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शेख चिल्ली का ढोल

 
                                              शेख चिल्ली का ढोल                                                                                                                       *****
आवारा शेख चिल्ली
 
एक दिन उसकी अम्मी ने गुस्से में कहा, सुन बेटा अब तू बड़ा हो गया है कुछ काम धंधा ढूंढ नहीं तो मैं तुझे आज से खाना नहीं दूंगी, जी अम्मी मैं आज कुछ न कुछ काम ढूंढ कर ही घर में आऊंगा. यह कहकर वह पुरे गांव में काम की तलाश में घूमता रहा पर उससे पहले उसकी अक्लमंदी के किस्से  पहुँच जाते थे  इसलिए उसे किसी ने काम नहीं दिया|  
 
 अम्मी की चेतावनी 

थक हार कर शाम को वह घर लौट आया, अम्मी ने पूछा नालायक तुझे कुछ काम मिला की नहीं. नहीं अम्मी मुझे कोई काम पर ही नहीं रखता. अम्मी ने उसकी थकी हुई शक्ल देखि तो उन्हें लगा, हाँ लगता है इसने काम ढूढ़ने की कोशिश जरूर की होगी तभी यह इतना थका हुआ लग रहा है. अम्मी ने चेतावनी देते हुए कहा चल कुछ खा ले, कल से फिर काम ढूढ़ने  जाना है| 
 
खेत की रखवाली

    ऐसे ही कई दिन बीत गए, एक  रात  को शेख चिल्ली खेत की मचान पर लेटा हुआ था. तभी उसने चार नक़ाब पॉश देखे वह तेजी से कहीं  जा रहे थे. शेख चिल्ली उनके सामने आकर बोला तुम कौन हो और इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हो. वह बोले, हम किसी काम की तलाश में निकले है. इतनी रात को शेख चिल्ली बोला ,हाँ  भाई हमारा काम रात में ही होता है, क्या काम है तुम्हारा, हम काले चोर है शेखचिल्ली सोचने लगा मेरी तरह कितने मेहनती आदमी हैं. मैं भी रात में इन खेतों की रखवाली करता हूँ , क्या तुम्हे अच्छी आमदनी हो जाती है,  हो जाती है एक बोला, तुम छिप छिप कर क्यों जा रहे हो, लाना मेरी अम्मी भी  यही कहती है,  अक्ल की थाह जान गए
 
अच्छी आमदनी 

तीन चार दिन बाद वह चोर उसी रस्ते से जा रहे थे’ शेख चिल्ली उनको  आवाज देने लगा, वह चारों उससे बचकर भागने लगे, शेख चिल्ली उनसे आगे निकल आया, बोला मुझे भी अच्छी आमदनी चाहिए,. चाहता है  होती है, हम तुम्हे बाद में ले चलेंगे, शेख चिल्ली धमकी देते हुए बोला, ले चलते हो या अभी शोर मंचाऊ,  तुम बड़े छिप छिप कर जा रहो हो, उन्होंने सोचा अगर इसने शोर मचा दिया तो.
 
 रात  के घने अँधेरे में वोह एक गांव में घुस गए, चोर अपने काम में लग गए जो भी सामान आसानी से उनके हाथ लग रहा था वह उसे एक बड़े से बोरे में भरने लगे जैसे चद्दर, कपडे, बर्तन इत्यादि. शेख चिल्ली ने सोचा क्या पता यह चारों मुझे कुछ दे या न दे मुझे भी कुछ यहाँ से लेना  चाहिए,  वह चारो ओर अपनी नज़र दौड़ने लगा, किसी के आँगन में एक ढोल पढ़ा हुआ था , शेख चिली ने झट से वह ढोल उठा लिया.  अब उसके दिमाग में आया क्यों न इसकी आवाज सुनी जाये क्या पता यह ठीक से बजता भी है की नहीं. तुरंत उसने वह ढोल अपने गले में डाल लिया, उसे बजाने लगा, डंग-कड़क डिंग डंग-कड़क डंग-कड़क डिंग कड़क, टीड़ीक टांग डिंग टिल्लक  टिल्लक टिल्लक, वह ढोल बजाने में मस्त हो गया|  
 
ढोल की आवाज

ढोल बजा रहा है.  शेख चिल्ली ढोल बजाने में मस्त था, चारो चोर बोरे में रखे सामान को छिपाने लग गए. परन्तु गांव वालो की यह समझते देर नहीं लगी की यह चारो लोग कौन है, सबने उनकी खूब पिटाई की, शेख चिल्ली अब भी ढोल बजाने में मस्त था, गांव के लोग शेख चिल्ली को भी पीटने लगे.

 

yah kahani  bachpan me hanare  dadaji dwara sunai gai thi. 

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This Post Has 4 Comments

  1. Durgesh

    Ha haha tension dur Marne wali kahani

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