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प्रथम गोलमेज सम्मलेन : समापन और प्रभाव

प्रथम गोलमेज सम्मलेन : समापन और प्रभाव 

ब्रिटिश क्राउन का भोज 

प्रथम गोलमेज सम्मलेन में भारत की समस्याओ के सर्वसम्मत संवैधानिक हल के लिए विभिन्न समितियों जैसे की वित्त, रक्षा, मताधिकार, अल्संख्यक, संघीय ढांचा, सेवाएं इत्यादि की कार्यवाही हुई. डॉ अंबेडकर की स्पीच और राइटिंग के मुख्य बिंदुओं के आधार पर इसके समापन और भारत पर प्रभाव के बारे में आगे  में चर्चा करते हैं. प्रथम गोलमेज सम्मलेन के समापन पर ब्रिटिश क्राउन ने भारतीय समुदाय को एक औपचारिक भोज  दिया, जिसमे डॉ अम्बेडकर, सर मिर्ज़ा इस्माइल, जिन्नाह, ताम्बे (अल्पसंख्यक वर्गों के राजनेता ) और कुछ दूसरे डेलीगेट्स शामिल हुए जिसमे भारतीय समस्याओ के बारे में चर्चा हुई, लेकिन वह किसी समझौते पर नहीं आ सके.

अल्पसंख्यक उपसमिति ने इस सम्मलेन को अपनी रिपोर्ट सौंपी, इस रिपोर्ट के लास्ट पैराग्राफ में यह इंगित किया ” अल्पसंख्यक समुदाय और डिप्रेस्ड क्लास की संयुक्त मांग है की वह किसी भी ऐसी भावी सरकार  को मान्यता नहीं देंगे जब तक उनकी मांगे यथोचित  ढंग से नहीं मानी जाएँगी”. 

मताधिकार समीती पर असहमति 

माननीय जोशी, माननीय जाधव, माननीय पॉल की तरह ही डॉ आंबेडकर ने भी मताधिकार समीती के प्रस्ताव पर असहमति जताई, इनके अनुसार यह एक अपर्याप्त प्रस्ताव था, उन्होंने तुरंत व्यस्क मताधिकार की वकालत की. अपने एक लिखीत भाषण में डॉ आंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देते हुए कहा ” अगर व्यस्क मताधिकार को एक सिमित मताधिकार के रूप में रखा गया, तब तत्कालीन लेबर पार्टी की सरकार, इसे उन लोगो की दया पर छोड़ देंगे, जिन्हे दलितों की कोई भी परवाह नहीं है”.  

दलितों की समस्या को विश्व पटल पर लाना 

दलितों की समस्या और उनके कल्याण के लिए डॉ आंबेडकर की सच्चाई और भक्ति ही थी, जिसके कारण  वह अपने समुदाय के लिए दिन रात काम कर रहे थे,  साक्षत्कार मांग  रहे थे, साक्षत्कार दे रहे थे, सम्बंधित सूचनाएं दे रहे थे. उनने कुछ ब्रिटिश सांसदों से भी अलग से मुलाकात की और अछूतो की समस्या से उन्हें अवगत कराया। दलितों की समस्या को लेकर उनने ब्रिटिश समाचार पत्रों, फॉरेन जॉर्नल में अपने बयान और लेख जारी करने का कोई भी मौका अपने हाथ से नहीं जाने दिया, उनने वहां के लोगो से कई मुलाकाते की, जिसमे उनने दलितों के ऊपर होने वाले उत्पीड़न और अत्याचार और असहनीय निरादर, और उनके कष्टों को  को पुरे लंदन में उजागर कर दिया। उन्होंने प्रेस में विश्व समुदाय के प्रबुद्ध वर्ग से भी कई निवेदन किये कि  भारत  के अछूतो को उनकी सहायता की जरुरत है, उन्होंने कहा यह विश्व के अधिकतर लोगो की पवित्र जिम्मेदारी बन जाती है की वह  भारत के अछूत समुदाय की मानवता के आधार पर सहायता करें।

