पृथ्वी और उसके मुख्य परिमंडल
पृथ्वी और उसके मुख्य परिमंडल
पृथ्वी एक मात्र ऐसा गृह है जहाँ जीवन है, मानव यहाँ जीवित रह सकता है, यहाँ जीवन के लिए जरुरी तत्व मौजूद हैं.
पृथ्वी की सतह ऐसी है जिसमे पर्यावरन के ३ महत्वपूर्ण घटक भूमि, जल तथा हवा मौजूद है और यह एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं, पृथ्वी का ठोस भाग जिस पर हम रहते हैं उसे भूमण्डल कहते हैं, गैस की परतें जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरती हैं उसे वायुमंडल कहते हैं, जहां ऑक्सीजन,नाइट्रोज़न, कार्बन डाइऑक्साइड एवं दूसरी गैसें मिलती हैं, पृथ्वी के बहुत बड़े भाग पर जल पाया जाता है जिसे जलमंडल कहते हैं. जलमंडल में जल अपने तीनो रूप में मौजूद है जैसे बर्फ, जल एवं जलवाष्प (बादल). जीवमंडल एक सिमित क्षेत्र है, जहाँ स्थल, जल, एवं हवा एक साथ मिलते हैं, जहाँ सभी प्रकार के जीवन पाए जाते हैं
भूमण्डल
पृथ्वी के ठोस भाग को भूमण्डल कहते है यह भूपर्पटी की चट्टानों तथा मिटटी की पतली परतो का बना होता है, जिसमे जीवो के लिए पोषक तत्व पाए जाते हैं, पृथ्वी की सतह को दो मुख्य भागो में बांटा जा सकता है, बड़े स्थलीय भू भगोको महाद्वीपों के नाम से जानते हैं तथा बड़े जलाशयों को महासागरीय बेसिन के नाम से जाना जाता है, विश्व के सभी महासागर (समुद्र) एक दूसरे से जुड़े हैं, क्या सभी भूभाग भी एक दूसरे से जुड़े हैं (कृपया वर्ल्ड मैप देखें ).
समुद्री जल का तल सभी जगह बराबर होता ह, स्थल की ऊंचाई को समुद्र तल से मापा जाता है, जिसे शुन्य माना जाता है, विश्व का सबसे ऊँचा शिखर माउंट एवरेस्ट समुद्र तल से 8848 मीटर ऊँचा है। विश्व का सबसे गहरा भाग प्रशांत महासागर का मेरयाना गर्त है, जिसकी गहराई 11042 मीटर है, आश्चर्य जनक किन्तु सत्य, यहाँ समुद्र की गहराई पृथ्वी के सबसे ऊँचे भाग से भी गहरी है
महाद्वीप
पृथ्वी पर सात महाद्वीप हैं. यह विस्तृत जलराशि के द्वारा एक दूसरे से अलग हैं. यह महाद्वीप हैं एशिया, यूरोप, अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका , ऑस्ट्रेलिआ तथा अंटार्कटिका( विश्व का बहुत बड़ा भू भाग उत्तरी गोलार्ध में है
एशिया
विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग में फैला है. यह महाद्वीप पूर्वी गोलार्ध में है, (हम किस रेखा से पता लगा सकते है की पृथ्वी का कौन सा भाग पूर्व में है या पश्चिम में?), कर्क रेखा इस महाद्वीप से होकर गुजरती है (कर्क रेखा अक्षांश है या देशांतर?), एशिया के पश्चिम में यूराल पर्वत है जो इसे यूरोप से अलग करता है, एशिया एवं यूरोप के संयुक्त भूभाग को युरेशिआ कहते हैं ( यूरोप +एशिया )
यूरोप
यूरोप एशिया से बहुत छोटा है, यह महाद्वीप एशिया के पश्चिम में स्थित है. आर्कटिक व्रत इससे होकर गुजरता है, यह तीन तरफ से जल से घिरा है
अफ्रीका
एशिया के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है विषुवत व्रत ज़ीरो डिग्री अक्षांश इस महाद्वीप के लगभग मध्य भाग में स्थित है. अफ्रीका का भी बहुत बड़ा भाग उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. यह एकमात्र ऐसा महाद्वीप है जिससे होकर कर्क विषुवत एवं मकर तीनो अक्षांश रेखाएं गुजरती हैं
सहारा का रेगिस्तान विश्व का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान है जो अफ्रीका में है, यह महाद्वीप चारो ओर समुद्रो और महासागरों से घिरा है, विश्व की सबसे लम्बी नदी नील अफ्रीका से होकर गुजरती है
उत्तर अमेरिका विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है, यह दिक्षीण अमेरिका के एक संकरे (छोटे) स्थल से जुड़ा है जिसे पनामा जलसंधि कहते हैं, यह महाद्वीप पूरी तरह से उत्तरी एवं पश्चिमी गोलार्ध में स्थित है,
दक्षिण अमेरिका
दक्षिण अमेरिका का अधिकांश भाग दक्षिण गोलार्ध में है इसके पूर्व में अटलांटिक तथा पश्चिम में प्रशांत महासागर है, इसमें विश्व की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखला एन्डिस इसके उत्तर से दक्षिण से फैली है, दक्षिण अमेरिका में विश्व की लम्बाई में दूसरी एवं जल संग्रहण क्षेत्र में सबसे बड़ी नदी अमेज़ॉन बहती है.
