भारत का संवैधानिक विकास पार्ट २
दलित चिंतको और बुधिद्जीविओ के कथानुसार आधार पर हमने, एक ब्लॉग में मातादीन वाल्मीकि की चर्चा की थी, किस प्रकार वह १८५७ की क्रांति के सूत्रधार के रूप में नजर आते हैं. वह अछूत जाति से सम्बंधित होने पर भी कारतूस बनाने के सरकारी कारखाने में एक नौकरी पर थे, इस सन्दर्भ में १८३३ के चार्टर एक्ट के अंतरगत एक नियम को भी देखें “जाति और वर्ग देखकर नौकरी देने के भेदभाव पर रोक लगाई गई” क्या कुछ सम्बन्ध बनता है? क्या इस नियम से भारत का संवैधानिक विकास हो सकता था?
इस नियम को देखते हुए क्या लगता है? क्या अंग्रेजो को तत्कालीन भारत में जाति और वर्ग आधारित भेदभाव नजर आता था? उन्हें यह कौन सिखाता था कि जाती और वर्ग के आधार पर सरकारी नौकरी देने की सामाजिक कुरीति को समाप्त किया जाना चाहिए? क्या १८३३ में इस एक्ट के दौरान कोई मानवता वादी समाज सुधारक तत्कालीन मुख्य धारा की राजनीती में था या अंग्रेजो ने स्वय यहाँ पर जाति और वर्ग के नाम पर भेदभाव देखा था ?
बुराइयों से भी दो दो हाथ
यहाँ तो ऐसा लगता है, कि अंग्रेज न केवल संसदीय नियंत्रण करना चाहते हैं बल्कि वह समाज में व्याप्त बुराइयों से भी दो दो हाथ करना चाहते हैं, जो तत्कालीन भारतीय समाज में एक कोढ़ की तरह व्याप्त थी. बहरहाल १८५७ का प्रथम स्वत्नत्रता संग्राम होता है, यह इतना व्यापक था, जिसके बाद अंग्रेजो को महसूस होता है कि भारत को अब कम्पनी के अधीन रखकर राज नहीं किया जा सकता, अब इसे सीधे ब्रिटिश संसद के अधीन लाना पड़ेगा, इसके लिए वह कुछ नियम ब्रिटीश संसद में पारित करती है, और उन्हें भारत में सीधे लागु करती है, जिनका हमारे संविधान के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. १८५७ के बाद के प्रमुख अधिनियम निम्न लिखित हैं:
कृपया सवैधानिक विकास का पहला भाग देखने के लिए लिंक पर जाये https://padhailelo.com/samvidhan-ka-viaks/
१८५८ भारत शाषन अधिनियम
ईस्ट इंडिया कम्पनी को टाटा बाय बाय
यह अधिनियम सवतंत्रता संग्राम १८५७ के तुरंत बाद लाया जाता है, इसमें जो भारतीय शाशन और ब्रिटिश संसद के बीच से कम्पनी को हटाया जाता है, कम्पनी का भारत शाशन में रोल समाप्त। भारत की प्रभुसत्ता ब्रिटिश सम्राट के अधीनआती है जैसे ब्रिटैन की प्रभुसत्ता ब्रिटिश सम्राट के अधीन थी.अभी तक जितने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर और बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल के पद बनाये गए थे वह सभी समाप्त कर दिए जाते है कारण जब कम्पनी को ही भारत के शाशन से निकाल दिया जाता है तब उसके पद क्या करेंगे।
भारत का सचिव
एक नया पद भारत का सचिव ब्रिटैन में बनाया गया, यह भारतीय शाशन के लिहाज से सबसे बड़ा था, जो ब्रटिश संसद के कार्यकारी मंत्रिमंडल का एक सदस्य भी होता है. भारत सचिव सीधे तौर पर ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रति जवाबदेह था .
भारत परिषद्
ईसकी सहायता के लिए एक भारत परिषद् की स्थपना की जाती है जिसमे १५ सदस्य होते हैं, यह परिसद ब्रिटैन के व्यक्तिओ से मिलकर बनती थी जिसमे कुछ सम्राट (ब्रिटिश संसद ) द्वारा नामांकित होते थे और कुछ कम्पनी के निदेशकों के प्रतिनिधि होते थे.
वाइसराय
भारत में गवर्नर, गवर्नर जनरल, भारत का गवर्नर, इत्यादि सभी पद समाप्त, इसके स्थान पर भारत का वाइसरॉय के पद की स्थापना होती है. (वाइसराय का अर्थ राजा का प्रतिनिधि )
होम चार्जेज
भारत के सचिव के ऑफिस का सारा खर्चा भारत पर डाला गया जिसे होम चार्जेज का नाम दिया गया. ब्रिटेन का मानना था की इन्हे अब ब्रिटैन में रहते हुए भी भारत के लिए शासन सम्बन्धी काम करना था.
