अभी तक हमने समझने की कोशिश की, अंग्रेज या ब्रिटिश संसद विभिन्न प्रकार के एक्ट या नियम लाकर, यहाँ अपने प्रशाषन को मजबूत करना चाहते हैं, यह भारत में फूट डालना चाहते हैं, स्कूलों में इतिहास में यही बताया जाता है, क्या यह सही है? भारत का संवैधानिक विकास इन नियमो पर हुआ था, इससे पहले यह भारत एक नियम विहीन समाज के रूप में ही जाना जाता है, जिसकी लाठी उसकी भैंस, और यह लाठी धरम की आड़ में रखी जाती थी. धर्म की आड़ में भी अन्ययाय हो सकता है, इसके साक्षी अग्रेज भी रहे होंगे। सॉउथबोरो कमीशन भारत में क्यों आया? डॉ भीमराव अम्बेडकर इस कमीशन को क्या सुझाव देना चाहते हैं, यह कमीशन भारत के संविधान में क्या करता है, कुछ ऐसे ही सवालों को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर समझते हैं.
सामजिक व्यवस्था में सेंध
पीछे बताये गए अंग्रेजो के इन एक्ट की कुछ बातें देखिये, इनका क्रम भी देखे, १८३३ का चार्टर एक्ट ” जाति और वर्ग देखकर नौकरी देने पर पूर्णत पाबन्दी तथा दास प्रथा समाप्त ” १८५३ का चार्टर एक्ट ” प्रतियोगी परीक्षाओं का आरम्भ”
यहाँ वह समाजिक बदलाव चाहते हैं
राजनितिक व्यवस्था में सेंध
१८९२ का भारत शाशन अधिनियम “विधान सभाओ में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरुआत (नॉमिनेशन) १९०९ का भारत शाशन अधिनियम ” केंद्रीय विधान सभा में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरुआत” “मुस्लिम धर्म के अनुयायिओं के लिए पृथक निर्वाचन” १९१९ भारत शाशन अधिनियम ” सिख धरम के अनुयाइयो के लिए पृथक निर्वाचन”.
यहाँ वह अल्पसंख्यकों को शाशन में लेने के लिए विशेष प्रावधान करते हैं.
साइमन कमीशन एक खलनायक
इन एक्ट और अधिनियमों को देखकर तो यही लगता है कि पुरे भारत के इतिहास में सामजिक व्यवस्था और राजनितिक व्यवस्था दोनों को संवैधानिक दायरे में लाना चाहते हैं. अभी पीछे हमने साइमन कमिशन का जिक्र किया, कुछ इतिहासकारों के अनुसार साइमन कमीशन को खलनायक बताया गया है, तत्कालीन सभी राजनितिक दलों ने उसका विरोध किया था, कांग्रेस मुस्लिम लीग इत्यादि दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था, लेकिन डॉ भीमराव आंबेडकर इसकी सहायता कर रहे थे, यह उलटी गंगा क्यों बह रही थी, आइये ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कुछ पड़ताल करते हैं.
कोंग्रेस और मुस्लिम लीग की शाषन में पृथक निर्वाचन की मांग
इसके लिए हमें १८८५ में जाना पड़ेगा, जब कांग्रेस की स्थापना हुई थी, जिसका मुख्य कार्य था, भारत के लोगों की समस्याओ को अंग्रेजी शाशन तक पहुँचाना बाद में यह राजनितिक दल के रूप में प्रितिष्ठति हो गयी, यहाँ देखिये १८९२ का भारत शाशन अधिनियम “विधान सभाओ में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरुआत (नॉमिनेशन), चूँकि कांग्रेस सक्रीय थी इसलिए प्रांतो में अधिकतर नॉमिनेशन की भूमिका कांग्रेस की रही होगी या कांग्रेस में उस समय के रसूखदार रहे होंगे, प्रांतो में चयन का आधार शैक्षिक रहा होगा। हो सकता है कांग्रेस ने मुस्लिम लोगों का नॉमिनेशन करने में पक्षपात किया हो या मुस्लिम प्रांतो में अपना अधिक प्रतिनिधित्व चाहते हो, इसका प्रमाण हमें मिलता है १९०६ में मुस्लिम लीग की स्थापना से.
अब दो राजनैतिक दल ब्रिटिश शासन में अपने लोगो की दावेदारी ठोकते हैं, या यूँ कहे तत्कालीन भारत सरकार में अपना एक दूसरे से अधिक आरक्षण चाहते हैं. दलितों के पास न पैसा, न पढ़ाई, हिन्दुओ से अपमानित मुस्लिमो से अलग क्या ऐसे में वह भारत सरकार में अपना प्रतिनिधित्व सोच सकते हैं? इसका उत्तर नहीं होगा। यहाँ भारत अधिनियम १९०९ देखे ” मुस्लिमो के लिए पृथक निर्वाचन”.