ऑस्ट्रेलिआ
ऑस्ट्रेलिआ विश्व का सबसे छोटा महाद्वीप है, जो की पूरी तरह से दक्षिणी गोलार्ध में है, चारो ओर समुद्रो महासागरों से घिरा होने के कारण इसे द्वीपीय महाद्वीप कहते हैं ( पृथ्वी का जो भाग चारो और पानी से घिरा हो उसे द्वीप कहते है जैसे अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह)
अंटार्कटिका
अंटार्कटिका एक बहुत बड़ा महाद्वीप है, जो की दक्षिणी गोलार्ध में में स्थित है, दक्षिण ध्रुव इस महाद्वीप के मध्य में स्थित है, यहाँ हमेश मोटी मोती बर्फ की परते बिछी रहती हैं, यहाँ किसी भी प्रकार का स्थायी मानव निवास नहीं है लेकिन कई देशों के शोध केंद्र यहाँ स्थित है, भारत के भी शोध संसथान यहाँ हैं इनके नाम है मैत्री तथा दक्षिण गंगोत्री
जलमंडल
पृथ्वी को नीला ग्रह कहते हैं. पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल तथा २९ प्रतिशत भाग स्थल है, जलमंडल में जल के सभी रूप शामिल हैं; महासागर, नदियाँ, झीलें, हिमनदियां, भूमिगत, जल, तथा वायुमंडल की जल वाष्प (बादल), पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का 97 प्रतिशत से अधिक भाग महासागरों में मिलता है वह इतना अधिक खारा होता की मानव के उपयोग में नहीं आ सकता, शेष जल का बहुत बड़ा भाग बर्फ की परतों एवं हिमनदियों तथा भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है. जल का बहुत कम अलवण जल के रूप में मिलता है जो मानव के इस्तेमाल में आता है यही कारण है की हम समुद्रों से घिरे होने पर भी पानी की कमी महसूस करते हैं.
महासागर
महासागर जलमंडल के मुख्य भाग हैं, यह आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, महासागरीय जल हमेशा गतिशील रहता है.महासागरीय जल की तीन मुख्य गतियाँ हैं तरंगे, ज्वारभाटा तथा महासागरीय धाराएं, महासागरों के बड़े से छोटे आकार के नाम इस प्रकार हैं, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर, दक्षिणी महासागर तथा आर्कटिक महासागर।
प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है, यह पृथ्वी के एक तिहाई भाग पर फैला है, पृथ्वी का सबसे गहरा भाग मेरियाना गर्त इसमें स्थित है प्रशांत महासागर लगभग वर्ताकार (गोले) के रूप में है. एशिया, ऑस्ट्रेलिआ, उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका इसके चारो और स्थित हैं.
अटलांटिक महासागर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महासागर है, यह अंग्रेजी भाषा के एस (s) अक्षर के आकार का है, इसके पश्चिमी किनारे पर उत्तर एवं दक्षिणी अमेरिका हैं तथा पूर्वी किनारे पर यूरोप एवं अफ्रीका,अटलांटिक महासागर की तट रेखा बहुत अधिक दंतुरित है (डेटेड), यह अनियमित एवं दंतुरित तट,रेखा प्राकृतिक पोतश्रयों (पानी के जहाज या नौका ) एवं पत्तनों ( बंदरगाह जहाँ पानी के बड़े जहाज ठहरते हैं ) के लिए आदर्श स्थिति होती है, व्यापार की नजर से यह बहुत व्यस्त महासागर है.
हिंद महासागर को भारत के नाम पर रखा गया है, यह महासागर लगभग त्रिभुजाकार है, इसके उत्तर में एशिया पश्चिम में अफ्रीका तथा पूर्व में ऑस्ट्रेलिआ स्थित हैं.
दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप को चारो ओर से घेरता है, यह अंटार्कटिका महाद्वीप से उत्तर की ओर ६० डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक फैला हुआ है
आर्कटिक महासागर उत्तर ध्रुव व्रत में स्थित है तथा यह उत्तर ध्रुव को चारों ओर से घेरता है, यह प्रशांत महासागर से छीछले जल वाले एक संकरे भाग से जुड़ा है जिसे बेरिंग जलसंधि के नाम से जाना जाता है। यह उत्तर अमेरिका के उत्तरी तटों तथा युरेशिआ से घिरा है.
