भारत का संवैधानिक विकास
भारत का संविधान विकास को अभी तक दो जगह हमने देखा. एक १७७३ के चार्टर एक्ट ने जहाँ इसकी जमीं तैयार करने के शुरुआत की है, वही ८४ वर्ष बाद भारत शाशन अधिनयम १९५८ से हमें, इसकी नीव सीधे ब्रिटिश शासन के द्वारा दिख सकती है. जहां १७७३ के चार्टर एक्ट में ब्रिटिश शाषन कम्पनी के कंधे पर बैठकर भारत शाशन में हिस्सेदारी की शुरुआत करता है, वहीँ १८५८ में वह सीधे तौर पर भारत के शाशन की प्रभुसत्ता अपने हाथ में ले लेता है.
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ऊपर वर्णित दोनों जगह, ब्रिटिश शाषन अप्रत्यक्ष रूप से भारत के संवैधानिक निर्माण में, चाहे जाने अनजाने में ही सही एक नई दिशा देने की कोशिश करता है, जब ब्रटिश शासन कम्पनी के जरिये भारत पर शाशन करना चाहता है तो वह नए एक्ट लाता है, और जब सीधे भारत के शाशन में शामिल होता है तब वह अधिनियम लाता है, दोनों ही जगह उसका प्रयास भारत पर एक संसदीय नियंत्रण करना होता है. इसकी कड़ी में पहले हम उन एक्टस के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जो ब्रिटिश संसद कम्पनी पर नियंत्रण के लिए लाती है.
१७७३ रेगुलेटिंग चार्टर एक्ट
जैसे की नाम से मालूम होता है रेगुलेटिंग अर्थार्त नियंत्रण, इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश संसद कम्पनी पर नियन्त्रन करने का प्रथम प्रयास करती है, निम्नलिखित नियम बनाती है.
दो संस्थाओं का गठन
ब्रिटैन में दो संस्थाओं का गठन किया जाता है (१) कोर्ट ऑफ़ प्रॉपराइटर (निवेशकों का समूह)— जिन लोगो का कम्पनी में अधिकतर पैसा लगा होता है (२) कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स (निदेशकों का समूह) जो कम्पनी को निर्देश देते थे.
कोर्ट ऑफ़ प्रॉपराइटर को यह अधिकार दिया गया कि वह कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के २४ सदस्य चुने, कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के यह चयनित सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष चुनते थे, जो ब्रिटैन में कम्पनी का कार्यकारी अध्यक्ष होता था.
भारत को कम्पनी ने ३ प्रेसीडेंसी क्षेत्र में बांटा हुआ था, बंगाल मद्रास और मुंबई जिनके अलग -२ गवर्नर थे, इस एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बनाया गया, शेष दोनों गवर्नरों (मुंबई और मद्रास) को बंगाल के गवर्नर के अधीन किया गया
बंगाल के गवर्नर जनरल के लिए एक परिषद का गठन किया गया जिसमे ४ सदस्य और शामिल किये, यानि की गवर्नर सहित ५ सदस्य, इस परिषद के बहुमत के आधार (३+२ ) पर अब निर्णय लिए जाने थे, अर्थार्त अब सभी निर्णय एक व्यक्ति द्वारा न लेकर एक ग्रुप द्वारा लिए जाने थे.
वारेन हेस्टिंग को भारत का प्रथम गवर्नर जर्नरल बनाया जाता है,
इस एक्ट के एक वर्ष बाद १७७४ में भारत में प्रथम सर्वोच्च न्ययालय की स्थापना कलकत्ता में की जाती है, जिसके मुख्य न्यायधीश एलिजा इम्पे के साथ तीन और न्यायाधीश नियुक्त होते हैं.
यहाँ हमें संसदीय प्रणाली की विशेषताएं जैसे चुनाव, बहुमत, निर्णय, सर्वोच्च न्यायलय इत्यादि भारत के इतिहास में प्रथम बार दिखाई देते हैं. यही तो है भारत का सांविधानिक विकास।
१७८४ का पिट्स इंडिया एक्ट
इस एक्ट का नाम तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री के नाम दिया गया था.
बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल की स्थापना
इस एक्ट के द्वारा संसदीय नियंत्रण को अब और बढ़ाया गया, इसी कढ़ी में एक परिषद् और बनाई गयी बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल जिसमे ६ सदस्य चुने गए, जिसके अध्यक्ष होते थे ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य, जो ब्रिटश मंत्रिमंडल को भारत में कम्पनी के कार्यो की रिपोर्ट देते थे, उन्हें इतना अधिकार दिया गया की वह भारत में किसी भी गवर्नर जनरल को हटा सकते थे, व्यापार को छोड़कर सभी मामले अब बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल के अधीन लाये गए.
