भारतीय संविधान: साइमन कमीशन और डॉ भीमराव अम्बेडकर
सवैधानिक विकास और साइमन कमीशन
जैसे की पहले भी हमने चर्चा की है, कि हमारे आज का सविंधान बनाने का कार्य ब्रिटिश शाशन ने अपने नए नए एक्ट लाकर शुरू कर दिया था, बेशक इतिहास में यही बताया जाता है कि यह एक्ट या प्रथम सवतंत्रता संग्राम के बाद के भारत शाशन, अधिनियम अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए बनाये थे, निस्संदेह उनका निजी स्वार्थ रहा होगा, लेकिन भारत के सवैधानिक विकास में इन नियमो का अमूल्य योगदान रहा है. क्या इन नियमों में डॉ भीमराव अम्बेडकर का कुछ योगदान रहा है? क्या साइमन कमीशन एक खलनायक था?
साइमन कमीशन एक परिक्षण सिमिति
कल्पना कीजिये जब डॉ भीमराव अम्बेडकर दलितों के लिए एक ऐतिहासिक क्रान्तिकारी नेता के रूप में उभरे थे, उस वक्त दलितों के साथ कितना घिनोना बरताव् होता था, अगर कोई वास्तविक मानव होगा तो वह सहम सकता है, इसके बारे में आपको बहुत सामग्री मिल जाएगी. यहाँ यह तो कहना ही पड़ेगा कि अंग्रेजो का अपना एक अलग वैज्ञानिक दृष्टि कोण था और जमीनी स्तर पर रहकर समस्याओं से निपटने का तरीका था, इसके लिए वह विभिन्न एक्ट और अधिनियमों का समय अंतराल पर परिक्षण भी करते थे। साइमन कमीशन भी एक परिक्षण सिमिति थी।
नायक नहीं खलनायक
मुख्य इतिहास धारा में इस कमीशन को एक खलनायक के रूप में जाना जाता है, जबकि इस कमीशन का गठन इसलिए हुआ था, कि भारत शाशन अधिनियम १९१९ के अनुसार भारत में अधिनियमों का जमीनी स्तर पर पालन हो रहा है या नहीं, भारत की मुख्य राजनीती एक सर्वमान्य सविधान बनाने के लिए तैयार है या नहीं, उस समय कांग्रेस सबसे बड़ी राजनितिक दल के रूप में स्थापित हो चुकी थी, इसके आलावा मुस्लिम लीग मुसलमानो के हितो के लिए मैदान में स्थापित हो गयी थी, भारत सोसलिस्ट रिपब्लिक (रामप्रसाद बिस्मिल ) अल्पसंख्यक वर्ग जैसे सिख संगठन दलित संघठन, एंग्लो इंडियन संगठन, ईसाई संगठन, इत्यादि संगठन भी इस मुख्य राजनीती में शामिल होने लगे थे. यह सभी इंडियन सरकार में अपना हिस्सा चाहते थे.
डॉ बी आर अंबेडकर की स्पीच एंड राइटिंग
साइमन कमिशन का खलनायक से भी अलग सविंधान के विकास में कुछ रोल था या नहीं, डॉ बी आर अंबेडकर की स्पीच एंड राइटिंग, भारत सरकार आधार पर कुछ मुख्य बातों को समझने की कोशिश करते हैं.
१९२८ ईस्वी में इस रॉयल कमिशन का गठन हुआ था जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, जिसमे सात सदस्य थे, इसका आगमन ३ फरवरी १९२८ को भारत में आगमन हुआ, सनद रहे इस कमिसन का प्रावधान १९१९ के भारत शाशन अधिनियम में ही कर दिया गया था, जिसका मुख्य कार्य था, भारत में किस प्रकार का संवैधानिक विकास हो रहा है, कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध इसलिए किया कि इसमें कोई भी भारतीय नहीं था, तत्कालीन भारत सचिव लार्ड बुरकन हार्ट ने, यह कहा कि चूँकि मूलतः यह एक ब्रिटिश पार्लिअमेंटरी कमीटी है इसलिए इसमें किसी भारतीय की जरुरत नहीं है.
