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पहली मुलाकात : महात्मा गाँधी और डॉ आंबेडकर

पहली मुलाकात  : महात्मा गाँधी और डॉ अंबेडकर

डॉ अंबेडकर की स्पीच और राइटिंग के आधार पर, पिछले लेख में हमने चर्चा की थी,  जुलाई १९३१ के तीसरे सप्ताह में, दूसरे गोलमेज सम्मलेन के प्रतिनिधिओं के नामों की घोषणा हो गयी थी, डॉ अंबेडकर और महात्मा गाँधी दोनों को ही इस समेलन में शामिल होने के लिएअंग्रेजो की तरफ से न्योता था. दूसरे गोलमेज सम्मलेन में जाने से पहले इनकी पहली मुलाकात कैसी रही, आगे चर्चा करते हैं.

प्रथम गोलमेज सम्मलेन में सविनय अवज्ञाआंदोलन चल रहा था, अर्थार्त अंग्रेजो के सरकारी हुक्म को न मानना, और उनसे असहयोग करना, भारत के नौजवानो ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. गाँधी इरविन समझौता से यह आंदोलन समाप्त हो गया था.

बम्बई के मालाबार स्थित मणिभवन

महात्मा गाँधी इस सम्मेलन में उपस्थित होंगे या नहीं, इस पर कोई फैसला नहीं हुआ था. स्वाभाविक रूप से सभी की की नजरे बम्बई के मालाबार स्थित मणिभवन पर टिकी हुई थी, जहाँ महात्मा गाँधी ठहरे हुए थे, गाँधी जीआंबेडकर के सामने कांग्रेस की मांग को रखना चाहते थे, इसलिए उनने डॉ आंबेडकर को मिलने के लिए पत्र  दिनाक ०६. ०८.३१ में लिखा ” अगर आपके पास समय हो तो मै आज रात आठ बजे आपके स्थान पर ही मिलना चाहता हूँ, मुझे आपके स्थान पर आने में ख़ुशी होगी।”

डॉ आंबेडकर अभी सांगली से लौटे थे, उनको बुखार था उन्होंने पत्र  का उत्तर दिया “वह स्वयं  उनके स्थान पर  ठीक आठ बजे आ जायेंगे, लेकिन शाम होते ही उन्हें १०६ डिग्री बुखार हो गया, इसलिए उन्होंने संदेश भिजवाया, स्वस्थ होते ही वह उनसे स्वयं मिलेंगे। 

डॉ आंबेडकर और उनके सहयोगी

१४. ०८. १९३१ को दोपहर २ बजे वह उनसे मिलने मणिभवन गए. उनके साथ उनके सहयोगी देवराव नाईक, उनके सचिव शिवतारकर, प्रधान, भाउराव  गायकवाड़, और कद्रेकर भी पहुंचे। उनने देखा कि गाँधी जी अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ बातचीत और फल खाने में व्यस्त हैं. डॉ आंबेडकर और उनके सहगोयोगियो ने उन्हें अभिवादन किया और एक स्थान पर बैठ गए.

गाँधी जी एक आदत थी अधिकतर अजनबियों से जल्दी नहीं मिलते थे, गाँधी जी मिस सलेड और अपने कार्यकर्ता से बातचीत करते रहे, कुछ समय बाद डॉ आंबेडकर के सहयोगियों को भी लगने लगा अगर गाँधी जी ने डॉ अम्बेडकर को और अनदेखा किया तो यहाँ झगड़ा हो सकता है. तभी गाँधी जी ने आंबेडकर को देखा, वह पहली बार उनसे मिल रहे थे, कुशलक्षेम लेने के बाद वह मुख्य विषय पर आये.

गाँधीजी  — कहो डॉक्टर तुम्हें  इस बारे में कुछ कहना है.

आंबेडकरजी  –आपने मुझे अपने विचार बताने के लिए बुलाया है, कृपया आप बताइये आप क्या कहना चाहते हैं, या आप मुझसे प्रश्न कर सकते हैं, मैं उनका जवाब दूंगा।

उस समय तुम्हारा जन्म भी नहीं हुआ था

गाँधी —मुझे लगता है की तुम्हे मुझसे और कांग्रेस से कुछ समस्या है, सबसे पहले मैं तुम्हे यह बता दूँ, स्कूल के दिनों से ही मैं अस्पर्शयता के बारे में चिंतित रहा हूँ, उस समय तुम्हारा जन्म भी नहीं हुआ था. मैंने कांग्रेस के कार्यक्रम में पहले से ही इसे शामिल कर चूका हूँ, इसे कांग्रेस में शमिल करने के लिए मैंने अथक प्रयास किये हैं. कांग्रेस नेताओं का मत है की यह एक सामाजिक और धार्मिक समस्या है, इसलिए इसे एक राजनीतीक समस्या न बनाया जाये। और यही नहीं कांग्रेस ने अस्पर्शयता निवारण के लिए २१ लाख रूपये भी खर्च किये हैं, मुझे यह देखकर आश्चर्य है, आपके जैसा व्यक्ति भी मेरा और कांग्रेस का विरोध करता है. इस बारे में यदि कुछ कहना है, तो आप सवतंत्र हो कह सकते हैं.