ब्रिटिश सांसदों के संज्ञान में  दलितों की समस्या 

इसका परिणाम यह हुआ की पहली बार विश्व समुदाय को पता लगा,  भारत के अछूत समुदाय का भाग्य अमेरिका के नीग्रो समुदाय से भी ख़राब है. उनका यह निवेदन ब्रिटिश राजनेताओ और बाद में ब्रिटिश पार्लियामेंट संसद के सदस्यों जैसे कि  मिस एलेनोर, मिस एलन, नार्मन एंगल और कुछ अन्य के संज्ञान में पंहुचा, इन सदस्यों ने लार्ड सैंकी को अछूतो की समस्या और उन के मताधिकार के बारे में जाँच करने और उनकी इस अछूत आधारित अयोग्यता हटाने के लिए कहा, जिसमे लार्ड सेंकी ने विश्वास दिलाया की वह अपने प्रस्तावित भावी राजनितिक सेटअप में भारत के  सभी वर्गों और जनता का ध्यान रखेंगे। कुछ ब्रिटिश अख़बारों ने उनका विरोध भी किया क्योंकि उन्होंने शेष भारतीय  वर्गों की तरह कभी भी डोमिनियन स्टेट्स का विरोध नहीं किया था.

अखबारों की आलोचना 

डॉ आंबेडकर की प्रगाढ़  विद्वता, कढ़ी मेहनत और  विजेता बुद्धि चातुर्य ने सम्मलेन के अन्य डेलीगेट्स और ब्रिटिश राजनेताओं पर  एक अद्भुत  प्रभाव छोड़ा। उन्हें विभिन्न वर्गों में कही सम्मान मिला तो कहीं नफरत भी मिली। इंडियन डेली मेल ने आलोचना करते हुए लिखा  ” डॉ आंबेडकर कहते हैं की उनके पास यह देखने का शासकीय आदेश है कोई भी सरकार तब तक जिम्मेदार नहीं होगी जब तक वह उसी समय  सभी वर्गों की प्रतिनिधित्व सरकार  नहीं होगी, उनने यह भय भी दिखाया है की प्रस्तावित भारतीय समुदाय की सरकार में किसी एक वर्ग की अधिकता है उनके इस विरोध ने ग्रेट ब्रिटैन की लिबरल पार्टी और लेबर समुदाय में उनके प्रति दया और सहानुभूति भी दिखाई है”

इस धरती पर न्याय मौजूद है

इसी दौरान इंग्लैंड के हाउस ऑफ़ कॉमन में  भारत की समस्याओं के बारे में एक डिबेट आयोजित की गयी. श्री इसाक फुट ने इसी डिबेट के दौरान डिप्रेस्ड क्लास की अछूत अयोग्यता को उद्धत करते हुए एवं  अधिक दयापूर्ण दृष्टि रखते हुए कहा ” अगर आज हम उनकी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं करते तब उनका खून हमारे लिए  रोयेगा। भावी गवर्नर के लिए मेरी कोई सलाह होगी वह यही है ” इन लोगो पर विशेष ध्यान दिया जाये, आज वह बेशक कमजोर और असुरक्षित हैं ,लेकिन एक दिन वह ताकतवर भी होंगे क्योंकि इस धरती पर न्याय मौजूद है, ऐसा  कोई भी बैंक नहीं है, जो इन लोगों के संचित कष्टों को हमेशा के लिए सहेज सके, आज से बीस वर्ष बाद भारत की प्रगति का असली स्वाद तभी मिलेगा, तुमने इन लोगों के लिए क्या किया है ? . यह भाषण आंबेडकर द्वारा लंदन के किये हुए उनके भयरहित कार्यों के प्रति एक सुवक्ता की सच्ची श्रंद्धाजलि थी. इसके बाद गोलमेज सम्मलेन को १९ जनवरी १९३१ को स्थगित कर दिया गया.

नींव के गारे में रेत अधिक

लंदन छोड़ने से पहले डॉ आंबेडकर ने अपने सचिव शिवतारकर को एक चिठ्ठी लिखी, जिसमे उन्होंने सम्मलेन के बारे में अपने दो मत रखे ” इस सम्मलेन से यह पूर्ण विश्वास है कि भारत के सवराज की नींव जम चुकी है, इसलिए यह सम्मलेन एक सफल सम्मलेन है, वहीं दूसरी ओर इस नींव के गारे में रेत अधिक है, इसलिए यह नीव अधिक मजबूत नहीं है, जहाँ तक डिप्रेस्ड क्लास के अधिकारों की बात है, उनमे हमें शानदार सफलता मिली है”.