कांग्रेस ने इसे अपना घोर अपमान समझा, इसका विरोध और बहिष्कार किया, अन्य दल भी कांग्रेस के साथ हो गए, इस कमीशन को काले झंडे दिखाए गए, साइमन गो बैक के नारे लगे, कई जगह गोलियां भी चलीं।
स्वराज संविधान (नेहरू रिपोर्ट )
दिसंबर १९२८ में इसका फिर से आगमन होता है, इसी दौरान मई १९२८ में कांग्रेस का अधिवेशन होता है जिसमे स्वराज संविधान सिमिति का गठन होता है, इसकी अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू कर रहे थे, १८ जनवरी १९२९ को बहिस्कृत भारत पत्रिका में डा भीमराव आंबेडकर के लेख के अनुसार इस स्वराज संविधान (नेहरू रिपोर्ट ) के मुख्य उद्देश्य थे:
मुस्लिमो की समस्या का समाधान करना, विधायिका में दलित वर्ग का विशेष प्रावधान नहीं करना, उन्हे पृथक निर्वाचन द्वारा नामांकित किया जायेगा, इस समिति में मुस्लिम, पारसी, सिख और गैर ब्राह्मण ( आज का अन्य पिछड़ा वर्ग ), अदि द्रविड़ अदि सभी के नेताओ को आमंत्रित किया गया, डॉ आंबेडकर या अन्य कोई भी दलित वर्ग का प्रतिनिधि नहीं था.
स्वराज संविधान से बहिष्कार
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की १० वर्ष पहले डॉ आंबेडकर लार्ड साउथब्रो के समक्ष दलितों का पक्ष रख चुके थे, जिसमे उनने दलितों की समस्याओ से समन्धित ज्ञापन पहले ही सौंप दिया था, लेकिन यहाँ भारत देश की स्वराज संविधान समिति ने उनका या किसी भी अन्य दलित नेता को अपना पक्ष रखने हेतु आमंत्रित नहीं किया। इस स्वराज संविधान में दलितों के लिए कोई भी स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान नहीं था. इतिहास में इसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है.
डॉ बी आर अंबेडकर साइमन कमिशन में
बहरहाल साइमन कमीशन के सहयोग के लिए प्रांतीय और केंद्रीय स्तर पर सिमितियाँ बनाई गयीं, जो भारत में सांविधानिक कार्यो का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट इस कमीशन को सौंप सकें. बम्बई केंद्रीय विधायिका प्रांत से ३ अगस्त १९२८ को डॉ आंबेडकर का अन्य सदस्यों के साथ चयन होता है, जो कमीशन की संवैधानिक विकास कार्यो की रिपोर्ट बनाने में सहायता कर सके.
कमिशन के सामने उस वक्त भारत की १८ में से १६ दलित वर्ग की विभिन्न समितिओं ने , अन्य मांगो के साथ पृथक निर्वाचन की मांग की,
मुस्लिम लीग ने मांग की : सिंध प्रान्त का विभाजन, मुस्लिमो के लिए पृथक निर्वाचन, नार्थ वेस्ट रीज़न के क्षेत्रो में नए प्रान्त बनाये जाये, उनमे उनके लिए पृथक निर्वाचन दिया जाये, अवशिष्ट शक्तिओ की पावर को केंद्रीय शाशन में ही रहने देना।
साइमन कमिशन को अपना ज्ञापन (मेमोरंडम) दिया
अक्टूबर १९२८ को डॉ आंबेडकर का केंद्रीय समिति के समक्ष बयान हुआ, ७ मई १९२९ को बम्बई केंद्रीय विधान सभा ने रिपोर्ट तैयार की जिससे डॉ आंबेडकर सिद्धांत रूप में सहमत नहीं थे, उनने उस पर अपने हस्ताक्षर नहीं किये. १७ मई १९२९ को उन्होंने साइमन कमिशन को अपना एक अलग से ज्ञापन दिया, इस ज्ञापन में उन्होंने केंद्रीय विधान सभा की रिपोर्ट से असहमति के मुख्य कारन बताये जो निम्न हैं,
डॉ बी आर अंबेडकर के ज्ञापन की मुख्य बातें
कर्णाटक के बम्बई से अलगाव के बारे में
भाषा के आधार पर किसी क्षेत्र का विभाजन करने से भारत के कई टुकड़े करने पड़ सकते हैं, क्योंकि भारत में कई तरह की भाषाएँ बोली जाती हैं, भारत के नागरिको को सबसे पहले उनकी एक कॉमन नागरिकता की पहचान बताने की जरुरत है, क्योंकि भारत के नागरिक सबसे पहले भारत के नागरिक हैं बाद में किसी भाषा या क्षेत्र में रहने वाले, इस प्रकार के विभाजन लोकतंत्र के रास्ते में बाधक हैं.
