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वायुमंडल का विभाजन 

वायुमंडल का विभाजन 

हवा एक ऐसा शब्द है जिस को हम अक्सर सुनते हैं, महसूस भी करते हैं क्या हम उसे देख पाते  हैं? हवा मौसम को भी बदल देती है, कभी ठंडी हवा चलती है कभी गर्म हवा चलती है. हवा को भूगोल विषय के अंतर्गत वैज्ञानिक/भूगोलवेत्ता  कैसे देखते हैं, पृथ्वी पर हवा या वायुमंडल का विभाजन  कैसे किया गया है. इस बारे में जानने की कोशिश  करते हैं.

वायुमंडल विभिन्न  गैसों का मिश्रण है. वायुमंडल (हवा) में कौन सी  गैस पाई जाती है, कितनी मात्रा है. 

नाइट्रोज़न ७८%, ऑक्सीजन २०.९३%, ऑर्गन ०.९३ (अक्रिय गैस ), कार्बन डाइऑक्साइड (CO 2 ) ०. ०३ %

ऑक्सीजन एक महत्वपूर्ण और जीवन दायिनी गैस है यह मानव और विभिन्न जन्तुओ के श्वसन में काम आती हैं (बिना ऑक्सीजन के जीवन की कल्पना हो सकती है ) , नाईट्रोज़न का अधिक मात्रा में होने के कारन पृथ्वी पर सबसे अधिक दवाब इसी गैस का लगता है यह पौधों के विकास के लिए भी जरुरी होती है, ऑर्गन को एक अक्रिया गैस की श्रेणी गैस कहा जाता है, कार्बन डाइऑक्साइड भी पौधों के लिए बहुत जरुरी है लेकिन एक सिमित मात्रा में. 

वायुमंडल को हवा में पाए जाने वाले कुछ विशेष गुणों के आधार पर निम्न क्षेत्रो (मंडलो ) में बांटा  गया है.

क्षोभमंडल (Troposphere ) (upto 18 Km)

समुद्रतल (विषुवतीय क्षेत्र ) से इसकी ऊंचाई १८ किमी तक मानी  गयी है ध्रुवो से ऊपर यह ८ किमी तक पाया जाता है 

इसमें अधिकतर भारी  गैसे  पायी जाती है जैसे  नाइट्रोज़न, ऑक्सीजन, ऑर्गन ०.९३ (अक्रिय गैस ), कार्बन डाइऑक्साइड (CO 2 ) इत्यादि।

CO २ अत्यधिक भारी  होने के कारण  केवल यहीं पायी जाती है जो पौधों के विकास के लिए बहुत जरुरी है यधपि पौधे इसका प्रयोग नाईट्रेट के रूप में करते हैं। इसको ग्रीन हाउस गैसों की श्रेणी में रखा जाता है, आज ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ने में इस गैस की मात्रा का अत्यधिक बढ़ना माना जाता है. 

मौसम संबंधी सभी घटनाये यही पर घटित होती हैं जैसे बारिश बादल आंधी तूफान इत्यादि

 जब हम क्षोभमंडल में ऊपर उठते है तो तापमान में कमी आती जाती है इसकी दर प्रति १६५ मीटर ऊंचाई बढ़ने पर तापमान में १ डिग्री की कमी आती है, इसका कारन यह है की कार्बन डाइऑक्साइड सबसे भारी  गैस होने के कारन सबसे नीचे रहती है जो की सूर्य के ताप को अवशोषित कर लेती है और गर्मी को बढ़ा देती है या यूँ  कहे की ऊंचाई बढ़ने पर अवशोषित  ताप  काम होता जाता है.

गर्मी में हवा ऊपर उठती है ठंडी में नीचे बैठती है इसलिए गर्मी में क्षोभमंडल की ऊंचाई हवा में ऊपर उठने के कारन बढ़ जाती है और ठंडी में क्षोभमंडल की ऊंचाई कम हो जाती है.

इसे संवहन मंडल भी कहा जाता है.  

संताप मंडल (stratosphere ) (pto 50 Km)

क्षोभमंडल से ऊपर अर्थार्त धुर्वों  के ऊपर स्थित क्षोभमंडल सीमा से  ४२ किमी ऊपर और समुद्र तल पर क्षोभमंडलिया सीमा जो  ३२ किमी तक है,  उनके ऊपर ५० किमी सीमा तक समतापमंडल पाया जाता है.

