You are currently viewing पृथ्वी की स्थलमंडलीय प्लेट

पृथ्वी की स्थलमंडलीय प्लेट

हमारी बदलती पृथ्वी 

स्थलमंडलीय प्लेट 

स्थलमंडल अनेक प्लेटों  में विभाजित है. जिन्हे स्थलमंडलीय प्लेट कहते हैं, यह हमेशा धीमी गति से चारों  ओर  घूमती रहती हैं प्रत्येक वर्ष केवल कुछ मिलीमीटर के लगभग। पृथ्वी के अंदर पिघले हुए मैग्मा के कारण  ऐसा होता है. पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मैग्मा एक वृतीय रूप में घूमता रहता हैमैग्मा के बारे में अधिक जानने के लिए कृपया इस लिंक पर जायें.  https://padhailelo.com/shal-chhattan/

अंतर्जनित बल (एन्डोजेनिक फ़ोर्स) बहिर्जनिक बल (एक्सोजेनिक फ़ोर्स)

प्लेटों की इस गति के कारण पृथ्वी की सतह पर बदलाव होते हैं. पृथ्वी की गति को उन बलों के आधार पर विभाजित किया गया है. जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं उन्हें अंतर्जनित बल (एन्डोजेनिक फ़ोर्स) कहते हैं। जो बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं उन्हें बहिर्जनिक बल (एक्सोजेनिक फ़ोर्स) कहते हैं.

अंतर्जनित बल (एन्डोजेनिक फ़ोर्स)

ज्वालामुखी

sthal8

अंतर्जनित बल कभी आकस्मिक गति उत्पन्न करते हैं तो कभी धीमी गति. भूकंप एवं ज्वालामुखी जैसी आकस्मिक गति के कारण पृथ्वी की सतह पर अतयधिक हानि होती है. ज्वालामुखी भूपर्पटी पर खुला एक छिद्र होता है जिससे पिघले हुए पदार्थ अचानक निकलते हैं. 

भूकंप

sthal 9

इसी प्रकार स्थलमंडलीय प्लेटो के गति करने पर पृथ्वी की सतह पर कम्पन होता है. इस कम्पन को भूकंप कहते हैं. भूपर्पटी के नीचे वह स्थान जहां कंपन आरम्भ होता है, उद्गम केंद्र कहलाता है. उद्गम केंद्र के भूसतह पर उसके निकटतम सतह को अभिकेंद्र कहते हैं. अधिकेंद्र से कम्पन बहार की ओर तरंगो के रूप में गमन करती है. अभिकेंद्र के निकटतम भाग में सर्वाधिक हानि होती है और इससे दूर जाने पर भूकंप की त्रीवता कम होती जाती है. भूकम्पक की भविष्यवाणी अभी संभव नहीं है. फिर भी स्थानीय लोग भूकंप की सम्भावना का अनुमान लगाते हैं जैसे जानवरों  के व्यव्हार में परिवर्तन, तालाब में मछलियों की उत्तेजना, सांपो का धरातल पर आना. 

भूकंपलेखी

भूकंप का मापन एक यंत्र से किया जाता है जिसे भूकंपलेखी कहते हैं जिस भूकंप की त्रीवता रिक्टर स्केल पर २. ० या उससे कम होती है उसका प्रभाव नहीं के बराबर होता है. जिसकी त्रीवता 5 होती है वह वस्तुओ  के गिरने से छति पहुंचा सकता है. जिस भूकंप की त्रीवता ६ या उससे अधिक होती है वह बहुत शक्तिशाली और जिसकी त्रीवता ७ या उससे अधिक होती है वह सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता है. 

(२६ जनवरी २००१ को भुज (गुजरात ) में ६.९ की तीरवता का भुकम्प था. इससे होने वाले नुकसान का आप अंदाजा लगा सकते है.)

अपक्षय तथा अपरदन से भी भूसतह लगातार विघटित होती है. 

अपक्षय 

अपक्षय (Weathering) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह पर मौजूद चट्टानें में टूट-फूट होती है। यह अपरदन से अलग है, क्योंकि इसमें टूटने से निर्मित भूपदार्थों का एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरण या परिवहन नहीं होता। 

अपरदन 

अपरदन (Erosion) वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों का विखंडन और परिणामस्वरूप निकले ढीले पदार्थों का जल, पवन, इत्यादि प्रक्रमों द्वारा स्थानांतरण होता है। अपरदन के प्रक्रमों में वायु, जल तथा हिमनद और सागरीय लहरें प्रमुख हैं। वायु जल आदि अपरदित पदार्थ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते है जिसे निक्षेपण कहते है.

