फ्रांस की क्रांति : रूसो एक बेहतरीन प्रेमी या दार्शनिक
पीछे के लेख में “अगर रूसो न होता तो फ्रांस की क्रांति नहीं होती” नेपोलियन के इस कथन को ध्यान में रखते हुए रूसो के दर्शन और संगीत में मेलोडी और सवतंत्रता की चर्चा की थी। हमारे यहाँ ही नहीं वरन विभिन्न भाषाओँ के सिनेमा में भी रोमांटिक संगीत का खूब इस्तेमाल होता है। सभी लोग ऐसे संगीत से अपना एक मनोवैज्ञानिक जुड़ाव महसूस करते हैं, इसलिए किसी भी सिनेमा या एल्बम में उसके रोमंटिक संगीत को उसके हिट होने का एक पैमाना माना जाता है। फ्रांस की क्रांति घटित होने के बहुत से सामाजिक आर्थिक और राजनितिक कारणों के बारे में हम पीछे चर्चा कर चुके हैं, इसके लिए पाठक पिछले लेख देख सकते हैं। क्या प्यार और रोमांटिक संगीत का भी फ्रांस की क्रांति में कुछ योगदान हो सकता है ? क्या कोई उपन्यास इस क्रांति या बदलाव की प्रेरणा का स्त्रोत बन सकता है ? रूसो एक बेहतरीन प्रेमी था या दार्शनिक ?
फ्रांस की क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण
मदर टेरेसा के अनुसार ” इस दुनिया में इंसान की रोटी की भूख से प्यार की भूख मिटाना कहीं अधिक कठिन है” इंसान ही क्या जानवर भी प्यार का भूखा होता है। जब यही प्रेम स्त्री पुरुष के बीच हो तो तख्तो ताज हिलते देखा गया है। प्रेमी युगल अपनी मुहब्बत, प्यार दोस्ती चाहत में सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक और धार्मिक बंधनो को अपना कट्टर दुश्मन मानने लगे तब वह ऐसे बंधनो को तोड़ने के लिए कमर कस लेते हैं यदि उन्हें रूसो और वॉल्टर जैसे दिशा बताने वाले साहसिक दार्शनिक मिल जाये, इतिहास में दर्ज निम्न लिखित जानकारी कुछ ऐसा ही संकेत देती है।
रूसो और वोल्टायर जो कि प्यार में किसी भी बंधन को मानने से उस वक्त परहेज करते थे, एवं प्यार में खुलेपन और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के समर्थक थे, तथा धार्मिक और आर्थिक रूढ़िवादिता के उतने ही विरोधी थे, प्रेमी युगल उनसे खासे प्रभावित रहे होंगे। उपलब्ध निम्नलिखित जानकारियों के आधार पर कुछ ऐसा ही लगता है कि मानव के प्रेम करने की प्राकृतिक और शुद्ध इच्छा का सामाजिक एवं आर्थिक बंधनों द्वारा दमन और उसके प्रति पीड़ित जन सैलाब का त्रीव आक्रोश और सहानुभूति भी फ्रांस की क्रांति का एक घटक हो सकता है। फ्रांस की क्रांति का एक रोमांटिक विचार की दृष्टि से कुछ पड़ताल करते हैं।
इनसाइक्लोपीडिया कंपनी में दोबारा आगमन
1762 में द सोशल कॉन्ट्रैक्ट प्रकाशित हुआ, तब रूसो ने जिनेवा में रहने का विचार छोड़ दिया था। 1754 में अपने नागरिक अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के बाद, वह पेरिस में अपने दोस्तों की इनसाइक्लोपीडिया कंपनी में लौट आए थे। लेकिन वह अपने ही दर्शन के कारण सांसारिक समाज में बहुत चिड़चिड़ा हो गया। अपने ही एक साथी के साथ झगड़ा करने लगा। जिनेवा के विषय पर एनसाइक्लोपीडी के लिए एक धार्मिक लेख के कारण, जो डी’अलेम्बर्ट द्वारा वोल्टेयर की प्रेरणा पर लिखा गया था, उसे फ्रांस में बहुत परेशान किया गया।
