दूसरा गोलमेज समेलन : तैयारी, पृष्ठ्भूमि, कार्यवाही और बहस
अभी हमने महात्मा गाँधी और डॉ अंबेडकर पहली मुलाकात के बारे में चर्चा की, इस मुलाकात के बारे में टाइम्स ऑफ़ इंडिया १८ अगस्त १९३१ के हवाले से डॉ अंबेडकर कहते हैं ” मैंने उन्हें अछूतो के प्रति कांग्रेस के निष्ठाहीन नजरिए के बारे में बुनियादी सच बताये हैं. एक गरीब महात्मा इस विषय में क्या कर सकता है जब पूरा देश केवल अश्प्रश्यता में ही विश्वास करता है”. डॉ अंबेडकर की स्पीच एंड राइटिंग केआधार पर दूसरा गोलमेज सम्मलेन की तैयारी, इसकी पृष्ठ्भूमि और इसकी कार्यवाही में बहस के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करते हैं.
KRIPYA DR AMBEDKR AUR MAHATMA GANDHI KI PAHLI MULAKAT SAMEELAN ME AANE SE PAHLE KE LIYE LINK PAR JAYEN:https://padhailelo.com/first-meeting-gandhi-and-ambedkar/
डॉ आंबेडकर की जय
लगभग सभी राजनेता १५ अगस्त १९३१ को लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मलेन में शामिल होने के लिए मुल्तान (स्टीमर ) से जाने लगे. उस दिन बंबई के पीर घाट पर एक सुरम्य नजारा था, रजवाड़ो से लेकर कंगाल लोगो वहां जमा हुए थे , अपने राजाओं को और नायकों का हौसला बढ़ाने के लिए उनके अनुयायी, दोस्त, प्रशंसक वहां इकठा हुए थे. एक नेता जब अपनी कार से वहां उतरा तो एक जोर की जय धवनि वहां गूंजने लगी, दो हजार से ज्यादा स्वयंसेवक मोल स्टेशन की सड़क के दोनों तरफ उनके आदर स्वागत के लिए खड़े हुए थे और जोर जोर से नारे लगाए “डॉ आंबेडकर की जय” और लॉन्ग लाइव डॉ आंबेडकर “.
गांधीजी की यात्रा पर अभी फैसला नहीं
सरोजिनी नायडू और मालवीय, जो उसी स्टीमर से लंदन जाने वाले थे, उन्होंने अपनी यात्रा कैंसिल कर दी थी क्योंकि गांधीजी की यात्रा पर अभी फैसला नहीं हुआ था. डॉ आंबेडकर ने गांधीजी के गोलमेज सम्मलेन में शामिल होने के इस इंकार के बारे में कहा “भारत के लोगों हितों के ऊपर बोरोदोली (गुजरात) के हितों की क्षुद्र शिकायतों के बारे में परेशान होने, जिसका समाधान उन्हें उन अधिकारियों पर नियंत्रण करने में सक्षम करेगा और बड़ी समस्या के बारे में अनजान रहना एक बड़ी मूर्खता है, यह एक ऐसी चीज है जिसे मैं समझ नहीं सकता”.
गाँधीजी के विरोधी नजरिये को उजागर करे
डॉ आंबेडकर अब अपनी मांगों पर गांधीजी के विरोध के बारे में गहराई से सोच रहे थे, इसलिए उनने अपने लोगों तक अपने सचिव के जरिये सन्देश भेजा, लोगों की मीटिंग करे, हमारी मांगों के बारे में गाँधीजी के विरोधी नजरिये को उजागर करे. उनने एक चिठ्ठी और लिखी और अपने सचिव को कहा, सम्मेलन में दिए गए पहले ज्ञापन की प्रतिया और श्रीनिवासन के साथ वह लेदर बैग भी यहाँ भेज दें.
ख़राब तबीयत के बारे में उनकी पत्नी से एक भी शब्द न कहें
२९ अगस्त १६३१ को लंदन में को पहुँचने पर डॉ आंबेडकर को इन्फ्लुएजा हो गया था, उन्हें वोमिटिंग और डायरिआ ने जकड लिया था, जिससे उनकी सारी एनर्जी समाप्त हो गयी, उनने एक चिठ्ठी में अपने सचिव को बताया उनका स्वास्थ्य संकट के कगार पर है, ७ सितम्बर से वह थोड़ा बेहतर महसूस करने लगे लेकिन कमजोरी नहीं गयी थी. इस पुरे समय वह अपने सचिव को सलाह देते रहे कि उनकी ख़राब तबीयत के बारे में उनकी पत्नी से एक भी शब्द न कहें। जो रूडी वादी हिन्दू महाड के सब जज कोर्ट में हार गए थे, उन्होंने ठाणे के जिला कोर्ट में अपील कर दी थी, इस ओर भी उनका ध्यान था.