सिंध के अलगाव के बारे में
यह मुस्लिम लीग की मुख्य मांग थी, जिसका बम्बई केंद्रीय विधान सभा ने अपनी रिपोर्ट में समर्थन किया था, डॉ आंबेडकर ने रिपोर्ट के इस अनुमोदन को भी अपने ज्ञापन में गलत ठहराया, उनने कहा की यह एक वर्ग की संकीर्ण मांग है, एक धार्मिक बहुसंख्यक को राजनितिक बहुसंख्यक बनाने के गंभीर निहितार्थ हैं, न्याय के लिए प्रतिशोध को बढ़ाना उचित नहीं है, शांति के लिए युद्ध जरुरी नहीं है, वह यहाँ तत्कालीन कांग्रेस नेता अबुल कलाम आज़ाद के भाषण को उद्धरत करते हैं, जो उन्होंने अभी इस बारे में दिया था ” ऐसा होने पर मुसलमानों के पास ५ प्रान्त होंगे और हिन्दुओ के पास ९, इन प्रांतो में हिन्दू मुसलमानो का आपसी व्यव्हार एक दूसरे के प्रति इस बात पर निर्भर करेगा कि हिन्दू अपने प्रान्त में मुसलमान के साथ वही व्यय्हार करेंगे, जो मुसलमान अपने प्रान्त में हिन्दुओ के साथ करेंगे”, वह यहाँ यूरोप के कई देशो का उदाहरण देते हैं की इन देशो में भी मुसलमान अधिक संख्या में है पर वह अपनी आबादी के आधार पर उन देशो से अलग नहीं हैं और वहां वह आराम से हैं. (बाद में यही सिंध पाकिस्तान बन गया था, यहाँ बाबासाहेब एक दूरदर्शी विचारक के रूप में दीखते हैं)
दलित वर्ग की अलग निर्वाचन की मांग
दलितों की अलग निर्वाचन की मांग को भी सही नहीं ठहराते हैं, यह भी एक लोकतंत्र में बाधक बन सकता है, इसके स्थान पर वह उनके लिए संयुक्त निर्वाचन की मांग करते हैं , जिसमे उचित आरक्षण हो, इससे कम दलितों के हित में नहीं, पृथक निर्वाचन को वह एक अंतिम उपाय कहते हैं, आरक्षण से कम अपर्याप्त होगा और इससे अधिक लोकतंत्र में बाधक बन सकता है.
कुछ अन्य बातें जो इस इस ज्ञापन में हैं वह निम्न हैं:
कार्यपालिका (मंत्रिमंडल) में कोई भी साम्प्रदायिक प्रतिनिधि न हो
मंत्री अगर अपनी ड्यूटी सही न करे तो उसे भी पद से हटाया जाये
कार्यपालिका में प्रमुख प्रधानमंत्री हो
विधायिका का गठन चुनाव द्वारा हो, नॉमिनेट (नामांकन) न हो
यूरोपियन के आलावा विधायिका में सभी नॉमिनेशन समाप्त हो.
विधायिका का चुनाव व्यस्क मताधिकार द्वारा हो, यह मतदान आर्थिक या शैक्षिक आधार पर प्रतिबंधित न हो, अगर प्रतिबंधित हो तो मुस्लिम, दलित, एंग्लो इंडियन, गैर ब्राह्मण (आज का ओबीसी ) के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान हो.(ऐसा लगता है भारत में किसी ने पहली बार व्यस्क मताधिकार की बात अंग्रेजो के सामने रखी थी)
विधायिका की संख्या १४० हो जिसमे मुसलमान ३३ और दलित १५ हो, कुछ निश्चित जिलों में हर वर्ग के प्रतिनिधित्व को संख्या के आधार पर जांचा जाये। यह उस वर्ग की जनसँख्या के अनुपात में अधिक या कम् न हो.