मोंट्लॉइस के वर्ष
उस समय तक उनका लेट्रे ए डी’अलेम्बर्ट सुर लेस चश्मा (1758;थिएटर पर महाशय डी’एलेम्बर्ट को पत्र ) छप गया था, रूसो ने अपने फ्रांस में उच्च पदस्थ मित्र की भू संपत्ति पर प्रकृति के करीब मोंटमोरेंसी के पास ममे डी’पिनय में जीवन को समझने के लिए पेरिस छोड़ दिया। ममे डी’पिनय में भी उसका आतिथ्य पेरिस के समान ही सामाजिक तरीको से हुआ, रूसो पास की एक झोपड़ी में रहने लगा, जिसे मोंट्लॉइस कहा जाता है। लेकिन वह मित्र भी उसे 1762 में नहीं बचा सका जब उसका ग्रंथ एमिल ; ou, de l’education (एमिल; या शिक्षा पर ) प्रकाशित हुआ। फ्रांसीसी पार्लेमेंट्स के पवित्र जनसेनिस्टों को प्रकाशित और बदनाम किया गया था, यहां तक कि द सोशल कॉन्ट्रैक्ट ने जिनेवा के केल्विनवादी। पेरिस में, जेनेवा की तरह, उन्होंने पुस्तक को जलाने का आदेश दिया और लेखक को गिरफ्तार कर लिया। 1763 में औपचारिक रूप से अपनी जिनेवन नागरिकता को त्यागने के बाद, रूसो एक भगोड़ा बन गया, जिसने अपना शेष जीवन एक शरण से दूसरे शरण में जाने में बिताया।
प्रकृति के समीप मोंटमोरेन्सी के वर्ष
प्रकृति के समीप मोंटमोरेन्सी के वर्ष उनके साहित्यिक करियर के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण थे। सामाजिक अनुबंध, एमिल , और जूली; ओउ, ला नोवेल हेलोस (1761;जूली; या, द न्यू एलोइस ), 12 महीनों के भीतर सामने आया, ये तीनों मौलिक महत्व के कार्य हैं।जूली; या, द न्यू एलोइस उपन्यास होने के कारण सेंसरशिप से बच गया, जबकि एमिल और सोशल कॉन्ट्रक्ट को सेंसर बैन कर दिया गया, क्योँकि यह दोनों ही तत्कालीन समाजिक और राजनितिक व्यवस्था पर करारी चोट करते थे ।
द न्यू एलोइस एक टर्निंग पॉइंट
द न्यू एलोइस, एक उपन्यास होने के कारण प्रकाशित हो गया, उनकी सभी पुस्तकों में यह उनके जीवनकाल में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली और सभी जगह प्रशंशनीय साबित हुई। यह प्यार में खुलेपन की वकालत करता है, इससे पहले संगीत में माधुर्य और रोमांस पर वह पहले ही बहुत कुछ लिख चुके थे। यह उस युग का शायद प्यार की भावनाओं और सामाजिक बंधनो के विरुद्ध प्यार को मजबूती से व्यक्त करने का सबसे अधिक प्रचलित और प्रथम उपन्यास था। इस उपन्यास को पढ़ कर कम पढ़ा लिखा तबका और शिक्षित महिलाएं एमिल और सोशल कॉन्ट्रैक्ट के प्रशंशक बन गए वह चोरी चोरी इन किताबों को पढ़ने लगे। वहीं दूसरी ओर पादरी वर्ग और राजकीय कानून रूसो के शत्रु बन गए। उनका जगह जगह पर उत्पीड़न किया गया, और समय-समय पर उनकी प्रशंसा करने वाली महिला डु मोंडे ने उसकी मदद करने के लिए बार बार हस्तक्षेप किया ताकि रूसो कभी भी वोल्टेयर और डाइडरोट की तरह अपने धार्मिक विरोध लेखों के कारण वास्तव में कैद न हो।
द न्यू एलोइस
प्रेम संबंधों में जज्बाती और प्लेटोनिक प्यार
उपन्यास स्पष्ट रूप से रूसो के अपने व्यक्तिगत और प्रेम संबंधों में जज्बाती और प्लेटोनिक प्यार पर आधारित है .