गवर्नर जनरल के अधिकारों को बढ़ाया गया
अभी तक गवर्नर जनरल की परिषद् में गवर्नर जनरल की परिषद् में ४ सदस्य थे, जिन्हे घटाकर ३ किया गया, ताकि गवर्नर किसी एक सदस्य को अपने संज्ञान में लेकर अपना निर्णय लागु कर सके (२+२ जहां गवर्नर जनरैल का मत शामिल हो वह निर्णय पास माना जाता था) , इससे पहले उसे बहुमत के लिए दो सदस्यों को अपने सज्ञान में लेना पढता था.
१७८६ का संशोधन अधिनियम
कम्पनी के सेनापति को गवर्नर जनरल बनाया गया
कम्पनी की सेना के सेनापति को गवर्नर जनरल बनाया गया, अब गवर्नर प्रशाशनिक और सैन्य कार्यो को गवर्नर जनरल ही देखेंगे। गवर्नर को एक पावर और दी गयी यदि गवर्नर की परिषद कोई निर्णय पास करती है, वह उसे रद्द भी कर सकता है (स्पेशल पावर).
१७९३ का चार्टर एक्ट
कम्पनी का शाशन २० वर्षो के लिए बढ़ाया गया.
बंगाल के गवर्नर जनरल को बम्बई और मद्रास के गवर्नरो के कार्यों की पर्वेक्षण (ऑडिटिंग) का कार्य भी दिया गया
१८१३ का चार्टर एक्ट
२० वर्षो के लिए कम्पनी का कार्य बढ़ाया गया.
ब्रिटैन में औधगिक क्रांति हो चुकी थी, भारत के रूप में एक बाजार की जरुरत थी, अभी तक कम्पनी को भारत से व्यापार करने के एकमात्र अधिकार था, अब यह नियम आया की अकेले कम्पनी ही भारत में व्यापार नहीं करेगी, कोई भी ब्रिटिश नागरिक यहाँ व्यापर कर सकता है, कम्पनी के पास अब चाय और चीन के साथ व्यापर करने का एकाधिकार रह गया मतलब कम्पनी की व्यापारिक मोनोपली समाप्त।
कम्पनी भारत में शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिवर्ष १ लाख रूपये खर्च करेगी.
ईसाई मिश्निरियों को भारत में ईसाई धरम के प्रचार की अनुमति दी गयी.
१८३३ का चार्टर एक्ट
कम्पनी का एकाधिकार पूर्णत समाप्त चाय और चीन के साथ व्यापार करने का एक्धिकार भी कम्पनी से ले लिया गया.
जाति और वर्ग देखकर नौकरी देने पर पूर्णत पाबन्दी लगाई गयी.
बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया. विलियम बैंटिक पहले भारत के गवर्नर जनरल बने।
गवर्नर की परिषद् में एक कानून के ज्ञाता सदस्य की मंजूरी दी गयी, पर किसी भी मामले में वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया, क़ानूनी सलाह के लिए रखा गया. लार्ड मैकाले पहले विधि सदस्य थे.
भारत में दास व्यवस्था समाप्त की गई, इस कार्य में दस वर्ष लगे १८४३ में लार्ड एलिनबरो के समय तक दास प्रथा पूर्णत समाप्त. इसलिए लार्ड एलिनबरो को दास प्रथा समाप्त करने का श्रेय जाता है.
१८५३ का चार्टर एक्ट
कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के २४ सदस्य जो १७७३ रेगुलेटिंग चार्टर एक्ट के अनुसार अभी तक कार्यरत थे उनकी सख्या २४ की जगह घटाकर १८ कर दी गई.
भारत के अधिकारिओं के लिए प्रतियोगी परीक्षा का आरम्भ।
गवर्नर परिषद के विधि सदस्य को अब वोट देने का अधिकार भी दिया गया, इस प्रकार गवर्नर जनरल की परिषद में फिर से ५ सदस्य बन गए.
यह सभी चार्टर १८५७ के सवतंत्रता संग्राम से पहले लाये थे, जिनमे हमें संविधानिक विशेषताएं नजर आती है, जैसे बहुमत, चुनाव, ग्रुप द्वारा निर्णय, सर्वोच्च न्ययालय की स्थापना और इसके साथ ही कुछ सामाजिक कुरीतिओ पर तेज प्रहार भी नजर आता है, जैसे नौकरी में जाति और वर्ग के भेदभाव का समापन, शिक्षा के लिए सरकारी प्रोत्साहन, घिनौनी दास प्रथा का उन्मूलन, प्रतियोगी परीक्षा का आरम्भ, यह सभी बातें हमारे संवैधानिक विकास का एक आधार बनती हैं. कौन कौन सी बातें हमें आज के संविधान में नजर आती हैं जो ब्रिटिश संसद ने इन चार्टरों के माध्यम से भारत में लागु की थी, जरा पता लगाइये।
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