ऋतुराज की सवारी
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ऐ दुःख, अवसाद, चिंता, कमजोरी, निराशा
चल हट पीछे, हो जा एक दो तीन
प्रकृति के सिपाहीयो ने चहु ओर डेरा डाला है
सुख आशा नव जीवन, ताकत, सौंदर्य का
सबकी रगो में खून उबाला है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
लताओं ने घूघंट खोले, फूलो पर छाई जवानी है
प्रकृति पुरुष से मिलने को कुछ आतुर हो कर आयी है
कामदेव ने बाण चलाकर मादकता बढ़ाई है
पंछियो ने मंगल गान किया, कोयल ने तान छेड़ी है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
सूंदर बालाओ ने हाथो की चुडिया खनकाई है
जिसमे पैरों की पायल ने भी अपनी तान मिलाई है
प्रीतम प्रेयसी के गालो पर कुछ ऐसी लाली छाई है
प्रीतम प्रेयसी के मन में मिलन की आग
मादक हवाओ ने भड़काई है
कविओ ने कलम उठाकर अपनी
श्रृंगार रस की स्याही में डुबोई है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
पूस की सर्द रातो में जागने के बाद
पसीना सर्दियों में बहाने के बाद
गेहू की बालियां गलबहियां कर रही
पीले रंग की चादर सरसो के खेतो पर बिछ रही
धान तिलहनों ने कई खेतो में कितनी धूम मचाई है
जिन्हे देख मेहनतवाले किसानो के मुंह पर कितनी रौनक आयी है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
साधु और फकीरो की अविरचल साधना
अविराम चलती रहे, ऐसी नई प्रेरणा आयी है
त्याग तपस्या करने की उनमे और भी ललक बढ़ाई है
जीवन चक्र चलाने को, युगलो को भरमाने को
प्रकृति के मादक स्वरुप की एक अलोकिक छठा
उन्हें नज़र आयी है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
मरीजों की सेहत में सुधार हुआ
चिकिस्त्सक भी अंचभित हुआ
बिना उसकी बनावटी दवाई के ही उसका मरीज दुरुस्त हुआ
दवाइयों की खुराक कम हुई
पृकृति ने अपने आँचल में यह संजीवनी दवा छिपाई है
ऐ निराशा दूर हट, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
बनावटी मधुशाला में जाये बिना, मय का प्याला पिए बिना
कितने मय के दीवाने हुए मग्न
यह कैसा नशा है चढ़ा हुआ, जिससे मय का दीवाना कोसो दूर रहा
पृकृति के मय के प्याले में ऐसी मादकता छाई है
ऐ दुःख, अवसाद, चिंता, कमजोरी, निराशा
चल हट पीछे, हो जा एक दो तीन
ऋतुराज की सवारी आयी है
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To see the second part pl see the below link;
https://padhailelo.com/ho-ja-ek-do-teen/