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मौसम संबंधी घटनाये यहाँ नहीं होती इसलिए वायुयान को उड़ने के लिए यह एक आदर्श स्थिति होती है जब कभी वायुयान में आरामदायक स्थिति में हो या आपका वायुयान सीधा चल रहा हो समझ लेना आप समताप  मंडल में हैं। 

ओजोन परत (Ozon Layer)

हम अक्सर ओजोन परत के बारे में सुनते है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी हानिकारक किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकने का काम करती है अगर यह न हो  इन हानिकारक किरणों से पृथ्वी पर मानव जीवन समाप्त हो सकता है. इसकी मोटाई १५ से ३५ किमी तक होती है 

हम अक्सर ओज़ोन परत में छेद बड़ा  हो रहा है यह भी सुनते हैं, इसके पीछे cfl (कोलोरोफिन ) गैस की बढ़ती मात्रा को बताया जाता है जो की धरती पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से होती है कहना न होगा की कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा आधुनिक विज्ञानं की एक अभिशप्त देन  है जो मानवीय लालच के कारन पर्यावरण से खिलवाड़ के रूप में बढ़ती जा रही है, जिसका परिणाम हम मानवीय जीवन के गिरते स्वास्थ्य के रूप में देख रहे हैं. 

ओज़ोन परत को धरती वासियो से अधिक नुकसान न पहुंचे इसके लिए विश्व समुदाय प्रति  वर्ष १६ सितम्बर को ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है.

मध्यमंडल (Mesosphere) (५० किमी से ८० किमी )

संताप मंडल जिसकी सीमा ५० किमी तक होती है उसके ठीक ऊपर मध्यमंडल पाया जाता है जिसकी सीमा ५० किमी से ८० किम तक होती है , इसकी कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं :

यहाँ पर -१०० डिग्री टेम्प्रेचर पाया जाता है, पुरे वायुमंडल में सबसे कम तापमान यही पर पाया जाता है 

अंतरिक्ष में हवा में तैरते हुए पत्थर के टुकड़े जिन्हे उल्का पिंड भी कहते हैं,  मध्य मंडल में आते ही जल जाते हैं, जिन्हे हम टूटता तारा भी कहते हैं जबकि वास्तविक रूप में तारे एक गैसीय पिंड है जो कभी नहीं टूटते।अतः यह मंडल हमारी पृथ्वी को इन उल्का पिंडो से बचाता  है. 

आयन मंडल (Ionosphere) (८० किमी से ६४० किमी तक 

मध्यमंडल के ठीक ऊपर अर्थार्त ८०  किमी से ६४० किमी तक पायी जाती है. 

इसमें आयनिक गुण  पाए जाते हैं, पृथ्वी से उठने वाली रेडिओ धर्मी तरंगो को यह मंडल पृथ्वी पर परावर्तित कर देता है जिससे संचार व्यवस्था बनती है, आज जो भी टीवी इंटरनेट रेडिओ पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का हम सीधा प्रसारण देख या सुन  पाते  हैं उन रेडिओ धर्मी तरंगो का पृथ्वी पर पुनः परावर्तन होता है वह यहीं पर होता है.

बाह्यमंडल (Thermosphere) (Above 640 Kilometer)

६४० किमी से ऊपर वायुमंडल की सीमा तय नहीं है, इसे बाह्य मंडल भी कहा जाता है , इसमें हलकी गैसे  जैसे हा इड्रोजेन एवं हीलियम पायी जाती हैं. जितने भी विश्व समुदाय ने संचार उपग्रह छोड़े  हैं वह यही पर स्थित होते हैं अर्थार्त समुद्रतल से ६४० किमी ऊपर हमारे संचार उपग्रह स्थित होते है. यह भी दो प्रकार के होते है:

धुर्वीय कक्षीय उपग्रह जो की ७०० से ११०0 किमी की ऊंचाई तक छोड़े  जाते हैं 

भूस्थैतिक उपग्रह  जिन्हे की ३६०० किमी की ऊंचाई पर छोड़ा जाता है.

इस प्रकार हमने जाना की हमारे विभिन्न वायुमंडल किसी न किसी रूप में हमारी सुन्दर धरती को बचाने और सवारने में अपनी भूमिका निभाते हैं. मानव प्रकृति द्वारा बनाये इन विभिन्न वायुमण्डलो की सीमा तय करने में सक्षम हुआ है क्या वह इन वायुमण्डलो को अधिक हानि न हो  ऐसी किसी  सीमा को  बनाने में भी सक्षम हो पाया है ?

वायुमंडल के बारे में पिछले लेख पढ़ने के लिए कृपया लिंक पर जाएं https://padhailelo.com/vayumandal/

 

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