धर्म तथा जाती आधारित जनगढ़ना
मुस्लिमो को जब आरक्षण मिलता है, सिखों में बेचैनी हुई होगी उन्होंने भी अपना प्रतिनिधित्व का दावा ठोका, अब अंग्रेजो के पास समस्या थी इसे कैसे दूर किया जाये, हिन्दू मुस्लिम और सिख अपनी अलग अलग दावेदारी कर रहे हैं. किसको अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाये, इसके लिए उन्होंने १९११ में पहली बार जनसँख्या की गिनती कर दी, ताकि प्रांतीय सीटों का बटवारा उचित अनुपात में कर सके, एक और काम कर दिया उन्होंने धरम के साथ साथ जाति की भी जनगढ़ना कर दी, क्योंकि देश में रहते हुए उन्हें भारत में हिन्दू धरम की वर्ण व्यवस्था का भी पता होगा, अछूतों और गैर ब्राहम्ण वर्ग (obc ) की भी दशा पता होगी, लेकिंग वह एक गलती कर गए उन्होंने गैर ब्राह्मण वर्ग, अछूतों, जंगली और अपराधिओं को एक साथ मर्ज कर दिया, जिससे इन वंचित वर्गों का नॉमिनेशन प्रांतो में न के बराबर था, जब अंग्रेज प्रांतो की विधान सभा देखते होंगे वहां भी कुछ खास वर्ग तक ही प्रांतीय सभा में वर्चस्व देखते होंगे। दूसरे पश्चिम में लोकतंत्र अपनी जड़े जमा रहा था.
मताधिकार तथा निर्वाचन प्रणाली तैयार करने वाली समिति (आयोग)
जब जनगढ़ना हो गयी नतीजे चौकाने वाले थे, कांग्रेस मुस्लिम लीग दोनों बेचैन क्योंकि अब उनकी सीटों पर खतरा बढ़ गया था, दलित वर्ग की जातियाँ और गैर ब्राम्हिन (obc) की जातियां, आदिवासी भी अब जनसंख्या रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी. इधर १९१७ मार्ले मिंटो सुधार सिमिति ने इस समस्या का निपटारा करने के लिए साउथ बोरो की अध्यक्षता में एक सिमिति बना दी, जिसका मुख्य कार्य था प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में धर्म और जाति की जनसँख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व सीटों के लिए मताधिकार तथा निर्वाचन प्रणाली तैयार करना। शाहूजी महाराज के कहने पर, बी डी जाधव ने obc वर्ग की ओर से, डॉ भीमराव आंबेडकर ने दलित वर्ग के अलग से नामांकन तथा अन्य समस्याओं के बारे में अलग अलग ज्ञापन इस सिमिति को दिया। इस साउथबोरो कमीशन ने पहली बार अछूतों की और उनकी समस्याओं की अलग से पहचान को मान्यता दी, इससे पहले इन्हे डिप्रेस्ड क्लास जिसमे अन्य गैर ब्राह्मण जातीया, पहाड़ी जनजाति और अपराधी सभी माने जाते थे।
साउथबोरो कमीशन की रिपोर्ट
27 जनवरी 1919: डॉ. अम्बेडकर ने एक ज्ञापन सौंपा और साउथबोरो आयोग के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत किया। ज्ञापन पर साउथबोरो कमीशन की रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें।
इस आयोग ने यह नोटिस किया की इस आयोग ने अनजाने में हिंदू समाज के विभाजन को अछूतों और गैर अछूतों (जिसमे अन्य जातीया, पहाड़ी जनजाति और अपराधी ) में मिला दिया था। डॉ आंबेडकर ने अछूतों के लिए अलग प्रतिनिधि की मांग की क्योंकि वह किसी भी जगह बहुमत में नहीं थे, अन्य वर्गों से दलित प्रतिनिधि चुनने का उनने कड़ा विरोध किया (शायद पहले अन्य वर्गों से भी दलित प्रतिनिधि तैयार किये जाते थे) . अछूत होने के परिणामस्वरूप, अछूतों के पास कोई संपत्ति नहीं थी; वे व्यापार नहीं कर सके क्योंकि उन्हें ग्राहक नहीं मिल रहे थे, इसलिए मताधिकार के लिए निम्न योग्यता की मांग की। बॉम्बे प्रेसीडेंसी की मिलों में अछूतों को अभी तक बुनाई विभाग में काम करने की अनुमति नहीं थी: एक मामले में एक अछूत ने एक मिल के बुनाई विभाग में यह कहते हुए काम किया कि वह एक मुसलमान है, और जब पता चला, तो उसे बुरी तरह पीटा गया। . एक व्यक्ति के रूप में “अछूत” की परिभाषा, जो अपने स्पर्श से किसी बड़ी जाति के पतित होने का कारण बनती है।