एक बार सोफी डी’होडेटोट, एक रईस और भावुक महिला जो उसके पास मोंटमोरेंसी में रहती थी। उन्होंने स्वयं स्वीकारोक्ति (कॉन्फेशन) में जोर देकर कहा कि “उन्हें प्यार करने की इच्छा, जिसे मैं कभी संतुष्ट नहीं कर पाया था, और जिसके द्वारा मैंने खुद को खो दिया था “। सेंट-प्रीक्स के प्रेम का अनुभव, रूसो के स्वयं के अपने मध्यम वर्ग के पुरुष के अनुभव को दर्शाता है। और फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि द न्यू एलोइस उन कानूनों पर हमला है, जिसे रूसो ने प्रकृति के नियमों के विरुद्ध कानूनों का दर्जा दिया है। वोल्मर परिवार के सदस्यों को एक कुलीन वर्ग आदर्श के अनुसार जीने में खुशी पाने के रूप में दर्शाया गया है। वे तत्कालीन सामाजिक जीवन की दिनचर्या की सराहना करते हैं, और स्विस और सेवॉयर्ड आल्प्स (पर्वत माला) की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हैं। लेकिन सामाजिक व्यवस्था की इतनी विषमता और कड़ी आलोचना के बावजूद, उपन्यास क्रांतिकारी था, इसमें प्रेम की भावनाओं की बहुत ही स्वतंत्र अभिव्यक्ति और इसकी अत्यधिक संवेदनशीलता ने इसके बड़े पाठक वर्ग को गहराई से प्रभावित किया।
एमिल
एमिल एक ऐसी पुस्तक है जो वैकल्पिक रूप से द सोशल कॉन्ट्रैक्ट की रिपब्लिकन नैतिकता और द न्यू एलोइस की उच्च वर्गीय नैतिकता के लिए अपील करती प्रतीत होती है। यह एक आधा उपन्यास और एक आधा उपदेशात्मक निबंध है। लेखक द्वारा एक ग्रंथ के रूप में वर्णित शिक्षा, यह स्कूली शिक्षा के बारे में नहीं है, बल्कि एक अमीर आदमी के बेटे की परवरिश और नैतिक शिक्षा के बारे में है। साथ ही पुस्तक गणतंत्र की नागरिकता के लिए शिक्षा की संभावनाओं का पता करती है । पुस्तक का मूल तर्क, जैसा कि रूसो ने स्वयं व्यक्त किया है, कोई भी बच्चा मासूम होता है, दोष और त्रुटि किसी भी बच्चे के लिए बाहरी सामाजिक संस्थाओं से थोपे जाते हैं, इसलिए एक शिक्षक को इन ताकतों से मुकाबला करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए, बाहरी दवाबों में हेर फेर कर उन्हें परकृति के अनुरूप लाये न कि उनके विरुद्ध । इसमें शिक्षक को प्राकर्तिक तरीके से पढ़ाने के कई तरीके बताये हैं, जो एक शिक्षक के लिए जरुरी हैं। यहाँ बच्चे को शारीरिक दंड दिया जा सकता है पर मानसिक दंड बिलकुल नहीं।
सामाजिक अनुबंध, एमिल और रूसो के विचार
