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प्रथम गोलमेज सम्मलेन में डॉ बी आर अंबेडकर

प्रथम गोलमेज सम्मलेन में डॉ बी आर अंबेडकर 

प्रथम गोलमेज सम्मलेन के बारे में हमने कुछ चर्चा की थी,  डॉ बी आर अंबेडकर  की स्पीच एंड राइटिंग के आधार पर आगे चर्चा करते  हैं, सभी वर्गों के प्रतिनिधि भारत के तनावपूर्ण माहौल के बाद भी यहाँ आये थे, मुख्य राजनीतिक  दल कांग्रेस इसमें उपस्थित नहीं थी, जहां भारत में तनाव भरा माहौल था वही इंग्लैंड में एक उत्सुकता वाला माहौल था, वहां की जनता हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में इकठी हो रही थी, किस प्रकार भारत की समस्याओ के बारे में चर्चा होने जा रही है. 

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ब्रिटिश सम्राट का उद्घाटित उद्बोधन 

१२ नवम्बर १९३० को पर्दा उठता है, ब्रिटिश सम्राट इस सम्मलेन का उद्घाटन करते हैं और कहते हैं ” भारत और इंग्लैंड के प्रतिनिधि इतिहास में कई बार मिल चुके हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब भारत के सभी वर्गों के प्रतिनिधि के नेता  और इंग्लैंड के राजनेता  एक जगह एक ही टेबल पर मिल रहे हैं, जो भारत सरकार के भविष्य और भावी संविधान को लेकर चर्चा करेंगे जिसमे ब्रिटिश पार्लियामेंट के निर्देश में भारत की राजनितिक समस्याओ को हल किया जायेगा, जो यहाँ मौजूद हैं, आप में से कई लोगों का नाम इतिहास में दर्ज होगा” ब्रिटिश सम्राट का यह कथन एक ऐतिहासिक सिद्ध हुआ है तभी भारत के इतिहास में इस सम्मलेन की चर्चा की जाती है. 

रामसे मैक्डोनाल्ड सम्मलेन के अध्यक्ष 

उनके उद्घाटन सम्बोधन के बाद रामसे मैक्डोनाल्ड को सर्व सम्मति से इस सम्मलेन का अध्यक्ष बनाया जाता है, वह एक लेबर पार्टी के नेता और   दी  गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया  पुस्तक के लेखक भी थे, उनने कहा ” ब्रिटैन भारत की समस्याओं के हल के लिए प्रतिबद्ध है, यहाँ हम एक नए इतिहास को जन्म देने जा रहे हैं.

राय मशविरा करने वाली सभा 

यहां यह उल्लेखनीय है की गोलमेज सम्मलन कोई वोट के आधार पर चुनी हुई संवैधानिक सभा नहीं थी, जो भारत का संविधान बनाती, भारत का भावी संविधान कैसा हो इस पर चर्चा करने के लिए ब्रितानी संसद, भारतीय रजवाड़े, विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि की आपसी राय और विभिन्न मुद्दों पर सहमति के लिए बनाई गयी एक सभा थी.  

सेंट जेम्स पैलेस नया सभा स्थल 

इसके बाद सम्मलेन का स्थल बदल दिया गया इसे सेंट जेम्स पैलेस ले जाया गया। १७ से २१ नवम्बर तक विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई जिसमे सप्रू, जयकर, मुंजे, जिन्न्हा, महाराजा बीकनेर और डॉ अमबेडकर ने बहुत ही प्रभावशाली भाषण दिया। 

भारतीय प्रतिनिधियो की मुख्य मांगे 

सर तेज बहादुर सप्रू ने कहा ” भारत अपनी स्वायत्ता के लिए प्रतिबद्ध है जिस प्रकार तीन अन्य कोम्मोंवेल्थ के राष्ट्रों को अपनी स्वायत्ता मिली है भारत को भी मिलनी चाहिए, और यह स्वायत्त शाशन केवल हुकूमत के प्रति  ही जिम्मेदार न हो बल्कि भारत की जनता की समस्याओ के प्रति भी हो 