इसी बीच में शिमला में, गांधीजी, वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू और परभसंकर (PATTANI) ने वाइसराय के साथ मुलाकात में समझौता कर लिया था. गांधीजी जल्दी से जल्दी बॉम्बे जाना चाहते थे, ताकि वह पहले स्टीमर से लंदन के लिए चल सकें। १२ सितम्बर को गाँधी जी सरोजिनी नायडू और मालवीय के साथ लंदन आ गए.
कुछ अधिक राजनेता बढ़ गए
दूसरा गोलमेज सम्मलेन ७ सितम्बर को शुरू हुआ. इस में पहले सम्मलेन से कुछ अधिक राजनेता बढ़ गए थे, जैसे सर मुहम्मद इक़बाल मुस्लिम लीग प्रेजिडेंट, डॉ एस के दत्ता क्रिस्चियन प्रतिनिधि, जी डी बिरला ग्रेट फिनान्सिअर, पंडित मालवीय, सनातनी समाज सुधारक,सरोजिनी नायडू भारत की बुलबुल (निघटीयंगले ऑफ़ इंडिया ), सर अली इमाम। इन सबसे खास थी इसमें गांधीजी की रहस्य्पूर्ण मौजूदगी। पहला सम्मलेन ऐसा था जैसे “HEMLET WITHOUT THE PRINCE OF DENMARK”.
ब्रिटेन में एक बदलाव
इससे थोड़ा पहले ही ब्रिटेन में एक बदलाव हुआ था, वहां लेबर सरकार की जगह अब नेशनल सरकार थी, उसके प्रधानमंत्री रामसे मैक्डोनाल्ड अब भी सम्मेलन के अध्यक्ष थे,भारत के सचिव वेजवूड बेन की जगह सर सैमुअल होअरे बने. कन्सेर्वटिव नेता चर्चिल ने इस प्रस्तावित सत्ता हस्तांतरण का तीर्व विरोध भी किया था।
महात्मा गाँधी ने अपना पहला भाषण दिया
इस सम्मलेन का मुख्य काम संघीय ढांचा समिति और अल्पसनखयक समिति में होना था. इस सम्मलेन को पहले सम्मलेन में बनायीं गयी समितिओं की रिपोर्ट की दोबारा जाँच करके आगे भी बढ़ाना था. महात्मा गाँधी ने अपना पहला भाषण इस सम्मलेन की संघीय ढांचा समिति में १५ सितम्बर १९३१ को दिया, उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस भारत के हितो और सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है, कांग्रेस की वर्किंग कमिटी में उनके पास कई मुस्लिम अध्यक्ष हैं और कई मुस्लिम सदस्य , इसलिए कांग्रेस मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करती है । कांग्रेस ने राजनितिक मंच पर कई कार्यक्रम अछूतो के निवारण के लिए चलाये हैं अतः यह डिप्रेस्ड क्लास का भी प्रतिनिधित्व करती है. वह , भारत के रजवाड़ों के साथ भी है क्योंकि कांग्रेस ने रजवाड़ों के घरेलू और आंतरिक मामलों में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध कर उनका भी समर्थन किया था. उसके पास डॉ ऐनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू के रूप में कांग्रेस के महिला अध्यक्ष हैं, इसलिए कांग्रेस महिलांओं का भी प्रतिनिधित्व करती है. इस तरह केवल कांग्रेस ही इस भारत राष्ट्र एकमात्र प्रतिनधि है.
हवा का रुख किस ओर है
डॉ आंबेडकर ने गांधीजी के इस भाषण से भांप लिया कि हवा का रुख किस ओर है. इसलिए उनने अपनी पहली स्पीच उस समिति में उसी दिन दी. उनने रजवाड़ो से कहा कि संघीय ढांचा समिति भारत के रजवाड़ो को आँखे बंद कर वह नहीं दे सकती, जो वह चाहते हैं, यह सुनकर महाराजा बीकानेर सन्न रह गए और अपने स्थान पर खड़े हो गए, उनने कहा कोई रजवाड़ा भी एक ब्लेंक चेक हस्ताक्षर कर इस सिमिति को नहीं सौपेगा.