संघ सवरूप की अवधारणा और डिप्रेस्ड वर्ग की राजनितिक पहचान

बिना किसी महत्व पूर्ण फैसले के यह सम्मलेन स्थगित हो गया था, क्योंकि भारत का सबसे बड़ा राजनितिक दल कांग्रेस, सम्मलेन की कार्यवाही में मौजूद नहीं था . फिर भी इस सम्मलेन का मुख्य योगदान रहा वह था, भारतीय राजनीती में, भारत के संघ सवरूप की अवधारणा की क्रमिक उन्नति का होना, दूसरा ठोस परिणाम था, भारत की राजनितिक तस्वीर में डिप्रेस्ड वर्ग की एक मजबूत और आवश्यक दावेदारी, और इन सबसे अधिक डॉ आंबेडकर का अपनी विद्वता और कढ़ी मेहनत द्वारा डिप्रेस्ड वर्ग के असहनीय कष्टों को विश्व समुदाय के सामने लाना। यधपि सीटों को लेकर विभिन्न समुदायों में प्रस्तवित विधायिका में कोई सहमति नहीं बन पाई थी. चुनावी व्यवस्था में प्रथक निर्वाचन हो, या संयुक्त निर्वाचन में आरक्षित सीट हो, इस पर भी अल्पसंख्यकों में कोई सहमति नहीं हुई थी. फरवरी १९३१ में डॉ आंबेडकर ने लंदन छोड़ दिया था.

लोकतंत्रीय संविधान और व्यस्क मताधिकार पर गाँधी और उनके अनुयायी नेताओं से अपील

इंडिया आने पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रतिनिधि को डॉ आंबेडकर के साक्षातकर की मुख्य बातें ” गोलमेज सम्मलेन राजनितिक दृस्टि से सफल रहा है, यह एक बेकार बहाना होगा कि सम्मलेन के रेखांकित संविधान में कोई त्रुटि नहीं है, मेरे मत में इसमें आवश्यक तत्व नहीं हैं. इस वास्तिवकता का विरोध करते हुए भी, वह जो भारत की समस्याओ का एक शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं, उन्हें एक कदम आगे आना चाहिए, और इन संवैधनिक कमियों को दूर करना चाहिए। मुझे सबसे अधिक निराशा यह देखकर हुई, सम्मलेन के रेखांकित संविधान में सिमित मताधिकार का आधार होना एक अलोकतांत्रिक वयवस्था है. इस पर बड़ी दया आती है कि, श्री गाँधी भी सम्मलेन की रिपोर्ट के आधार पर अपने बयान सम्मलेन की तुछ और छड़िंक बातों पर दे रहे हैं, इस संविधान के महत्वपूर्ण तत्व (व्यसक मताधिकार ) पर अपना पूरा नजरिया खो चुके हैं. हममें से जो डिप्रेस्ड क्लास (डॉ आंबेडकर एंड श्रीनिवासन )और लेबर क्लास ( श्री जोशी ) को प्रतिनिधित्व कर रहे थे, वयस्क मताधिकार पर सम्मलेन में ताकत से लड़े, फिर भी हम हार गए, क्योंकि अन्य सभी वर्ग नेहरू रिपोर्ट पर हस्ताक्षरी होने के कारण व्यस्क मताधिकार पर असहमत थे. मैं स्वय भी उनमें से एक हूँ जो इस उम्मीद पर हैं, कि कब श्री गाँधीजी संवैधानिक घटक होने के नाते, समझौते की शर्तो को रखेंगे, जो पूरी तरह से लोकतान्त्रिक हों।

