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भारतीय संविधान : एक शुरुआती नींव या आधार

भारतीय संविधान : एक शुरुआती नींव या आधार 

पिछले अध्याय में हमने सविंधान के स्त्रोतों की चर्चा की थी जिसमे हमने जाना की भारतीय शाषन अधिनियम १९३५ और ब्रिटेन के संविधान का और भारत शाषन  अधिनियम १९३५ का १९४९ के संविधान अथार्त आज के संविधान पर गहरा असर है ( संविधान सभा ने कुल ३९५ अनुच्छेदों में से २५० तो भारत शाशन अधिनियम से ही अपने संविधान में शामिल किये हैं ). संविधान जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ एक दिन में  नहीं बनते इनके पीछे कई कहानियां  होती हैं, जिनमे एक कठोर तपस्या भी होती है, बलिदान भी होता है और इन सबसे महत्वपूर्ण आमजनों  के सपने होते हैं, जो वह एक गरिमा मय  जीवन जीने के लिए देखते हैं.भारतीय संविधान की  शुरुआती नींव या आधार क्या है  

क्या यह स्थिति यकायक बनी थी या इसके पीछे एक निर्माण प्रक्रिया रही है, सर्वमान्य एवं प्रचलित मान्यताओं के आधार पर इस बारे में समझने की कोशिश करते हैं.

प्रथम सवतंत्रता संग्राम

संविधान बनने की कहानी शुरू होती है १८५७ से (प्रथम सवतंत्रता  संग्राम ), स्कूल में एक कविता तो सुनी ही होगी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी, यह तो हमारे इतिहास में लेखकों ने कई बार बताया है, स्कूल में यह बच्चो को पढ़ाया भी जाता है. इसी कढ़ी में मंगल पांडे  का नाम भी सुनाया जाता है और उन्हें भी इस क्रांति का जनक बताया जाता है, यक़ीनन यह दोनों क्रन्तिकारी इस देश की अनमोल धरोहर हैं, हर देश को अपने क्रांतिकारिओं का गुणगान करना भी चाहिए.

अगर दलित चिंतको और कुछ बुद्धिजीविओं की माने, कई दलित नायको की कहानी भी बताई जाती है यहाँ हम उनमे से  दो दलित नायकों के बारे में चर्चा करेंगे, जिनका सम्बन्ध मंगल पांडेय और झाँसी की रानी से सीधा बताया जाता है,  उनके अनुसार  इन दोनों दलित नायको का मुख्य इतिहासधारा में कहीं  भी अता पता नहीं है, आइये थोड़ा उनके बारे में भी जानने की कोशिश करते हैं. (१) मातादीन   (बाल्मीकि) (२) झलकारी बाई. 

मातादीन (बाल्मीकि)  

कलकत्ता से १६ किमी दूर बैरकपुर जहाँ पर अंग्रेजी सेना के कारतूस बना करते थे, मातादीन वहां अंग्रेजी सेना में काम करते थे, उनके  पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे, पहलवानी का शौक था, वह हर उस्ताद के पास पहलवानी सिखाने का आग्रह करते थे, पर अछूत जाति  से सम्बंधित होने के कारन किसी भी उच्च जाती के उस्ताद ने उन्हें अपना शागिर्द नहीं बनाया, एक मुस्लमान उस्ताद इस्मालुद्दीन ने उनकी पहलवानी के प्रति लगन को देखकर अपना शागिर्द बना लिया।

अब मातादीन उनके अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास करने लगे, इधर मंगल पांडेय जो अंग्रेजो की सेना में एक सैनिक थे उनको भी कुश्ती का शौक था, कुश्ती के कारन दोनों में दोस्ती हो गयी, मंगल पांडेय को जब अन्य साथियो से पता चला की मातादीन एक अछूत है, उससे दुरी बनानी शुरू कर दी, एक दिन अभ्यास के दौरान, मातादीन ने मंगल पांडेय से पानी माँगा, इस पर मंगल पांडेय ने उसे धमकाते हुए कहा, “अछूत तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पानी मांगने की, मुझे भी अपवित्र करेगा” यह बात सुनकर मातादीन को भी गुस्सा आ गया, उसने कहा “अरे पंडत प्यासे को पानी पिलाने से अछूत  हो जायेगा, जब अपने मुंह से गाय  की चर्बी और सूअर की चर्बी से बने कारतूस खोलता है तब तेरी पंडिताई (ब्राह्मणपन) कहाँ चली जाती है”. यह सुनकर मंगल पांडेय भी चकित हो गए.

मंगल पांडेय को जब यह पता चला तो वह अंग्रेजो के विरुद्ध हो गए  साथ ही अन्य मुस्लिम सैनिक भी कारतूसों में सूअर की चर्बी के इस्तेमाल को नकारने लगे, जिससे उनमे भी विद्रोह की आग भड़कने लगी.  इस प्रकार पुरे भारत के सैनिको में यह बात आग की तरह फ़ैल गयी.