जहां सामाजिक अनुबंध स्वतंत्रता प्राप्त करने की समस्याओं से संबंधित है, एमिल का संबंध खुशी और ज्ञान प्राप्त करने से है। इस अलग संदर्भ में धर्म एक अलग भूमिका निभाता है। एक नागरिक धर्म के बजाय, रूसो यहां एक व्यक्तिगत धर्म की रूपरेखा तैयार करता है, जो एक प्रकार का सरलीकृत ईसाई धर्म है, जिसमें न तो चमत्कार हैं और न ही चर्च के प्रति हठधर्मिता शामिल हैं। ला प्रोफेशन डे फोई डू विकेयर सेवॉयर्ड (1765;द प्रोफेशन ऑफ फेथ ऑफ ए सेवॉयर्ड विकर) रूसो के अपने धार्मिक विचारों के रूप में क्या माना जा सकता है, क्योंकि यह पुस्तक उनके निजी पत्राचार में इस विषय पर उनके द्वारा कही गई बातों की पुष्टि करती है। रूसो भी ईश्वर के अस्तित्व या आत्मा की अमरता को मानता है। इसके अलावा, उन्होंने ईश्वर की पूजा की ओर एक मजबूत भावनात्मक तरीका बताया जो केवल प्रकृति के सामीप्य में मिल सकता था। उन्होंने “मनुष्य में आत्मा की दिव्य आवाज” को भी बहुत महत्व दिया तथा धर्म के आडंबर और रूढ़िवादिता का विरोध किया।
नए धार्मिक पंथ का विरोध
इस नए धार्मिक पंथ ने रूसो को चर्चों के रूढ़िवादी धार्मिक अनुयायियों और पेरिस में नास्तिक दर्शन के लिए परेशानी में डाल दिया, न्यू ऐलिस का पाठक वर्ग यधपि उनके साथ था फिर भी उनने खुद को अकेला महसूस किया। फ्रांस से निकाले जाने के बाद, स्विट्जरलैंड में कैंटन तक उनका पीछा किया गया। जिनेवा में असमानता की उत्पत्ति लेक्चर पर सामाजिक अनुबंध का दमन किया गया।
रूसो को बर्न के कैंटन से निर्वासित किए जाने के बाद इंग्लैंड में शरण मिली। स्कॉटिश दार्शनिक डेविड ह्यूम उसे वहां ले गए और किंग जॉर्ज III से उन्हें पेंशन मिलने लगी। लेकिन एक बार इंग्लैंड में, रूसो को पता चला कि कुछ ब्रिटिश बुद्धिजीवी उनका मजाक उड़ा रहे हैं, और उन्हें ह्यूम पर मजाक में भाग लेने का संदेह था। घबराहट और बेचैनी के विभिन्न लक्षण रूसो में प्रकट होने लगे, और वह गुप्त रूप से फ्रांस लौट आया।
जीवन के शेष 10 वर्ष
रूसो के दर्शन का अवलोकन
फ्रांस की क्रांति में पाठको को यहाँ कुछ एक प्रेम, संगीत तथा रोमांस का कोण नजर आता है, नयू ऐलिस में प्लेटोनिक प्यार तथा अपने इस सिद्धांत “जहां पुरुषों को सार्वजनिक जीवन में दुनिया पर शासन करना चाहिए, वहीं महिलाओं को निजी जीवन में पुरुषों पर शासन करना चाहिए” पर पाठको की क्या राय है। संगीत में माधुर्य तथा रोमांस का समावेश करके तथा अपने उपन्यास नयू ऐलिस के जरिये निम्न वर्गीय समाज तथा उच्च वर्गीय महिलाओं को प्यार की कोमल और प्राकृतिक भावनाओ से पहचान कराकर, उनमे आत्मसम्मान जगाना और नारी शक्ति का जागरण करना (क्योंकि उच्च वर्गीय महिलाये भी तब उच्च वर्गीय पुरुषो की इच्छा पर ही निर्भर थी, उनका अपना कोई भी सवतंत्र वजूद या इच्छा नहीं था, कृपया पिछले लेख देखे )
