने तुरंत श्रीकांत जी को घर जाकर खबर कर दी, उन दोनों ने फौरन एक रिक्शा में उन्हें बिठाया और पास के अस्पताल में लेकर चले गए.

 शायद श्रीकांत जी का रुतबा और विशेष कुल उस दिन छुट्टी पर थे तभी वह मंगलू की मदद लेने को सहमत थे, मंगलू ने श्रीकांत से कहा “अंकल अगर कुछ अस्पताल का कोई काम हो तो बता देना मैं कर दूंगा” जब तक श्रीकांत की पत्नी को होश न आया वह आसपास ही टहलता रहा, उसके वहां रहने से श्रीकांत की हिम्मत भी कुछ बढ़ी हुई थी.  

     कुछ समय बाद श्रीकांत की पत्नी ठीक होकर घर पर आ गयी. उन्हें झुमरू की सेवा और मदद के बारे में पता चल चुका था. इसलिए दोनों पति पत्नी  मंगलू के घर पर धन्यवाद करने गए,. वहां उन्हें झुमरू की आवाज आयी, झुमरू मंगलू पर रोज की तरह भड़क रहा था ” तेरी जैसी नालायक औलाद किसी दुश्मन को भी न दे तू किसी काम का नहीं है सोनू को देख विदेश में कितनी बढ़िया नौकरी कर रहा है ” मंगलू अपने चिर परिचित अंदाज में मुँह लटका कर खड़ा था.

   श्रीकांत- झुमरू कैसे हो, झुमरू- ठीक हूँ श्रीकांत जी कहो हम जैसो के घर कैसे आना हुआ. कहाँ आप भी लायक और आपकी  औलाद भी लायक. मेरे यहाँ तो मैं भी और मेरी औलाद सभी नालायक है.  हमसे क्या काम आन पड़ा” मंगलू जो अब तक चुपचाप पिता की डांट खा रहा था तुरंत बोल पड़ा” पिताजी घर आये मेहमान से कैसे बात करते है यह भी भूल गए क्या” . पिता कभी अपनी विफलता पर नहीं रोता अगर औलाद विफल हो जाये तो उसका गुबार वह हर उस चीज़ पर निकालता है जो भी उसकी औलाद के विफल होने में सहायक होती है.

     झुमरू का मिज़ाज आज गरम था इसलिए स्थिति भांपते हुए माया ने मोर्चा  संभाला और मंगलू की मां  से कहा ” बहिनजी मंगलू न होता तो मैं सही समय पर अस्पताल न पहुंच पाती बड़ा ही नेक बच्चा है अस्पताल में इसने हमारी बहुत सेवा की है.  माया ने आगे बताया कैसे मंगलू ने दुर्घटना के समय उसकी मदद की थी,  इसीलिए वह मंगलू का  शुक्रिया अदा करने आये थे. झुमरू माया को सुनकर थोड़ा सहज हो गया था उसने श्रीकांत जी की और देखकर कहा “ये नालायक इतना भी नहीं करेगा तो इसका आदमी का जन्म बेकार ही होगा. श्रीकांत जी का ऊँचा कुल और रुतबा आज झुमरू के सामने बौने हो गए थे, और मंगलू का नालायकी वाला तमगा कुछ दूर छिटक गया था | 

     एक दिन श्रीकांत जी की तबियत अधिक ख़राब हो गयी. वह अस्पताल में भर्ती हो गए, माया ने सोनू को विदेश में खबर करी पर उसने अपनी नौकरी का हवाला देकर आने से इंकार कर दिया. पैसे भेजने की कहने लगा श्रीकांत जी ने माया से फ़ोन लेकर कहा ” नहीं चाहिए तेरे पैसे, अपने पास रख”. और फ़ोन काट दिया, मां बाप का कलेजा अपनी औलाद को देखकर बढ़ता है न की उसकी दौलत को देखकर. मंगलू और झुमरू श्रीकांत जी मिलने अस्पताल में गए हाल चाल लिया और जाने लगे.