भारत के आम आदमी और आम महिला को सुरक्षित राजनितिक शक्ति देने के हमारे प्रयास में, यदि श्री गाँधी भी आयंगे, तो मुझे यह कहने में हिचकिचाहट नहीं होगी, कि उनका यह कार्य उनकी सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ जुडी हुई अनुयायी जनता के विश्वास के साथ, बड़ा विश्वाश्घात होगा. इस सत्य को ध्यान में रखते हुए, श्री गाँधी जी का राजनितिक दर्शन बहुतो को नहीं पता है, यह जनता के बड़े समूह के उन नेताओ को जो स्वँय को श्री गाँधीजी का अनुयायी बताते हैं, उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में आगे सहयोग करने से पहले व्यसक मताधिकार के बारे में श्री गाँधी जी के मत की घोषणा करनी चाहिए।

बेशक सबसे बड़ी समस्या अल्पसंख्यकों की है, इसे हल किये बिना, भारत की सवतंत्रता नहीं हो सकती, दुर्भाग्यवश यह सम्मलेन इसे हल नहीं कर पाया, राजनितिक सुधारो को हासिल करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाने केलिए इसका हल होना ही चाहिए। डिप्रेस्ड क्लास के सवाल पर जिसके वह और श्रीनिवासन प्रतिनिधि थे उनने कहा ” मुझे ख़ुशी है की उनका भारत के भावी संविधान में स्थान सुरक्षित है और उनकी अयोग्यताये (अस्पर्श्यता आधारित)आगे अस्तित्व में नहीं रहेंगी”।

दूसरे गोलमेज सम्मलेन के प्रतिनिधिओ के नाम की घोषणा 

जुलाई १९३१ के तीसरे सप्ताह में दूसरे गोलमेज सम्मलेन के प्रतिनिधिओ के नाम की घोषणा हो गयी. डॉ अम्बेडकर, शास्त्री, स्पर्ती, जयकर, सीतलवाड़, मालवीया, सरोजिनी नायडू, श्रीगाँधी, मिर्ज़ा इस्माइल, जिन्नाह, रामास्वामी मुदलीकर के साथ अन्यों को भी आमंत्रित किया गया. प्रथम गोलमेज सम्मलेन में डॉ अम्बेडकर को जानबूझकर संघीय ढांचा समिति से बाहर  रखा था. उनके देशभक्त मन एवं आम आदमी और लोकतंत्र के प्रति उनकी निडर वकालत होने पर भी अंग्रेजों से यह अपराध हो गया था. लेकिन इस बार वह संघीय ढांचा समिति में चुने गए थे. यह समिति आभाषी रूप से नए संविधान के मसौदे से जुडी हुई थी.

उनके इस चुनाव पर देश के कोनों से और इंग्लैंड से भी बधाइयों का ताँता लग गया. उनका विरोध करने वाले अख़बार भी उनकी देशभक्ति, लोकतंत्र के प्रति  प्यार और एक आम आदमी के कल्याण के लिए उनकी चिंता को देखकर उनकी प्रशंशा करने लगे.

कोलाबा समाचार  

डॉ अंबेडकर के साइमन कमीशन के साथ की उनकी सेवाओं और प्रथम गोलमेज सम्मलेन में उनकी सेवाओं  पर अपनी कृत्यज्ञता जाहिर की. इस अख़बार ने कहा कि  दूसरे गोलमेज सम्मलेन में भी डॉ अंबेडकर एक सच्चे देशभक्त बनकर, इस देश के बंधनो को तोड़ेंगे और  दुसरो की मदद  करेंगे। 

इंडियन डेली मेल  तिथि २१ जुलाई १९३१ 

इस अख़बार ने कहा ” मैं डॉ अंबेडकर  को उनके गोलमेज सम्मलेन के न्योते पर बधाई देता हूँ, उन्होंने प्रथम गोलमेज सम्मलेन में एक शानदार प्रभाव छोड़ा है, उनकी इस सम्मलेन में दिया गया भाषण, इस पुरे सम्मलेन का एक उत्कृष्ट भाषण था. सैंकी  रिपोर्ट पर उनके यह शब्द” वह जो मंजूर नहीं करता लेकिन आपत्ति भी नहीं करता” उनने यह बताया कि  उनके पास यह शासकीय आदेश है कि कोई भी जिम्मेदार सरकार तब तक स्थापित नहीं हो सकती, जब तक वह उसी समय एक वास्तविक प्रतिनिधित्व वाली न हो, उनने इस डर के खिलाफ आवाज भी उठाई कि प्रस्तावित सरकार में किसी एक वर्ग का अधिक प्रतिनिधित्व है, उनके इस  प्रतिरोध को लिबरल पार्टी और ब्रिटैन में दया और सहानुभूति भी मिली है, दूसरी तरफ डॉ अंबेडकर, अल्पसंख्यक  वाला  पुराना  फैशन का खेल नहीं खेलते, वह एक देशभक्त हैं, वह एक सुरक्षित सरकार में पूरा विश्वास रखते हैं, आगे की चर्चाओं में, ब्रिटैन की फ़ेडरल असेंबली और सेनेट की फ्रैंचाइज़ी, में  यह डिप्रेस्ड वर्ग का नेता एक महत्वपूर्ण भूमिका में होगा।