निम्न वर्ग और उच्च वर्गीय महिलाओं को सामाजिक अनुबंध तथा एमील पढ़ने के लिए नागरिक और मुलभुत अधिकारों के प्रति जिज्ञासु एवं जागरूक करना, बच्चो की शिक्षा को प्रकृति के समीप रखना एवं “प्रकृति की ओर लौटो” का नारा देकर उसके प्राकृतिक स्वरूप से परिचित कराना कुछ ऐसे कारण रहे होंगे, जिनसे प्रभावित होकर बीमार राजनीतिक, आर्थिक और रूढ़िवादी धार्मिक व्यवस्था के प्रति पीड़ित वर्गों का एक बड़ा वर्ग फ्रांस की क्रांति के लिए मनोवाञ्निक रूप से तैयार हो गया होगा।
प्यार में खुलापन संगीत में मेलोडी और रोमांस का समावेश
ऐसा लगता है, कि प्यार में खुलापन संगीत में मेलोडी और रोमांस का समावेश भी शायद पहली बार रूसो ने ही किया था, जिसने निम्न वर्गीय समाज एवं उच्च वर्गीय महिलाओं को नई चेतना एवं आत्मसम्मान से भर दिया था, क्योंकि सामाजिक आर्थिक राजनीतीक विषमता का शिकार यही वर्ग था, जिसमे उनका कोमल और स्वार्थरहित प्यार की इच्छा भी शामिल थी, इसी वर्ग ने इस विश्व प्रसिद्ध क्रांति को मध्यवर्ग से अपने हाथ में ले कर सफल बनाया था। यहाँ उल्लेखनीय है चूँकि मध्यवर्ग खुद सम्पति वाला था, इसलिए वह रूसो का कम समर्थक रहा होगा, क्योंकि रूसो मानव रचित बनावटी असमानता का मुख्य कारन सम्पति के भयावह स्वरूप को ही मानता था। इसके लिए पिछले लेख देखे।
अलबेला दार्शनिक
फ्रांस की क्रांति के प्रसिद्ध नारे सवतंत्रता समानता और बंधुत्व, रूसो के सामाजिक समझौते से ही निकले थे, जो भारत के संविधान की प्रस्तावना में भी है, इसलिए “रूसो का कथन अगर रूसो न होता तो फ्रांस की क्रांति नहीं होती” सही प्रतीत होता है। वह एक ऐसा अलबेला दार्शनिक था जो कि समाजवादी, लोकतंत्रवादी, उदारवादी, पूंजीवादी और कहीं कहीं तानाशाही को मानने वाले सभी का आदर्श बन जाता है, इसका कारन यही है कि रूसो के दर्शन में मनुष्य के प्राकृतिक छलकपट रहित एक भोले मानव के प्रेम की कोमल इच्छाओं और उसके दया करुणा प्रेम के प्राकृतिक एवं शुद्धरूप को समाज के सामने बहुत ही प्रभावशाली, संवेदना एवं साहस के साथ रखा गया है।
बूझो तो जाने
यह बात है १८वी सदी की है जब रूसो ने मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के प्यार की कोमल भावनाओं और उसके प्राकृतिक शुद्ध रूप को जिया ही नहीं था, बल्कि घनघोर राजकीय विरोध के बावजूद,उसे मजबूती और साहस के साथ अपने जीवन और दर्शन में व्यक्त भी किया था, उपरोक्त तथ्यों को देखकर ऐसा ही लगता है कि फ्रांस की क्रांति जैसी युगांतकारी और दुनिया बदलने वाली घटना में रूसो का योगदान सर्वाधिक रहा था। जिसे नेपोलियन जैसे सैनिक तनाशाह ने पहचान लिया था, उसने इस क्रांति को पूरी तरह नजदीक से देखा था, तभी उसे इस क्रांति का सूत्रधार कहा था।
