पृथ्वी की गतियाँ
हमारी पृथ्वी दो प्रकार से घूमती है
१ अपने अक्ष पर
२ सूर्य के चारो ओर
अपने अक्ष पर पृथ्वी के घूमने को घूर्णन कहते है, सूर्य के चारो और घूमने को परिक्रमण कहते है।
पीछे हमने जाना की पृथिवी का अक्ष एक काल्पनिक रेखा है, जो इसके कक्षीय सतह से साढ़े ६६ डिग्री का कोण बनाती है, वह समतल जो कक्ष के द्वारा बनाया जाता है, उसे कक्षीय समतल कहते हैं, पृथ्वी सूर्य से प्रकाश लेती है पृथ्वी का आकर गोले के सामान है, इसलिए एक समय में सिर्फ इसके आधे भाग पर ही सूर्य की रौशनी पड़ती है, आधा भाग जिस पर रौशनी नहीं पड़ती वह अँधेरे में रहता है.
पृथिवी अपने कक्ष में २४ घंटे में पूरा घूम जाती है, इस दौरान पृथ्वी का जो भाग ग्लोब पर सूर्य के सामने आता है, वहां दिन होता है, जिस भाग पर सूर्य की रौशनी नहीं होती, वहां रात हो जाती है, वह व्रत जो दिन और रात को विभाजित करता है उसे प्रदीप्त व्रत कहते है, ध्यान देने वाली बात है की प्रदीप्त व्रत पृथ्वी के अक्ष के साथ नहीं मिलता है, क्योकि पृथ्वी साढ़े ६६ डिग्री अपने दाहिने झुकी हुई है जबकि प्रदीप्त व्रत सूर्य के प्रकाश के हिसाब से पृथिवी को बांटता है,पृथ्वी के घूर्णन काल के समय को एक पृथ्वी दिन कहा जाता है, यही पृथ्वी की दैनिक गति है.
कल्पना कीजिये अगर पृथ्वी घूर्णन न करे तो क्या होगा, जाहिर सी बात है एक प्रदीप्त व्रत वाला हिस्सा रौशनी में रहेगा और दूसरा अंधरे में, ऐसी स्थिति में जीवन संभव नहीं हो पायेगा।
पृथ्वी की दूसरी गति जो सूर्य के चारो और के कक्ष में होती है उसे परिक्रमण कहते हैं, क्योकि हमारी पृथ्वी सौरमंडल के अन्य ग्रहो के साथ सूर्य के चारो और अपनी कक्षा में लगातार घूम रही है, पृथ्वी एक वर्ष या ३६५ और ६ घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाती है, एक वर्ष ३६५ दिन का माना जाता है सुविधा के लिए ६ घंटे इसमें नहीं जोड़ते, चार वर्षो में वर्ष के बचे हुए ६ घंटे मिलकर एक दिन यानि २४ घंटे के बराबर हो जाते है,.
इसलिए हर चौथे वर्ष फरवरी मास में २८ की जगह २९ दिन होते हैं, उस वर्ष को जिसमे ३६५ की जगह ३६६ दिन होते है उसे लीप वर्ष कहते है, ध्यान देने वाली बात है की पृथ्वी अपने सारे परिक्रमण काल (मतलब एक वर्ष) में हमारी पृथ्वी एक ही दिशा यानि अपने दाहिने ओर साढ़े ६६ डिग्री झुकी रहती है.
एक वर्ष को गर्मी, सर्दी, वसंत, और शरद ऋतू में बांटा जाता है, ऋतुओँ में परिवर्तन सूर्य के चारो और पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है, २१ जून को पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की और झुका होता है, सूर्य की किरणे कर्क रेखा पर सीधी पढ़ती है, इसलिए इन क्षेत्रों में गर्मी अधिक पड़ती है, धुर्वीय क्षेत्रों में सूर्य की किरणे तिरछी पड़ती हैं इसलिए वहां गर्मी कम पड़ती है,.
इस दौरान ६ तक लगातार उत्तरी ध्रुव सूर्य की और झुका होता है तथा उत्तरी ध्रुव व्रत रेखा के बाद वाले भागो पर लगभग ६ महीने तक लगातार दिन रहता है, चूँकि उत्तरी गोलार्ध के बहुत बड़े भाग में सूर्य की रौशनी मिलती है इसलिए इन दिनों विषुवत व्रत के उत्तरी भाग में गर्मी का मौसम होता है २१ जून की इन क्षेत्रो में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है.
२२ दिसंबर को दक्षिण ध्रुव के सूर्य की ओर झुके होने के कारण मकर रेखा पर सूर्य की किरणे सीधी पड़ती हैं, (जो अभी स्थिति २१ जून को उत्तरी गोलार्ध में थी वही स्थिति अब दक्षिणी गोरार्द्ध में है) इस वक्त दक्षिण गोलार्ध के बहुत भाग में सूर्य की रौशनी पड़ती है, इसलिए यहाँ पर लम्बे दिन और छोटी राते होती है, यहाँ पर गर्मी का मौसम होता है.
२१ मार्च और २३ सितम्बर को सूर्य की किरणे विषुवत व्रत पर सीधी पड़ती हैं, इस अवस्था में कोई भी ध्रुव सूर्य की और नहीं झुका होता, इसलिए पूरी पृथ्वी पर दिन और रात बराबर होते हैं, २३ सितम्बर को उत्तरी गोलार्ध में शरद ऋतू होती है जबकि दक्षिणी गोलार्ध में वसंत ऋतू होती है, २१ मार्च को इसका उल्टा होता है
पृथ्वी की इन दोनों गतियों (घूर्णन तथा परिक्रमण) के द्वारा हम दिन और रात तथा अलग अलग ऋतुओ का आनंद ले पाते हैं, जो हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, अगर पृथ्वी इन गतिओं को न करे तो क्या पृथ्वी पर जीवन संभव है?
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