चयन चुनाव आधारित
डॉ आंबेडकर ने अपने विषय पर जोर देते हुए कहा” रियासतों को भारत संघ में शामिल करने की अनुमति तभी मिले जब वह सिद्ध करें कि उनके पास अपने नागरिकों को एक सभ्य जीवन देने के पर्याप्त साधन और सुविधा हैं. रजवाड़ों के भारत संघ में विलय के लिए उनका चयन चुनाव आधारित हो बजाय किसी के द्वारा नामांकन के यह डॉ आंबेडकर की मुख्य शर्त थी. उनका यह सटीक मत था, कि नामांकन आधारित चुनाव से कार्यकारिणी, विधायिका के प्रति गैर जिम्मेदार बनते हुए बाहरी संसार में एक भ्रामक दृश्य बनाती है, कि विधायिका का कार्य बहुमत के आधार के नियमो से चल रहा है, उनका यह पक्का विश्वास था कि नामांकन का सिद्धांत, जिम्मेदार सरकार के सिद्धांत के विपरीत है. बड़े जमीदारों के संघीय सरकार में विशेष प्रतिनिधित्व के बारे में उन्होंने कहा ” वह रूढ़िवादी सोच के साथ रहे हैं, उन्होंने आजादी और उन्नति का अंत कर दिया है, इसलिए उन्हें विशेष प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाना चाहिए.
इस सम्मलेन की यह पहली और एक उत्कृष्ट स्पीच थी जो रजवाड़ो और बड़े जमीदारो के राज्यक्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के नागरिक अधिकारों के बचाव में कही गयी थी.
क्रान्तिकारी विचार मूल सिद्धांतों पर थे
इन मजबूत विचारों ने सभी रजवाड़ो और जमींदारों और उनसे लाभ लेने वालों को एक झटका दिया, जो रजवाड़ो के प्रतिनिधित्व का संघीय सरकार में नामांकन द्वारा चुनाव का समर्थन कर रहे थे. इसका परिणाम यह हुआ की वहां कुछ वक्ता उनकी इस स्पीच के किसी बिंदु का समर्थन कर रहे थे किसी का विरोध कर रहे थे, लेकिन अधिकतर की राय में उनके यह क्रान्तिकारी विचार मूल सिद्धांतों पर थे।
चयनित प्रतिनिधि नहीं हैं
अगले दिन गांधीजी १६ सितम्बर ९१३१ ने इस समिति में कहा ” यहाँ सभी राजनेता किसी देश के चयनित प्रतिनिधि नहीं हैं, सभी को ब्रिटिश सरकार ने चुना है, (क्या यह इस सम्मलेन में शामिल होने से पहले गांधीजी को पता नहीं था, उन्हें पता था की यहाँ सभी ब्रिटिश सरकार द्वारा ही बुलाये गए हैं, फिर भी वह अपने पुरे दल बल के साथ यहाँ आये थे, वह डॉ आंबेडकर के अकाट्य तर्कों के आगे निरुत्तर थे, इसलिए उन्होंने सम्मलेन के अन्य अल्पसख्यंक प्रतिनिधियों पर भी अपना गुस्सा निकलना शुरू कर दिया ).
प्रतिनिधियों की निंदा
वह सभी प्रतिनिधियों की निंदा करने लगे. संघीय विधानमंडल में राज्यों के प्रतिनिधित्व पर अम्बेडकर के दृष्टिकोण के बारे में गांधी ने कहा कि उनकी सहानुभूति अम्बेडकर के साथ पूरी तरह से थी। गांधीजी ने भारत संघ में रियासतों के विलय का समर्थन तो किया, परन्तु रियासतों के लोगों के विरुद्ध हाकिमों के दृष्टिकोण का भी समर्थन किया, यह कहते हुए कि, मैं विनम्रता पूर्वक कहता हूं, यहाँ हमें कोई अधिकार नहीं है, राज्यों से यह कहने के लिए कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
गांधीजी ने तब निर्णायक समस्या की ओर रुख किया, जो प्रतिनिधियों के शिकार के रूप में थी। उन्होंने विभिन्न समुदायों द्वारा दावा किए गए विशेष प्रतिनिधित्व की समस्या का उल्लेख किया और कहा “कांग्रेस ने हिंदू मुस्लिम सिख उलझन के विशेष उपचार के लिए खुद को समेट लिया है, इसके ठोस ऐतिहासिक कारण हैं, लेकिन कांग्रेस उस सिद्धांत या किसी दूसरे अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का किसी भी आकार में आगे विस्तार नहीं करेगी, जहां तक अस्पर्श्यता निवारण का संबंध है, मैंने अभी तक डॉ अम्बेडकर के विचारों को ठीक से समझा नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से, कांग्रेस के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए डॉ अम्बेडकर के विचारों को भी अछूतों के अस्पृश्यता निवारण के लिए कांग्रेस में साझा किया जाएगा, अछूत कांग्रेसियों को उतने ही प्रिय हैं, जितने कि किसी अन्य निकाय या किसी अन्य व्यक्ति के हित पूरे भारत में फैले हुए हैं, इसलिए मैं किसी भी विशेष प्रतिनिधित्व का दृढ़ता से विरोध करूंगा।