एक स्वतंत्र नागरिक सेवा आयोग का गठन हो, सरकारी सेवाओं का त्रीव भारतीयकरण (सरकारी) किया जाये जिसमे गैर ब्राह्मण वर्ग (आज का ओबीसी ) के दावों का भी उचित प्रावधान हो. पदों के वेतन और अन्य भत्तों का निरिक्षण किया जाये।
डॉ बी आर अंबेडकर एक बहुआयामी विद्वान
अगर इस ज्ञापन को ध्यान से देखंगे तो वह एक प्रखर राष्ट्रवादी की तरह नजर आते हैं, किसी भी हालत में इस देश में धर्म, भाषा के आधार पर विभाजन नहीं चाहते हैं, यहाँ वह दलितों के लिए प्रथक निर्वाचन का भी विरोध करते हैं, और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए केंद्रीय शाशन को अधिक शक्ति शाली बनाना चाहते हैं, मंत्री को हटाने जैसे कानून का समर्थन कर एक जवाबदेही सरकार का समर्थन करते हैं, नौकरी पेशा लोगो के लिए वेतन और भत्तों का निरिक्षण चाहते हैं, साथ ही मुस्लिम, अल्पसंख्यक और विभिन्न वर्गों का भी एक उचित समाधान बताते हैं. हालाँकि यह ज्ञापन बहुत बड़ा है इसमें निहित कुछ मुख्य बातें यहाँ रखी गयी हैं.
निडर और विद्वान लीडर
जब इस साइमन कमिशन को दिए गए ज्ञापन की खबरे अखबारों के जरिये जनता के बीच में गयी, सभी ने उनकी विद्व्ता की सराहना की और बाबासाहेब रातों रात एक निडर और विद्वान लीडर के रूप में पहचाने जाने लगे.
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है, कि कांग्रेस द्वारा बनाया गया स्वराज संविधान (नेहरू रिपोर्ट) साइमन कमीशन को दी गयी, स्वराज सविधान १९३० में साइमन कमीशन ने यह कहकर निरस्त कर दिया था, कि इसमें भारत के दलित वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है, कमिशन ने इन विभिन्न ज्ञापनों के आधार पर भारत के सभी वर्गों को एक संविधानिक निर्णय पर सहमत होने के लिए लंदन में गोलमेज सम्मलेन में चर्चा करने की पेशकश की थी.
क्या इस ज्ञापन की कोई बात भावी संविधान में आ पाई हैं ? क्या डॉ बी आर अंबेडकर के इस ज्ञापन को संज्ञान में लेते हुए ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम, १९३५ में अधिकतर प्रावधानों को शामिल किया था, जरा पता लगाइये, (भारत सरकार अधिनियम, १९३५ को देखे https://padhailelo.com/samvidhan-vikas-part-2/ ).
शैक्षिक ज्ञानवर्धन और शोध कार्य हेतु
यह कुछ ऐतिहासिक तथ्य हैं, जो आपके सामने रखे गए हैं, इन तथ्यों द्वारा किसी भी वर्ग या समूह का अपमान करने का अभिप्राय नहीं है न ही किसी राजनितिक सामाजिक आंदोलन से जुड़े परम आदरणीय उनके नेताओ का, जो भारत की स्वाधीनता के लिए जी जान से लगे थे, इनका ऋणी पूरा देश रहेगा, अपितु यहाँ संविधान के विकास की दृष्टि से क्या क्या ऐतिहासिक घटनाये हुई थी, उन ऐतिहासिक घटनाओं को उपलब्ध जानकारिओं के आधार पर सरल शब्दों में सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है, आशा है इन ऐतिहासिक जानकारिओं से पाठको का शैक्षिक ज्ञानवर्धन होगा, और छात्रो को अपने शोध कार्यो में सहायता मिलेगी।
*****