डॉ आंबेडकर ने इस आयोग के समक्ष रखा कि पूरे बॉम्बे प्रेसीडेंसी में एक बी.ए. और दबे-कुचले वर्गों में 6 या 7 मैट्रिक पास हैं। अंग्रेजी में साक्षर लोगों का अनुपात बहुत कम था, लेकिन पिछड़े वर्गों की तुलना में बहुत कम नहीं था। दलित वर्ग विशेष रूप से महार और चमार मतदान करने के लिए उपयुक्त थे। वह उन्हें शिक्षा के माध्यम से वोट भी देते थे। उन्हें उनमें से कम से कम 25 या उससे अधिक पुरुष मिले जिन्होंने हाई स्कूल की 6वीं या 7वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी, और, हालांकि संख्या बड़ी नहीं थी, लेकिन उनके द्वारा सुझाई गयी 9 सीटों को उनमें से ही भरा जा सकता था। व्यावहारिक मामलों में ऐसा उम्मीदवार स्नातक जितना ही अच्छा होगा, हालांकि बाद वाला खुद को बेहतर ढंग से व्यक्त करने में सक्षम हो सकता है।
मुस्लिम वर्गों की तरह ही उन्होंने दलित वर्गों के लिए बड़े निर्वाचन क्षेत्रों का सुझाव दिया। दलित वर्गों के लिए सीटों की आवश्यक संख्या प्राप्त करने के लिए वह मुसलमानों के लिए ३८ सीटों में से 10 सीट का सुझाव दिया, यह कमी उचित थी, क्योंकि जनसंख्या के आधार पर मुसलमान केवल 20 प्रतिशत के हकदार थे। उन्होंने कांग्रेस लीग पैक्ट को सभी पर बाध्यकारी नहीं माना।
सबूतों में उन्होंने बताया कि अछूत ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें नागरिकता के कुछ अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। उदाहरण के लिए, सड़क पर चलना प्रत्येक नागरिक का अधिकार था, और यदि किसी व्यक्ति को अस्थायी रूप से भी ऐसा करने से रोका जाता था, तो यह उसके अधिकार का उल्लंघन था, लेकिन अछूत सड़क पर भी नहीं चल सकता था और । सरकार ने पुराने रीती रिवाजो वाली सामाजिक प्रथा को मान्यता दी थी, तथा अछूत वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को सरकारी सेवा में नियोजित नहीं किया गया था।
उनका विचार था, कि भारत में ब्रिटिश शासन सभी के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए था, और यह कि सत्ता का एक बड़ा हिस्सा लोकप्रिय संस्थाओ से अलग किया जाये, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे सामाजिक व्यवस्था द्वारा उत्पन्न कठिनाइयों और अक्षमताओं को पुन: उत्पन्न न किया जाए और राजनीतिक संस्थाओं में यह कायम रहे । जहाँ तक वर्तमान स्थिति की सही-सही बात है, उन्होंने स्वीकार किया कि उदाहरण के लिए, परेल स्कूल में, जो दलित वर्गों के लिए था, वहाँ कई उच्च जाति के छात्र थे, जो वहाँ आए थे क्योंकि यह एक अच्छा स्कूल था। इसी तरह एक प्रोफेसर के रूप में वे (डॉ अंबडेकर) एक दलित वर्ग के सदस्य होने के नाते, सभी वर्गों के प्रोफेसर थे और ( उस समय डॉ आंबेडकर एक बम्बई के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे )उन्हें अपने उच्च जाति के विद्यार्थियों के साथ व्यवहार करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। यदि अछूत वर्गों को सरकार द्वारा सीटों के अनुदान से मान्यता दी जाती है, तो उनकी स्थिति को ऊंचा किया जाएगा और उनकी शक्तियों को प्रोत्साहित किया जाएगा हालाँकि दलितों की लिए सीटों की संख्या उनने नहीं बताई थी। (इंटरनेट की एक उचित जानकारी पर आधारित )
——
राष्ट्रवाद की भावना
कांग्रेस और मुस्लिम लीग को जब अपने राजनितिक क्षेत्र में कटौती दिखाई, दी आपस में समझौता कर लिया। इतिहास में इसे स्वाधीनता के लिए हुआ समझौता बताया जाता है, हो सकता है यह सही हो दूसरी ओर कांग्रेस ने अस्पृश्यता (अछूत ) निवारण कायक्रम को अपनी मुख्य राजनिति में जगह दे दी थी, अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने लगी थी या प्रयोजित होने लगी थी यह छात्रों के लिए शोध का विषय हो सकता है । बड़े बड़े राजनितिक दल इन वंचित वर्गों को अंग्रेजो से अपनी लड़ाई में शामिल कर रहे थे.
इस प्रकार हम देखते हैं डॉ आंबेडकर ने अंग्रेजो को बताया की केवल रसूखदार या पैसे वाले लोग ही भारत नहीं है, एक गुमनाम भारत भी है जो सरकारी मूल सुविधाओं से भी वंचित है उन्हें उनका उचित हक़ मिलना चाहिए, जिसे किसी ने अंग्रेजो के फूट डालो शाशन करो की निति कहा, किसी ने बलवानो से अधिकार लेकर कमजोरों में बाँटने वाले आयोग, यह निर्णय पाठको का है. कुछ भी हो संविधान निर्माण में २६ वर्षीय एक निडर जवान विद्वान डॉ भीमराव आंबेडकर का प्रवेश हो गया था साल था १९१८।
*****