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Samvidhan Ki Parstavna

भारतीय संविधान की प्रस्तावना 

किसी भी किताब को लिखने से पहले उसके बारे में एक उसका दर्शन बताया जाता है जिससे उसकी विषय वस्तु और उद्देश्य  इत्यादि के विषय में पाठक को संक्षिप्त जानकारी प्राप्त हो सके. भारतीय संविधान के विषय और उनके उद्देश्य इत्यादि के बारे में भी इसकी प्रस्तावना एक सटीक जानकारी देती है. अगर इसे समझने का प्रयास किया जाये तो कोई भी इसके बारे में अधिक जान सकता है. हर भारतीय नागरिक को अपने संविधान के बारे में मुख्य बातें  पता होनी चाहिए, पूरा संविधान न सही कुछ मुख्य बातें  हमें अपने संविधान के बारे में पता होनी ही चाहिए, प्रस्तावना एक इसी तरह की कुंजी है. आइये सविधान के जानकारों  की सर्वमान्य सहमतिओ के आधार पर  इस प्रस्तावना पर चर्चा करने के कोशिस करते है.

सबसे पहले हम भारतीय बनकर इस प्रस्तावना पर अक्षरश पठन एवं चिंतन एवं मनन करते हैं  (कृपया व्याकरण त्रुटि पर अधिक ध्यान न दे कर उसका अर्थ समझने का अधिक प्रयास करें ):

हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्नसमाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के  लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय,

विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धरम और उपासना की सवतंत्रता 

परतिष्ठा एवं अवसर की समता 

प्राप्त कराने के लिए,

तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता 

सुनिश्चित कराने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए 

द्रणसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख २६ नवम्बर, १९४९ ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत २००६ विक्रमी ) को एततद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मअर्पित करते हैं.  

२६ नवंबर  १९४९ (संविधान दिवस )

संविधान सभा ने भारतीय सविधान को भारतीय संसद में २६ नवंबर  १९४९ (संविधान दिवस ) को पारित किया था और २६ जनवरी १९५०  (गणतंत्र दिवस ) को इसे भारत में लागु किया था. प्रस्तावना  में पारित करने की तिथि लिखी है.

इस संविधान की प्रस्तावना को पढ़ कर हम अपने संविधान निर्माताओं के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं, (ऐसा लगता है, संविधान निर्माण से पहले भारत राज्य में यह बोल्ड शब्द नदारद थे ),  तभी बोल्ड शब्दो  को प्रस्तावना में रखा गया है  इसे एक शक्तिशाली विधान बनाया गया, वह चाहते थे की भारत की आने वाली पीड़िया भारतीयों द्वारा लिखे संविधान के अनुसार अपना एवं अपने देश का सर्वागीण विकास कर सकें। 

संविधान की शक्ति के स्त्रोत 

प्रस्तावना के शुरू में लिखा गया है की हम भारत के लोग — अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मअर्पित करते है अर्थार्त भारत की जनता इसको मुख्य रूप से शक्ति देती है.

संविधान  का स्वरूप कैसा है 

संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न—  इसका अर्थ है भारत के पास अपनी आंतरिक एवं बाहरी समस्याओ के बारे में निर्णय लेने की स्वय की पूर्ण क्षमता है, भारत के निर्णय पूर्णतः भारत के लोगो के अपने होंगे उसमे कोई भी विदेशी वैश्विक सकती हस्तक्षेप नहीं करेगी।

समाजवादी ——समाजवाद जहाँ यूरोप में वर्ग संघर्ष के (अमीर और गरीब के संघर्ष के रूप में देखा जाता है) वहां भारत के संविधान निर्माताओं ने इसे लोकतान्त्रिक समाजवाद के रूप में देखा है, (अगर देखा जाये तो सामजवाद का मुख्य उद्देश्य समानता लाना है )भारत में  लोकतान्त्रिक तरीको और बातचीत के जरिए से समाजवाद लाने की वकालत की गयी है, अर्थार्त यहाँ मिश्रित अर्थव्यवस्था को लिया गया है जिसमे पूंजीवाद और समाजवाद दोनों को जगह दी गयी है। यह सामजवाद नेहरू जी एवं गाँधी जी के विचारो से प्रेरित है (अमिर और गरीब के बीच की खाई को पाटकर समानता लाना ही समाजवाद  का मुख्य उद्देश्य है ).