प्रथम वासराय लार्ड केनिंग बने, जो १८५७ के विद्रोह के समय यहाँ के गवर्नर जनरैल थे.
१८६१ भारत शाषन अधिनियम
वाइसराय की परिषद बनायीं गयी (जो अभी तक गवर्नर जनरल सहित ५ सदस्यों को परिसद थी), इसमें एक विधि का ज्ञाता, सदस्य रूप में जोड़ा गया, अब कुल ६ सदस्यों में से दो विधि के ज्ञाता सदस्य थे
वाइसराय के अधिकार
वाइसराय को यह अधिकार दिया कि वह भारत में कार्यकारिणी परिषद में कम से कम ६ और अधिक से अधिक १२ सदस्य चुन सकता था. वाइसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया
१८९२ भारत शाषन अधिनियम
वाइसराय के अधिकार बढ़ाये गए अब वह भारत में कार्यकारिणी परिषद में कम से कम १० और अधिक से अधिक १६ सदस्य चुन सकता था.
अप्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरुआत
निर्वाचन पद्धति की शुरुआत की गयी यह प्रत्यक्ष नहीं था, भारतीय विधान परिशद में शासकीय या सरकारी सदस्यों का बहुमत रखा गया किन्तु गैर सरकारी सदस्य (भारतीय ) बंगाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स और प्रांतीय विधान परिषद द्वारा नामांकित होने लगे
बजट पर बहस करने का अधिकार
केंद्रीय परिसंघ में निर्वाचित भारतीयों को बजट पर बहस करने का अधिकार दिया गया, अधिकार केवल प्रश्न पूछने का था, मतदान करने का नहीं दिया गया
१९०९ का भारत शाषन अधिनियम (मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम)
इस अधिनियम को मार्ले मिंटो के नाम से भी जाना जाता है, तत्कालीन भारत में मार्ले भारत के सचिव थे और मिंटो यहाँ के वाइसराय। इस अधिनियम में प्रथम बार प्रतिनिधि और निर्वाचित तत्व का समावेश किया गया.
विधान सभा के आकार और शक्ति में बढ़ोतरी
विधान सभा के आकार और शक्ति में बढ़ोतरी की गयी. प्रांतो में अंग्रेज शाशको का शासकीय बहुमत समाप्त हो गया. केंद्रीय विधान परिषद् में भी निर्वाचन का समावेश हुआ पर अंग्रेज शाशको या सरकारी शाशको का बहुमत बना रहा.
सार्वजानिक विषयो पर नामांकित भारतीयों को विधान सभा में प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया, जिससे वह पर्शाशन की निति पर प्रभाव डाल सके.
इस निर्वाचन तत्व में मुसलमानो के लिए एक पृथक निर्वाचन की वयवस्था की गयी. अर्थार्त मुस्लिमो को उनकी जनसख्या के आधार पर शाशन में शामिल किया जाये.
१९१९ भारत शाशन अधिनियम (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम)
इस अधिनियम को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड के नाम से भी जाना जाता है, तत्कालीन भारत में मांटेग्यू भारत के सचिव थे, और चेम्सफोर्ड यहाँ के वाइसराय।
द्वी सदनीय वयवस्था का आरम्भ
केंद्र में दो सदनों की स्थापना की गयी कौंसिल ऑफ़ स्टेट उच्च सदन (आज की राज्य सभा ) और काउन्सिल ऑफ़ अस्मेबली निम्न सदन (आज की लोकसभा ). उच्च सदन में ६० सदस्य चुने गए और निम्न सदन में १४४ सदस्य चुने गए.
केंद्रीय और राज्य के बजट को अलग किया गया.
प्रांतो में द्वैध शाशन
आरक्षित विषय
प्रान्त में द्वैध शाशन की स्थापना की जाती है. जो सरकारी सदस्य होते हैं वह महत्वपूर्ण विषय जैसे, सेना, विदेश, लॉ एंड आर्डर, वित्त, राजस्व अपने अधीन करते हैं जिन्हे आरक्षित विषय कहा जाता है, इन पर केवल वाइसराय की कार्यकारिणी के सरकारी सदस्य कानून बना सकते थे. यह सरकारी सदस्य विधान सभा के प्रति उत्तात्दायी नहीं थे. उन पर गैर सरकारी या नामंकित भारतीय कानून नहीं बना सकते थे.
हस्तांतरित विषय
हस्तांतरित विषय ऐसे लोकल विषय थे जैसे शिक्षा एवं स्वास्थ्य और अन्य स्थानीय महत्व के विषय इन पर यह गैर सरकारी या चयनित भारतीय कानून बना सकते थे. यह चयनित गैर सरकारी सदस्य विधान सभा के प्रति पूर्णत उत्तात्दायी थे.
