पर्यावरण
पर्यावरण के बारे में हम अक्सर बातें करतें हैं, आखिर है क्या? आओ थोडा भूगोल की नजर से समझने की कोशिश करे:
पर्यावरण यानि एन्वॉयरमेंट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द एन्वायरोननेर से हुई है जिसका अर्थ है पड़ोस।
पर्यावरण हमारे जीवन का मूल आधार है, यह हमें साँस लेने के लिए हवा, पीने के लिए जल, खाने के लिए भोजन एवं रहने के लिए भूमि प्रदान करता है, मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण में कैसे परिवर्तन करता है?
कार का धुआँ वायु को प्रदूषित करता है, पानी को पात्र में एकत्रित किया जाता है, भोजन को बर्तनो में परोसा जाता है और भूमि पर कारखानों का निर्माण होता है, मानव कार, मिल कारखानों, भवनों, सड़को, पुलों, खेतों, जल बाँधो, का निर्माण करता है, इस प्रकार मानव प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन करता है (और किस तरह प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित किया जाता है?)
किसी भी जीवित प्राणी के चारो ओर पाए जाने वाले लोग, स्थान, वस्तुए एवं प्रकृति को पर्यावरण कहते हैं, यह प्रकृति एवं मानव निर्मित परिघटनाओं का मिश्रण है, प्राकृतिक पर्यावरण में जीवीय (पादप एवं जीव जंतु) एवं अजीवीय (स्थल) दोनों परिस्थितिया सम्मिलित हैं, जबकि मानवीय पर्यावरण में मानव की परस्पर क्रियाएं, उनकी गतिविधियां एवं उनके द्वार बनायीं गयी रचनाये सम्मिलित हैं.
पर्यावरण के घटक
प्राकृतिक ; जलमंडल , स्थल मंडल, वायुमंडल, जैवमंडल.
मानव ; एक व्यक्ति, परिवार, समुदाय, धर्म, शैक्षिक, आर्थिक और राजनितिक स्थिति .
मानव निर्मित ; इमारतें, घूमने के पार्क, पुल, सड़क, स्मारकऔर उद्योग.
प्राकृतिक पर्यावरण
भूमि,जल,वायु, पेड़पौधे, एवं जीव-जंतु मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण बनाते हैं, जिसमे स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल एवं जैव मंडल शामिल होते हैं जिनके बारे में पहले भी जिक्र किया गया था, कृपया निम्न ब्लॉग देखे.
https://padhailelo.com/prithvi-aur-uske-primandal/
पारितंत्र क्या है?
सभी पेड़ पौधे, जिव जंतु एवं मानव अपने आस पास के पर्यावरण पर आश्रित होते हैं, प्रायः वह एक दूसरे पर भी आश्रित हैं, जीवधारियों का आपसी एवं अपने आस पास के पर्यावरण के बीच का सम्बन्ध ही पारितंत्र का निर्माण करता है, अधिक वर्षा वाले वन, घासस्थल, रेगिस्तान, पर्वत, झील, नदी महासागर एवं छोटे से ताल का भी एक पारितंत्र हो सकता है.
मानवीय पर्यावरण
मानव अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया करता है और उसमे अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करता है, प्रारम्भिक मानव ने स्वयं को प्रकृति के अनूरुप बना लिया था, उनका जीवन सरल था एवं आस पास की पृकृति से उसकी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थीं, समय के साथ कई प्रकार की आवश्यकताएं बढ़ीं, मानव ने पर्यावरण के उपयोग और उसमे परिवर्तन करने के कई तरीके सीख लिए, उसने फसल उगाना, पशु पालना, एवं स्थायी जीवन जीना सीख लिया, पहिये का अविष्कार हुआ, आवश्यकता से अधिक अन्न उपजाया गया, वस्तु-विनिमय पद्धति का विकास हुआ, व्यापार आरम्भ हुआ एवं वाणिज्य का विकास हुआ, औधोगिक क्रांति से बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो गया, आवागमन तीर्व हो गया, सूचना क्रांति से पुरे विश्व में संचार, सहज और द्रुत हो गया. (इन सब क्रियाकलापों से मानवीय जीवन कुछ सरल हो पाया या और पेचीदा हो गया?)
कोई बुजुर्ग आदमी मिले तो उससे पूछना चाहिए उसके आस -पास के पेड़ कैसे थे, उस समय घर के अंदर खेले जाने वाले खेल, उनका पसंदीदा फल, गर्मी और सर्दी वह कैसे बिताते थे, वह कौन -२ से पक्षी देखते थे, उनके आस पास कितने खेल के मैदान थे, सड़को पर कितना ट्रैफिक देखते थे, और सबसे अहम् बात कितनी बार किसी बीमारी के कारण, घर से बाहर डाक्टर की दवाई लेने जाते थे, शायद मानव द्वारा पर्यावरण का परिवर्तन कुछ समझ में आ जाये.
प्राकृतिक एवं मानवीय पर्यावरण के बीच सही संतुलन होना आवश्यक है, मानव को पर्यावरण के साथ समरसता से रहने एवं उसका उपयोग सीखना चाहिए, यही सब जागरूकता लाने के लिए प्रत्येक वर्ष ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है.
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