लोकतांत्रिक ——- ऐसी व्यवस्था जहाँ राज्य के लोगों का शासन हो अब्राहम लिंकन के शब्दों में: 

लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था या सरकार है जो जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा बनाई जाती है.

गणराज्य/ गणतत्र —–  गणराज्य से तातपर्य है की राज्य का मुखिया  वंशानुगत नहीं होगा  वह राज्य की जनता द्वारा चयनित होगा, जनता जिसे चाहे अपना मुखिया  बना ले जिसे चाहे सिहांसन से उतार दे.    

संविधान का उद्देश्य  क्या है 

प्रस्तावना में संविधान के कुछ उद्देश्य भी दिए गए है, जिनके लिए संविधान बनाया गया है, इसलिए प्रस्तावना को उद्देशिका भी कहा जाता है.

न्याय —–  सविधान के अनुसार राज्य के समक्ष हर नागरिक को सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय पाने का एक समान अधिकार है, (ध्यान देने की बात है राज्य यहाँ धार्मिक न्याय की बात नहीं करता).

स्वतंत्रता ——  प्रत्येक नागरिक को अपना विकास करने के  लिए सवतंत्र छोड़ा गया है. 

समता —– राज्य सभी नागरिको को आर्थिक एवं सामाजिक स्तर की समानता प्रदान करेगा .

व्यक्ति की गरिमा —– प्रत्येक वयक्ति को गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार है.  

राज्य की एकता एवं अखंडता—— भारत जैसे देश में जहां धार्मिक, क्षेत्रीय जातीय एवं भाषायी आधार पर कई विविधताएं है, राज्य  भारत को एक राष्ट्र के रूप में एकता एवं अखंडता को भी बनाये रखेगा।

बंधुता —– राज्य यह भी प्रयास करेगा की विभिन्नताओं के बावजूद भी लोगों में आपसी भाईचारा भी बना रहे.

प्रस्तावना के संबंध में कुछ याद  रखने योग्य तथ्य 

न ए पालकीवाला (फेमस वकील ) ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र  कहा है, कई विद्वानों ने इसे भारतीय सविधान की आत्मा या कुंजी भी कहा है, सर अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर ने (संविधान सभा  के सदस्य ) इसे भारत के दीर्घकालीन सपनो का विचार कहा है,

सर्वोच्च न्यायलय में प्रस्तावना संशोधन के सम्ब्नध में दो मुकदमे खासे चर्चित रहे है. 

बेसवारी संघवाद १९६० 

जिसमे सर्वोच्च न्यायलय ने कहा की प्रस्तावना सविधान का अंग नहीं है इसलिए इसमें कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता.

केशवानंद भारती  केरल वाद  १९७३  

इसमें सर्वोच्च न्यायलय ने अपने ही फैसले को पलटते हुए निर्णय दिया की प्रस्तावना  सविंधान  का ही एक अंग है इसलिए इसमें संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता। 

उपरोक्त सर्वोच्च नय्यालय के निर्णय के ३ साल बाद १९७६ में ४२वे संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में तीन नए शब्द जोड़े गए हैं वह हैं —- समाजवादी, पंथ निरपेक्ष  एवं अखंडता.

यही संशोधन प्रस्तावना में  अभी तक का एक मात्र  संशोधन है.

नवभारत  का  सपना

प्रत्येक भारतीय नागरिक को खासकर सक्षम नागरिकों  को,  संविधान की प्रस्तावना  में  दिए गए उद्देश्य  को पूरा  करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए, जिस  नवभारत  का  सपना  लेकर  इस  प्रस्तावना   की रचना  को संविधान  निर्माताओं  ने  “प्रस्तावना  के रूप में”  भारतीयों को अथक पर्यासो और बलिदानो  के बाद सौंपा था, एवं जिसमे कई अनजाने नायकों/शहीदों/निशब्द पूर्वजो के अनगिनत सपने भी शामिल हैं.

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This Post Has 3 Comments

  1. gopal

    Good sir keep it up

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