जाते हुए झुमरू ने मंगलू से कहा “नालायक अंकल का ध्यान रखना, और कुशल क्षेम लेते रहना,  बहनजी इस नालायक को कुछ भी काम बेहिचक बता देना माया से कहा, मंगलू दिन रात श्रीकांत और माया की सेवा करता, जिससे उनके बुरे दिन जल्दी कटने लगे, मंगलू की सेवा भाव देखकर  श्रीकांत जी आज सोच में पढ़ गए थे एक मेरी लायक औलाद बाप की बात नहीं मानती और नालायक औलाद बाप की बात मानती है| 

     इधर सोनू भी अपने पिता द्वारा फ़ोन काटे  जाने के बाद से अपने पिता के पास जाने के लिए छटपटाने लगा. उसने तुरंत फ्लाइट द्वारा अपने देश में पहुंचना ज्यादा जरुरी समझा. वह कुछ दिन बाद अपने पिता के पहुँच गया, उसके पिता अभी अस्पताल में ही थे. वहां मंगलू भी अपने पिता के साथ बैठा था.  सोनू- पापा कैसे हो रुआंसा होकर बोला, श्रीकांत- नौकरी से फुर्सत मिल गयी मेरी औलाद को. श्रीकांत जी उसे देखकर अंदर से खुश थे पर बाहर से जाहिर नहीं कर रहे थे. माया भी श्रीकांत के गुस्से का ढोंग कर रही थी, इसलिए वह भी मौन थी. मंगलू ने माहौल को सँभालते हुए कहा “अंकल आप सोनू पर गुस्सा मत होइए यह जाते वक्त मुझसे बोलकर गया था मेरी पीछे मेरे माता पिता का ध्यान रखना, आपकी दुःख तकलीफ यह मुझसे फोन द्वारा लेता रहता है, आपको इसकी और मेरी दोस्ती पसंद नहीं थी, इसलिए आपके सामने हम कभी नहीं मिलते थे, पर विद्यालय में यह मेरा सबसे अच्छा दोस्त था और आज भी है|  
 
    अब जबकि इन दोनों की दोस्ती की पोल खुल चुकी थी, सोनू ने आगे बताया “मंगलू मैंने तेरी पेंटिंग विदेश में कई नामी चित्रकारों को दिखाई है जिनमे से कई तेरी पेंटिंग से बहुत प्रभावित हुए है, तुझे जल्दी ही कोई नया पेंटिंग बनाने का आर्डर मिलने वाला है, तेरा नालायकी वाला तमगा इस्तीफा देना वाला है, एक ने तो अपने साथ काम करने के पेशगी भी दी है, उसे एक पैसो का चेक थमा दिया |   सामाजिक भेदभाव,  दकियानूसी पाखंड, ऊँचा या नीचा कुल, रुतबा, गरीबी, लायक और नालायक का लिबास आज इन दोनों की गाढ़ी दोस्ती और प्यार के  सामने छिन्न भिन्न  हो चुके थे, जिनके साक्षी झुमरू और श्रीकांत दोनों ही थे | 
 

    जिस दोस्ती के लिए श्रीकांत जी मना करते थे, आज अपने बेटे की उसी दोस्ती  पर उन्हें नाज हो रहा था. श्रीकांत जी ने सोनू को गले लगाते हुए कहा” मैं तो बनावटी ऊँचे कुल की दुहाई देता रहा. तूने तो ऊँचे कुल का असली काम क्या होता है यह विदेश में जाकर भी दिखा दिया. झुमरू भी श्रीकांत की ओर कृतज्ञ होकर देख कर बोले ” साहब हमसे कुछ जाने अनजाने में आपके प्रति अपशब्द निकले हो तो क्षमा कर देना.  श्रीकांत जी ने कहा” इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है जब हमारी दकियानूसी और पोली विचारधाराओ ने कांटे वाले पेड़ पाले है, तो हाथ में कांटा चुभने का डर तो बना  ही रहेगा” श्रीकांत जी ने कहा नालायक जाकर मिठाई ले कर आ आज ख़ुशी का दिन है. अब मंगलू भी किसी से कम नहीं रहा”.

     यह सुनते ही जब सोनू जाने लगा तब माया ने माहौल को थोड़ा हल्का किया और कहा “यहाँ तो दो दो नालायक बैठे है आप किस नालायक से कह रहे है”, माया की बात सुनकर श्रीकांत झुमरू सोनू और मंगलू सभी जोर जोर से ठहाके लगाने लगे|   

                                                                        *****
                                                                      🙏🙏🙏
 
 
 
 
 

Leave a Reply