बढ़ी उम्र के लोग अपनी उम्र को लेकर ज्यादा ही जोर देते हैं 

आंबेडकरजी  —महात्माजी यह सच है कि  मेरे जन्म से पहले ही आप  अछूतों के बारे में सोचते हैं, अकसर बढ़ी उम्र के लोग अपनी उम्र को लेकर ज्यादा ही जोर देते हैं, यह भी सच है, आपकी वजह से कांग्रेस ने अछूतों की समस्या को पहचाना है, लेकिन अगर स्पष्ट कहूं, तो कांग्रेस ने इस समस्या को पहचानने के आलावा कुछ भी नहीं किया है, आप कहते है कि  कांग्रेस ने अछूतो केउत्थान के लिए २१ लाख रूपये खर्च किये है, मैं कहता हूँ यह पैसा बेकार हो गया. इतने रुपयों में, मैं अपने समुदाय का आर्थिक और सामाजिक हालत सुधार  सकता था, इसके लिए आपको मुझे पहले मिलना चाहिए था (खर्च के बाद नहीं ). मुझे लगता है,  कांग्रेस पार्टी अपने कार्यो में एक पेशेवर पार्टी की तरह  गंभीर नहीं है. अगर होती तो वह निश्चित ही अस्पृश्यता निवारण को पार्टी का सदस्य बनने की एक शर्त बना सकती थी जैसे खादी पहनने की एक शर्त है. वही कांग्रेस का सदस्य  रहेगा, जो कांग्रेस सदस्य किसी अछूत को घर में नौकरी पर रखेगा या किस अछूत विद्यार्धी का पालन पोषण करेगा, या सप्ताह में एक दिन उसके साथ घर पर खाना खाएगा, क्या ऐसी कोई भी शर्त कोंग्रेस में रखी गई है. आप उस उपहास से भी बचना चाहेंगे, की जहाँ एक कांग्रेस जिला अध्यक्ष अछूतों के मंदिर प्रवेश का विरोध कर रहा है.

सिद्धांतो सेअधिक शक्ति प्रिय है

शायद आप कहें कि कांग्रेस को शक्ति चाहिए, इसलिए  ऐसी किसी भी शर्त को कांग्रेस में रखना मूर्खता होगी। तब मेरा मत है, कि कांग्रेस को सिद्धांतो सेअधिक शक्ति प्रिय है, यही मेरा आपकेऔर कांग्रेस के ऊपर आरोप है. आप कहते हैं, कि अंग्रेजो ने कोई भी ह्रदय परिवर्तन नहीं दिखाया है, मैं भी कहता हूँ हिन्दुओ ने भी हमारी समस्या के  सम्बन्ध में  कोई ह्रदय परिवर्तन नहीं किया है. जब तक वह इस पर अड़े रहते है, तब तक हम न तो हिन्दुओं पर और न ही कांग्रेस पर विश्वास कर सकते हैं. हमारा विश्वास अपने स्वाभिमान और अपनी मदद स्वयं करने में है. हम किसी भी बड़े नेता या महात्मा पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं, यह एक कड़वा सच है,  जिसके बारे में मैंने कहा है. इतिहास बताता है, महात्मा एक क्षणिक प्रेत की तरह रहे हैं, धूल उड़ाते हैं, पर किसी का स्तर नहीं उठा सके. कांग्रेस के लोग किसलिए मेरा विरोध करते हैं और मुझे गद्दार कहते हैं?

मेरी कोई गृह भूमि या राष्ट्र नहीं है

डॉ आंबेडकर आक्रामक हो रहे थे, उनका  चेहरा और आँखे लाल हो गयी, वह कुछ देर रुके, फिर क्रोधित और कड़वे शब्दों में बोले ”  गाँधी जी मेरी कोई गृह भूमि या राष्ट्र नहीं है“. 

गांधीजी —-गांधीजी ने उनकी बातों को काटते हुए कहा ” यह देश (गृह भूमि)  तुम्हारा है, गोलमेज सम्मलेन की रिपोर्ट में तुम्हारे राष्ट्रहित कार्यों को मैंने देखा है, मुझे लगता की आप एक सच्चे राष्ट्रभक्त हो”. 