आज भी समाज में १८वी सदी की तरह निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग के प्यार, शादी, विवाह पर सामाजिक, जातीय, आर्थिक और धार्मिक बंधन आड़े आते हैं, (कुछ अपवादों को छोड़ दें), जिसका कारन रूसो द्वारा वर्णित समाज की बनावटी असमानता है, जबकि दूसरी ओर उच्च वर्ग और समर्थ वर्ग, १८वी सदी की तरह ऐसे सभी मामलों में, इन सभी बंधनो से पहले की तरह मुक्त है, ढूढ़ने पर ऐसे कई उदाहरण खोजे जा सकते हैं, प्यार में खुलापन, रोमांटिक संगीत जिसका रूसो ने जिक्र किया है, वह सर्वसुलभ है, रूसो के पवित्र और प्राकृतिक प्रेम की कमी नजर आती है तो वह अधिक मामलों में किसी न किसी बंधन के कारण है।
धन्य हैं, रूसो और उसकी नैतिक मूल्यों में आस्था और साहस रखने वाली प्रेयसी, विश्वशनीय पत्नी और उनके बीच महान प्रेम का शुद्ध और प्राकृतिक स्वरूप, जिसने रूसो जैसे स्कूल न जाने वाले छात्र को एक महान संगीतज्ञ, साहसिक व्यक्ति और युग बदलने वाला दर्शनशास्त्री बना दिया, इन महिलाओं के प्रेम और साथ के बिना शायद रूसो वह नहीं होता जिसे हम आज जानते हैं, यहाँ रूसो के समकालीन दार्शनिक वॉल्टर जो उस दौरान अपने क्रन्तिकारी धार्मिक और आर्थिक विचारों के कारण अधिकतर जेल में ही रहा था, का एक वाक्य उल्लेखनिय है, जो उसने शायद रूसो से प्रभावित होकर ही कहा हो ” हर सफल पुरुष के पीछे उसकी मदर इन लॉ होती है” । स्त्री और पुरुष के बीच के प्यार करने की इच्छा को सामाजिक कल्याण हेतु अत्यंत साहस के साथ सोशल कॉन्ट्रैक्ट (एक राजनितिक विचार की पुस्तक) को समाज की जनरल इच्छा या लोकतंत्र की आधारशिला बना देना, यह कोई रूसो जैसा बेहतरीन और महान प्रेमी ही कर सकता है।
अब बात करे भारत के संविधान की तो क्या इसमें किसी के प्रेम की झलक मिलती है, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता इस संविधान की प्रस्तावना में हैं , लेकिन वास्तविकवता में यह कितना कारगर है यह एक शोध का विषय है , यह सवाल पाठकों के विवेक पर निर्भर करता है कि वह रूसो के इस कथन को ध्यान में रखते हुए सम्पत्तिविहीन व्यक्तियओं के समाजिक प्रेम को महसूस करते हैं ” मनुष्य सवतंत्र पैदा हुआ है लेकिन वह हर जगह बेड़ियों में जकड़ा हुआ है”, (बशर्ते उन्हें इसके लिए उन्हें अपनी जाति, धर्म, अहम् और पूर्वाग्रहों का त्याग करना होगा) . ऐसा लगता है शायद कार्ल मार्क्स ने रूसो के इसी कथन पर शोध किया था तभी उसने सभी धनहीन और सामाजिक बंधन में जकड़े हुए आम जन से कहा “बेड़ियाँ तोड़ो तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है”.
इस लेख का मुख्य आधार ब्रिटानिका शैक्षिक वेबसाइट और इंटरनेट पर उपलब्ध अन्य शैक्षिक स्त्रोत को इन्हे पढ़ते हुए लेखक के अपने विचार हैं, जिनका उद्देश्य केवल सुधि पाठकों का ज्ञानवर्धन है।
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