महाराजा बीकानेर जो रजवाड़ो का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उन ने कहा ” रजवाड़े अपनी इच्छा से भारत के ब्रटिश फेडरल संघ में होने केलिए तैयार हैं, यह सभी के लिए एक चौकाने वाली उद्घोषणा थी. महाराज ऑफ़ पटिआला और भोपाल के नवाब ने भी सहमति जताई 

मुस्लिम सदस्यों ने भी भारत के ब्रटिश फेडरल संघ की सहमति दी ” हम आल इंडिया फेडरेशन के लिए तैयार हैं लेकिन हमारी शर्त है नार्थ वेस्ट प्रान्त को भी भारत के अन्य प्रांतो की तरह दर्जा मिले और सिंद प्रान्त को बम्बई प्रान्त से अलग किया जाये 

जयकर ने कहा ” अगर आप हमें डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देते हैं तो मैं कह सकता हूँ भारत में उठ रही आज़ादी की मांग अपने आप समाप्त हो जाएगी और इस मांग के बिना  हम  भारत में खाली हाथ लौटे तब आज़ादी की मांग और त्रीव होगी “

डॉ मुंजे (हिन्दू महासभा ) ने कहा ” ब्रिटिश गवर्नमेंट ने इंडियन शिपिंग, कॉटन और दूसरे उधोगों को तबाह कर दिया है, अगर ब्रिटिश समझते हैं की वह सविनय अवज्ञा आंदोलन को बल के जोर पर दबा देंगे तो यह समय अब निकल चूका है”

एन एम् जोशी ने मजदूरों के लिए और अधिकार मांगे, सर मिर्जा ने भावी संविधान को फ़ेडरल आधार पर माँगा, सर सी पी रामस्वामी ने भावी संविधान को जीने योग्य बनाने की वकालत की।  

नैतिक और मानसिक बल से ज्ञान के अर्श पर पहुँचने वाला 

दो या तीन वक्ताओं के बाद एक साहसी, सौम्य और आत्म विश्वाश से भरा हुआ, ऑंखो में ज्ञान की अद्भुत चमक, और कसे  हुए होठ, जिसका यहाँ फर्श से अर्श तक उदय का सफर  केवल अपने मानसिक और नैतिकता के बल पर हुआ था, वह यहाँ बड़े बड़े राजनयिकों, राजा महाराजा, क़ानूनी विद्वान, और महान बुद्धिमानो के बीच बैठा  था. सभी की नजर  खासकर ब्रिटैन के राजनयिकों की उस  ३९ वर्षीय विद्वान और पहली बार इतने बड़े मंच पर एक अछूत वर्ग के नेता की ओर  भी थी. वह उस सभा में सबसे अधिक विद्वान वयक्ति थे उनके पास दो विषयो में पीएचडी की डिग्री थी डॉक्टर ऑफ़ साइंस की उपाधि थी., गरीबों  में भी सर्वाधिक गरीब जिनका वह प्रतिनिधि बन कर गए थे उनके पास पहनने को पुरे वस्त्र नहीं थे, खाने को भरपेट भोजन नहीं था, शिकायत के लिए मुँह में जबान नहीं थी, यहाँ पर बड़ोदा के महाराज भी थे, जिनने उनकी पढाई के लिए स्कॉरशिप की थी, यहाँ पर उनको स्कूल में पढ़ने वाले अध्यापक भी थे, सभी की निगाहे उस  वक्ता  की ओर  मुड़  गयी, वह जरा भी नहीं झिझके उन्हें पता था क्या कहना है और कैसे कहना है, इस सभा में मैक्डोनाल्ड और जोशी के आलावा  बाकि सभी खाते पीते उच्च घरों से ताल्लुक  रखते थे. 