वायुमंडल
हमारी पृथ्वी चारों ओर से गैस की एक परत से घिरी हुई है , जिसे वायुमंडल कहा जाता है, वायु की यह पतली परत इस ग्रह का मत्वपूर्ण एवं अटूट भाग है. यह हमें ऐसी वायु प्रदान करती है जिससे हम लोग साँस लेते हैं, यह वायुमंडल हमें सूर्य की हैंकिकारक किरणों से बचता है.
वायुमण्डल १६०० किमी की ऊंचाई तक फैला है, वायुमंडल को उसके घटकों, तापमान तथा अन्य के आधार पर पांच परतों में बांटा जाता है, वायुमंडल को उसके घटकों, तापमान, तथा अन्य के आधार पर पांच परतों में बांटा जाता है, इनको प्रथ्वी की सतह से शुरू करते हक्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल आयनमंडल,तथा बहिर्मंडल कहा जाता है, वायुमंडल मुख्यतः ऑक्सीजन एवं नाईट्रोज़नका बना है जो की साफ़ तथा शुष्क हवा का 99 प्रतिशत भाग है, आयतन के अनुसार नाइट्रोज़न ७८ प्रतिशत तथा दूसरी गैंसे जैसे कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि की मात्रा 1 प्रतिशत है, ऑक्सीजन साँस लेने के लिए आवश्यक है, कार्बन डाइऑक्साइड बहुत कम मात्रा में है पर वह पृथ्वी को छोड़ी गयी ऊष्मा को अवशोषित करती है, जिससे पृथ्वी गरम रहती है, यह पौधों की वर्द्धि के लिए भी आवश्यक है.
ऊंचाई के साथ पृथ्वी के घनत्व में भिन्नता आती है. यह समुद्र तल पर सबसे अधिक होता है, ऊपर की ओर जाने पर यह घटता जाता है, इसलिए ऊँचे पहाड़ों पर जाने पर साँस लेने में कठिनाई होती है, इसलिए पर्वतारोही अपने पास ऑक्सीजन सिलंडर रखते हैं, ऊपर जाने पर तापमान भी घट जाता है, इसलिए गर्मियों में सैलानी पहाड़ो पर घूमना पसंद करते हैं, वायुमंडल पृथ्वी पर दवाब डालता है, यह अलग स्थान पर अलग-२ हो सकता है, कहीं पर कम कहीं पर अधिक, वायु उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बहती है, गतिशील वायु को पवन कहते हैं.
जीवमंडल
जीवमंडल स्थल, जल, तथा हवा के बीच का एक सिमित भाग है जहाँ जीवन मौजूद है, यहाँ जीवों की बहुत सी प्रजातियां पाई जाती हैं जो की सूक्ष्म जीवों तथा बेक्टरीआ से लेकर बड़े स्तनधारियों के आकार में पाई जाती हैं, मनुष्य सहित सभी प्राणीजीव, जीवित रहने के लिए एक दूसरे से जुड़े हैं.
जीवमंडल को मुख्यतः दो भागों जंतु जगत (मानव भी एक जंतु है) एवं पादप (पेड़ पौधे) जगत में बांटा जाता है, पृथ्वी के यह तीनो परिमंडल आपस में पारस्परिक क्रिया करते हैं तथा एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं, पेड़ो वनो, पर्वतो, पहाड़ों, नदियों, को अत्यधिक असीमित लालच में आकर समाप्त करने या प्रगति के नाम पर उधोगो, तापीय विद्युत् संयत्रो एवं गाड़िओ के निकलने वाले वायुप्रदूषण, जलप्रदूषण, धवनिप्रदूषण, स्थल प्रदूषण के कारण कितने ही जीवो की परजातियाँ विलुप्त होने के कग़ार पर है, (मानव का जीवट भी कमजोर होता जा रहा है तभी उसे जीवन जीने के लिए आये दिन डाक्टरों के नुस्खों की जरुरत रहती है) कुछ लालची मानवों की अंधाधुन्द व्यापारिक फायदे के लिए पृथ्वी की अनमोल धरोहर इन मुख्य परिमण्डलो से असीमित खिलवाड़ करने का खामियाज़ा पुरे संसार तथा दूसरे बेजुबान जीवो को भी उठाना पड़ रहा है जिससे मानव की आने वाली नस्लों के लिए भी जाने अनजाने में खतरा बढ़ता जा रहा है, इसलिए भूमण्डल, वायुमंडल तथा जल मंडल के बीच के प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के सिमित संसाधनों के उपयोग की आवश्यकता है.
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