नदी के कार्य 

जलप्रपात (Waterfall)

sthal9

नदी के जल से भूसतह का अपरदन होता है. जब  नदी किसी खड़े ढाल वाले स्थान से अत्यधिक कठोर शैल या खड़े ढाल वाली घाटी में गिरती है तब यह जलप्रपात बनाती है

विसर्प (visceral), चापझील तथा अवसाद

जब नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तब यह मोड़दार मार्ग पर बहने लगती है, नदी के इन मोड़ो को विसर्प (सांप की तरह चाल) कहते हैं. इसके बाद विसर्पों के किनारे पर लगातार अपरदन एवं निक्षेपण शुरू हो जाता है. विसर्प लूप के सिरे निकट आते जाते हैं. समय के साथ विसर्प लूप नदी से काट जाते हैं और एक अलग झील बनाते हैं जिसे चापझील भी कहते है.  sthal3

कभी कभी नदी अपने तटों से बाहर बहने लगती है, जिससे समीपस्थ क्षेत्रों  में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ के कारण नदी के तटों के आसपास के क्षेत्रो में महीन मिटटी एवं अन्य पदार्थो का निक्षेपण करती है. जिन्हे अवसाद कहते हैं. इनसे समतल उपजाऊ बाढ़कृत मैदान का निर्माण होता है. 

तटबंध वितरिका तथा डेल्टा

नदी के उत्थित (Raised) तटों  को तटबंध कहते है. समुद्र तक पहुँचते पहुंचते नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है यह नदी अनेक धाराओं में बंट जाती है. जिनको वितरिका (डिस्ट्रीब्यूटर) कहते है. यहाँ नदी इतनी धीमी हो जाती है की यह अपने साथ लाये हुए मलबे का निक्षेपण करने लगती है.  प्रत्येक वितरिका अपने मुहाने का निर्माण करती है. इन सभी मुहाने के अवसादों के संग्रह से डेल्टा का निर्माण होता है. 

समुद्री तरंग के कार्य 

समुद्री तरंग के अपरदन एवं निक्षेपण तटीय स्थलाकृतियां बनाते हैं. समुद्री तरंगे लगातार शैलो से टकराती हैं, जिससे उनमे दरार पड़ जाती है जो समय के साथ बड़ी और चौड़ी होती जाती है, इनको समुद्री गुफा (sea cave) कहते हैं. इन गुफाओं  के बड़े होते जाने पर केवल छत ही बचती है, जिसे तटीय मेहराब (coastal arch) कहते हैं. लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देता है और केवल दीवारें  बचती हैं, दीवार जैसे इन आकृतियों को स्टैक कहते है. समुद्री जल के ऊपर उर्ध्वाकार उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को समुद्र भर्गु  (sea beetle) कहते है। समुद्री तरंगे किनारों पर अवसाद जमा कर समुद्री पुलिन (sea bridge) का निर्माण करती हैं 

sthal5

हिमनद (glacier) के कार्य

हिमनद एवं हिमानी बर्फ की नदियाँ होती  हैं. हिमनद अपने नीचे की कठोर चट्टानों से गोलाश्मी मिटटी और पत्थरों से भूसतह का अपरदन करती हैं. हिमनद गहरे गर्तों (गड्ढा ) का निर्माण करती हैं. पर्वितीय क्षेत्रों  में बर्फ पिघलने से उन गर्तों में जल भर जाता है और वह सुन्दर झील बन जाते हैं. हिमनद के द्वारा लाये गए पदार्थ जैसे बड़े शैल, रेत एवं तलछट मिट्टी निक्षेपित होते हैं. यह निक्षेप हिमनद जलोढ़ (glacial alluvia) का निर्माण करते हैं.

sthal1

पवन के कार्य 

रेगिस्तान में पवन,अपरदन एवं निक्षेपण का प्रमुख कारण है, यहाँ छत्रक (beehive) के आकार के शैल दिख जाते हैं.  जिन्हें सामन्यतः छत्रक शैल  कहते हैं. पवन शैल के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भाग को आसानी से काटती है. इसलिए इन शैलों  के आधार संकीर्ण एवं शीर्ष विस्तृत होते हैं. 

बालू टिब्बा तथा लोएस

पवन चलने पर यह अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाती है, जब पवन रूकती है तो यह रेट गिरकर  एक छोटी पहाड़ी बनाती है. इनको बालू टिब्बा (sand dune) कहते हैं. जो बालू कण महीन एवं हलके होते हैं, पवन उनको उठाकर अत्यधिक दूर ले जा सकती है. जब यह बालू कण विस्तृत क्षेत्र में निक्षेपित हो जाते हैं. तो इसे लोएस कहते हैं. चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं.  

पिघला हुआ मैग्मा

इस प्रकार हमने जाना की हमारी पृथ्वी की स्थलमंडलीय प्लेट जो हमेशा धीमी गति से चारों ओर घूमती रहती हैं. उनसे जो अंतर्जनित बल (एन्डोजेनिक फ़ोर्स) एवं बहिर्जनिक बल (एक्सोजेनिक फ़ोर्स) लगते है. उनसे नए -२ भूदृश्य  का निर्माण भी होता है और विनाश भी. हो सकता है जहाँ हम आज रहते हैं  वहां कभी समुद्र हो, कोई पर्वत हो या कोई नदी हो, झील हो, खाई हो, या फिर रेगिस्तान हो. 

                                                                      ****  

Leave a Reply