अंग्रेजी राज में भी अछूतो की वीभत्स अवस्था

डॉ आंबेडकर ने बोलना शुरू किया ” मैं यहाँ पर भारत की कुल जनसँख्या  के पांचवे भाग की जनसंख्या की  आवाज़ बन कर आया  हूँ, यह संख्या इंग्लैंड और फ्रांस की कुल जनसँख्या के बराबर है, जिनको  जबरन अपनी ही भूमि पर भूदास या गुलाम बना दिया गया है, इसके बावजूद भी सभी अछूत एक ऐसी सरकार की कामना करते हैं जो जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा हो, यह सुनकर सभा में बैठे सभी सदस्य चौंक गए. उनने कहा भारत में अंग्रेजो का शाशन अछूतो के लिए भी कोई उत्साहवर्धक नहीं रहा है, उनने अपने शब्दों को उचित ठहराते हुए आँखों में अलोकिक चमक और  तेज आवाज  में कहा” अगर हम अछूतो की आज की तुलना अपने अतीत से करें तो हम आगे जाने की बजाय उसी वीभत्स अवस्था में जी रहे हैं, जो अंग्रेजी राज से पहले थी, क्या ब्रिटिश शाशन ने इन वीभत्स अवस्थाओं से अछूतो को छुटकारा दिलाया है, पहले भी हमें गांव के कुए से पानी भरने का अधिकार नहीं था,  मंदिर में जाने का अधिकार नहीं था, पुलिस में भर्ती होने का अधिकार नहीं था, मिलट्री में जाने का अधिकार नहीं था और आज भी वही स्थिति है, हमारे इन प्रश्नो का अभी तक कोई सटीक जवाब अंग्रेजो के १५० साल के शाशन में नहीं मिल पाया है, हम आज भी वैसे ही हैं, 

पूँजीपतिओ की क्लास  

इस तरह की सरकार  के होने से किसी का भी क्या अच्छा  होगा सभा में बैठे हुए सदस्यों से पूछा, यह सुनकर ब्रिटिश सदस्य एक दूसरे को देखने लगे और भारतीय प्रतिनिधिओ में भी हलचल होने लगी. उनने आगे कहा इस सरकार में पूंजीपति मजदूरों को उचित मज़दूरी देने से बचते हैं, उन्हें ख़राब स्थितिओ में काम करवाते हैं, उनकी दशा कई वर्षो से दयनीय बनी  हुई है, उसे सुधारने से पूंजीपति इंकार करते रहे हैं. क़ानूनी अधिकार इन कठिन अवस्थाओं में परिवर्तनं ला सकते हैं, ऐसे कानून अभी तक नहीं बने हैं, क्योंकि ब्रिटिश सरकार  को भी डर  है अगर हम गरीब मजदूरों के हित सुरक्षित करेंगे तो उन्हें पूँजीपतिओ के विद्रोह का भागी बनना पड़ेगा। हमें ऐसी सरकार चाहिए जिसमे एक आदमी के हाथ में भी शक्ति हो, यह जानते हुए हुए भी कि ऐसा करने से आज्ञाकारिता समाप्त हो जाएगी और विद्रोह शुरू हो जायेगा, सरकार  को बिना डरे हुए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कार्य करते रहना चाहिए। सरकार को समानता और न्याय की प्राप्ति के लिए अविलंब कार्यवाही करनी चाहिए।

अछूतो की दशा के लिए राजनितिक शक्ति की मांग 

डॉ अंबडेकर ने भी डोमिनियन स्टेट्स की मांग की वकालत की साथ ही चिंता भी जताई की ऐसी सरकार में भी डिप्रेस्ड वर्ग  के हितो को तब तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता जब तक उनके लिए कानून में कोई सुरक्षित प्रावधान न हो , जब संविधान बने तब यह ध्यान रखना चाहिए की भारत की सामाजिक वयवस्था जो अमिर और गरीब वर्ग के साथ ही संकीर्ण जाति व्यवस्था में बंटी है, जो जिस खाने में पैदा होता है उसी में मर जाता है, विशेष संकीर्ण जाति व्यवस्था के कारण यहाँ कोई नहीं चाहेगा की वंचितों को कोई अधिकार मिले, हम समझते हैं कि कोई भी हमारे दुखो को दूर करने आगे नहीं आएगा, भविष्य में कोई चमत्कार होगा  यह भी हमें नहीं लगता, हमें अपने दुःख स्वयंम ही दूर करने होंगे , यह तब तक संभव नहीं है है जब तक हमारे हाथ में राजनितिक शक्ति नहीं होगी। 