प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत
अभी तक जो भारतीय सदस्य विधान सभा में चुनकर आते थे वह या तो बंगाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स और प्रांतीय विधान परिषद द्वारा नामांकित होते थे, इस नियम में पहली बार उस प्रान्त की जनता से विधान सभा के सदस्यों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव करने की व्यवस्था की गयी , अर्थात भारत में प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत। महिलाये को पहली बार मतदान का अधिकार मिला।
सिख धर्म के अनुयायिओं को पृथक निर्वाचन, उनकी संख्या के आधार पर दिया गया.
केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन (ली कमिसन द्वारा १ अक्टूबर १९२६ को स्थापना)
महालेखा परीक्षक की नियुक्ति का अधिकार भारत के सचिव को दिया गया. भारत के राजस्व और खर्च के परिक्षण (ऑडिट ) का दायित्व इस पद को दिया गया (CAG )
१९३५ का भारत शाषन अधिनियम अधिनियम
भारत के परिसंघ स्वरूप की मान्यता
इस अधिनियम में ब्रिटिश संसद ने पहली बार विराट भारत को एक संघ के रूप में मान्यता दी, मतलब उनने माना कि भारत प्रांतो के रूप में एक देश है (अभी तक हर प्रान्त की एक अलग विधान सभा थी)
द्वैध शाशन समाप्त
प्रांतो में द्वैध शाशन समाप्त किया गया, प्रांतो को हर विषय पर कानून बनाने की छूट दी गयी. प्रांतो को पूर्ण स्वायत्ता मिल गयी.
केंद्र स्तर पर द्वैध शाशन की शुरुआत
कार्यो का विभाजन के लिए की सुचिया बनायीं गयी कि किस विषय पर केंद्र कानून बनाएगा (परिसंघ सूचि ) और किस विषय पर राज्य (राज्य सूचि) और किस विषय पर केंद्र और राज्य दोनों बनायेगे (समवर्ती सूचि).
संघीय न्यायालय की स्थापना
भारत में संघीय न्यायालय की स्थापना दिल्ली में की गयी जिसे आज सुप्रीम कोर्ट कहते हैं (उस समय इसे फेडरल कोर्ट कहते थे). सनद रहे एक सर्वोच्च न्यायालय कलकत्ता में १७७४ में १७७३ के रेगुलेटिंग एक्ट में बनाया गया था वह एक प्रान्त का सुप्रीम कोर्ट था क्योंकि तब तक भारत देश को विभिन्न प्रांतो में बांटा हुआ था (मुंबई कलकत्ता और मद्रास), १९३५ के अधिनियम में बने सुप्रीम कोर्ट को पुरे भारत का सुप्रीम कोर्ट बनाया गया.
महालेखा परीक्षक के पद को भारत का महालेखा परीक्षक पद से नामांकित किया गया (CAG )
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
पुरे भारत के वित्त के संतुलन के लिए एक केंद्रीय कृत बैंक की स्थापना रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के रूप में की गयी. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की इस बैंक की स्थापना में बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर की अर्थशास्त्र पर लिखी प्रसिद्ध पुस्तक ” दी प्रॉब्लम ऑफ़ दी रूपी: इट्स ओरिजन एंड सोलुशन” का विशेष योगदान है.
संविधान का मूल स्त्रोत
१९३५ का भारत शाषन अधिनियम अधिनियम को भारत के संविधान का मूल स्त्रोत भी कहते हैं, इस अधिनियम के २५० अनुछेद शब्दसः हमारे संविधान में लिए गए हैं.
१९४७ का भारत सवतंत्रता अधिनियम
इस समय भारत के वाइसराय लार्ड माउंटबेटन थे, प्रभुसत्ता ब्रिटिश सम्राट से निकलकर भारतीय संसद में आ चुकी थी, अब ब्रटिश नाम मात्र के शाशक थे, यह अधिनियम भारत को दो देशो के रूप में विभाजन के लिए लिए लाया गया थे एक भारत और दूसरा पाकिस्तान।
इस प्रकार हमने १८५७ के बाद भारत के संवैधानिक विकास को धीरे धीरे फलते फूलते देखा जो 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट से शुरू होता है, और ब्रिटश संसद द्वारा अंतिम अधिनियम “१९४७ का भारत सवतंत्रता अधिनियम” पर समाप्त होता है,
इसी कारण हमारे आज के सविधान में इन एक्ट और अधिनियम का महत्पूर्ण और सर्वाधिक योगदान है. इन अधिनियमों में ऐसे ऐसे कौन कौन से शब्द हैं, जो हम आज भी अपने आस पास सुनते हैं, जरा पता लगाइये।
*****