मानव् अधिकारों के लिए प्रयास

आंबेडकर — आप कहते हैं मुझे गृह भूमि मिल चुकी है, मैं फिर कहता हूँ की मैं बिना गृह भूमि का हूं, इस गृह भूमि और इस धर्म को मैं अपना कैसे कह सकता हूं , जहाँ हमारे साथ कुत्ते बिल्लियों से भी बुरा व्यव्हार होता है, हमें पानी तक नहीं पीने दिया जाता, कोई भी स्वाभिमानी अछूत व्यक्ति देश में रहने से अधिक, इस भूमि पर गर्व नहीं करेगा। इस भूमि पर हमारे ऊपर सदियों से होने वाले अन्याय और कष्ट बहुत विशाल हैं, अगर जाने अनजाने,  मैं इस भूमि के प्रति ईमानदार न रहूं, तब उसकी पूरी जिम्मेदारी इस देश की (भूमि की) होगी, मेरी नहीं। यदि मैं अपने कार्यो की जिम्मेदारियों को निभाने में, देश के प्रति ईमानदार न रह सकूँ, तब मुझे गद्दार कहलाने में कोई भी खेद नहीं होगा।अगर मुझसे कोई भी कार्य इस राष्ट्र के हित के लिए हो जाता है, जैसा कि आपने कहा कि मैं राष्ट्रभक्त हूं,  तब यह केवल मेरी गहन चेतना के कारण हैं न की किसी देशभक्ति की भावना के कारण।अपनी गहन चेतना के उत्साह के कारण ही, मैं इस देश को बिना नुकसान पहुंचाए, अपने लोगो के मानव् अधिकारों के लिए प्रयास कर रहा हूं। 

वहां के माहौल में गंभीरता आ गयी थी, चेहरों के रंग बदलने लगे थे, गांधीजी अंबेडकरजी को कुछ जवाब देना चाहते थे, तभी अम्बेडकरजी ने अत्यावश्यक सवाल पूछा, जिसके लिए यह साक्षात्कार हुआ था.

अछूतो की समस्या के बारे में आपका क्या मत है?

आंबेडकरजी  —- सभी जानते हैं कि मुस्लिम और सिख सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक दृष्टि से अछूतों से बहुत आगे हैं. प्रथम गोलमेज सम्मलेन में मुस्लिमों की राजनितिक मांगो, उनकी सुरक्षा और उनकी राजनीतक मान्यता के सुझाव आये थे, कांग्रेस ने भी इसको अपनी सहमति दी है, प्रथम गोलमेज सम्मेलन में डिप्रेस्ड क्लास की समस्या को भी राजनितिक पहचान मिली है, इनकी राजनितिक सुरक्षा और पर्याप्त प्रतिनिधित्व के भी सुझाव आये हैं, हमारे अनुसार वह डिप्रेस्ड क्लास के लिए लाभदायक हैं, इस बारे में आपका क्या मत है?

आत्मघाती कदम

गांधीजी — मैं हिन्दुओं से अलग, अछूतों के राजनितिक अलगाव  के विरुद्ध हूं, यह पुर्णतः एक आत्मघाती कदम होगा।

अंबेडकरजी (उठते हुए )  —  मैं आपके स्पष्ट मत के लिए आपका धन्यवाद करता हूं, यह अच्छा है, हमें पता लग गया की  हमारी इस आवश्यक समस्या को लेकर हम कहाँ पर हैं, अब मैं आपसे विदा लेता हूं.   

(The Navyug—Ambedkar Special Number, 13 th April 1947).

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राजनीती का केंद्र महात्मा गाँधी

इस  साक्षात्कार का समापन एक गंभीर माहौल में हुआ था. गांधीजी उस समय भारत की राजनीती  के बॉस थे, राजनीती उनके आस पास रहती थी, उनके एक इशारे पर किसी भी आंदोलन की शुरआत या समाप्ति होती थी, वह भारत की अधिकतर जनता के बेताज बादशाह थे. उनकी नजर में कोई हिन्दू नेता उनसे इस तरह बात कर सकता है,  यह उनने सोचा भी नहीं था.  उन्हें इस तरह पलट कर जवाब मिलने से, उनके आपसी संबंधो में, न समाप्त होने वाला अलगाव, और एक स्थायी कड़वाहट आ गयी. इस सक्ष्तात्कार ने गाँधी और अंबेडकर के बीच में एक युद्ध की शुरआत कर दी थी. 

गांधीजी समझे अबेडकर कोई ब्राह्मण हैं 

यहाँ यह भी आश्चर्यजनक है, कि गाँधी जी अभी तक नहीं जानते थे, कि आंबेडकर भी उसी वर्ग से आते हैं, जिनके लिए वह लड़ रहे थे, चूँकि उनके नाम के पीछे आंबेडकर लगा था, जो किसी ब्राह्मण होने का सूचक था, वह उन्हें कोई ब्राह्मण ही समझते रहे, जिसकी गहन दिलचस्पी अछूतों के अधिकारों के लिए लड़ने में है। 

इस साक्षात्कार का मुख्य स्त्रोत, डॉ आंबेडकर स्पीच एंड राइटिंग है, आशा है, इस देश के दो महान पुरुषो, जिनके नाम से इस देश को विश्व समुदाय में जाना जाता है, के विचारो  की समीपता पाठको ने भी महसूस की हो, ज्ञान वर्धन होना एक गौण लाभ है.

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This Post Has 2 Comments

  1. gopal

    It’s look like a movie is going on nicely written a real history

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