बिना सहमति का संविधान नहीं चलेगा 

उनने एडमण्ड बुर्के के शब्दों को उद्धृत किया ” सरकार  में बल का प्रयोग लम्बे समय तक नहीं किया जा सकता”. उनने चेतावनी देते हुए ब्रिटिश प्रीमियर और सभा से कहा जो वहां दिमागी लड़ाई की सभा में बैठे थे. इस वक्त के भारत के माहौल को देखकर मुझे डर  है की कोई भी संविधान तब तक सही से काम नहीं करेगा जब तक उसमे देश के एक बड़े वर्ग के हितों को अनदेखा किया जायेगा, अब वह समय चला गया जब आप जिसे सही कहेंगे भारत भी उसे  सही मानेगा। लोगो की सहमति के बिना अगर कोई संविधान बन भी जाये तो वह कितने दिन काम करेगा, यह भी संदेह है।

क्रान्तिकारी कैंप के सदस्य या अछूतो के राजनेता 

निडर आवाज और बोल्ड आलोचना ने सभा पर एक शानदार प्रभाव छोड़ा. डॉ आंबेडकर के बेख़ौफ़ और स्पष्ट अंदाज ने सभी डेलिगेट पर एक गहरी छाप छोड़ी और उन्होंने डॉ अंबेडकर को उनकी इस शानदार स्पीच के लिए बधाई दी.ब्रिटिश प्रीमियर पर भी एक अच्छा  प्रभाव पड़ा. इंडियन डेली मेल अख़बार ने इसे इस सम्मलेन की एक उत्कृष्ट स्पीच बताया। इंग्लिश अख़बार और प्रेस ने इस डिप्रेस क्लास के  राजनेता  को अच्छी  कवरेज दी. उनके आलोचना करने वाले जैसे  की लार्ड सुदेनहम, ओ डायर एंड अदर जो अभी तक अपने अख़बार स्पेक्टेटर में नागपुर में दिए गए भाषण पर  डॉ आंबेडकर की आलोचना  कर चुके थे, वह भी अब समझ गए थे और फुसफुसाने लगे थे कि डॉ आंबेडकर एक प्रखर क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी नेता हैं , कुछ तो यह भी पूछ रहे थे क्या डॉ आंबेडकर किसी क्रान्तिकारी कैंप के सदस्य तो नहीं हैं,  यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की १९१७ में जब डॉ अंबेडकर  अमेरिका से लंदन आये थे, उनकी ब्रिटैन पुलिस ने गुप्त तरीके से तलाशी ली थी. 

ख़ुशी के आंसू 

इन सबसे अलग एक व्यक्ति जो उस सभा में बैठा था, वह डॉ आंबेडकर के उस भाषण से अत्यधिक खुश था. वह वहां से वापस अपने किंगले स्थित आवास पर पहुंचा, वह प्रशंशा, सराहना और आत्मसंतुष्टि से पूरा भर गया था, इसी वजह से उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक रहे थे, उसने अपनी पत्नी से कहा हमारा पैसा और प्रयास आज के दिन के सभा के उस निडर वक्ता ने वसूल करा दिया है. यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि और सफलता है. डॉ आंबेडकर का यह  प्रशंशक और कोई नहीं बल्कि वही बड़ोदा के महाराज थे जिनने डॉ आंबेडकर को अमेरिका  में पढ़ने के लिए छात्रवर्ती प्रदान की थी. 

बूझो तो जाने 

इस प्रकार हमने डॉ अंबडेकर की इस ऐतिहासिक स्पीच की मुख्य बातों को समझने की कोशिश की है, क्या डॉ अम्बेडकर केवल दलितों के राजनेता की तरह बोल रहे थे,  एक क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी की तरह बोल रहे थे, या सांविधानिक सुझावों के बारे में बोल रहे थे,  इसका निर्णय पाठक स्वयं करें। यहाँ डॉ आंबेडकर के दिए हुए संविधानिक सुझावों में से हमारे आज के संविधान में कुछ है, संविधानिक दृष्टि से पता लगाए।

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