संडे क्रॉनिकल डेट २६ जुलाई १९३१ 

 ATT  हस्ताक्षर युक्त लेख में डॉ आंबेडकर की सच्चे देशभक्त की सेवाओं के बारे में कहा” मेरे मित्र डॉ आंबेडकर संघीय ढांचा समिति में चयनित अन्य सदस्यों में से एक हैं, लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मलेन में उनमे एक अच्छा सौदागर देखा, दिल से वह एक सच्चे देशभकत हैं, उन्होंने कट्टर विजेता अंग्रेजो से एक सीधी लड़ाई लड़ी है, जो उनकी तरफ से ही उन  पर विजय हासिल करना चाहते हैं, उसी समय उनकी चिंता अपने  सहयोगी श्री श्रीनिवासन को राष्ट्रीय भक्त  रखने में लगी रहती है. चेस्टरफील्ड बाग़ में कई बार उनने सर तेज बहादुर सप्रू के बारे में आलोचना की, वह रजवाड़ों को भारत संघ की विलय  की प्रक्रिया में अधिक छूट दे रहे हैं, लेकिन उनने यह भी स्वीकार किया, श्री तेज को इस बहुत मुश्किल घडी को युक्ति से पार  करना होगा।

केसरी और ने दूसरे अन्य अख़बार 

केसरी और ने दूसरे अख़बारों ने डॉ आंबेडकर और श्री एन एम जोशी के चयन पर संतुष्टि दिखाई, सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी पत्रिका ने अवलोकन करते हुए कहा ” वे समाज के विनीत तबके से आते हैं, एक मजदुर वर्ग का प्रतिनिधि है और दूसरा डिप्रेस्ड क्लास का, वे इस देश को समझते हैं अवश्य  ही “बड़ी राजनीती” करने वालों के लिए वह अजनबी हैं, उनका साधारण भरोसा उनके साधारण समाज पर है, जिसका वह समर्थन करते हैं, वे अपने चारो ओर बिखरी हुई संभ्रांत जनो की बेहतरीन मुस्कान से तनिक भी विचलित नहीं होंगे, और अपने सीखे हुए पवित्र सिद्धांतो से नहीं हटेंगे, इससे थोड़ा ही पहले फ्री प्रेस जर्नल दैनिक राष्ट्रिय अख़बार के लंदन प्रतिनधि ने एक जवाब में डॉ आंबेडकर की प्रथम गोलमेज सम्मलेन में सेवाओं की तारीफ कर चुके थे, उनने कहा “डॉ आंबेडकर एक निडर सवतंत्र और देश भक्त मन वाले नेता हैं, उनकी यह निडरता हिन्दू के साथ साथ मुस्लिम के लिए भी असहनीय हैं,  उनका सम्मलेन के शुरू में दिया गया  भाषण पुरे सम्मेलन की कार्यवाही में सबसे उत्कृष्ट था”. please see this speech by Dr ambedkar : https://padhailelo.com/pratham-golmage-sammelan-me-dr-amdedkar/

डॉ आंबेडकर की स्पीच और राइटिंग (मुख्य स्त्रोत ) के आधार पर प्रथम गोलमेज  सम्मलेन के समापन और उसके प्रभाव तथा भारत और लंदन में, अखबारों और पत्रिकाओं की मुख्य बातों को रखा गया है. आशा है पाठको का ज्ञान वर्धन होगा।

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