यधपि १८५७ के सैनिक विद्रोह की शरुआत मई को हुई थी, लेकिन उसके असली सूत्रधार थे मातादीन  इसका सबसे बड़ा प्रमाण अंग्रेजो के रेकॉर्ड में हैं, जब मुकदमा  लिखा गया वह  मातादीन  एवं दूसरे का नाम से लिखा गया, न की मंगल पांडेय एवं दूसरे  (यह अंग्रेजो के पास प्रमाणित रिकॉर्ड है), दोषी साबित होने पर सबसे पहले फांसी की सजा भी मातादीन को ही दी गयी थी, बाद में मंगल पांडेय और दूसरे क्रांतिकारिओं को.

इस आधार पर मातादीन प्रथम सवतंत्रता संग्राम १८५७ के बीज बोने  वाले पहले व्यक्ति थे, जिसके बीज मंगल पांडेय और अन्य सैनिकों को  कारतूसों का सच बताकर मातादीनने मार्च १८५७ में ही बो दिए थे, बाद में मई १८५७ में शुरू हुआ यह  विद्रोह एक सैनिक विद्रोह के रूप में जाना जाता है.

झलकारी बाई 

कुछ इसी प्रकार की कहानी  झलकारी बाई के बारे में भी बताई जाती है, वह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई  के यहाँ दासी का काम करती थी, जो की एक दलित समाज (बुनकर) से ताल्लुक रखती थी, उनके पति पूरन कोली भी झाँसी की सेना में सैनिक थे, जिन्होंने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जान बचाने के लिए स्वय को अंग्रेजो के सुपुर्द कर दिया था, चूँकि उनकी शक्ल  रानी लक्ष्मीबाईसे मिलती थी अंग्रेज उन्हें ही लक्ष्मीबाई समझते रहे, और झाँसी की रानी किले से चकमा देकर निकल गयी. 

कहा जाता है बाद में उनकी हत्या कर दी गयी थी, हालाँकि यह लिखीत  रूप में नहीं है, लेकिन झलकारी बाई की वीरता के  किस्से बुंदेलखंड के  बुंदेले के ( जो ढपली  बजाकर लोकगीत गाते  हैं ) लोकगीतों और भोजला गांव की लोककहानियो में अभी भी मिलते है, झलकारी बाई के  नाम पर भारत में डाक टिकट भी जारी हो चुका है।  

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार 

जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।

गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,

वह भारत की ही नारी थी।

इसके आलावा और भी कई गुमनाम नायक हो सकते है जिनका नाम इतिहास की मुख्यधारा में नहीं है जिन्होंने भारत के प्रथम सवतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर अहम् भूमिका निभाई थी.

सविंधान की कहानी बताते हुए १८५७ के विद्रोह की कहानी कहाँ से आई? एक सवाल यह भी है की १८५७ के विद्रोह का १९४९ का सविधान बनने में क्या योगदान है ?

भारत शाशन अधिनियम १८५८

१८५७ के विद्रोह के तुरंत बाद अंग्रेजो ने, भारत शाशन अधिनियम १८५८ बनाया, इस वर्ष ब्रिटिश सम्राट ने भारत की प्रभुसत्ता ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर अपने में निहित में कर ली थी, ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ब्रिटैन की सरकार द्वारा सीधे शाषन चलाने के लिए भारत के शाषन का पहला कानून बनाया था ” भारत शाषन अधिनियम, १८५८ (२१ और २२ विक्टोरिया, अध्याय १०६). 

ब्रिटिश सम्राट का सम्पूर्ण नियंत्रण 

इस कानून में ब्रिटिश सम्राट के सम्पूर्ण नियंत्रण का सिद्धांत था, इसमें जनता का कोई स्थान नहीं था, संविधान के बनने तक, इस अधिनियम के पश्चात् का इतिहास, ब्रिटिश सम्राट में निहित प्रभुसत्ता का नियंत्रण धीरे धीरे समाप्त होने का, और उसका पलायन, एक उतरदायित्व सरकार में, लोकतंत्र मूल्यों के धीरे धीरे समावेश होने का इतिहास है, जिसकी परिणति हमारा आज का संविधान है. 

ब्रिटैन की सरकार द्वारा सीधे शाषन

इस प्रकार हमने जाना की सविधान बनने की कहानी की शुरुआती बिंदु १८५७ का वह सवतंत्रता संग्राम का प्रथम युद्ध था, जिसके उपरांत अंग्रेजो को भारत में कोई नियम या कानून (भारत शाशन अधिनियम १८५८) बनाने की आवश्यकता महसूस हुई, जो सीधा ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा बनाया गया था, इससे पहले भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के अपने कानून चलते थे.   

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